05-Dec-2014 06:30 AM
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निकाय चुनाव - 2014
मध्यप्रदेश के नगरीय चुनाव में उतरने वाले दो प्रमुख दलों भाजपा और कांगे्रस ने अपने वर्षों पुराने घोषणा पत्रों को झाड़-पोंछ कर निकाला और उन्हें संपादित कर पुन: छपवा दिया। दोनों दल जानते हैं कि जनता की स्मृति उतनी प्रखर नहीं है। जनता आज जो देखती है उसे आने वाले कुछ दिनों में भूल सकती है फिर समस्याएं भी इतनी हैं कि एक ही समय में सारी समस्याओं को ध्यान रखना संभव नहीं है।
मध्यप्रदेश के नगरीय चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों के घोषणा पत्र नई म्यान में पुरानी तलवार के समान दिख रहे है। वादे वही पुराने है। कभी कांगे्रस का घोषणा पत्र 32 पेज का हुआ करता था लेकिन जिस पार्टी के फंड में 32 लाख का घोटाला गरीबी के दिनों में हो जाए तो उसका बजट बिगडऩा लाजमी है। जिसका असर घोषणा पत्र पर भी दिखा और उसे काट-छांट कर 8 पेज का कर दिया गया। घोषणा पत्र को देखने पर लगा कि पिछले घोषणा पत्र को ही संपादित कर दिया गया हो। भाजपा का घोषणा पत्र थोड़ा आधुनिक था। जबसे नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि वे 100 शहरों को हाईटेक सिटी बनाएंगे। तब से भाजपा पंचायत के चुनाव में भी हाईटेक शब्द का इस्तेमाल अवश्य करती है। इसी लिए भले ही लौटा लेकर दिशा मैदान जाने वालों की तादाद पिछले 1 दशक में कम होने की बजाय बढ़ गई हो और जीर्ण-क्षीर्ण जर्जर शहरों में बेकार सड़कों से लेकर खुले बदहाल सीवेज और कचरे के डिब्बे में तब्दील होते सार्वजनिक स्थल सरकार के दावे को झूठला रहे हों लेकिन वाई-फाई और ई कनेक्टिविटी की बातें भ्रम फैलाने के लिए अवश्य की जाती हंै। इसलिए भाजपा का भी घोषणा पत्र कुछ ऐसे ही सजावटी वादों इरादों से भरा हुआ था। लेकिन था वैसा ही पुराना और उबाऊ।
भाजपा और कांगे्रस निकाय चुनावों के संभावित परिणामों को जानती हैं। तस्वीर ज्यादा बदलने वाली नहीं है। भीतरघात और दलबदल के कारण जो असंतोष पनपा है वह कुछ स्थानों पर अप्रत्याशित परिणाम देगा। लेकिन कुल मिलाकर स्थिति ढांक के तीन पात वाली ही रहेगी। इसीलिए कांगे्रस के दिग्गजों ने
तो प्रचार करना भी उचित नहीं समझा।
दिग्विजय सिंह की एक चुनावी सभा के मुकाबले शिवराज सिंह चौहान की 66 चुनावी सभाएं इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। शिवराज सिंह के लिए थोड़ा गंभीर होना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि चुनाव के परिणाम विपरीत होने से उनके भविष्य पर प्रतीक चिन्ह लग सकता है। जिस तरह राजस्थान में वंसुधरा राजे को अस्थिर करने की कोशिश के बीच चुनावी परिणामों ने वंसुधरा को मजबूती प्रदान की। उसी तरह मप्र में भी शिवराज चुनावी परिणामों के बाद मजबूत बनकर उभर सकते हैं। निकाय चुनाव में जमकर दल-बदल और बगावत ही देखने को मिली है। जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।
