इज्जत की बोली पांच हजार देखती रही छग सरकार
19-Mar-2013 08:39 AM 1235093

छत्तीसगढ़ के उत्तरी बस्तर के जिले  कांकेर जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर झलियामारी आश्रम स्कूल के छात्रावास की दीवारें उन मासूम लड़कियों की चीत्कार से गूंज रही हैं। जिनके साथ पिछले कई वर्षों से हर दिन और रात बदस्तूर बलात्कार होता रहा और लड़की है तो कल है का नारा देने वाली भाजपा की हिंदुत्व संस्कृति संपन्न छत्तीसगढ़ सरकार और उसके कर्णधार सोते रहे। जरा कल्पना कीजिए उस आदिवासी कन्या छात्रावास की जिसकी दीवारें जीर्ण-शीर्ण हैं, छत कबेलू की बनी हुई है। जिसके दरवाजों में कुंडी नहीं है। बारिश में चारों तरफ कीचड़ मच जाती है। बोरों को तानकर एक अस्थाई स्नानागार बनाया गया है, शौचालय का नामो-निशान नहीं है और दूर-दूर तक सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे भयानक परिवेश में उन बच्चियों के साथ हो रहे अनाचार और अत्याचार के विषय में विचार करते ही रूह कांप जाती है। 6 से 14 वर्ष की बच्चियां न जाने कितने समय से आश्रम के शिक्षक, वाचमैन और अन्य लोगों के अनाचार झेल रही थीं। उन बच्चियों के चेहरे से ही दर्द पढ़ा जा सकता है। वे दर्द से तड़पती रहतीं, अपनी पीड़ा भी उन्होंने ऊपर अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश की लेकिन उनकी आवाज वहां तक नहीं पहुंच सकी, बल्कि होस्टल अधीक्षिका बबीता मरकाम और सहायक शिक्षक सागर कतलाम (एक कर्मचारी की पत्नी को भी इसकी जानकारी थी) को जब लड़कियों ने अपने साथ घटने वाली अमानवीय घटना के विषय में बताया तो उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताने की बजाए गांव के उप सरपंच सुकालु राम नेताम तथा लच्छुराम सलाम को जानकारी दी, जिसके बाद खाप पंचायत की तर्ज पर गांव में बैठक आयोजित की गई और अभियुक्तों को भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी देकर पांच- पांच हजार रुपए जुर्माना भरने की हिदायत दी गई। होस्टल अधीक्षिका को भी तीन हजार रुपए जुर्माना भरने का कहा गया। नागेश ने जुर्माना भर दिया और उसका होस्टल में सोना जारी रहा जबकि गोती ने जुर्माना नहीं दिया इसलिए उसे होस्टल के आसपास फटकने भी नहीं दिया गया। एक प्रमुख जिले से मात्र 40 किलोमीटर दूर दिन के उजाले में लड़कियों की इज्जत की बोली लगाई जा रही थी और सरकार तथा प्रशासन गहरी नींद में डूबे हुए थे। किसी को भनक तक नहीं लगी। मामला रफा-दफा कर दिया गया यह कहते हुए कि गांव की इज्जत का सवाल है। गांव की बात गांव में ही रहना चाहिए। मासूम लड़कियों की पीड़ा और इज्जत गांव की इज्जत से बड़ी बन गई। यह घटना भी प्रकाश में नहीं आती, लेकिन जब अत्याचार हद से अधिक बढ़ गया तो किसी तरह इन लड़कियों ने अगस्त माह में उच्चाधिकारियों तक अपने साथ हो रही दरिंदगी की बात पहुंचाई पर तब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया और न ही तेजी से कार्रवाई की गई। बल्कि जनवरी माह में शीतकालीन सत्र के दौरान जब यह घटना अखबारों में छपी और विपक्ष सहित प्रदेश में समाजसेवियों तथा अन्य संगठनों ने हल्ला मचाया तब कहीं जाकर सरकार की नींद खुली। नेता प्रतिपक्ष रवींद्र चौबे का कहना है कि सरकार चाहती तो अगस्त माह में ही इस घटना पर कठोर कदम उठा सकती