02-Mar-2013 08:20 AM
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मध्यप्रदेश में जनाकांक्षाओं के बोझ तले चुनावी बजट विधानसभा में प्रस्तुत कर दिया गया। बजट का विश्लेषण यही कहता है कि शिवराज सिंह ने अपने गंभीर वित्तमंत्री राघवजी के मार्फत सभी वर्गों को खुश करने और हर एक व्यक्ति तक पहुंचने का साहस दिखाया है। हालांकि बजट इस तरह प्रतीत होता है मानो यह दीन दुखियारों की दरिद्रता दूर कर देगा किंतु इसमें बड़ी चतुराई से प्रदेश के व्यापारी वर्ग से लेकर कार्पोरेट घरानों का ध्यान रखा गया है। कार्पाेरेट घरानों की रहनुमाई राजनीतिक दलों की और सरकारों की मजबूरी बन चुका है। क्योंकि विकास के जिस विजन को अमली जामा सरकारें पहनाना चाहती हैं वह तभी संभव है जब कार्पोरेट जगत आगे बढ़कर निवेश करे और रोजगार के अवसर पैदा हो। रोजगार ही आर्थिक विकास की कुंजी है सरकार की योजनाएं भी अब रोजगार केंद्रित हो चुकी हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि यदि मध्यम वर्ग को बढ़ाना है तो उसकी जेब में पैसा पहुंचाना ही होगा और यह पैसा रोजगार के माध्यम से पहुंचे तो विकास सही दिशा में और टिकाऊ होगा। शिवराज सरकार ने भी इसी विजन के साथ चुनावी बजट प्रस्तुत किया है। उन्होंने भरसक प्रयास किए हैं कि कम से कम आगामी 12 माह सुकून से गुजरें और जनता किसी प्रकार का अनावश्यक बोझ महसूस न करें। शायद इसीलिए मध्यप्रदेश में तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए वित्तमंत्री ने बजट को अपना रथ बनाया है और उम्मीद बनाए रखी है कि वोट के रूप में जनता का प्रतिदान अवश्य मिलेगा। यह बजट राहत और घोषणाओं का चुनावी बजट महज नहीं कहा जा सकता। इसमें शिवराज ने आगामी समय को देखने की कोशिश की है। क्योंकि प्रतिपक्ष के रूप में चुनौती भले ही बड़ी हो लेकिन कहीं न कहीं वे आश्वस्त हैं और इसी बेफिक्री का परिणाम है कि सरकारी बजट में कुम्हार की तरह बाहर से चोट की गई है तो अंदर से सहलाया भी गया है। मध्यप्रदेश में चुनाव के समय इससे पहले जो बजट देखने में आए थे उनमें चुनावी वादों की झलक देखी जा सकती थी। इस बार थोड़ा सा लीक से हटने की कोशिश की गई है और उसी का परिणाम है कि गेहूं की तरह धान पर भी सरकार ने खरीदी शुल्क लगाया है। इससे सरकार को 50 करोड़ रुपए की आय होगी और इस आय का उपयोग करने के लिए तरीके भी सरकार ने तलाश लिए हैं। निर्माण उद्योग में लागत लगातार बढ़ रही हैं। सरकार चाहती है कि यह लागत कुछ कम हो इसी के मद्देनजर रेट, गिट्टी समेत ऐसे कई आयटम हैं जहां पर सरकार ने राहत दी है। देशी और विदेशी शराब को महंगा करना बजट का एक फैशन सा रहा है। इसका कारण शायद यह है कि सरकारें समझती हैं कि इनको महंगा करने से कोई विशेष नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि सामाजिक रूप से यह एक अच्छा संदेश भी होगा इसीलिए सरकार ने गेहूं पर 150 रुपए प्रति क्विंटल का बोनस निर्धारित किया है यह एक अच्छी पहल कहीं जा सकती है। लेकिन यदि कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकार थोड़ा और ध्यान रख लेती तो किसानों को कहीं न कहीं राहत मिल सकती थी। पर समय की बात है। वर्तमान सरकार आर्थिक रूप से मंदी भरे दौर में अपनी नैय्या खेने के लिए विवश है। तमाम प्रयासों के बावजूद विकास दर की जो कल्पना कभी की गई थी वह मिल नहीं सकी है। इसी कारण कहीं न कहीं इस कमी की पूर्ति तो करनी ही पड़ेगी। फिर स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी, ऊर्जा, कृषि, सुरक्षा, उद्योग और अधोसंरचना जैसे कई चुनौती भरे पहलु हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है