जैसे राज्यों में जहां भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां हैं, बहुत से नेताओं का बायोडाटा अब ज्यादा समृद्ध हो गया है क्योंकि उन्हें दोनों दलों का अनुभव है। लेकिन इससे भी ज्यादा बड़ी पीड़ा यह है कि दोनों दलों में दलबदलुओं को हाथों-हाथ लेने की परंपरा भी शुरू हो गई है, जिसके चलते दोनों दलों के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ता आंसू बहा रहे हैं। यदि अपने दल मेें टिकट न मिले, पद न मिले, उपेक्षा हो, तो तुरंत दूसरे दल में चले जाइए वहां पलक पांवड़े बिछाकर इंतजार किया जा रहा है। आलम यह है कि सत्तासुख भोग रही भाजपा में दिनों-दिन पधार रहे कांग्रेसी आगंतुकों ने निष्ठावान भाजपाइयों को हाशिए पर धकेल दिया है। यही हाल कभी कांगे्रस का हुआ करता था लेकिन कांग्रेस अब सत्ता में नहीं है, इसलिए भाजपा का बाजार गर्म है।
स्थानीय निकाय के चुनाव में जब असंतोष चरम सीमा पर पहुंचा तो भाजपा और कांग्रेस दोनों में भगदड़ देखने को मिली। प्रेमचंद्र गुड्डु और गोविंद सिंह के इस्तीफे के बाद जब माणक अग्रवाल के घर सरताज सिंह चले गए तो एक पुराने भाजपाई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि घर के लोगों की फिक्र नहीं है और दूसरों को मनाने की कोशिश की जा रही है। शायद यही भांपकर माणक ने कटारे के बुलावे पर अपना इस्तीफा वापस ले लिया था। दलबदल की घटनाओं ने दोनों दलों का जायका ही बिगाड़ दिया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार चौहान का कहना है कि कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है, लेकिन भाजपा छोड़कर जाने वालों की संख्या भी कम नहीं है।
पार्टी के वयोवृद्ध नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी ने पत्रकारों से कहा कि वे नाराज हैं, साथ ही यह भी कहा कि यह नाराजगी छापने के लिए नहीं है। जोशी को पार्टी में अब उतना महत्व नहीं दिया जाता, टिकट वितरण को लेकर नाराजगी प्रकट करने वालों की तादात अच्छी-खासी है। कांग्रेस के सुनील मिश्रा तो भाजपा में शामिल हो गए और उधर दो बार भाजपा के विधायक बने गिरजाशंकर ने निर्दलीय प्रत्याशी डॉक्टर नरेंद्र पांडे का समर्थन करके पार्टी की नाराजगी मोल ले ली है। मंत्री माया सिंह का कहना है कि जिन्हें टिकट नहीं दिया गया उन्हें एंडरमैन बनाया जाए।
असंतोष को दबाने की कोशिश और भी कई तरीके से की गई। परिवहन मंत्री भूपेन्द्र सिंह का कहना था कि ऐसा घोषणा-पत्र जारी किया जाए जिसमें पार्षदों और रिश्तेदारों को ठेका लेने से रोका जाए। दरअसल सुधा मलैया ने कहा था कि निकाय के जन प्रतिनिधि ठेकेदारी करते हैं और खर्च निकालते हैं। मलैया का यह कथन शत-प्रतिशत सत्य है, पर सवाल यह है कि राजनीति मेंं सभी दलों में ऐसे कितने लोग हैं जो निस्वार्थ भाव से पार्टियों से जुड़ते हैं? आज बिना स्वार्थ के कोई राजनीति नहीं करना चाहता?
