17-Jan-2015 11:14 AM
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इ स जीत ने भाजपा की छत्तीसगढ़ सरकार को आईना दिखा दिया है। किन्नर की जीत भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कई बार दोहराई जा चुकी है। शबनम मौसी से लेकर कमला बुआ तक
मध्यप्रदेश में विधायक भी बनीं और महापौर भी। लेकिन जिस तरह छत्तीसगढ़ में चुनावी परिणाम आए उसने सरकार को सकते में डाल दिया। वर्ष 2009 में चुनावी परिणाम थोड़े अलग थे, उस समय कांग्रेस को 3 और भाजपा को 6 नगर निगमों में जीत मिली थी। इस बार 2 निर्दलीयों ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया। प्रदेश की राजधानी रायपुर में ही भाजपा पिट गई, यहां कांगे्रस के प्रमोद दुबे जीते। रायपुर के विकास की सारी तरकीबें भाजपा के काम नहीं आईं। हालांकि रायपुर के आसपास दुर्ग और विलासपुर में भाजपा मजबूत रही। दुर्ग में चंद्रिका चंद्राकर और विलासपुर में किशोर राय ने जीत हासिल करते हुए भाजपा की लाज बचाई। राजनांदगांव में भाजपा के मधुसूदन यादव ने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जीत हासिल की। धमतरी में भी भाजपा की अर्चना चौबे जीतने में कामयाब रहीं। लेकिन बाकी जगह नतीजे मनमाफिक नहीं मिले। जगदलपुर में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन घटिया रहा था लेकिन नगर निगम चुनाव में कांग्रेस के जतिन जायसवाल ने जीत हासिल की। कोरबा में रेणु अग्रवाल और अंबिकापुर में अजय तिर्की ने कांग्रेस का परचम लहराया। चिरमिरी में कांग्रेस के बागी निर्दलीय डमरू रेड्डी ने जीतकर सबको चकित कर दिया।
खास बात यह है कि इन चुनाव से पहले कांग्रेस की गुटबाजी चरम पर थी। कांग्रेसी एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे। अजीत जोगी तो ऐन चुनाव के वक्त ही प्रचार से अलग हो गए। जोगी के इस कदम से आहत कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल ने चुनावी नतीजों के बाद भी जोगी के खिलाफ जहर उगलना जारी रखा और उन्होंने जोगी को चिंतन-मनन करने की नसीहत दे दी। विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस एकजुट होकर लड़ती तो बिलासपुर, राजनांदगांव की नगर निगम भी हाथ आ सकती थी।
इस पराजय के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह मायूस हैं। उन्होंने कहा है कि नतीजे आशा के अनुरूप नहीं हैं और बैठकर मंथन करने की जरूरत है। उधर कांग्रेस के भूपेश पटेल ने कटाक्ष किया है कि मुख्यमंत्री को नतीजे देखने चाहिए, अब वे चांउर वाले बाबा नहीं कहलाएंगे। नगर निगमों में भाजपा की पराजय कई सवाल खड़े कर रही है। आने वाले दिनों में इसका असर देखा जा सकता है। नसबंदी कांड और माओवादियों से निपटने में नाकाम रहने के बाद निकाय चुनाव में भाजपा की हार से प्रदेश नेतृत्व के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। लगातार पार्टी की बिगड़ रही छवि के बाद पार्टी के प्रदेश नेतृत्व से एक पूरी रिपोर्ट तलब की है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने निकाय चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन पर खासी नाराजगी जताई है। एक तरफ जहां पूरे देश में कांग्रेस मुक्त करने का पार्टी ने संकल्प ले रखा है, वहीं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की मजबूती से उभरने को गंभीरता से लिया जा रहा है।
