कश्मीर में बदलती राजनीति
20-Nov-2014 05:23 AM 1234817

लगता है कश्मीर की बाढ़ ने वहां की राजनीति को भी बदल दिया है। अलगाववादियों के सुर में नरमी आई है और सत्ता के समीकरण भी पल-पल बदल रहे हैं। कश्मीर में अनिश्चितता का दौर जारी है। नेशनल कांफ्रेंस के नेता सहानुभूति का लाभ उठाने के लिए मार्मिक अपीलें कर रहे हैं। उमर अब्दुल्ला ने कह दिया है कि उनके पिता और चाचा बीमार हैं। अन्य कुछ नेता भी बाढ़ की तबाही में अपने निजी नुकसान का हवाला देते हुए जनता जर्नादन को सफाई देने की कोशिश कर रहे हैं कि बाढ़ बेकाबू न होती तो वे लोगों को बचाने में जी-जान लड़ा देते।

किंतु जनता आक्रोशित है। उसे राज्य सरकार पर भरोसा नहीं रहा। बाढ़ के समय राज्य सरकार इतनी भी साधनहीन नहीं थी कि वह लोगों को राहत न दे पाती। कश्मीर की सरकारों का यह स्वभाव रहा है कि वे शासन कम राजनीति ज्यादा करती हैं। उमर अब्दुल्ला भी राजनीति ही कर रहे थे, इसलिए उन्होंने मौसम विभाग की उन चेतावनियों को भी नजरअंदाज किया जिनमें भारी तबाही का संकेत था। कांग्रेस से जनता का मोह पहले ही भंग है और अन्य राजनीतिक दल जनता का विश्वास जीतने में नाकामयाब रहे हैं। पीडीपी तथा नेशनल कांफे्रस से जुड़े नेताओं की लोकप्रियता में पर्याप्त गिरावट देखने को मिली है। उधर अलगाववादियों ने भी माहौल को देखते हुए सुर नरम किए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय माहौल पाकिस्तान के खिलाफ है, इस कारण अलगाववादी फिलहाल शांत हैं। कश्मीर में तैनात भारतीय सेना ने जिस तरह कश्मीर के बाढ़ पीडि़तों को बचाया और उनका दिल जीता, उससे भी माहौल बदला है जिसका सीधा फायदा भाजपा को हो सकता है। लोकसभा में अच्छे प्रदर्शन के बाद भाजपा विधानसभा में जीतते हुए सरकार बनाने की ख्वाहिश रखती है और इसी कारण धारा 370 जैसे मुद्दों पर भाजपा के रुख में पर्याप्त बदलाव देखने को मिला है। उधर कश्मीर घाटी के पूर्व अलगाववादी नेता सज्जाद लोन की प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद भाजपा और सज्जाद की निकटता का कयास लगाया जा रहा है। सज्जाद जम्मू कश्मीर पीपुल्स पार्टी के नेता हैं और उनका भाजपा से तालमेल अंतिम दौर में है। यह देखते हुए भाजपा ने भी कह दिया है कि धारा 370 उसके लिए एक राष्ट्रीय मुद्दा है और वह किसी भी स्थिति में इसे राज्य में चुनावी मुद्दा नहीं बनाएगी।
भाजपा की इस पहल ने कश्मीर में उन अलगाववादियों को मायूस किया है जो भाजपा का भय दिखाकर जनता को चुनाव का बहिष्कार करने के लिए उकसा रहे हैं। सज्जाद लोन ने जिस तरह नरेंद्र मोदी को अपना बड़ा भाई कहा है उससे पूरे कश्मीर में माहौल तेजी से बदला है। भाजपा ने इस माहौल को बदलना तो तब ही प्रारंभ कर दिया था जब प्रधानमंत्री दीवाली पर कश्मीर गए थे। उनके इस कदम से अलगाववादी तिलमिला गए। अब सवाल यह है कि क्या भाजपा इन सब कवायदों के बावजूद कश्मीर में सरकार बना सकती है?
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2008 विधानसभा चुनाव में हुआ था जब पार्टी ने 11 सीटें जीती थी। इस बार लोकसभा चुनाव और बाद के हालात ने पहली बार पार्टी को उम्मीद की रोशनी दिखी, लेकिन रास्ता अब भी बहुत कठिन है। लोकसभा चुनाव में जम्मू और लद्दाख क्षेत्र की 41 सीटों में बीजेपी ने 27 सीटों में बढ़त पाई थी। लेकिन घाटी की बाकी 46 सीटों में बढ़त नहीं मिली थी। दरअसल, लोकसभा चुनाव का नतीजा देखें तो बीजेपी ने जम्मू क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया, लेकिन घाटी में सफलता से दूर रही। पार्टी को घाटी में वोट और सीट नैशनल कॉफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के बीच बंटने का लाभ मिलने की उम्मीद है।