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की हालत देखकर तो यही कहा जा रहा है। कांग्रेस के भीतर बड़े नेताओं में झगड़े सतह पर आ गए हैं। दिग्विजय समर्थकों ने जब अरुण यादव का खुल्ला विरोध किया तो यादव ने भोपाल पधारे दिग्विजय सिंह से मुलाकात तक नहीं की और उधर सुरेश पचौरी इस बात से लगातार इंकार कर रहे हैं कि उन्होंने निकाय चुनाव में किसी तरह की सिफारिश सोनिया गांधी से की थी। कांगे्रस में पहली बार प्रदेश के सभी बड़े नेताओं को हाशिए पर डालकर टिकट दिए गए थे। सज्जन सिंह वर्मा ने कमलनाथ को छोड़कर किसी की नहीं चलने दी।
देवास में कुणाल चौधरी की जगह मनोज राजानी को टिकट मिलने और रीवा में प्रियंका तिवारी के टिकट का श्रीनिवास तिवारी ने भरपूर विरोध किया, वे अपनी भतीजी कविता पांडे के लिए टिकट मांग रहे थे लेकिन यादव ने अपने करीबी की पत्नी प्रियंका तिवारी को टिकट दिलवा दिया। कटनी में तो सुनील मिश्रा भाजपा विधायक संजय पाठक की निकटता के चलते टिकट से वंचित हो गए तो उन्होंने दल बदल लिया। उधर भाजपा में भी नंद कुमार पटेल और शिवराज असंतोष नहीं दबा पाए। सागर, छतरपुर सहित कई इलाकों में बगावत उभर आई। दमोह में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान की सभा में ही पार्षद प्रत्याशी विनय सांगते ने अचानक बोतल निकालकर सिर पर पैट्रोल डाल लिया और आत्मदाह का प्रयास किया, बाद में लोगों ने उन्हें पकड़ा और दूर ले गए। गिरजाशंकर शर्मा के निष्कासन के बाद भी बगावत थमी नहीं। श्योपुर में 100 से ज्यादा भाजपाइयों ने इस्तीफा दे दिया। सागर में 4, शिवपुरी में 6, खरगौन में 7 और भिंड में 22 कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, इनमें से कुछ बड़े नेता भी शामिल थे। पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री और सांसद नागेन्द्र सिंह की बहू कामाख्या सिंह का निष्कासन बुंदेलखंड की एक बड़ी घटना थी। मुरैना में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि चुनाव के बाद बगावत करने वालों को उनकी हैसियत पता लगेगी। उधर कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव को यही नहीं मालूम था कि उनकी पार्टी कहां-कहां से पिछले चुनाव में जीती थी। इसीलिए आलोट में जब वे भाषण दे रहे थे तो बड़ी हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो गई, वहां उन्होंने उस नगर परिषद को भ्रष्ट बता दिया जो कांग्रेस की थी। इस घटना के बाद आलोट के नगर परिषद अध्यक्ष मुनीम रामप्रसाद राठौर ने अपना इस्तीफा सोनिया गांधी को भेज दिया। संयोग की बात यह है कि राठौर प्रेमचंद्र गुड्डू के समर्थक थे। मंच पर कांग्रेस का नेता ही उनकी अध्यक्षता में चल रही परिषद को भ्रष्ट बता रहा था।