थी, लेकिन साढ़े तीन माह तक कोई कार्रवाई ही नहीं की गई। तब तक उन लड़कियों के साथ जो होता रहा वह कल्पना के परे था। महिला एवं बाल विकास विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी शैल ठाकुर की शिकायत पर 5 जनवरी 2013 को अपराध क्रमांक 03/2013यू/एस 376, 34 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज की गई। प्रारंभ में बहुत सी धाराएं नहीं लगाई गई थी, जिनमें एट्रोसिटी एक्ट की धाराएं शामिल हैं क्योंकि सभी पीडि़त बच्चियां आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। पुलिस द्वारा की गई जांच में पता चला है कि पीडि़त लड़कियां बबीता मरकाम और सागर कतलाम को लगातार सूचित कर रही थीं, लेकिन वे पंचायती फैसले को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते थे। इस मामले में भारतीय दंड विधान की धारा 376(2-बी,एफ), 34 के अतिरिक्त इंडियन पैनल कोड की धारा 450, 119, 120बी, 207, 506बी के तहत भी मुकदमा कायम किया गया है। जब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की टीम जांच करने पहुंची तो टीम के निर्देश पर अन्य धाराएं लगाई गईं। आयोग ने पाया कि अगस्त 2012 में ही पीडि़त लड़कियों ने सरकारी अधिकारियों के मार्फत सरकार तक अपने साथ हो रही ज्यादती की खबर पहुंचा दी थी, लेकिन उस वक्त कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसके बाद जब सरकार हरकत में आई तब तक काफी देर हो चुकी थी। नेता प्रतिपक्ष रवींद्र चौबे का कहना है कि इस घटना के बाद प्रदेश में लगभग 8 जगह ऐसी ही घटनाओं की खबर मिली है। नगरी के होस्टल के अतिरिक्त बालौद में भी आश्रम अधीक्षिका द्वारा आदिवासी लड़की को जबरन दुराचार पर विवश करने की घटना सामने आई है। छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में अधोसंरचना से लेकर तमाम विकास की बात करती है। महिलाओं के लिए भी कई प्रभावी कदम उठाने की बात सरकार द्वारा बार-बार कही जाती है, लेकिन यह सारे दावे कागजी हैं।
प्रदेश में बहुत से आश्रम-स्कूल ऐसे हैं जो सरकारी इमारतों में न होकर निजी इमारतों में चलाए जा रहे हैं। ये ज्यादातर इमारतें जर्जर स्थिति में हैं। झलियामारी में जिस इमारत में वह छात्रावास था वह भी किसी ग्रामीण की निजी संपत्ति थी जिसकी देखरेख वर्षों से नहीं की जा रही थी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार भी करोड़ों रुपए का बजट स्कूल, छात्रावास, कॉलेज इत्यादि बनाने के लिए प्रतिवर्ष जारी करती है। शिक्षा में सरकारों द्वारा बड़ा भारी निवेश किया जा रहा है, लेकिन स्कूलों में एक अदद बाथरूम तक की व्यवस्था नहीं है। क्योंकि प्रशासन में संवेदनशीलता का बीज ही नहीं है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तब देखने को मिला जब झलियामारी की घटना पर छत्तीसगढ़ के आदिवासी विकास मंत्री केदार कश्यप से इस घटना के विषय में जानकारी लेनी चाही। बार-बार फोन करने पर उनके निवास से यही जवाब मिला कि मंत्रीजी उपलब्ध नहीं हैं। कार्यालय से बताया गया कि वे विधानसभा में हैं। बहरहाल अगले दिन 15 मार्च को सुबह 11 बजे के करीब जब मंत्रीजी से पुन: दूरभाष क्रमांक 07712331032 पर संपर्क साधा गया तो लगभग पांच मिनट होल्ड के बाद बोला गया कि मंत्रीजी  फोन नहीं उठा रहे हैं निवास में