05-Dec-2014 07:00 AM
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देश की संसद में दृश्य भी वही है, थीम भी वही है, सिर्फ किरदार बदल गए हैं। कल तक भाजपा कांग्रेस को कालेधन पर घेरती थी, आज कांग्रेस भाजपा सरकार को कालेधन पर वादा खिलाफी के लिए कोस रही है। लेकिन कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष का यह गुस्सा संसद की कार्यवाही देखने वालों को हास्यास्पद ही लगता है।
कांग्रेस जिस समय कालेधन पर संसद के दोनों सदनों में हंगामा कर रही थी, ठीक उसी समय कोयला घोटाले की जांच कर रही विशेष अदालत सवाल उठा रही थी कि कोयला घोटाले में मनमोहन सिंह से पूछताछ क्यों नहीं की गई। उधर संसद में छाता लेकर विरोध जता रहे तृणमूल कांग्रेस के सांसदों को भी उन अप्रिय सवालों से जूझना पड़ा जब किसी ने उनसे पूछा कि सारदा घोटाले में ममता बनर्जी का नाम तृणमूल सांसद ने क्यों लिया और उन पर आरोप क्योंं लगाए गए।
कालाधन, कोयला या फिर सारदा चिटफंड घोटाला एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। सभी के मूल में भ्रष्टाचार और भ्रष्ट आचरण है। सरकार कालेधन पर चर्चा के लिए तो तैयार है, लेकिन नाम बताने की जल्दबाजी में नहीं है। उसका कारण यह है कि नाम बताने से अंतर्राष्ट्रीय संधि का उल्लंघन हो सकता है और कालेधन की मुहिम ठंडी पड़ सकती है। कांग्रेस भी इस हकीकत को जानती है, लेकिन विरोध करना कांग्रेस की विवशता भी है। खासकर जब मनमोहन सिंह जैसे नेता पर अदालत द्वारा ही सवाल उठाए जा रहे हों, ऐसी स्थिति में कांग्रेस कालाधन पर रक्षात्मक रुख अपनाकर अपनी साख नहीं खोना चाहेगी।
लोकसभा में काले धन के मुद्दे पर बहस के दौरान सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर सीधे हमला बोला है। कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा कि पीएम मोदी को देश से माफी मांगनी चाहिए। खडग़े ने कहा, वादा किया गया था कि सौ दिनों के भीतर विदेश से कालाधन वापस लाया जाएगा और हर व्यक्ति को 15 लाख रुपए दिए जाएंगे। कहां पूरा हुआ वह वादा? राज्यसभा में कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा ने काले धन को लेकर एनडीए सरकार पर निशाना साधा।
शर्मा ने कहा, मैं यह जानना चाहता हूॅ कि दुनिया के कितने मुल्कों से प्रधानमंत्री कालाधन वापस लाने की बात कर रहे हैं। इस तरह की धारणा बन गई है कि विदेशों में जमा पैसा कालाधन है। इस बारे में फर्क किया जाना चाहिए कि क्या काला धन और क्या कानूनी रूप से जमा रकम है।
इससे पहले कांग्रेस ने लोकसभा में काले धन के मुद्दे पर काम रोकोÓ प्रस्ताव दिया था। कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े, वीरप्पा मोइली और कमलनाथ ने काले धन के मुद्दे पर कार्यस्थगन प्रस्ताव पेश किया। लेकिन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया। महाजन ने बताया कि कार्यस्थगन प्रस्ताव नियम 56 के मुताबिक नहीं है। स्पीकर ने बताया कि यह नया मुद्दा नहीं है, बल्कि इस पर पिछली लोकसभा में चर्चा हो चुकी है। स्पीकर ने विपक्ष की उस मांग पर विचार करने की बात कही, जिसमें काले धन के मुद्दे पर चर्चा की बात कही गई थी। खडग़े ने इस मुद्दे पर कहा था कि यह नया मुद्दा है क्योंकि यह नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव से पहले किए गए उस वादे से जुड़ा हुआ है, जिसके तहत प्रधानमंत्री ने 100 दिनों के भीतर काला धन लेकर आने का दावा किया था। तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि काले धन पर चर्चा काली रात में काले धन पर चर्चा जैसी है।Ó संसदीय कार्यमंत्री एम वेंकैया नायडू ने विपक्ष के आरोपों का बेबुनियाद करार दिया। नायडू ने कहा, एनडीए के कार्यकाल में काला धन बाहर नहीं गया। जो कुछ भी हुआ, वह यूपीए कार्यकाल में हुआ।
