सासन से मप्र शासन की नरमी, कैग खफा
19-Nov-2014 03:15 PM 1234759

 

भारत के महालेखा परीक्षक ने गत वर्ष रिलायंस पावर के स्वामित्व वाले सासन पावर लिमिटेड को सासन प्रोजेक्ट के लिए अवांछित सहयोग देने पर पर्यावरण मंत्रालय की खिंचाई की थी। अब कैग ने बताया है, कि इस प्रोजेक्ट को 15 माह देरी से प्रारंभ किए जाने के कारण मध्यप्रदेश को 1252 करोड़ रुपए अधिक चुकाकर बिजली खरीदनी पड़ी है।

मध्यप्रदेश की जमीन पर सासन प्रोजेक्ट बनाया जा रहा था उस वक्त कैग ने कई कमियां निकाली थीं और बताया था कि किस तरह वन संरक्षण नियम 1980 का उल्लंघन इस 1384.96 एकड़ प्रोजेक्ट को स्थापित करने में किया गया था। अब नए सिरे से कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि जो बिजली इस प्रोजेक्ट से 70 पैसे प्रति यूनिट मिल सकती थी। उसे 3.50 रुपए प्रति यूनिट की दर से लगातार 15 महीने खरीदकर उपभोक्ताओं को दिया गया। इस प्रकार 447.14 करोड़ यूनिट बिजली पर प्रति यूनिट 2.80 पैसे का अधिक भुगतान करना पड़ा। जिससे 1252 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
20 हजार करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट की क्षमता 3960 मेगावाट बिजली उत्पादन की है, इसमें 6 इकाईयां लगी हुई हंै और प्रत्येक इकाई 660 मेगावाट बिजली पैदा करने में सक्षम है। इसमें से मप्र को प्रत्येक इकाई से 247 मेगावाट बिजली मिलती है और कुल 1482 मेगावाट बिजली वर्ष 2012 से ही मिलनी थी, लेकिन यह बिजली अगस्त 2013 से तकरीबन 15 माह विलंब से मिली और घाटा हो गया। हालांकि पावर मैनेजमेंट कंपनी इसे घाटा नहीं मानती। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि पहले यह इकाई मई 2012 में चालू होने का अनुमान था, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा जमीन आवंटन में विलंब होने के कारण उत्पादन में देरी हुई इसलिए प्रोजेक्ट पिछड़ गया। महंगी दर पर बिजली खरीदने के अलावा प्रदेश सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था। याद रहे कि सासन प्रोजेक्ट अनिल अंबानी के स्वामित्व वाले समूह ने बनाया है। पहले यह पावर फाइनेंस कार्पोरेशन की पूर्णता स्वामित्व वाली सब्सिडरी हुआ करता था, बाद में इसे रिलायंस पावर लिमिटेड को ट्रांसफर किया गया। वन अधिनियम 1980 के अनुसार इस तरह के प्रोजेक्ट बनाने के लिए जो वन भूमि अधिग्रहित की जाती है। उसके एवज में उतनी ही गैर वन भूमि वन विभाग को देनी पड़ती है ताकि वहां जंगल फिर से लगाया जा सके। उस समय मप्र के प्रमुख सचिव ने एक सर्टिफिकेट जारी करते हुए कहा था कि सीधी जिले में सरकार के पास कोई गैर वन भूमि नहीं है। इस सर्टिफिकेट को आधार बनाकर सासन पावर लिमिटेड अधिग्रहित भूमि के एवज में गैर वन भूमि देने से बच गया। कैग ने इस करतूत को उस समय ही पकड़ लिया था, लेकिन लीपापोती कर दी गई। देखा जाए तो इस प्रोजेक्ट के कुछ किमी के दायरे में ही वह भूमि दी जानी चाहिए थी, जिस पर वृक्षारोपण किया जा सकता है। कैग का कहना है, कि न तो सरकार न ही मंत्रालय ने वन अधिनियम के प्रावधानों को लागू करवाने में कोई रुचि दिखाई जिसके चलते इस प्रोजेक्ट में भूमि का घालमेल हुआ। बहरहाल देरी किसी भी कारण से हुई हो, सासन प्रोजेक्ट में समय पर बिजली न मिल पाने के कारण प्रदेश सरकार को जो राजस्व हानि हुई है, उसकी वसूली क्या संभव है? देखा जाए तो इसमें किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जाएगा, क्योंकि सभी अपना गला बचाने में माहिर हैं। जहां तक रिलायंस जैसी कंपनियों का प्रश्न है, उन्हें शासन का वरदहस्त पहले से ही प्राप्त है इसलिए उनका कुछ बिगड़ता नहीं है। अभी भी इस प्रोजेक्ट की 5 इकाईयों से उत्पादन हो रहा है। इसका अर्थ यह है कि लगभग 660 मेगावाट बिजली मप्र सरकार को महंगे मोल की खरीदनी पड़ रही है। यह पहला अवसर नहीं है जब मप्र में रिलायंस की यह परियोजना विवादों में आई है, इससे पहले भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने छत्रसाल कोल माइन से कोयला निकालने के रिलायंस पावर के निर्णय को चुनौती दी थी। इस मामले में भी 25 नवंबर को सुनवाई होनी है। जिस जल्दबाजी में बिजली प्राप्त करने के लिए ऐसे बड़े प्रोजेक्ट्स को मानकों का उल्लंघन करते हुए अनापेक्षित सहयोग प्रदान किया जा रहा है। उससे प्रदेश का अहित ही होता है। इतना होने के बावजूद भी निर्धारित कोटे की बिजली भी प्रदेश को नहीं दी जाती है।

एकेवीएन ने ज्यादा वसूले

सेंट्रल ट्रिब्यूनल ने औद्योगिक केंद्र विकास निगम (एकेवीएन) की अपील खारिज करते हुए सेज इकाइयों को 42 करोड़ की राशि वापस लौटाने के आदेश दिए हैं। यह राशि एकेवीएन द्वारा वर्ष 2010 से 2012 के बीच इकाईयों से बिजली के बिलों में वसूली गई थी। पीथमपुर स्थित विशेष आर्थिक प्रेक्षत्र की बिजली व्यवस्था एकेवीएन द्वारा देखी जाती है। इसके लिए एकेवीएन को निर्धारित कोटे के अनुसार बिजली रियायती दरों पर दी जाती है। एकेवीएन को प्रतिवर्ष बिजली की दरें विद्युत नियामक आयोग से तय करवाना होती है। निगम अफसरों द्वारा दो वर्षों तक औसत आधार पर दरें बढ़ा कर बिलिंग की जाती रही। इसके बाद एआरआर आयोग के समक्ष पेश की गई। सुनवाई के बाद आयोग ने अधिक वसूली गई राशि वापस लौटाने के आदेश दिए।

  • भोपाल से राजेश बोरकर

 

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