सूत्र बताते हैं कि शाह ने छत्तीसगढ़ के प्रभारी और अब केंद्र में मंत्री बन चुके रामशंकर कथेरिया को प्रदेश में हार के कारणों का पता लगाकर रिपोर्ट देने के लिए कहा है। शाह बिना राज्य सरकार और प्रदेश संगठन को शामिल किए अपने स्तर पर भी रिपोर्ट लेने की तैयारी में है। निकाय चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन को केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश सरकार के खिलाफ मतदाताओं की नाराजगी के रूप में देख रहा है। नगरीय निकाय चुनाव से ठीक पहले अमित शाह ने छत्तीसगढ़ का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने प्रदेश नेतृत्व को निकाय चुनाव में किसी भी कीमत पर जीत का लक्ष्य दिया था। इसके बावजूद कांग्रेस सशक्त होकर उभरी। रायपुर में महापौर पद के लिए सच्चिदानंद उपासने को टिकट भी अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद ही दिया गया था। बताया जा रहा है कि उपासने शाह के पसंदीदा उम्मीदवारों में से एक थे। उपासने की हार को एक तरह से राज्य में पार्टी की बिगड़ती छवि पर करारे प्रहार के रूप में भी देखा जा रहा है।
यह सवाल भी खड़ा हुआ है कि क्या महिलाओं की नाराजगी का खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ा है। क्योंकि चुनावी आंकड़े यह बताते हैं कि जहां-जहां महिलाओं ने ज्यादा वोट डाले वहां-वहां बीजेपी को हार का सामाना करना पड़ा है। उन जगहों पर कांग्रेस और निर्दलियों ने बाजी मारी हैं। छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ समय में महिलाएं प्रशासनिक मशीनरी की लापरवाही और उपेक्षा का शिकार हुयी
है। कुछ महीने पहले ही नसबंदी शिविरों में बड़ी संख्या में महिलाओं की मौत हुयी थी। इस मामले में राज्य सरकार की लापरवाही सामने आयी थी। इससे कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ में ही कुछ महिलाओं के गर्भाशय निकाल दिये गये थे। महिला अत्याचार और यौन शोषण के मामले भी लगातार बढ़ें हैं। चुनावी आंकड़ों को देखा जाये तो यह लगता है कि महिलाओं ने सरकार के प्रति गुस्सा निकाला है।
छत्तीसगढ़ में 154 नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के लिए दो चरणों में वोट डाले गये थे। इन चुनावों में करीब 78 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले थे। 154 में से 66 नगरीय निकाय ऐसे थे जहां पुरूषों से ज्यादा महिलायें वोट डालने पहुंची थी। इन 66 में से 35 पर कांग्रेस के महापौर और पालिका अध्यक्ष चुने गये है। नौ पालिकाओं में निर्दलीय प्रत्याशी चुने गये हैं। जबकि एक पर सीपीआई का प्रत्याशी जीता है। 66 में से भाजपा सिर्फ 21 पर जीत पायी है। आंकड़ों के मुताबिक जिन चार नगर निगमों - अंबिकापुर, जगदलपुर, रायगढ़ और चिरमिरी में महिलाओं का मत प्रतिशत ज्यादा था उनमें भाजपा के प्रत्याशी बुरी तरह हारे हैं। इन चारों में दो जगह निर्दलीय और दो जगह कांग्रेस के प्रत्याशी जीते हैं।
जिन नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में बीजेपी हारी है। उनमें भी महिलाओं का मतदान प्रतिशत तुलनात्मक रूप से अधिक रहा है। प्रथम दृष्टया हार के जो कारण माने जा रहे हैं उनमें महिलाओं की नाराजगी को एक प्रमुख कारण माना जा रहा हैं। महिलाओं की नाराजगी की वजहों में एक मुख्य वजह प्रदेश सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर राशन कार्ड रद्द किये जाना भी है। विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर राशन कार्ड जारी किये थे। लेकिन सरकार बनने के बाद पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर राशन कार्ड रद्द किये गये थे। इस वजह से मध्यम और गरीब तबके की महिलाएं रमन सरकार से खासी नाराज है। फिलहाल पालिका चुनावों में जीत ने लगातार हार रही कांग्रेस को ऑक्सीजनÓ दी है। वहीं बीजेपी को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर गलती कहां हुयी। पालिका चुनावों में हार मुख्यमंत्री रमन सिंह के लिए इसलिए भी एक बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि मध्यप्रदेश में पार्टी बड़े अंतर से जीती है।
रायपुर से संजय शुक्ला के साथ टीपी सिंह