हैं। मंत्रीजी के कर्मचारियों को बताया गया कि किस विषय पर बात करनी है, लेकिन शायद यह विषय उतना गंभीर नहीं समझा गया। मुख्य सचिव सुनील कुमार ने भी कहा कि आप तर्क कर रहे हैं या आपको जानकारी चाहिए। जानकारी देने के लिए बैजेंद्र कुमार अधिकृत हैं। बैजेंद्र कुमार भी मोबाइल नहीं उठा रहे थे बाद में लैंडलाइन पर फोन लगाने पर ज्ञात हुआ कि वे किसी मीटिंग में हैं उसके बाद विधानसभा चले गए। इससे पता चलता है कि आदिवासी गरीबों के विषय में संवेदनशीलता न के बराबर है, केवल प्रचार की दृष्टि से सरकारें अपने आपको गरीबों के प्रति करुणावत्सल बताती हैं, लेकिन गरीब उनके लिए वोट बैंक से ज्यादा हैसियत नहीं रखते। 6-6 साल की लड़कियों से सालों तक बलात्कार होता रहा और छत्तीसगढ़ सरकार सोती रही। इसका कारण यह है कि छात्रावासों से लेकर स्कूलों के विकास के सारे प्रस्ताव फाइलों में कैद हैं। बच्चियों की इज्जत और आबरू की सुरक्षा भी इन्हीं फाइलों में सुरक्षित है।
हिन्दुत्व की संस्कृति की पैरोकार भाजपानीत सरकार के कर्ताधर्ता धर्मांतरण, गौ-हत्या जैसे मुद्दों पर गला फाड़कर चिल्लाते हैं, लेकिन मासूम बच्चियों की इज्जत जाने के बावजूद संगठन की तरफ से सरकार को कोई चेतावनी नहीं मिलती। इस घटना के बाद भाजपा संगठन की तरफ से न तो विरोध दर्ज कराया गया और न ही उन्होंने सरकार की खिंचाई की। यही कारण है कि राज्य के हर होस्टल में बच्चियों की कराह गूंज रही है। वे असहनीय पीड़ा सहने को विवश हैं, लेकिन उनके दर्द को समझने वाला कोई नहीं है।
कहां गया समग्र स्वच्छता अभियान
मध्यप्रदेश में मर्यादा अभियान चल रहा है तो छत्तीसगढ़ में समग्र स्वच्छता अभियान है। लक्ष्य वही है नाम अलग-अलग हैं और अलग-अलग राजनीति भी है। देखा जाए तो रमन सरकार के 10 साल के कार्यकाल में पहली प्राथमिकता स्कूलों तथा कन्या छात्रावासों में सुरक्षा और शौचालय इत्यादि की होनी चाहिए। लेकिन इस दिशा में केवल कागजी प्रयास हुए हैं। राशि स्वीकृत हो चुकी है, प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं पर यह सब फाइलों में कैद हैं। आगे कोई भी दिशा-निर्देश नहीं हैं। शौचालय के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी दिशा-निर्देश जारी किए हैं, लेकिन वर्षों तक जर्जर और जीर्ण-शीर्ण हालात में रहने के बावजूद बच्चियों को बाथरूम तक नहीं मिलते। आदिवासी समुदाय में शिक्षा का स्तर वैसे भी एक चुनौती है और ऐसी घटनाएं शिक्षा व्यवस्था पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा करे रही हैं। छात्रावासों में स्टाफ का भी अभाव है पाक्षिक अक्स के पास सूचना है कि कांकेर जिले में सभी आदिवासी कन्या छात्रावासों में अधीक्षिकाएं नहीं थीं अभी हाल ही में आनन-फानन में उनकी नियुक्ति की गई है। जबकि कांकेर कलेक्टर अलरमेलमंगई डी. का कहना है कि इन होस्टलों में हर जगह अधीक्षिका है। झलियामारी आश्रम स्कूल की जिन लड़कियों के साथ ज्यादती की घटना हुई है उन्हें अब अलग होस्टल में सुरक्षित रखा गया है। एक बच्ची दहशत के मारे अभी तक आश्रम में नहीं लौटी है वह अपने परिवार के साथ ही है। आश्रम की अन्य लड़कियों को भी अन्यत्र रखकर पढ़ाया जा रहा है। कलेक्टर का कहना है कि इन लड़कियों की परीक्षा के विशेष इंतजाम किए गए हैं, ध्यान रखा जा रहा है कि उनका अध्ययन सुचारू रूप से चलता रहे। यह सारी व्यवस्थाएं इतनी बड़ी घटना के बाद की गई हैं। यदि पहले से ही कर ली जाती तो शायद इस आश्रम की उन 43 लड़कियों को मानसिक पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता जिनकी 12 सहेलियों के साथ घृणित कार्य किया गया। इस मामले में अनुसूचित जनजाति विकास, कांकेर के असिस्टेंट कमिश्नर इन चार्ज एस.