भले ही चुनाव हो या न हो। राघवजी ने बड़ी चतुराई से चुनावी माहौल बनाने की कोशिश करते हुए रसोई गैस पर एंट्री टैक्स 6.47 से घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया है। इससे सब्सिडी वाला गैस सिलेंडर 18.50 रुपए सस्ता हो गया है। यदि रसोई गैस से वैट भी पूरी तरह खत्म कर दिया जाए तो राहत बढ़ सकती है। दूसरी तरफ एंट्री टैक्स लेने का औचित्य मध्यप्रदेश जैसे राज्य में समझ से परे है। मध्यप्रदेश से सटे सारे राज्यों में एंट्री टैक्स नहीं लिया जाता है। सिर्फ सारे देश में उड़ीसा ही एकमात्र प्रदेश है जहां मध्यप्रदेश के अलावा एंट्री टैक्स लिया जाता है। उड़ीसा की राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थिति के कारण एंट्री टैक्स लेना मुनासिब है लेकिन मध्यप्रदेश में इसका औचित्य समझ से परे है। वेल्यू एडेड टैक्स भी कम किया जा सकता है इससे गृहणियों को अतिरिक्त राहत मिल सकेगी पर शायद गृहणियों के बजट पर सरकार उतनी संवेदनशील नहीं है। बल्कि वह समूची महिला जाति को सुरक्षित करना चाहती है और इसीलिए महिलाओं तथा बालिकाओं की सुरक्षा के लिए गठित महिला अपराध शाखा के अंतर्गत पांच सौ नए पदों का सृजन किया गया है। सवाल यह है कि इतनी विशाल जनसंख्या वाले प्रदेश में महिलाओं के लिए एक छोटी सी घोषणा कितनी प्रभावी हो सकती है।
वित्तमंत्री ने चुनावी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए बिजली, सड़क और पानी पर भरपूर हाथ खोले हैं। बिजली के लिए 8 हजार 856 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है जो कि एक रिकॉर्ड है। हालांकि फीडर सेपरेशन के कारण कुछ स्थिति सुधरी हैं, लेकिन बिजली का बिल न भर पाने के कारण जिन गांवों की बिजली कटी हुई है उनके बारे में कोई स्पष्ट विजन इस बजट में नहीं आया है। सरकार का कहना है कि सिंचाई हेतु ऊर्जा की खपत में सरकारी सहायता 1700 करोड़ रुपए की गई है पर इसे परिभाषित करना आवश्यक है। क्या किसानों के बिजली के बिल माफ किए जाएंगे? यदि हां तो मापदंड क्या होगा? स्वास्थ्य में भी यही सवाल खड़े हो रहे हैं 4147 करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि स्वास्थ्य पर व्यय की जा रही है। सरकार ने कहा है कि वह प्रदेश के 108 एंबुलेंस सेवा दस्ते में जिसका नाम बदलकर संजीवनी 108 कर दिया गया है, में 100 अतिरिक्त वाहन प्रदान करेगी इसके साथ ही 150 अतिरिक्त एंबुलेंस संचालन की स्वीकृति दी गई है, लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि इसमें से कितनी एंबुलेंस सड़कों पर दौड़ पाएंगी। राजधानी भोपाल में होशंगाबाद रोड पर सैकड़ों एंबुलेंस खड़ी हुई हैं जिनका कोई माई-बाप नहीं है। आठ माह से डेमरेज दिया जा रहा है। पर ये सड़कों पर दौड़ती नहीं दिख रही हैं। उम्मीद है कि आगामी कुछ दिनों में इसमें कुछ सुधार देखने को मिलेगा। सड़कों का भी यही हाल है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्रदेश में जर्जर हो चुके हैं। भोपाल जैसे शहरों में बीआरटीसी ध्वस्त हो चुका है ऐसे हालात में सड़कों के लिए 4970 रुपए अपर्याप्त लगते हैं, लेकिन सरकारी की मजबूरी है क्योंकि उसे अन्य मदों पर भी खर्च करने हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पूरी राशि ईमानदारी के साथ उपयोग में लाई जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो सड़क एक बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगा। खासकर राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास के लिए शिवराज सरकार को विशेष पहल करनी होगी। बुंदेलखंड में पानी की समस्या प्रभावी रूप से उभर आयी है और सागर जैसे संभागों में पानी एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है ग्रामीण शहरी क्षेत्रों में पानी की विकराल समस्या है। सरकार ने पेयजल के लिए 1743 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है, लेकिन उम्मीद की जा रही थी कि बुंदेलखंड की जल समस्या के लिए अलग से किसी पैकेज की घोषणा की जाएगी पर वैसा नहीं हो सका। 