05-Dec-2014 05:53 AM
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बिलासपुर में 1 सर्जन, 1 सहयोगी डॉक्टर और कुछ सहायकों ने 6 घंटे के भीतर जिन 83 महिलाओं की नसबंदी कर दी थी, उनमेें से 15 की मौत के बाद बाकी बचीं 68 महिलाओं के चेहरे पर भी खौफ देखा जा सकता है। सच पूछा जाए तो पिछले 1 वर्ष के दौरान जिस भी
महिला ने सरकारी अस्पताल में नसबंदी करवाई है, वे सभी भय से पीडि़त हैं। उन्हें डर है कि कहीं
नसबंदी का लक्ष्य पूरा करने के लिए डॉक्टर तैनात किए गए, वहां तक तो ठीक था। किंतु ऑपरेशन थिएटर से लेकर ऑपरेशन में प्रयुक्त यंत्र और उसके बाद दी जाने वाली दवाएं अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप थीं या नहीं, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी थी? जिस परिवेश में उस सर्जन ने लक्ष्य पूरा करने की हड़बड़ी में महिलाओं को पशुओं के समान पटक कर ऑपरेशन किए और स्वास्थ्य के उच्च मापदंडों का पालन नहीं किया गया, उससे स्पष्ट जाहिर होता है कि डॉक्टर से लेकर कर्मचारियों तक सभी जिम्मेदार लोगों को महज अपने लक्ष्य की जल्दबाजी थी, महिलाओं की सुरक्षा और जान से उनका कोई सरोकार नहीं था। इसी कारण उन महिलाओं की जान गई।
कांग्रेस का आरोप सच था ?
जब जनवरी 2012 में कांग्रेस ने तत्कालीन भाजपा सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया था तब इसे राजनीती से प्रेरित माना गया किन्तु इसमें कुछ सच्चाई तो थी. तब कांग्रेस ने कहा था कि लापरवाही और सरकार द्वारा कालाबाजारियों को दिये जा रहे संरक्षण के कारण पूरा छत्तीसगढ़ नकली और अवैध सामानों का गढ़ बन चुका है। प्रदेश के बाजारों में मिलने वाली खाद्य सामाग्री, दवाईयां उवर्रक रसोई गैस के सिलेंडर सभी कुछ के नकली होने की पूरी संभावना बनी रहती है। सरकार के नाक के नीचे नकली सामान बनाने वाली अवैध फैक्ट्रियां संचालित है। राजधानी के भनपुरी औद्योगिक क्षेत्र में नकली सिलेंडर बनाने की फैक्ट्री पकड़ाई है। इस फैक्ट्री का निवेश करोड़ो में है, प्रतिदिन हजारों की संख्या में नकली सिलेंडरों का निर्माण यहां हो रहा था। बिना राजनैतिक संरक्षण और प्रशासनिक मिलीभगत के इतने बड़े अवैध कारोबार संचालन संभव ही नहीं था। 2012 में ही राजनांदगांव में नकली उर्वरक बनाने वाली 5 फैक्ट्रियां पकड़ायी थी। इन फैक्ट्रियों में नकली यूरिया, पोटाश आदि उर्वरकों का निर्माण लंबे अरसे से हो रहा था। किसानों के द्वारा उपयोग किये जा रहे खरपतवार नाशक और कीटनाशकों की बड़ी श्रृंखला बाजार में उपलब्ध थी। कृषि मंत्री के द्वारा विधान सभा में कुछ नकली कीटनाशकों के नाम भी उजागर किये गये थे। उसके बाद भी बाजार में नकली कीटनाशक बाजार मेंबिक रहे थे ? अभनपुर के एक किसान ने तो नकली कीटनाशक के उपयोग के कारण फसल को हुये नुकसान से व्यथित होकर आत्महत्या कर ली थी । बालोद नेत्र शिविर में उपयोग की गयी दवाओं के नकली होने की पुष्टि हैदराबाद की राष्ट्रीय औषधि प्रयोग शाला भी कर चुकी थी । नकली दवाओं के उपयोग के कारण सरकारी नेत्र शिविरों में लोगों की रोशनी चली गयी। राजधानी और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में प्रदेश के बाहर से नकली और सिंथेटिक खोवा और पनीर पहुंचने की शिकायतें बराबर होती है। पुलिस और खाद्य विभाग जांच की केवल खाना पूर्ति कर चुप बैठ जाती है। नकली खाद सामग्री अवैध सामानो का छत्तीसगढ़ बड़ा बाजार बन कर रह गया है।