20-Nov-2014 05:45 AM
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झारखंड के चुनाव के परिणाम एक तरह से तय दिख रहे हैं, यहां विपक्षी दलों की एकता भी जनता को भरमा नहीं पा रही है। जनता नरेंद्र मोदी के प्रति उतनी ही आकृष्ट है जितनी लोकसभा चुनाव के समय हुआ करती थी। उस वक्त भाजपा ने राज्य में लगभग 55 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था। मुद्दे वही थे रोजगार, सड़क और आदिवासियों का विकास। 
नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए झारखंड में बिहार की तर्ज पर महागठबंधन बनाने की तैयारी हो रही है जिसमें आरजेडी,जेडीयू,कांग्रेस और जेएमएम साथ होंगे। इसलिए यह चुनाव ऐसे गठबंधन का भविष्य भी तय करेगा। दरसअल बिहार में महागठबंधन के प्रयोग को सफलता मिली थी जब 10 सीटों के उपचुनाव में इसे 6 सीट मिली थी। लेकिन पहली बार पूरे राज्य चुनाव में इसका प्रयोग हो रहा है। अगर यहां यह सफल हो गया तो फिर बिहार और दूसरे राज्यों में आक्रामक तरीके से विपक्ष एक जुट हो सकता है और नरेंद्र मोदी का जादू इसपर भी भारी पड़ा तो फिर विपक्ष के लिए और हताशा लाएगी।
2000 में बिहार से अलग होने के बाद झारखंड ने राजनीतिक स्तर पर बेहतद अस्थिरता का दौर देखा है। साथ ही इस दौरान ऐसी घटनाएं हुई जिसने पूरे देश को शर्मसार भी किया। यह अकेला ऐसा राज्य है जहां मधु कोड़ा के नेतृत्व में पांच निर्दलीय विधायकों की सरकार बनी। बाद में सीएम सहित पूरी कैबिनेट भ्रष्टाचार प्रकरण में जेल भी गई। राज्यसभा की सीट बिकने तक के मामले आए। 14 साल में 12 बार नई सरकार बनी या गिरी। हर प्रमुख पार्टी ने सत्ता पाई। ऐसे में क्या इस चुनाव के बाद राज्य में पांच सालों के लिए स्थायी-स्थिर सरकार बनेगी यह देखना भी दिलचस्प होगा। झारखंड में कांग्रेस के सपोर्ट से सरकार चल रही है । लेकिन पहले लोकसभा और फिर हाल में दो राज्यों में पार्टी की जिस तरह करारी हार हुई उससे कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। अगर पार्टी ने अपना प्रदर्शन नहीं सुधारा तो राहुल गांधी पर गंभीर सवाल खड़े हो जाएंगे जिसके संकेत अभी से पार्टी के नेता दे रहे हैं।
विपक्षी एकता पर संशय
बिहार में जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल के विलय की अटकलें लगाई जा रही हैं। सवाल यह है कि यह विलय कितना टिकाऊ होगा? नेतृत्व का प्रश्न सबसे बड़ा है। जहां तक झारखंड का मामला है, झारखंड में कांगे्रस, जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल तीनों अपने आप को झारखंड का सबसे बड़ा दल बताते हंै। झारखंड मुक्ति मोर्चा इन तीनों पर भारी पडऩा चाहता है। सीट के बंटवारे को लेकर घमासान मचा हुआ था और कोई समाधान नहीं निकलने पर सब अपने-अपने रास्ते चल पड़े। भाजपा भी सहयोगियों से दूर ही है, केवल पासवान मजबूती से भाजपा के साथ खड़े हैं। इसी कारण चुनावी तस्वीर कुछ उलझी हुई सी है। लेकिन नरेंद्र मोदी का प्रभाव भाजपा को अवश्य ही लाभ पहुंचाएगा।