के. वाहने और ब्लॉक एज्युकेशन ऑफिसर सुगन सिंह नमरजी की लापरवाही भी उभरकर सामने आई है। इन दोनों अधिकारियों ने समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए। हल्ला मचने पर सरकार ने इन्हें निलंबित करते हुए दूसरे अधिकारियों की नियुक्ति तो कर दी है, लेकिन प्रश्न वही है कि आदिवासियों, गरीबों, वंचितों के प्रति जिम्मेदार अधिकारियों का रवैया घटिया और अमानवीय क्यों रहता है। झलियामारी गांव ग्राम पंचायत माणिकपुर के अंतर्गत आता है। जांच में यह पाया गया है कि माणिकपुर गांव की ग्राम पंचायत के सदस्यों ने नमरजी को सूचित किया था लेकिन उन्होंने इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया और न ही अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताया। सर्किल आर्गनाइजर वीरू साहू और असिस्टेंट ब्लॉक एज्युकेशन आफिसर जितेंद्र नायक को भी घटना की जानकारी थी पर वे शांत रहे।
इस घटना के बाद खाप पंचायत की तर्ज पर लड़कियों की आबरू की कीमत पांच हजार लगाने वाले उन ग्रामीणों के खिलाफ क्या कदम उठाया गया है इस विषय में कोई जानकारी अभी तक नहीं मिली है जनपद पंचायत नाहरपुर को बर्खास्त कर दिया गया है। अपराधी सहायक शिक्षक मनुराम गोती, वाचमैन दीनानाथ नागेश और होस्टल अधीक्षिक बबीता मरकाम की पहले ही गिरफ्तारी हो चुकी थी। पर इतना ही पर्याप्त नहीं है। 7 से 11 साल की उन बच्चियों के साथ जो कुछ हुआ वह सरकार के तंत्र की सबसे बड़ी नाकामी है। शराब पीकर वे लोग उन बच्चियों के साथ बिना कुंडी वाले दरवाजों से बेखौफ घुसकर उनके कपड़े उतारकर क्रूरतापूर्वक बलात्कार करते रहे, लेकिन कोई उनकी सुनने वाला नहीं था। इस आश्रम में पढऩे वाली पूर्व छात्राओं ने भी इसी प्रकार की घटना की शिकायत की थी और नई लड़कियों को आगाह किया था कि वे इस आश्रम में न आएं क्योंकि यहां पर बच्चियों के साथ गंदा काम किया जाता है, लेकिन तब भी कोई जानकारी नहीं मिली। बच्चियों ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य के कमलाकुमारी को बताया कि उनके आंतरिक अंगों में भयंकर पीड़ा रहती थी। वे मानसिक रूप से पीडि़त थीं।
ज्ञात रहे कि इस मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने दावा किया था कि दुष्कर्म पीडि़त एक छात्रा की मृत्यु तक हो चुकी है, लेकिन उनके दावे को कलेक्टर ने नकार दिया था और कहा था कि छात्रा की मृत्यु पीलिया और टायफाइड से हुई थी उसके पेट में पानी भर गया था। वहीं एक छात्रा ने दावा किया था कि कम से कम 19 छात्राओं के साथ अनाचार किया गया। इन दावों के बीच एक बात तो साफ हो गई है कि छत्तीसगढ़ के छात्रावासों में आदिवासी लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। छात्रावासों में छात्राओं के साथ बदसलूकी की खबरें मिलती ही रहती हैं। यौन शोषण के अतिरिक्त भी कई ऐसे प्रकरण सामने आए हैं जिनसे यह पुष्टि होती है कि यह