13200 ग्रामीण क्षेत्रों में नलकूप खुदने की योजना है पर सवाल यह है कि जब जमीन में ही पानी नहीं रहेगा तो नलकूप खोदकर क्या प्राप्त किया जाएगा। वाटर रीचार्जिंग के लिए बजट में पूंजी निवेश की आवश्यकता है लेकिन लगता है कि प्रदेश की लालफीताशाही इस सच्चाई से अवगत नहीं है। वित्तमंत्री स्वयं ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं मुख्यमंत्री भी ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं उम्मीद थी कि पानी की समस्या पर वे कुछ नया विजन लेकर आएंगे लेकिन बजट में इसका अभाव है। बहरहाल 432 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली नर्मदा, क्षिप्रा, सिंहस्थ लिंक परियोजना एक अच्छी पहल है इससे बहुत लाभ मिलने की उम्मीद है खासकर उन क्षेत्रों में जो पानी के अभाव से जूझ रहे हैं।
हाल ही में भोपाल में एक संगोष्ठी हुई थी जिसमें केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने शिरकत की थी और भी कई हस्तियां इस संगोष्ठी में मौजूद थीं, उम्मीद की जा रही थी कि सरकार इस संगोष्ठी में कहीं गई बातों ध्यान देगी लेकिन शिक्षा के अंतर्गत 13763 करोड़ रुपए की जो राशि खर्च की जा रही है उसमें एक भी बिंदु ऐसा नहीं है जिसमें यह कहा गया हो कि प्रदेश सरकार प्रदेश के सभी स्कूलों में चाहे वे प्राइमरी हों या मिडिल या फिर हाई लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट बनाने जा रही है। अलग से टॉयलेट का प्रावधान बजट में होना चाहिए। हालांकि शिक्षा पर पिछले वर्ष के मुकाबले 1644 करोड़ रुपए अधिक खर्च किए जा रहे हैं। प्रतिभा किरण योजन का विस्तार करने का सुझाव भी महत्वाकांक्षी है, लेकिन इन सबके बावजूद शिक्षा की अधोसंरचना पर खर्च करना अब बहुत जरूरी हो गया है जो कुछ उपलब्ध है उसे बेहतर बनाए रखना और गुणवत्तापूर्ण बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।
कृषि क्षेत्र के लिए गत वर्ष की भांति प्रथक से कृषि बजट बनाने से किसानों को राहत मिलने की पूरी आशा है। सिंचाई सुविधा के विकास के लिए सरकार ने 4 हजार 765 करोड़ रुपए की बड़ी भारी रकम का प्रावधान किया है इससे प्रदेश के सिंचित रकबे में वृद्धि होने के साथ-साथ किसानों को राहत मिल सकेगी। दो विशाल एवं 10 मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण कार्य 2013-14 में प्रारंभ किए जाने से उन क्षेत्रों में भी सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सकेगा जहां फिलहाल सूखे के कारण किसानों का जीवन कठिन हो जाता है। सरकार ने किसानों की ऊर्जा जरूरतों को भी ध्यान में रखा है और सिंचाई हेतु ऊर्जा खपत में सरकार सहायता 17 सौ करोड़ रुपए कर दी है इससे छोटे और मंझोले किसानों को बहुत लाभ होने की संभावना है। किसानों के समक्ष बिजली एक बहुत बड़ी चुनौती बन रही है, मध्यप्रदेश सरकार ने कृषि कार्यों के लिए 8 घंटे लगातार विद्युत प्रदाय सुनिश्चित करने हेतु वर्तमान बजट में 3 हजार करोड़ का निवेष करने का प्रावधान किया है। गेहूं उर्पाजन पर 150 रुपए प्रति क्विंटल बोनस किसानों को मिलेगा और इस पर सरकार एक हजार 50 करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। प्रदेश में कृषि को उन्नत करने