चुनाव में जीत के बाद आंकड़ों की बाजीगरी
17-Dec-2014 06:09 AM 1234970

 

मध्यप्रदेश सरकार के मंत्रियों ने 25 दिसंबर तक प्रस्तुत किए जाने वाले रिपोर्ट कार्ड के बहाने स्वयं की पीठ ठोकनी शुरु कर दी है। सरकार को आंकड़ों की बाजीगरी में महारथ हासिल है।

आंकड़ों की बदौलत मध्यप्रदेश सरकार ने केंद्र में कांगे्रसी शासन के बावजूद कृषि कर्मण सहित तमाम पुरस्कार जीतकर वाह-वाही लूटी थी। लेकिन आंकड़ों के इन जादूगरों के कारनामे जमीन पर उतने उल्लेखनीय नहीं दिखाई देते। जमीन पर जितना भी विकास हुआ है, वह केवल दिखावे का है। इतना विकास तो स्वाभाविक रूप से हो ही जाता है, लेकिन जनता की समस्याएं और परेशानियां जस की तस हैं। महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी के आंकड़ों में कोई विशेष तब्दीली नहीं है। इसलिए 25 दिसंबर तक जो भी रिपोर्ट कार्ड आएंगे वह रस्म अदायगी ही कही जाएगी। जनता की दुविधा यह है कि उसके सामने विकल्प के रूप में कांगेे्रस है, जो उतनी संगठित नहीं है।
दिशाहीन तथा विखरी हुई कांगे्रस के मुकाबले भाजपा को बार-बार वोट देना जनता की विवशता है। फिर भाजपा के मंत्रियों को हर बात का जवाब देना आता है, चाहे वह सरकार की असफलता ही क्यों न हो। इसलिए गौरीशंकर शेजवार, गोपाल भार्गव और नरोत्तम मिश्रा ने जब प्रेसवार्ता करके जब अपने विभागों की उपलब्धियां गिनाईं, तो उन्हें कुछ अप्रिय सवालों से भी जूझना पड़ा। इन तीनों मंत्रियों का यह संघर्ष बड़ा दर्द भरा था क्योंकि जो भूमिका विपक्ष को निभानी चाहिए थी, वह प्रत्रकार वार्ता में मीडिया ने निभाई और सरकार को आईना दिखाने की कोशिश की।
जहां तक कांगे्रस का प्रश्न है, लगातार चुनावी पराजयों से मायूस कांगे्रस के क्षत्रप दिग्विजय सिंह, कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी आपस में ही उलझ रहे हैं या फिर शांत बैठे हैं। नगरीय चुनाव के दौरान निष्क्रिय रहे इन क्षत्रपों ने मध्यप्रदेश सरकार को घेरने की
कोशिश नहीं की और एक तरह से अभयदान भी दे दिया है। इसलिए सरकार खुद ही अपना रिपोर्ट कार्ड जारी करके खुश हो रही है। लेकिन रिपोर्ट कार्ड तभी अपनी अर्थवत्ता कायम रख सकेगा, जब सरकार द्वारा किए गए कार्यों को जनता की सराहना भी मिले।

