यूपी में धर्मांतरण की राजनीति
17-Dec-2014 05:37 AM 1234794

उप्र के आगरा में मुस्लिम परिवारों के 387 सदस्यों ने गोल मुस्लिम टोपी लगाकर हवन किया और हिंदू बन गए। इससे हिंदूवादी खेमे में उत्साह की लहर दौड़ गई कि चलो 387 और जुड़ गए। जिस देश में धर्म को संख्या बल के हिसाब से महान माना जाता हो वहां सब अपनी-अपनी संख्याएं बढ़ाने में यकीन रखते हैं, गुणवत्ता पर किसी का ध्यान नहीं है। बहरहाल 387 लोगों ने जब इस्लाम से विदाई ले ली तो मुस्लिम जगत के रहनुमाओं को भी संख्याबल की चिंता हुई, लिहाजा उन्होंने आनन-फानन में इन नव-निर्मितÓ हिंदुओं को वापस मुस्लिम धर्म मेें बुला लिया है।

धर्मांतरण का यह नाटक संसद में भारी बहस का सबब बन गया। सरकार की तरफ से केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वैंकय्या नायडू ने सफाई दी कि भाजपा तो प्रारंभ से ही धर्मांतरण के खिलाफ है। लेकिन संसद में इस बहस ने भाजपा के धर्मांतरण के मुद्दे को फलने-फूलने का मौका दे दिया।
भाजपा और हिंदूवादी संगठन प्रारंभ से ही धर्मांतरण पर सवाल उठाते रहे हैं, चाहे वह केरल में हो या पूर्वोत्तर में। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने धर्मांतरण के खिलाफ हमेशा आक्रामक रवैया अपनाया। इसी कारण संसद में बहस के दौरान भाजपा के वक्ताओं ने जो गड़े मुर्दे उखाड़े उससे विपक्ष को ही एक तरह से बैकफुट पर आना पड़ा। सवाल यह है कि विपक्ष ने ऐसी नादानी क्यों की? जबकि सच तो यह है कि धर्मांतरण पर जब भी कोई बहस छिड़ेगी, निश्चित रूप से सबसे पहले ईसाई और मुसलमान ही कटघरे में खड़े होंगे।
जिस तरह ईसाईयों ने अपनी कथित नि:स्वार्थ सेवा के बदले केरल से लेकर पूर्वोत्तर तक बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करवाया और आदिवासियों की संस्कृति ही नष्ट कर डाली, वह एक बड़ा मुद्दा है। इसी प्रकार औरंगजेब के समय से लेकर आजादी के अंतिम दिनों तक डरा-धमका कर या तलवार की दम पर हिंदुओं को मुसलमान बनाया जाता रहा। इसके मुकाबले 387 या 1000 या 10-20 हजार की संख्या बहुत कम है और इस पर बवाल मचाना भी एक तरह से हास्यास्पद कवायद है। इस मामले में हिंदू संगठनों का नासमझी और नादानी से भरा कदम भी उतना ही हास्यास्पद कहलाएगा।
रातों-रात लाखों-करोड़ों हिंदू या तो ईसाई बन गए या मुसलमान, किसी को कानों-कान खबर नहीं लगी, लेकिन 387 मुस्लिमों का हिंदू धर्म में प्रवेश इतनी बड़ी समस्या बन गया कि उस पर संसद ही उबल पड़ी। संसद में जितना वक्त धर्मांतरण पर जाया किया गया, उतने वक्त में यदि कोई सार्थक विषय पर चर्चा की जाती तो शायद ज्यादा उपयोगी सिद्ध होता। किंतु धर्मांतरण का मुद्दा धार्मिक न होकर राजनीतिक अधिक है। उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी तमाम समान विचार रखने वालों को एकत्र कर एक नई राजनीतिक ताकत को उभारने के प्रयास में है।

