05-Dec-2014 05:38 AM
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अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अंतत: नरेंद्र मोदी का आमंत्रण स्वीकार कर ही लिया। एक तरह से यह नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक विजय ही कही जा सकती है, क्योंकि ओबामा अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जो भारत में गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में पधार रहे हैं। ओबामा के आगमन से भारत और अमेरिका के संबंधों में ज्यादा प्रगाढ़ता आने के साथ-साथ दक्षिण एशिया क्षेत्र में नए सामरिक समीकरण भी बनने की संभावना पैदा हो गई है।
ओबामा की इस यात्रा को जिन कूटनीतिज्ञों ने संभव बनाया है, वे अच्छी तरह जानते हैं कि चीन और पाकिस्तान की निकटता के चलते भारत का अमेरिका से मजबूत रिश्ता न केवल अनिवार्य है बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी यह एक अहम मुद्दा है। पिछले 3 दशक में भारत की राजनीतिक अस्थिरता ने उसे विदेश नीति के क्षेत्र में दयनीय स्थिति में ला दिया था। किंतु अब मोदी के प्रयास के चलते भारत की अहमियत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी है। उधर अमेरिका भी रूस से चिंतित है। जी-20 समिट के दौरान रूसी राष्ट्रपति ब्लादिनमिर पुतिन के रुख ने अमेरिका की चिंता को बढ़ाया ही है। रूस, चीन और पाकिस्तान की घेराबंदी को तोडऩे के लिए अमेरिका को पूरे दक्षिण-पश्चिम एशिया में भारत जैसे मजबूत सहयोगियों की तलाश है। यही कारण है कि ओबामा ने जब भारत का निमंत्रण स्वीकार किया तो पाकिस्तान में विशेष रूप से चिंता प्रकट की गई। लेकिन ओबामा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से बात करके संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है। हालांकि नवाज शरीफ ने ओबामा से आग्रह किया कि वे अपनी भारत यात्रा के दौरान कश्मीर मुद्दे को उठाएं।
लेकिन ओबामा किसी भी प्रकार के विवाद को हवा देकर माहौल खराब नहीं करना चाहेंगे। वे कश्मीर से कहीं आगे पश्चिमी और दक्षिणी एशिया में नई भूमिका की तलाश में हैं, जिसमें भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी हो सकता है। इसीलिए भले ही ओबामा ने अपने सरकारी वायुयान में बैठकर लास-वेगास जाते हुए रास्ते से नवाज शरीफ को फोन लगाया हो, लेकिन यह फोन कॉल पाकिस्तान को भरोसा दिलाने के लिए है कि वह भारत और अमेरिका की नजदीकी से डरे नहीं। पिछली बार जब ओबामा ने वर्ष 2010 में 5 से 9 नवंबर के बीच भारत यात्रा की थी, तो उस समय ओबामा को लेकर भारत के मन में जो आशंका थी, उसे दूर करने में बहुत मदद मिली।
ओबामा की यह यात्रा कई मायने में महत्वपूर्ण थी। जनवरी 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद से ही भारत-अमेरिकी संबंधों में संशय का वातावरण बन रहा था। आउटसोर्सिंग व पाकिस्तान के मुद्दे पर ओबामा के सुर भारत को पसंद नहीं आ रहे थे। वीजा के मामले में भी उनके रवैये ने भारत में उनके विरोधियों की संख्या बढ़ा दी थी। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय संसद को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया था। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने भारतीय दौरे के दौरान भारतीय-अमेरिकी उद्योग सम्मेलन में उच्च प्रौद्योगिकी के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का वादा किया था। ओबामा ने भारत की कुछ रक्षा कंपनियों से निर्यात प्रतिबंध हटाने की घोषणा भी की। इन कंपनियों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो), रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) और भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) शामिल हैं।
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद से शीतयुद्ध के समाप्त होने तक, दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य नहीं कहा जा सकता था। हालांकि इस दौरान भी बीच-बीच में कई बार भारत को अमेरिका से भरपूर सहयोग व समर्थन मिला। 1959 में आइजनहावर भारत का दौरा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने। वह भारत समर्थक माने जाते थे। बाद में 60 के दशक में राष्ट्रपति जॉन कैनेडी ने भारत को कम्युनिस्ट चीन के खिलाफ एक रणनीतिक भागीदार के रूप में देखा। 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण के खिलाफ कैनेडी ने हर तरह से भारत की मदद की। 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी खटास आ गई। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया क्योंकि भारत का स्पष्ट झुकाव कम्युनिस्ट सोवियत संघ की ओर था।
1991 में सोवियत संघ के विखंडन के साथ ही शीतयुद्ध की समाप्ति हो गई और विश्व में अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति के रूप में रह गया। यह वह दौर था जब भारत में आर्थिक संकट का दौर जारी था। आर्थिक संकट से उबरने के लिए भारत में नरसिंह राव सरकार ने व्यापक स्तर पर आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया लागू की। यहीं से भारत-अमेरिका के बीच संबंधों में गर्माहट आनी आरंभ हो गई। लेकिन दोनों देशों के मध्य मुख्य रूप से रिश्तों में सुधार 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा से हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के शासनकाल के दौरान नागरिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए गये। एक समय भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम. के. नारायणन ने ओबामा द्वारा कश्मीर समस्या को पाकिस्तान व अफगानिस्तान में अस्थिरता से जोडऩे पर काफी नाराजगी जताई थी। भारत ने इस बारे में कई बार नाराजगी जताई थी कि ओबामा प्रशासन पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान पर किसी तरह का दबाव नहीं डाल रहा है।
अब तक ये अमेरिकी राष्ट्रपति आए भारत दौरे पर
- ड्वाइट डी आइजनहावर पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे, जिन्होंने भारत का दौरा किया। वह 1959 में नई दिल्ली आए थे।
- रिचर्ड निक्सन दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति थे जो भारत दौरे पर आए थे। उन्होंने 1969 भारत का एकदिवसीय दौरा किया था।
- जिमी कार्टर भारत दौरा पर आने वाले तीसरे राष्ट्रपति बने थे। वह जनवरी 1978 में
- तीन दिवसीय दौरे पर आए थे।
- कार्टर की यात्रा के बाद भारत-अमेरिका संबंध बेहद बुरे दौर से गुजरे और 22 साल कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति नई दिल्ली नहीं आया। 1978 के बाद वर्ष 2000 में बिल क्लिंटन भारत आने वाले चौथे राष्ट्रपति बने।
- बिल क्लिंटन के बाद 2006 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश भारत दौरे पर
- आए थे।
- मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा 26 जनवरी को दूसरी बार भारत आएंगे। इससे पहले वह 2010 में भारत दौरे पर आए थे। ओबामा पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जो अपने कार्यकाल के दौरान दूसरी बार भारत आ रहे हैं।