कांग्रेस : करारी हार फिर भी वजूद बरकरार

मध्यप्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव परिणाम आ गए। भाजपा ने जीत का जश्न मना लिया और कांग्रेस ने मातम भी। भाजपा की जीत प्रत्याशित थी और कांग्रेस की पराजय भी उतनी ही प्रत्याशित थी। अप्रत्याशित तो तब होता जब कांगे्रस जीत जाती। किंतु यक्ष प्रश्न वही है कि क्या कांग्रेस ने अन्य चुनावों की तरह यह चुनाव भी जीतने के लिए लड़ा था?
जिस दल के दिग्गज नेता दल के अंदर ही अखाड़े में एक-दूसरे को पटखनी दे रहे हों और चुनाव में प्रचार करना भी अपनी तौहीन समझते हों, वह दल यदि इतने जीर्ण-शीर्ण हालात में सत्तासीन भाजपा को उसके मंत्रियों के क्षेत्र में कड़ी टक्कर देने में कामयाब हो जाता है तो यह कहना पड़ेगा कि तमाम दुश्वारियों के बावजूद कांग्रेस का वजूद अभी भी बचा हुआ है और संगठित कांगे्रस उलटफेर करने का दम-खम रखती है। किंतु प्रश्न वही है कि इन कांग्रेसियों को संगठित कौन करेगा?
नगरीय चुनाव में पराजय के बाद अरुण यादव के इस्तीफे की खबर भी उड़ी थी, पर इस इस्तीफे से हासिल क्या होगा? यादव की जगह कोई और अध्यक्ष बन जाए तब भी ढाक के वही तीन पात रहेंगे। कांगे्रस की सबसे बड़ी समस्या उसकी एकता और आत्मविश्वास है। कांग्रेस को सत्ता के बगैर रहने का अनुभव नहीं है। मध्यप्रदेश में ही मध्यप्रदेश के गठन के बाद स्थानीय निकायों से लेकर प्रदेश की सत्ता तक दशकों कांग्रेस शासन में रही है, इसलिए विपक्ष में रहने का मौका तो अब आया है। लेकिन विपक्ष को जिस तरह मुखर और आक्रामक होना चाहिए, वैसा कांगे्रस में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता।
नगरीय निकाय के चुनावी परिणामों के बाद कांग्रेसी एक-दूसरे पर आक्रामकता दिखा रहे थे, यदि यही आक्रामकता चुनाव के समय दिखाते तो सीटें बढ़ भी सकती थीं। बहरहाल इन नगरीय निकाय के चुनावों ने यह तय कर दिया कि शिवराज मंत्रिमंडल के कई मंत्री अब उतने लोकप्रिय नहीं हैं। गोपाल भार्गव, रामपाल सिंह, गौरीशंकर शेजवार, नरोत्तम मिश्रा, जयंत मलैया से लेकर भाजपा अध्यक्ष नंदू भैया और मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान में केंद्रीय मंत्री उमाभारती के घर में भी भाजपा पराजित हो गई है।