भोपाल में कांग्रेसी ही पीसी शर्मा के पोस्टर जला रहे थे, जिसके जवाब में पीसी समर्थकों ने भी आरिफ अकील के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक लिख दिया। इसके बाद दोनों नेताओं के समर्थक आपस में भिड़ गए। कांग्रेस ने उज्जैन में महीदपुर नगर पालिका से कय्यूम नागौरी को टिकट दिया था। नागौरी पर सिमी आतंकवादियों को मदद पहुंचाने का आरोप है। वह सफदर नागौरी का रिश्तेदार है। इस घटना के बाद जब प्रेमचंद्र गुड्डू ने मोहन प्रकाश को खत लिखा, तो यादव ने गुड्डू का पत्ता चुनाव समिति से गोल करवा दिया। गुड्डू के इस्तीफे में यह बड़ी वजह है। कांग्रेस में दिग्गज नेताओं का चाहे वे पचौरी हों, दिग्विजय सिंह हों या फिर कमलनाथ और सिंधिया- नगरीय चुनाव से दूर रहना गुटबाजी और असंतोष का प्रतीक माना जा रहा है। पचौरी ने कुछ ऐसी जगह प्रचार किया जिससे कांग्रेस को फायदा मिले, लेकिन सज्जन सिंह वर्मा अरुण यादव को रोकने के लिए हर संभव कोशिश कतरे नजर आए। उन्होंने भरपूर दखलअंदाजी की, नतीजा यह निकला कि अरुण यादव ने एक-दो बार दिल्ली दरबार में भी हाजिरी लगाई। कांग्रेस के पूर्व विधायक माखनलाल जाटव की हत्या के आरोपी को कांग्रेसी टिकट मिल गया, जिसके बाद जाटव के बेटे रणवीर जाटव भोपाल में पीसीसी के सामने ही धरने पर बैठ गए। इससे कांगे्रस की बड़ी फजीहत हुई। अरुण यादव ने जैसे-तैसे उन्हें मनाया तो उधर सत्यदेव कटारे ने कह दिया कि टिकट से जुड़ी सारी सिफारिशें सार्वजनिक की जानी चाहिए। कटारे ने संभवत: इसलिए यह बयान दिया क्योंकि खबरें मीडिया को लीक की जा रही थीं। किसी ने घोषणापत्र भी पहले ही मीडिया को उपलब्ध करा दिया, इसलिए बाद में उसे बदला गया। दोनों दलों में असंतोष तो समय के साथ खत्म हो जाएगा लेकिन दलबदल का जो खेल चल रहा है, उसमें भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है।
व्यापमं पर फिक्सिंग?
कांग्रेस और भाजपा में नगरीय निकाय के चुनाव वार वाई पेक्ट की तरह लड़े जा रहे हैं। व्यापमं जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर कांगे्रस द्वारा स्थानीय निकाय चुनाव में खामौशी बरतना कई सवाल खड़े कर रहा है। सत्यदेव कटारे ने व्यापमं को मुद्दा नहीं बनाने के कदम को कांग्रेस की गलती बताया तो अरुण यादव ने कहा कि घोषणा-पत्र में व्यापमं का जिक्र न होने से कटारे को गलतफहमी हुई है, लेकिन सभी मुद्दों पर सरकार को घेरा जा रहा है। यादव का कहना है कि व्यापमं का निकाय चुनाव से सीधा संबंध नहीं है। देखा जाए तो व्यापमं मुद्दा सही तरीके से उठाकर कांगे्रस बहुत कुछ डैमेज कंट्रोल कर सकती है। व्यापमं को लेकर जनमानस में असंतोष है। भाजपा का एक पूर्व मंत्री इसी मुद्दे पर जेल में है। इसलिए चुनाव के समय कांग्रेस को लाभ मिल सकता है। लेकिन कांग्रेस को व्यापमं से ज्यादा फिल्म स्टारों पर विश्वास है, इसीलिए बडऩगर में कोई बड़ा नेता नहीं मिला तो महिमा चौधरी से प्रचार करवाया गया।
भ्रष्टाचार से किरकिरी
मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन में 32 लाख रुपए के घोटाले ने कांग्रेस की किरकिरी कर दी। मजाक उड़ाने वालों ने कहा कि कांग्रेस सत्ता में नहीं है तो संगठन में ही घोटाले कर बैठे। दरअसल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जवाहर भवन ट्रस्ट के खातों का ऑडिट हुआ। यह ऑडिट पार्टी संगठन के दिल्ली से भेजे चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) एसके जैन ने किया। ऑडिट में 32 लाख रुपए की हेर-फेर की जांच बताई गई। हालांकि प्रदेश संगठन ने इसे सामान्य सालाना ऑडिट बताया। सीए ने ऑडिट पूरा कर, इसके तहत अब ट्रस्ट के खातों से बिना मंजूरी राशि निकालने पर रोक लगा दी है।