जाहिर है यह ताकत जातिवाद से ही निकलेगी। क्योंकि जातिवाद एक ऐसा मुद्दा है जो सपा, बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इसीलिए जब संसद में साध्वी निरंजन ज्योति के बयान पर हंगामे के बाद भाजपा ने दलित कार्ड खेला तो जातिवादी राजनीति करने वाले सारे दल बैकफुट पर आ गए। जहां तक भाजपा का प्रश्न है, वह जातिवादी राजनीति में माया, मुलायम, लालू, नीतिश जैसे धुरंधरों को कभी भी नहीं पछाड़ सकती। इन्हें इसमें महारत हासिल है और उत्तरप्रदेश में तो जातिवाद सर चढ़कर बोलता है। ऐसे में जातिवाद के महारथियों से तभी लोहा लिया जा सकता है जब साम्रदायिकता की आग कम से कम इतनी तो सुलगती रहे कि उससे हिंदू बनाम मुस्लिम का धु्रवीकरण हो जाए। लोकसभा चुनाव में यह ध्रुवीकरण स्पष्ट नजर आया था।
भाजपा जानती है कि जातिवाद की शतरंज पर उसे महारत हासिल नहीं है। इसलिए वह उत्तरप्रदेश में हिंदुओं को एकत्र करते हुए हिंदू और हिंदुत्व के मुद्दों को प्रासंगिक बनाए रखना चाहती है। राम मंदिर को लेकर लड़ाई लड़ रहे हासिम अंसारी ने पहले तो राम लला की मुक्ति की बात की और फिर अपने बयान से पलट गए। भाजपा का सौभाग्य यह है कि दूसरी तरफ भी आग बराबर की ही लगी हुई है। बाबरी एक्शन कमेटी ने अयोध्या में विवादित ढांचे पर नमाज पढऩे के लिए तैयारियां तेज कर दी हैं। वह पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से विचार-विमर्श करेगी और फिर सुप्रीम कोर्ट जाएगी। ज्ञात रहे कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राम जन्म भूमि की विवादित जमीन का एक तिहाई हिस्सा मुस्लिमों का है। लेकिन जमीनी हालात कुछ अलग हैं। वहां सारे हिस्से पर एक तरह से हिंदुओं का ही कब्जा है, अब कमेटी अपने हिस्से की एक तिहाई जमीन पर कब्जा जमाने की कोशिश करेगी, इससे यह आग सुलगती रहेगी, जिसका फायदा भाजपा को मिलना तय है। मुलायम इसी दुविधा में हैं। एक तरफ कुंआ तो एक तरफ खाई है। माहौल हिंदू बनाम मुस्लिम बनता जा रहा है। संसद में भी धर्मांतरण के मुद्दे पर मुलायम का खेमा उतना मुखर और जाग्रत नहीं था जितना अतीत में हुआ करता था। कभी मुसलमानों के वोट लेने के लिए हिंदुओं पर गोली चलवाने की हद तक जाने वाले मुलायम को इस नए माहौल ने परेशान कर दिया है। यदि वे मुसलमानों की पैरवी करते हैं तो ध्रुवीकरण होना तय है जिसका फायदा भाजपा लूट ले जाएगी। कमाल की बात तो यह है कि भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू है। चाहे मुद्दा धर्मांतरण का हो, राम मंदिर का हो या लव जेहाद ये सब भाजपा को फायदा पहुंचा रहे हैं। भाजपा हिंदुत्व की राजनीति कर उत्तरप्रदेश में जातिवादी किले को ढहाना चाहती है। भाजपा की इस मुहिम में कई अन्य दल भी साथ हैं। कांग्रेस इस खेल में अलग-थलग पड़ गई है और मुख्य मुकाबला मुलायम के नेतृत्व में गठित होने जा रहे समाजवादी जनता दल तथा भाजपा के बीच केंद्रित हो चुका है।
जहांं तक धर्मांतरण का सवाल है, हिंदूवादी संगठनों के रुख से लगता है कि वे इस मुद्दे को जीवित बनाए रखेंगे। संसद में भी भाजपा की रणनीति के अनुरूप ही विपक्षी दलों ने आचरण किया और धर्मांतरण के मुद्दे को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर लाकर केंद्रित कर दिया। इससे भाजपा को संघ की भरपूर पैरवी करने और संघ के बारे में गलतफहमी मिटाने का मौका भी मिल गया। इस बहाने कई नेताओं ने कहा कि वे संघ का स्वयं सेवक होने में गर्व महसूस करते हैं। संसद में धर्मांतरण पर बहस चल रही थी लेकिन विपक्ष के भटकाव के कारण यह सारा प्रहसन एक तरह से संघ की ब्रांडिंग का सुनहरा अवसर बन गया।
इसीलिए उत्तरप्रदेश में जो लावा खदबदा रहा है उसे हिंदूवादी वोटों में परिवर्तित करने के लिए हर संभव प्रयास भाजपा द्वारा किए जा रहे हैं। मुजफ्फर नगर दंगों के बाद से ही माहौल बदल चुका है। विकास की बात को प्रमुखता से रखने के साथ-साथ हिंदुत्व की रोटी सेंकने में भी भाजपा कामयाब हो गई है। समाजवादी पार्टी अपने ही बुने जाल में फंसती नजर आ रही है। देखना है वो अब इस जाल से कैसे निकलेगी।

ताजमहल पर भी विवाद

ताजमहल को उप्र वक्फ बोर्ड को सौंपने की आजम खान की मांग के बाद अब भाजपा की उप्र इकाई के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि ताजमहल एक हिंदू मंदिर तेजो महालय का हिस्सा है। मुगल बादशाह शाह जहां ने राजा जयसिंह से तेजो महालय मंदिर की जमीन का एक हिस्सा खरीदा था। इसके दस्तावेज भी मौजूद हैं। वाजपेजी ने आरोप लगाया कि वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा जमाए बैठे आजम खान की नजर अब ताज महल पर है।

  • मधु आलोक निगम

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