हर जिले में कांगे्रस ने टक्कर दी

नगरीय चुनाव का जिलेवार आंकलन करने पर पता चलता है कि गोपाल भार्गव रिकार्ड मतों से विधानसभा चुनाव जीते थे लेकिन उनके विधानसभा क्षेत्र रेहली में कांगे्रस प्रत्याशी रेखा हजारी ने भाजपा की सुनीता जैन को 117 वोट से हरा दिया। गौरीशंकर शेजवार ने राकेश शर्मा को टिकट दिलाने के लिए स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी मोल ले ली थी, नतीजा यह निकला कि पार्टी के बागी और निर्दलीय प्रत्याशी जमना सेन ने राकेश शर्मा को हरा दिया। यही हाल रामपाल सिंह की इकलौती नगर पालिका बेगमगंज में हुआ जहां निर्दलीय नन्नी बाई ने भाजपा की गायत्री साहू को 2021 वोट से हरा दिया। लेकिन सबसे बड़ी दुर्गति नरोत्तम मिश्रा के दतिया क्षेत्र में हुई, यहां भाजपा चारों सीट हारी और डबरा में भी हार गई।
वित्त मंत्री जयंत मलैया सरकार में नबंर-2 की पोजीशन रखते हैं लेकिन दमोह नगर पालिका में मालती असाटी तो सुविधाजनक तरीके से 6 हजार मतों से जीत गईं, पर हटा ने भाजपा को धोखा दे दिया। यहां कांग्रेस की अरुणा बाई मोहनलाल लगभग 1800 मतों से जीतीं। नगर परिषद के चुनाव भी भाजपा के अनुरूप नहीं रहे। हिंडोलिया में निर्दलीय शकुंतला सिंह आराम से जीत गईं। पथरिया में कांगे्रस की कृष्णा सिंह ने भाजपा की सपना जैन को करारी शिकस्त दी। तेंदुखेड़ा में सुनीता सिंघई पहले नंबर पर रहीं और भाजपा की रश्मि साहू तीसरे नंबर पर।
श्योपुर में भाजपा तीसरे नंबर पर सिमट गई, यहां निर्दलीय दौलतराम गुप्ता ने अच्छी-खासी जीत हासिल की। यहां की बढ़ौद और विजयपुर नगर परिषद में कांंगे्रस को सफलता मिली, भाजपा का नामोनिशान नहीं था। मुरैना की पोरस, सबलगढ़, अंबाह नगर पालिकाओं में भाजपा का सफाया हो गया, यहां कांगेे्रस ने अच्छे अंतर से जीत हासिल की। झुंडपुरा नगर परिषद में कांग्रेस जीती। भाजपा ने जोरा नगर परिषद पर कब्जा जमाया। बांदमोर में निर्दलीय जीते और कैलारस में सीपीआई ने जीत कर सबको चौंका दिया। मुरैना में भी भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। भिंड की नगर पालिका और गोहद नगर पालिका में भाजपा को जीत हासिल हुई। नगर परिषद में भाजपा मौ, नहगांव, अकौड़ा ही जीत पाई जबकि कांगे्रस ने दबोह, मिहोना, फुफ, आलमपुर, गोरमी, लहार जीत कर अपनी उपस्थिति का परिचय दिया। भाजपा के लिए यह अप्रत्याशित ही कहा जाएगा। ग्वालियर नगर निगम के लिए मुकाबला शुरु में कठिन लग रहा था लेकिन मतदान होने तक भाजपा काफी आगे निकल गई, भाजपा के विवेक नारायण ने कांग्रेस के डॉक्टर दर्शन सिंह एडवोकेट को करारी शिकस्त दी। डबरा नगर पालिका में बहुजन समाज पार्टी के सत्यप्रकाशी परसेडिया ने बाजी मारकर भाजपा के मंसूबे पर पानी फेर दिया। बिलौआ नगर परिषद में बमुश्किल भाजपा जीत पाई लेकिन भितरवार, पिछोर और आंतरी में निर्दलीय जीते, जिनमें से कुछ बागी भी थे।
दतिया में बसपा के सुभाषचंद्र रतनलाल सर्राफ ने भाजपा के राजेंद्र  को पराजित कर दिया, नरोत्तम मिश्रा की मेहनत काम न आई। नगर परिषदों में भी भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। इंदरगढ़ से बसपा जीती, भांडेर में कांग्रेस विजयी हुई और सेवड़ा में निर्दलीय जीत गए।
शिवपुरी में भी ऐसी ही दुर्गति हुई, कांगे्रस के मुन्नालाल कुशवाह ने भाजपा के हरिओम राठौर को करारी शिकस्त दी। खनियाधाना, बदरवास, कोलारस, पिछोर नगर परिषदों में कांग्रेस ने बाजी मारी, भाजपा बैराड़, करेरा ही जीत सकी।
गुना ज्योतिरादित्य सिंधिया का संसदीय क्षेत्र है लेकिन वे तो चुनाव प्रचार करने भी नहीं निकले और उनकी पसंद के प्रत्याशी अनिल जैन त्रिकोणीय मुकाबले में पिछड़ गए, यहां निर्दलीय प्रत्याशी राजेंद्र सिंह सलूजा ने बाजी मार ली। अशोक नगर में भाजपा को सहूलियत से जीत मिल गई लेकिन चंदेरी में कांगे्रस ने बाजी मार ली। नगर परिषद में भी मूंगावली में कांग्रेस जीती जबकि शाढौरा में निर्दलीय ने बाजी मारी, यहां भाजपा तीसरे नंबर पर रही। सागर नगर निगम के चुनावी परिणाम आशा के अनुरूप ही आए। यहां कांग्रेस ने विरोध को दरकिनार कर जगदीश यादव को प्रत्याशी बनाया था लेकिन वे भीतरघात के शिकार हो गए और भाजपा के इंजीनियर अभय दरे ने आसानी से जीत हासिल की, यहां शिवसेना को भी 4 हजार से अधिक वोट मिले। खुरई, बीना और गढ़ाकोटा नगर पालिकाओं में भाजपा जीत गई लेकिन रहली में कांग्रेस और देवरी में निर्दलीय ने बाजी मार ली। बंडा, राहतगढ़, शाहपुर और शाहगढ़ नगर परिषदों में भाजपा ने एक तरह से क्लीन स्वीप किए। सागर के रिजल्ट अपेक्षा से कहीं बेहतर आए। शिवराज सिंह चौहान की सभाओं का फायदा भाजपा को मिला। टीकमगढ़ में भाजपा को भीतरघात की आशंका थी लेकिन लक्ष्मी राकेश गिरी आसानी से जीत गईं।