लड़कियां भय तथा निराशा के साए में जी रही हैं। राजनीतिज्ञों की असंवेदनशीलता इस घटना को और गंभीर बना रही है। भाजपा संसदीय दल के मुख्य सचेतक और सांसद रमेश बैस ने बराबरी की या बड़ी लड़कियों के साथ दुष्कर्म के मुकाबले नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म को जघन्य अपराध बताया था। बैस ने यह नहीं कहा कि परिपक्व उम्र की लड़कियों के साथ दुष्कर्म गंभीर अपराध क्यों नहीं है। इससे पहले छत्तीसगढ़ के ही एक मंत्री ने बयान दिया था कि लड़कियों की कुंडली खराब है इसलिए ऐसी घटनाएं हो रही हैं इस बयान पर तो मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी हताशा जताई थी।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी कन्या आश्रमों के हालात नाजुक हैं। सरकार अधोसंरचना निर्माण पर तो लाखों-करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा की उसे जरा भी फिकर नहीं है। पाक्षिक अक्स ने कांकेर के उक्त छात्रावास की हालत का जायजा लिया है जिससे यह पता चलता है कि ऐसे हालात में लड़कियों का रहना असंभव है। जिस छात्रावास में लड़कियों का यौन शोषण हुआ है वह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। वहां नहाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। लड़कियों को नहाने के लिए बाहर तालाब में जाना पड़ता था। दरवाजे की कुंडी जानबूझकर तोड़ दी गई थी ताकि छात्रावास में घुसने में कठिनाई न हो। बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के लड़कियों का यौन शोषण बदस्तूर जारी था। इस घटना के बाद एक अन्य छात्रावास में भी गड़बड़ी की शिकायत पाई गई है। यह छात्रावास बालौद जिले के अमाडूला में स्थित है। घटना 2006 की है जिसमें बताया गया है कि यहां की अधीक्षिक ओनिका ठाकुर जो कि वर्ग-2 की शिक्षाकर्मी भी है ने छोटू नामक कर्मचारी के कमरे में एक छात्रा को धकेल दिया था बाद में छोटू ने उससे जबरदस्ती की।  कहा जाता है कि यह अधीक्षिका लड़कियों को यौन संबंध बनाने के लिए विवश करती थी। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग जब छत्तीसगढ़ में तहकीकात कर रहा था उसी समय यह घटना प्रकाश में आई थी बाद में आयोग ने कलेक्टर और एसपी से जानकारी मांगी थी। आयोग ने इस घटना में पीडि़त लड़की को उचित सुरक्षा देने और मुआवजा देने की बात कही है।  ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि बालौद में 16 आदिवासी कन्या छात्रावास हैं जिनमें से 11 की अधीक्षिका महिलाएं हैं। बाकी पांच महिला अधीक्षिका विहीन है। जहां महिला अधीक्षिका नियुक्त करने की घोषणा अब जाकर कलेक्टर ने की है।

केंद्र की राशि का उपयोग नहीं हो पाता : रवींद्र चौबे
ट्राइवल वेलफेयर के लिए छत्तीसगढ़ को करोड़ों रुपए दिए जाते हैं। बस्तर में अलग से बस्तर का प्लान है। दो साल से बजट स्वीकृत किया गया है, लेकिन प्रशासकीय स्वीकृति नहीं मिल पाने के कारण छात्रावासों की स्थिति जर्जर है। वहां सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। ट्राइवल वेलफेयर डिपार्टमेंट कमीशनखोरी का अड्डा बना हुआ है। भ्रष्टाचार चरम पर है इसी कारण छात्राओं की सुरक्षा को लेकर अक्षम्य लापरवाही बरती गई। राजनीतिक नियुक्तियों के कारण योग्य लोगों को छात्रावासों का दायित्व नहीं सौंपा जाता