नेशनल कॉफ्रेंस और कांग्रेस इस बार अलग होकर चुनाव लड़ रही है। ऐसे मे बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर जम्मू-कश्मीर में खुद को सत्ता के विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश करेगी। बीजेपी जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में अपनी ताकत अधिक से अधिक बढ़ाने की कोशिश करेगी। वह कश्मीर घाटी में भी खाता खोलने के लिए पूरा जोर लगा रही है। पार्टी ने घाटी के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग रणनीति बनाई है। वह नहीं मानती कि पूरी कश्मीर घाटी का पॉलिटिकल कैरेक्टर एक जैसा है। बक्करवाल और गुर्जर कम्युनिटी के लोग पिछले कुछ महीनों में दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल चुके हैं। शिया समुदाय को भी लुभाने की कोशिश पार्टी कर रही है। कश्मीर घाटी में शिया मुसलमानों की मामूली तो लद्दाख में बड़ी संख्या है। इस रणनीति से जुड़े एक सीनियर नेता ने बताया कि यह मानना गलत है कि कश्मीर घाटी का पॉलिटिकल कैरेक्टर एक जैसा है। बहुसंख्यक सुन्नी मुसलमानों के अलावा घाटी में दूसरे समुदाय के लोग भी रहते हैं। बीजेपी उन्हें साथ लाने की कोशिश कर रही है। कश्मीर घाटी छोड़ चुके कश्मीरी पंडितों के नाम वोटर लिस्ट में डलवाने के लिए अलग कमिटी बनाई गई है। कश्मीरी पंडित जहां रह रहे हैं, वहीं से उन्हें वोट डालने की इजाजत मिल सकती है। बीजेपी के एक नेता ने बताया कि इस बार यह काम हो सकता है। भाजपा कश्मीर घाटी में पहली बार चुनाव जीतने की उम्मीद कर रही है। हो सकता है कि हमें घाटी में 6-7 सीटें मिल जाएं। घाटी में उसे कांग्रेस की कीमत पर जीत मिलेगी।
प्रदेश बीजेपी के नेताओं का मानना है कि मोदी के चलते जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में उन्हें अच्छा फायदा हो सकता है। पार्टी की स्टेट यूनिट चीफ जे. के. शर्मा के पॉलिटिकल अडवाइजर हरि ओम ने बताया कि राज्य सरकार और कांग्रेस पार्टी विश्वसनीयता गंवा चुकी हैं। खासतौर पर जिस तरह से बाढ़ से निपटा गया, उससे उनकी इमेज बहुत खराब हो चुकी है। उन्होंने बताया कि जब प्रधानमंत्री दिवाली पर श्रीनगर आए थे, तब उनसे कई डेलिगेशन मिले थे। इन लोगों ने कहा था कि केंद्र सरकार को राहत कार्यों के लिए राज्य सरकार के जरिये फंड देने के बजाय यह काम अपनी देखरेख में करवाना चाहिए। हरि ओम ने बताया कि यह अप्रत्याशित था। उन्होंने कहा कि शबनम लोन ने खुलकर प्रधानमंत्री के दौरे का समर्थन किया था। जम्मू कश्मीर की 87 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने 44 प्लसÓ सीट जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। पार्टी महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी राम माधव ने कहा, हम विकास पर और इन दो परिवारों से राज्य को निजात दिलाने के विषय को उठायेंगे। ये परिवार राजÓ भ्रष्टाचार एवं राज्य को वंचित रखने का पर्याय हैं।Ó

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