राम बारात में मोदी क्यों नहीं?
21-Nov-2014 03:00 PM 1234959

पहले नरेंद्र मोदी ने दीपावली कश्मीर में मनाई, फिर म्यांमार में बयान दिया कि आतंकवाद से धर्म को न जोड़ा जाए। उसके अगले दिन खबर आई कि मोदी नेपाल में समाप्त होने वाली श्रीराम-जानकी बारात में शामिल नहीं होंगे। इन सारी खबरों का तारतम्य बिठाने की कोशिश की जा रही है। हिन्दू हृदय सम्राट बन चुके नरेंद्र मोदी अपनी हिन्दूवादी छवि से निकलने के लिए बेताब हैं। उनकी छवि निर्माण करने में जुटी एजेंसियां भी मोदी को धर्म निरपेक्षता का नया अवतार निरूपित करने में एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं, अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक और नेपाल से लेकर म्यांमार तक मोदी की विदेश यात्राओं के दौरान उन्हें विश्व के शक्तिशाली देशों के नेताओं के मुकाबले ज्यादा वजन मिला ऐसा दर्शाया जा रहा है। भारतीय मीडिया तो मोदी की इस ब्रांडिग में आगे है ही लेकिन जिस तरह विदेशों में मोदी को एक मॉस लीडर की शक्ल दी जा रही है उसके चलते यह जरूरी है कि मोदी हिन्दूवादी ताकतों से दूर ही रहें। उत्तरप्रदेश में मोदी की इस ब्रांडिंग का फायदा मिलेगा अथवा नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

नरेंद्र मोदी ने अचानक राम-जानकी बारात में जाने का फैसला बदल दिया तो उत्तरप्रदेश में साधु-संतों के चेहरे पर मायूसी छा गई। राम-जानकी बारात पहले भी होती रही है लेकिन इस बार मोदी के आने से हिन्दुत्व की हांडी में उबाल आने का अनुमान लगाया जा रहा था। लेकिन मोदी ने जैसे ही यात्रा में आने का कार्यक्रम स्थगित किया।
कई सवाल खड़े हो गए। क्या आईबी ने मोदी के शरीक होने पर कोई इनपुट दिया था, या साप्रंदायिक तनाव बढऩे की आशंका थी, या फिर मोदी की ब्रांडिंग कर रही मीडिया कंपनियों ने इसे एक गैर जरूरी कवायद घोषित करते हुए मोदी को मना कर दिया था। कारण चाहे जो हो लेकिन सवाल वही है। पिछले एक वर्ष से यह महसूस किया जा रहा है कि मोदी अपनी कट्टर छवि से बाहर निकलने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। चुनावी भाषणों में उन्होंने सदैव विकास के मुद्दे को ही तरजीह दी, लेकिन साधु-संतों के बार-बार बुलावे के बावजूद अयोध्या न जाकर उन्होंने यही जताने का प्रयास किया कि वे अब किसी ऐसे झमेले में नहीं पडऩा चाहते जिसके चलते अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी और बहिष्कार झेलना पड़े। अमेरिका द्वारा वीजा नहीं दिए जाने का जख्म मोदी के हृदय में अभी भी ताजा है। इसलिए वे सारी विवादास्पद कवायदों से बच रहे हैं।
उत्तरप्रदेश में सियासी तापमान फिर बढऩे लगा है। हिंदुत्व के मंझे हुए खिलाड़ी जन भावनाओं की फसल काटने के लिए अखाड़े में उतर आए हैं। पिछली बार मुद्दा मंदिर में लाउड स्पीकर का था, तो इस बार राम-जानकी विवाह बारात यात्रा को लेकर विहिप उत्साहित थी और स्वाभाविक रूप से उसके इस उत्साह ने भाजपा के उत्साह में भी वृद्धि की थी। झारखंड में चुनाव है, बिहार में चुनाव आने वाले हैं और उसके बाद उत्तरप्रदेश के चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं रहेंगे। तब तक सियासी हांडी में हिंदुत्व का उबाल आता रहे, इसलिए पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं। राम-जानकी विवाह बारात यात्रा के बाराती के रूप में नरेंद्र मोदी के शरीक होने की खबर ने माहौल को बदला था किन्तु मोदी के इनकार के बाद इस बारात के आयोजक मायूस हो गए। यह विवाह बारात यात्रा 17 नवंबर को अयोध्या से शुरू होकर 25 नवंबर को नेपाल के जनकपुर पहुंचेगी। विहिप ने इस यात्रा को गैर राजनीतिक और पूरी तरह सांस्कृतिक करार दिया है। विहिप का कहना है कि राम-जानकी विवाह यात्रा भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक संबंधों को और प्रगाढ़ बनाएगी। हालांकि विहिप की इस यात्रा का स्वरूप ऐसा तय किया गया है, जिससे राजनीति साफ झलकती है। यात्रा को 500-600 किलोमीटर की दूरी तय करने में 9 दिन का समय लगेगा। यात्रा को वैसे इलाकों के बीच से गुजारने का कार्यक्रम है जोकि धार्मिक रूप से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं।
राम-जानकी विवाह बारात यात्रा अयोध्या से शुरू होकर आजमगढ़, बलिया के रास्ते बिहार के बक्सर में प्रवेश करेगी। यहां से पटना, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी से गुजरते हुए नेपाल में प्रवेश करेगी। इन क्षेत्रों से गुजरते हुए बाराती के रूप में शामिल अयोध्या के संत और विहिप नेता इन जिलों के स्थानीय इलाकों में रुकते हुए भजन-पाठ करते जाएंगे। विहिप नेता चंपत राय का कहना है कि इससे पहले भी यात्रा वर्ष 2004 और 2009 में शांतिपूर्ण संपन्न हो चुकी है।

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