बल्कि कुछ खास लोगों को ही यहां नियुक्त किया जाता है इसी कारण सुरक्षा दयनीय स्थिति में है कलेक्टर की ज्यादा जिम्मेदारी है। अगस्त माह की 24 तारीख को ही इस विषय में उप सरपंच ने डीओ को चिट्ठी लिखी थी, लेकिन अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर व नवंबर के 15 दिन बीत जाने के बाद तक सरकार सोती रही। अगस्त माह में ही ध्यान क्यों नहीं दिया। बालौद में भी जो घटना हुई उसमें दोषी पाई गई आवांडोला की अधीक्षिका को मुख्यमंत्री कुछ समय पहले पुरस्कृत कर आए थे उसकी फोटो भी है। कांकेर की घटना के बाद प्रदेश में लगभग 8 जगह आदिवासी कन्याओं के यौन शोषण की बात सामने आई है। नगरी के होस्टल में भी इसी प्रकार की घटना प्रकाश में आई है। कांग्रेस इन सारी घटनाओं की भत्र्सना करती है और हमने सरकार से इन घटनाओं की जांच कर दोषियों को कड़ा दंड दिए जाने की मांग की है।

अभी तक 8 गिरफ्तारियां
इस बर्बर बलात्कार प्रकरण में पुलिस ने पहले तो तीन गिरफ्तारियां कीं उसके बाद दबाव में तीन लोगों को और गिरफ्तार किया गया बाद में जब पूरी तरह जांच आगे बढ़ी तो दो लोग और पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए हैं इस प्रकार कुल मिलाकर 8 गिरफ्तारियां हुई हैं। जिनमें होस्टल का चौकीदार दीनानाथ नागेश, शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटी (ये दोनों मुख्य अपराध हैं), आश्रम अधीक्षिका भभीता मरकाम, शिक्षाकर्मी सागर कतलाम, उप सरपंच सुकालू राम नेताम, ग्रामीण बच्छुराम सलाम, ब्लॉक एज्युकेशन आफिसर सुगंध सिंह नमरजी तथा सहायक ब्लॉक शिक्षा अधिकारी जितेंद्र कुमार नायक शामिल हैं। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि गांव की पंचायत जिसने इस मामले को दबाने की कोशिश की और पांच-पांच हजार रुपए जुर्माना लगाया, उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए जब कांकेर के एसपी राजेंद्र दास से पूछा गया तो उन्होंने असमर्थता जाहिर करते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति कुछ दिन पूर्व ही हुई है और अभी वे मामले का अध्ययन कर रहे हैं।

इस मामले में जिला प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई की है। जहां तक बलात्कार का प्रश्न है यह सामाजिक घटनाएं पूरे देश में हो रही हैं। किसी प्रदेश की बात नहीं है।
- रामनिवास, पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़
मैं इस वक्त मीटिंग में हूं इस मामले पर बोलने के लिए बैजेंद्र कुमार को अधिकृत किया गया है। आप उन्हीं से बात कीजिए।
- सुनील कुमार,  मुख्य सचिव छत्तीसगढ़

आयोग ने 9 और 10 जनवरी 2013 को उत्तरी बस्तर के कांकेर जिले के झलियामारी आश्रम स्कूल में जाकर जांच की थी और यह पाया था कि 12 बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया जा रहा था, जिसमें होस्टल के ही कुछ कर्मचारी लिप्त थे, जिनकी जानकारी उस रिपोर्ट में दी गई है जो आयोग ने तैयार की है। वहां हालात अच्छे नहीं थे। लड़कियों की सुरक्षा की व्यवस्था सहित कई खामियां थीं। जिनका निरीक्षण करने के उपरांत आयोग की टीम ने रिपोर्ट में कुछ अनुशंसाए की हैं।
- आर कमलाकुमारी, सदस्य राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

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