कांग्रेस यहां बहुत पिछड़ी, निर्दलियों ने भी अच्छे-खासे वोट काटे। खरगापुर, बल्देवगढ़, लिधौरा, पलैरा, तरिचरकला, जैरोन नगर परिषदों में भाजपा जीती जबकि बड़ागांव धसान, कारी, निवाड़ी में निर्दलीय बाजी मार ले गए जिनमें से अधिकांश भाजपा के बागी थे, कांग्रेस पृथ्वीपुर और  जतारा में ही जीत पाई। छतरपुर नगर पालिका को लेकर काफी घमासान हुआ था लेकिन अर्चना गुड्डू सिंह ने भाजपा की लाज बचा ली। नौगांव और महाराजपुर नगर पालिकाओंं में भी कमल खिल गया। खजुराहो नगर परिषद पर सबकी नजर थी, यहां नातीराजा कांग्रेस की कविता विक्रम सिंह को आसानी से जिता ले गए। बकस्वाहा, बिजावर, हरपालपुर, राजनगर, चंदला नगर परिषदें भाजपा के खाते में गईं। बड़ामल्हैरा में उमाभारती के गृहक्षेत्र में कांग्रेस जीती। सटाई, गढ़ीमल्हैरा, लवकुश नगर में भी कांग्रेस विजयी रही। बारीगढ़ में निर्दलीय जीत गए। पन्ना नगर पालिका में भाजपा के मोहनलाल कुशवाह की जीत तय मानी जा रही थी और वे जीते। ककरैटी, देवेन्द्र नगर, अजयगढ़ नगर परिषदों में भाजपा तथा पवई, अमानगंज में कांग्रेस को सफलता मिली।
सतना नगर निगम के चुनाव ममता पांडे के प्रत्याशी बनने के साथ ही भाजपा के लिए एकतरफा हो गए थे, यहां बामन प्रत्याशी को सफलता मिलती है। नतीजा भाजपा के पक्ष में रहा। कोठी, बिरसिंहपुर, रामपुर बघेलन, उचेहरा, जैतवारा, न्यू राम नगर, नागौद, अमरपाटन जैसी नगर परिषदों में भाजपा के अध्यक्ष बने जबकि धार्मिक स्थल चित्रकूट की एकमात्र विजय कांग्रेस के नाम रही। रीवा में नगर निगम का चुनाव दिलचस्प था, ममता गुप्ता को टिकट देने का विरोध हुआ था लेकिन वे निर्दलीय कविता पांडे से बहुत आगे रहीं। कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। निर्दलीय ने कांगे्रस का खेल बिगाड़ दिया। बैकुंठपुर, मउगंज, सिरमौर, हनुमना, नईगढ़ी, गोविंदगढ़, गुढ़ नगर परिषद में भाजपा का कमल खिला। मनगंवा, सैमरिया, त्यौंथर ने कांगे्रस को जीत दी। सीधी की रामपुर नैकिन नगर परिषद पर निर्दलीय प्रत्याशी जीता। सिंगरौली नगर निगम में भाजपा का परचम लहराया। शहडोल की खांड और ब्यौहारी नगर परिषद में भाजपा जीती।
उमरिया में चंदिया नगर परिषद में निर्दलीय तथा नौराजाबाद में भाजपा को जीत मिली। कटनी नगर पालिका निगम में शशांक श्रीवास्तव के जीतने से भाजपा की गुटबाजी पर कुछ विराम लगा, यहां कांगे्रस के प्रत्याशी को लेकर भी बहुत कश्मकश हुई थी जिसका खामियाजा कांग्रेस ने भुगता। जबलपुर की सीहोरा नगर पालिका में कांग्रेस और पन्ना नगर पालिका में भाजपा को जीत मिली। बालाघाट, मलाजखंड नगर पालिकाओं में कमल खिला लेकिन वारासिवनी की कड़ी लड़ाई में कांग्रेस के विवेक पटेल ने भाजपा के छगन हनवत को पराजित कर दिया। बालाघाट की एकमात्र नगर परिषद कटंगी में भी कांग्रेस ने बाजी मार ली।
