मैं हूँ, मन मेरा उचाट हैयह बड़ी विकट रात हैरात का तीसरा पहरऔर जलचादर के पीछे झिलमिलाता शहर ऊपर लटका है आसमान कालाचाँद फीका फीका,मय का खाली प्यालामन में मेरे शाम से ही तेरी छवि हैइतने बरस बाद आज फिर याद जगी है आग लगी है