के लिए कई तरह के प्रावधान किए जा रहे हैं। जैसे कतार बोनी को प्रोत्साहित करने हेतु सीड-कम-फर्टीलाइजर ड्रिल अनुदान दिया जाएगा। बीजों का उपचार का शत प्रतिशत लक्ष्य रखा गया है। माइक्रो इरीगेशन मिशन के लक्ष्य को पांच गुना बढ़ाने का प्रस्ताव है। किसानों को विदेश में अध्ययन कराने की योजना भी बजट में प्रस्तावित है। जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 12 करोड़ रुपए की योजना बनाई गई है। उच्च उत्पादन वंशावली के बछड़े एवं बछडिय़ां तैयार करने के लिए भ्रूण प्रत्यारोपण प्रयोगशाला पर 4 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। यह कुछ ऐसी योजनाएं हैं जिनसे कृषि में गुणात्मक सुधार दर्ज किया जाएगा तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार को भी पर्याप्त बढ़ावा मिलेगा। सरकार ने किसानों की आर्थिक स्थिति को भी विशेष रूप से ध्यान में रखा हुआ है। शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए पांच सौ करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। मछुआरों को भी कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराने के लिए अल्पकालीन ऋण शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर मिलेगा। इसी तरह सहकारी केंद्रीय बैंकों में कोर बैंकिंग सुविधा प्रारंभ होने से किसानों को लाभ मिल सकेगा। किसानों के और ग्रामीणों के सभी वर्गों का ध्यान वर्तमान बजट में रखा गया है इससे निश्चित रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में खुशहाली देखने को मिलेगी और प्रदेश समृद्धि की ओर बढ़ेगा।
अधोसंरचना के लिए निवेश
मध्यप्रदेश में भौतिक अधोसंरचना के विकास के लिए वर्ष 2013-14 में बड़े निवेश की तैयारी की जा रही है सरकार ने विद्युत, सड़क और पानी जैसी बुनियादी समस्याओं के प्रभावी समाधान के लिए अनिवार्य रूप से बजट आवंटित किया है। ऊर्जा क्षेत्र के अंतर्गत बजट में पिछले बजट से एक हजार 146 करोड़ रुपए अधिक है। विद्युत के पारेषण एवं उप पारेषण व्यवस्था के उन्नयन एवं मजबूती हेतु 2681 करोड़ रुपए सरकार खर्च करने वाली है। इसी तरह 405 करोड़ रुपए विद्युत उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए खर्च किए जाएंगे। गैर परंपरागत ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए 29 करोड़ रुपए का प्रावधान है। सड़क निर्माण के लिए भी सरकार ने कमर कस ली है। सड़क निर्माण एवं संधारण के लिए 4 हजार 970 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है तो मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत 501 करोड़ रुपए का प्रावधान है। उधर सिंचाई सुविधा के विकास के लिए सरकार 4 हजार 765 करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। इतनी विशाल धनराशि से प्रदेश में विकास को समुचित गति मिलेगी और अधोसंरचना की दृष्टि से प्रदेश का देश में महत्वपूर्ण स्थान होना अवस्वयंभावी है।
सरकार मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में विकास करना चाहती है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में होने वाला पलायन नियंत्रित हो सके और गांवों में ही स्वरोजगार की सुविधाएं उपलब्ध हों जिससे गांव समृद्ध और खुशहाल रह सकें। इसके लिए सरकार ने ग्रामीण विकास हेतु 7 हजार 444 करोड़ रुपए की विशाल धनराशि का प्रस्ताव किया है जो पंचायतों के माध्यम से उपयोग में लाई जाएगी। बेघर ग्रामीणों के लिए मुख्यमंत्री आवास मिशन के अंतर्गत 100 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इसी तरह मुख्यमंत्री अंत्योदय आवास योजना के तहत 35 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। ग्रामीण एवं शहरी निकायों को हस्तांतरण हेतु 1,325 करोड़ रुपए की राशि दी जाएगी जो कि गत वर्ष की तुलना में 26 प्रतिशत अधिक है। 