सिवनी में भाजपा की आरती अशोक शुक्ला ने नगर पालिका चुनाव जीत लिया, यहां निर्दलियों ने कांगेे्रस का खेल बिगाड़ा। यहां की बरघाट नगर परिषद में निर्दलीय प्रत्याशी जीता भाजपा तीसरे नंबर पर सिमट गई। नरसिंहपुर में जालम सिंह पटेल प्रकरण के कारण भाजपा के भीतर खलबली थी लेकिन अर्चना नीरज महाराज की लोकप्रियता कांग्रेस पर भारी पड़ी और उन्होंने भाजपा के खाते में यह नगर पालिका डाल दी।
गाडरवाड़ा, गोटेगांव, करेली नगर पालिकाओं में कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की। चिचली और तेंदूखेड़ा नगर परिषद में भाजपा जबकि सांईखेड़ा, सालीचौका नगर परिषदों में कांग्रेस जीती। कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में डोंगरपलासिया और अमरवाड़ा नगर पालिका में कमल खिला। चौरई में निर्दलीय ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया और कांग्रेस 130 वोटों से जीत गई। छिंदवाड़ा में नगर परिषदों में भी भाजपा आगे रही। बड़कुही, बिछुआ, पिपलानारायणवार, चांदामेटा, बुटारिया, लाधीखेड़ा नगर परिषद में भाजपा बड़े आराम से जीती। चांद, न्यूटन चिखली में ही कांग्रेस जीत पाई। अच्छा हुआ कमलनाथ चुनाव प्रचार करने न आए अन्यथा घटिया प्रदर्शन का ठीकरा उनके सर पर ही फूटता।
बैतूल, मुल्ताई और आमला नगर पालिका में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की। बैतूल बाजार नगर परिषद का अध्यक्ष भी भाजपा से ही बना। हरदा जिले में खिरकिया नगर परिषद में कांग्रे्रस तथा टिमरनी नगर परिषद में भाजपा ने बाजी मारी। होशंगाबाद में त्रिकोणीय मुकाबला था, भाजपा के बागी डॉक्टर नरेंद्र कुमार पांडे नगर पालिका में निर्दलीय की हैसियत से खड़े हुए थे और उनका साथ सीताशरण शर्मा दे रहे थे लेकिन भाजपा के अखिलेश खंडेलवाल सब पर भारी पड़े और जीत गए। कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही। इटारसी में माणक अग्रवाल की नाराजगी कुछ ज्यादा ही महंगी पड़ी हारना तो तय था लेकिन कांग्रेस बुरी तरह हारी, भाजपा ने यह नगर पालिका भारी अंतर से जीती। पिपरिया और होशंगाबाद नगर पालिकाओं पर भी भाजपा का कब्जा हो गया। बावई नगर परिषद में भी कमल खिला लेकिन सोहागपुर में संतोष मालवीय ने चुनाव जीतकर कांगे्रस को थोड़ी सांत्वना दी। रायसेन में गौरीशंकर शेजवार के कारण बेगमगंज और रायसेन नगर पालिका प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई थीं