स्मार्टनेस के खुमार में भाजपा
भाजपा को सीधा-साधा भोला-भाला भारत पसंद नहीं है इसलिए उसे स्मार्ट बनाना चाहती है। मप्र के स्थानीय निकाय के चुनाव में जारी घोषणा पत्र में भाजपा ने इसी स्मार्टनेस का वर्णन किया। इस घोषणा पत्र में शहरों में विशेष सफाई अभियान, मुख्यमंत्री स्वच्छता मिशन की शुरुआत करने और हर घर से कचरा उठाने का वादा किया गया है, साथ ही हर निकाय को स्मार्ट सिटी की तरह बनाने का भी वादा किया गया है। नदियों के पास बसे शहरों से नदी को प्रदूषित होने से बचाएंगे। छोटे और बड़े शहरों में शुद्ध पेयजल मिलेगा। इसमें 5 से 10 लीटर के शुद्ध जल के केन उपलब्ध कराए जाएंगे। हर घर में नल होगा। प्रत्येक व्यक्ति को 136 लीटर पानी मिलेगा। 2018 तक 5 लाख घर बनाए जाएंगे। शहरों का विकास पीपीपी मॉडल पर किया जाएगा। प्रदेश की कृषि भूमि को बचाने के लिए शहरों में बहुमंजिला इमारतें बनाने का खास ध्यान दिया जाएगा। स्मार्ट सिटी के अनुरूप प्रत्येक निकाय का विकास किया जाएगा। हर शहर में उत्कृष्ट सड़कें बनेगी। 2400 वर्गफीट के प्लॉट के नक्शे आर्किटेक्ट से बनवाकर सीधे मंजूरी मिलेगी।
कांग्रेस का छोटा घोषणा पत्र
प्रदेश कांगे्रस का पिछली बार घोषणा पत्र 32 पेज का था जबकि इस बार यह महज 8 पेजों का है। पिछली बार की रेल सेवा के वादे को मोनो रेल में तब्दील कर दिया गया है, जबकि संपत्ति कर के सरलीकरण के वादे को मजबूत स्वरूप में सीधे सिंगल टैक्स सिस्टम के रूप में सामने लाए हैं। खास बात ये कि व्यापमं मुद्दे को इतना उछालने के बावजूद घोषणा पत्र में अनदेखा कर दिया गया। पिछली बार घोषणा पत्र में फ्रंट पेज पर स्लोगन कांगे्रस का इकरार, नगर-नगर को नया निखारÓ था, जो इस बार बदलकर विकास का वादा, पक्का इरादाÓ कर दिया है। इस बार कांगे्रस के घोषणा पत्र से केंद्रीय योजनाओं से नगरीय निकायों में होने वाली मदद व विकास का ब्यौरा गायब है। पिछली बार घोषणा पत्र में अल्पसंख्यकों के लिए कांगे्रस ने अलग से पूरे वादे दिए थे। इस बार घोषणा पत्र में अल्पसंख्यकों के लिए वादों का कोई उल्लेख नहीं है। सभी के लिए समान वादे कांगे्रस ने किए हैं। सिंगल टैक्स सिस्टम। प्रॉपटी टैक्स का सरलीकरण। टेंकरों से टेलीकॉलिंग के जरिए जलापूर्ति की व्यवस्था। छोटे नगर-निगमों में मोनो रेल शुरू। इस बार मूलभूत समस्याओं को हल करने और आम आदमी को विकास देने का स्लोगन लेकर उतरने की कांग्रेस की रणनीति है।
नगर निगम कांग्रेस भाजपा
ग्वालियर दर्शन सिंह विवेक शेजवलकर
सागर जगदीश यादव अभर दरे
रीवा प्रियंका तिवारी ममता गुप्ता
सतना उर्मिला त्रिपाठी ममता पांडे
कटनी रुपचंद चेलानी शशांक श्रीवास्तव
देवास मनोज राजानी सुभाष शर्मा
रतलाम प्रेमलता दवे सुनीता यार्दे
खंडवा अजय ओझा सुभाष कोठारी
बुरहानपुर इस्माइल अंसारी अनिल भोंसले
सिंगरौली संगीता सिंह प्रेमवती खैरवार