5794 आंगनबाडिय़ों के लिए पेयजल व्यवस्था भी इसी में शामिल की गई है। शिक्षा मध्यप्रदेश में एक महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंच चुकी है। वर्तमान सरकार ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बहुत प्रयास किए हैं। इस वर्ष भी शिक्षा में 13763 करोड़ रुपए की राशि का भारी-भरकम प्रावधान है जो गत वर्ष से 1644 करोड़ रुपए अधिक है। कमजोर एवं वंचित समूह के लगभग 2.65 लाख बच्चों की फीस की प्रतिपूर्ति व्यवस्था प्रस्तावित की गई है जिसके लिए 71 करोड़ रुपए की प्रतिपूर्ति की जा रही है। गांव की बेटी एवं प्रतिभा किरण योजना का विस्तार किया जा रहा है। आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों को पुस्तकों हेतु 15 सौ रुपए एवं स्टेशनरी हेतु 500 रुपए की वृद्धि की गई है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सरकार ने 4147 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है जो गत वर्ष से 521 करोड़ रुपए अधिक है। प्रदेश की 108 एंबुलेंस सेवाएं के बेड़े में 100 अतिरिक्त वाहन शामिल किए जाएंगे। इसके अलावा 150 अतिरिक्त एंबुलेंस के संचालन की स्वीकृति भी दी गई है। महिला एवं बाल विकास विभाग में भी महिला एवं बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए 5106 करोड़ रुपए के प्रावधान किए गए हैं। इस प्रकार बजट में सभी वर्गों का ख्याल रखते हुए इसे एक लोकोपयोगी और प्रभावी बजट बनाने का प्रयास किया गया है किंतु यह सब करने के लिए अब समय बहुत कम बचा है। चुनाव से पूर्व सरकार का अपनी चुनौतियां कम करनी होंगी।
इंडस्ट्रिलय कॉरिडोर से जुड़ेंगे बड़े शहर
प्रदेश में निवेश बढ़ाने लिए बजट में प्रमुख शहरों भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर के आसपास इंडस्ट्रिय कॉरिडोर विकसित करने की दिशा में सरकार ने कदम बढ़ा दिए हैं। इसके लिए प्रमुख शहरों समेत 14 प्रोजेक्ट शामिज किए गए हैं। भोपाल और इंदौर में प्रस्तावित मेट्रो ट्रेन की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के लिए भी बजट में दो करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है।
इंडस्ट्रियल कॉरिडोर
भोपाल-इंदौर, भोपाल-बीना, जबलपुर कटनी, सतना सिंगरौली, मुरैना-ग्वालियर एवं शिवपुरी-गुना आदि इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर विकसित होंगे। दिल्ली-मंबई इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर परियोजना (डीएआईसी) के प्रथम चरण में पीथमपुर-धार-महू इन्वेस्टमेंट रीजन का विकास होगा।
किस शहर को क्या
भोपाल
द्य भारत भवन में रंगमंडल की पुनस्र्थापना।
द्यनगरीय निकायों के अधिकारी, कर्मचारी व जनप्रतिनिधि के प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय अभिशासन एवं नगरीय प्रबंध संस्थान।Ó
इंदौर
द्य गाड़ी अड्डा के निकट लोहारमंडी रावजी बाजार मार्ग पर रेलवेओवर ब्रिज।
द्य भैसलाय ओड़ी महू मार्ग में गंभीर नदी पर पुल निर्माण, सांवरे-उज्जैन मार्ग में सहाना गांव के पास खान नदी परपुल, सेंडल-मेंडल रोड पर मेंडल गांव के पास सुखली नदी पर पुल, हातोद गुलावटी गुर्दाखेड़ी मार्ग पर गंभीर नदी पर उच्चस्तरीय पुल का निर्माण।
जबलपुर
द्य अजजा छात्रों के लिए खेल मैदान
द्य उच्च स्तरीय एकलव्य तीरंदाजी अकादमी।
ग्वालियर
द्य आंतरी तिलावली के मध्य खारी/खाटी नाले पर पुल, किशोरगढ़-गढ़ी सलामपुर मार्ग में नोन नदी पर पुल का नर्माण।