लेकिन दोनों जगह भाजपा हार गई। बेगमगंज और रायसेन में निर्दलीय जीते, बताया जाता है कि यह भाजपा के बागी ही थे। बागियों ने नगर परिषद के चुनाव में भी परेशान किया और बरेली, बाड़ी, सिलवानी में निर्दलीय अध्यक्ष बने। सुल्तानपुर, उदयपुरा, औबेदुल्लागंज, गैरतगंज भाजपा की झोली में आए। विदिशा जिले की सिरोंज और गंजबासौदा नगर पालिकाओं में भाजपा ने प्रभावी जीत हासिल की। कुरवाई तथा लटैरी नगर परिषदों में कांग्रेस का परचम लहराया। भोपाल जिले की बैरसिया नगर पालिका में राजमल गुप्ता कड़े मुकाबले में जीते।
सीहोर जिले की आष्टा नगर पालिका में कांगे्रस के कैलाश परमार ने जीतकर सबको चौंका दिया, यहां पर नगर परिषद के नतीजे भी अप्रत्याशित रहे। इछावर और जावर में निर्दलीय जीते, जिनके बारे में कहा गया कि वे भाजपा के बागी हैं। बुदनी, कोटरी, रेहटी, नसरुल्लागंज में भाजपा जीती। दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाले क्षेत्र राजगढ़ की ब्यावरा, राजगढ़, नरसिंहगढ़ नगर पालिकाओं में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की। खुजनेर, बोड़ा, कुरावर, माचलपुर, खिलचीपुर, सुठालिया, जीरापुर नगर परिषदों में भी भाजपा की जीत यह सिद्ध कर रही है कि यहां कांगे्रस की स्थिति कितनी दयनीय है। पचौर में जो निर्दलीय जीता, वह भी भाजपा का बागी बताया जाता है। तलैन में कांगे्रस बमुश्किल जीत पाई। इसका श्रेय भी भाजपा के बागियों को दिया जा रहा है। नए बने जिले आगर में भाजपा की लोकप्रियता निर्दलीय शकुंतला जायसवाल के मुकाबले कम रही। शकुंतला भारी अंतर से जीतीं, कांगे्रस और भाजपा को मिलाकर भी उतने वोट नहीं मिले। बढ़ौद, कानड़ नगर परिषदों में कांग्रेस ने बाजी मारी लेकिन बड़ागांव, सोयतकलां, सुसनेर, नलखेड़ा में भाजपा ने जीत हासिल की। शाजापुर जिले की शुजालपुर नगर पालिका का नतीजा भी भाजपा के पक्ष में गया, यहां मक्सी नगर परिषद में कांगे्रस जबकि पोलायकलां, पानखेड़ी और अकोदिया में भाजपा को जीत मिली।
देवास नगर निगम का नतीजा भाजपा के पक्ष मेें गया, यहां निर्दलीय प्रत्याशी शरद भी भाजपा की जीत नहीं रोक सके। भाजपा के प्रेम कुमार शर्मा ने कांग्रेस के मनोज राजानी पर बड़े अंतर से जीत हासिल की। देवास में महापौर प्रत्याशी को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों के भीतर घमासान लंबे समय तक चलता रहा, यहां पर खातेगांव, बागली, करनावद, कांटाफोड़, कन्नौद, हाटपिपल्या, नेमावर नगर परिषदों में भी भाजपा ने बाजी मार ली। कांग्रेस की गुटबाजी सतह पर आ गई। भौरांसा, सतवासा, लोहारदा में कांग्रेस को जीत से कुछ राहत मिली।
सोनकच्छ में एक बागी  निर्दलीय के रूप में जीत गया। खंडवा नगर निगम का चुनाव भाजपा और कांगे्रस दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था, यहां भाजपा के सुभाष कोठारी ने मामूली अंतर से बाजी मार ली। नगर परिषदों में भी मूंदी और पंधाना में भाजपा की जीत का सिलसिला जारी रहा, कांग्रेस का एक तरह से सफाया ही हो गया। बुरहानपुर नगर निगम में कांग्रेस को ताकतवर समझा जाता है लेकिन यहां से भाजपा के अनिल भांैसले ने कांगे्रस के मुस्लिम प्रत्याशी को कड़े मुकाबले में पराजित कर दिया। यहां की एकमात्र नगर परिषद शाहपुर में कांगे्रस को जीत मिली। खरगौन में भाजपा के विपिन कुमार गौर नगर पालिका चुनाव जीतने में सफल रहे, यहां बड़वाह तथा सनावद नगर पालिकाओं में कांग्रेस की जीत ने भाजपा के रंग में भंग किया। यहां नगर परिषदों में करही पांडल्याखुर्द तथा कसरावद में भाजपा जीतने