काला धन मामले में केंद्र सरकार ने पिछले महीने विदेशी खाताधारकों की पूरी लिस्ट सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी। बताया गया था कि कि इस लिस्ट में 627 लोगों के नाम हैं। इनमें से आधे भारतीय और आधे एनआरआई हैं। एनआरआई भारतीय आयकर कानून के दायरे में नहीं आते। इसका मतलब यह हुआ कि इन खातेदारों की जांच नहीं की जा सकेगी। कोर्ट में सरकार ने तीन सीलबंद लिफाफे सौंपे थे, जिनमें से एक में काला धन मामले में अभी तक हुई जांच की स्टेटस रिपोर्ट थी। पहले में विदेशी खाताधारकों के नाम थे। दूसरे में दूसरे देशों के साथ हुई संधि के कागजात थे और तीसरे में जांच की स्टेटस रिपोर्ट थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इसमें साल 2006 तक की एंट्री है। इसकी वजह यह है कि स्विस अधिकारियों ने इस बारे में जानकारी देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि ये इनपुट्स चोरी की जानकारी के आधार पर हासिल किए गए हैं। एच.एल. दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने लिफाफे खोलने से इनकार करते हुए इसे तत्काल एसआईटी के हवाले कर दिया। कोर्ट ने लिफाफे में सौंपे गए खातेदारों के मामलों की शुरुआती जांच मार्च 2015 तक पूरी करने का निर्देश दिया। सूत्रों का कहना है कि लिस्ट में एचएसबीसी बैंक के जिनेवा ब्रांच में खाता रखने वाले भारतीयों के नाम हैं, जो भारत सरकार को फ्रांस सरकार की ओर से मिले थे। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने कहा था कि काला धन मामले पर आगे क्या कार्रवाई करनी है, इसका फैसला एसआईटी द्वारा किया जाएगा। कोर्ट ने कहा, एसआईटी हमारा अंग है और हमें उस पर भरोसा है। उसके अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ही खाताधारकों के नामों वाला सीलबंद लिफाफा खोल सकते हैं।Ó इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को निर्देश दिया कि वह मार्च 2015 तक काला धन मामले में अपनी शुरुआती जांच पूरी करे।
कहां से आई सूची और कौन हैं इनमें शामिल
जिन विदेशी खाताधारकों की सूची सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई है, उनमें दो तरह के नाम हैं। पहले तो वे लोग हैं जिनका लिंचेस्टाइन बैंक में अकाउंट है। जर्मनी की सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि इस बारे में कोई भी जानकारी हासिल कर सकता है। हालांकि, दिक्कत तब हुई जब भारत सरकार ने जर्मनी से डायरेक्ट टैक्सेशन अवॉयडेंस एग्रीमेंट के तहत इन खाताधारकों के बारे में जानकारी मांगी। इस एग्रीमेंट के तहत इस बारे में सूचनाएं गोपनीय होती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात को लेकर केंद्र को खरी-खोटी सुनाई थी। कोर्ट ने कहा था कि जब जानकारी आसानी से मिल रही है तो उसे एक गोपनीय प्रावधान के तहत क्यों मांगा गया?
क्या विदेश से काला धन वापस लाना मुमकिन है?
कानूनी कार्रवाई के जरिए ऐसा किया जा सकता है। फिलीपींस के फर्डिनैंड मार्कोस देश से जो पैसा बाहर लेकर गए थे, उसे हासिल कर लिया गया था। अफ्रीकी देशों के तानाशाहों ने जो पैसा बाहर भेजा था, उसे भी वापस लाया जा चुका है। लेकिन भारत के मामले में थोड़ी मुश्किल है। कालेधन की इकॉनमी पर स्टडी करने वाले जेएनयू के अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने बताया कि वर्ष 1948 से 2012 के बीच भारत से गया कालाधन 1.2 ट्रिलियन डॉलर का हो चुका है। लेकिन इसमें से 50 फीसदी से ज्यादा काला धन विदेश में ही निवेश किया जा चुका है। अभी सिर्फ 40-50 अरब डॉलर ही विदेशी बैंकों में जमा हैं। यह पैसा बहुत व्यवस्थित तरीके से भारत के बाहर भेजा गया है। ऐसे में किसी विदेशी बैंक खाते में जमा धन को काला धन साबित करना बेहद मुश्किल है। फिर, कानूनी अड़चनें भी हैं। आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसियां काले धन से जुड़े मामलों की जांच कर सकती हैं। लेकिन ऐसे मामलों में आयकर विभाग या ईडी से नोटिस जारी होने के बाद इस कार्रवाई के खिलाफ विभाग के अंदर और अदालत में चुनौती दी जा सकती है। इस तरह काले धन के संदिग्ध मामलों की जांच काफी लंबी खिंच सकती है। अर्थशास्त्री डी.एच.पाई पनंदिकर के अनुसार, काले धन की सूची में जिन लोगों के नाम सामने आ रहे हैं, उनकी जांच कर अदालत में आरोप साबित करने होंगे। अदालत में आरोप साबित होने और काले धन को जब्त करने के आदेश जारी होने के बाद ही सरकार विदेशी बैंकों और वहां की सरकारों से काले धन को वापस लाने की कवायद शुरू कर पाएगी। स्विस बैंक में सबसे ज्यादा ब्रिटेन के जरिए कालाधन जमा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि टैक्स हैवेन देश ब्रिटेन के रूट से कालेधन को भेजते हैं। यही काम भारतीय भी करते हैं। वे टैक्स हैवन देशों में गलत तरीके से कंपनी बनाकर स्विस बैंक में कालाधन जमा करते हैं। इस कारण से असल भारतीय मालिक का नाम सामने आना आसान नहीं है। लिहाजा बड़ी मछलियों का फंसना बहुत मुश्किल है।