में सफल रही। झाबुआ जिले की मेघनगर नगर परिषद में भाजपा ने बाजी मारी। धार की बदनावर नगर परिषद में कांग्रेस जीतने में कामयाब रही। इंदौर जिले की नगर परिषदों के नतीजों को भी उत्सुकता से देखा गया, यहां बैटमा, महूगांव, मानपुर, राउ, गौतमपुरा नगर परिषदों में भाजपा झंडे गाडऩे में सफल रही। हातोद, सांवेर, देपालपुर नगर परिषद कांग्रेस के खाते मेंं गई। उज्जैन में खांचरौद, बडऩगर, नागदा नगर पालिकाओं में भाजपा प्रभावी तरीके से जीती। महिदपुर नगर पालिका पर कांग्रेस का कब्जा रहा। माकडोन तथा तराना नगर परिषदों में
कांग्रेस ने जीत हासिल की। उन्हेल निर्दलीय में निर्दलीय जीता। रतलाम के नगर निगम चुनाव में भाजपा की सुनीता यार्दे जीतीं। इस जिले में जावरा नगर पालिका का चुनाव भी प्रतिष्ठा का प्रश्न था लेकिन भाजपा जीत नहीं पाई यहां निर्दलीय अनिल दसेड़ा ने बाजी मार ली। यहां नगर परिषद चुनाव भी उतने ही रोचक रहे। बड़ावदा, पिपलौदा, ताल, नामली में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की। आलोट मेेंं कांगे्रस ने सांत्वना हासिल की। मंदसौर जिले में भी भाजपा का बोलबाला रहा, यहां नगर परिषदों के चुनाव में मल्हारगढ़, भानपुर, श्यामगढ़, सीतामउ, नारायणगढ़ और गरोठ में भाजपा ने बाजी मारी। नगरी तथा मल्हारगढ़ में निर्दलीय बागियों ने जीत हासिल की, कांगे्रस का पत्ता साफ हो गया। नीमच नगर पालिका के चुनाव में भाजपा के राकेश जैन ने प्रभावी जीत हासिल की, यहां नगर परिषद के चुनाव में भी भाजपा का बोलबाला रहा। मनासा, सिंगौली, डिकेन, रामपुरा, रतनगढ़, सरवानिया महाराज, नयागांव, अठाना, कुकड़ेश्वर नगर परिषदों में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की, कांगे्रस के खाते में जीरन और जावद ही आई।
हार-जीत का यह आंकलन कह रहा है कि कांगे्रस का पूरी तरह सफाया नहीं हुआ। हालांकि उसकी स्थिति दयनीय है। भाजपा के कुछ मंत्रियों के लिए यह परिणाम आत्मचिंतन का विषय हो सकते हैं। शिवराज सिंह ने इन चुनावों में भी भरपूर मेहनत की जिसका फल उनको मिला। नकारात्मक चुनावी नतीजे उनकी स्थिति को डगमगा भी सकते थे, फिलहाल तो वे स्थिर हैं और उनकी लोकप्रियता का फायदा भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार पटेल को भी मिल गया है। जहां तक मंत्रियों का प्रश्न है, उनकी स्थिति पर विशेष फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि आगे कोई बड़ा चुनाव नहीं है। इंदौर, भोपाल, जबलपुर जैसे शहरों के नगर निगम के चुनाव पर भी सबकी निगाह रहेगी।

भाजपा जीती लेकिन कांग्रेस ने भी दम-खम दिखाया

नगरीय निकाय के चुनाव परिणामों का विश्लेषण करें तो यह साफ हो जाता है कि भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा की तर्ज पर ही धुंआधार प्रचार किया और उसके मंत्री भी लगातार प्रचार में लगे रहे, पर कांगे्रस की जड़ नहीं खोद सके। कांग्रेस और भाजपा की जीत का अंतर संख्या की दृष्टि से ज्यादा दिखे लेकिन मतों की दृष्टि से उतना अधिक नहीं है। भाजपा के मेयर व अध्यक्ष अभ्यर्थियों को 23 लाख 47 हजार 846 मत मिले, जबकि कांगे्रस के मेयर व अध्यक्ष के अभ्यर्थी भी 17 लाख 89 हजार 397 मत लेने में कामयाब रहे। यह कोई बड़ा अंतर नहीं है और न ही कांग्रेस के सफाए की गारंटी है। चिंता तो भाजपा के उन मंत्रियों को होनी चाहिए जिनके चुनावी क्षेत्र में कांगे्रस का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है।

  • राजेन्द्र आगाल

 

 

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