20-Nov-2014 02:24 PM
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भाजपा-कांग्रेस में असंतोष
स्थानीय निकायों के चुनाव ने भाजपा और कांगे्रस की कलह को सड़क पर ला दिया है। दोनों दलों में भीतरी घमासान मचा हुआ है, इस कारण स्थानीय शासन से जुड़े मुद्दे नैपथ्य में चले गए हैं। जिनको टिकट नहीं मिला वे और उनके समर्थक पुतले जला रहे हैं, दल बदल रहे हैं या निर्दलीय खड़े हो रहे हैं। प्राय: हर चुनाव में ऐसा दृष्य देखने को मिल जाता है। लेकिन इस बार असंतोष ऊपर तक है। भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार पटेल ने तो मंत्रियों को सादगी बरतने और संयम से रहने की नसीहत भी दे डाली है।
कांगे्रस के उपाध्यक्ष माणक अग्रवाल ने टिकट वितरण से नाराज होकर इस्तीफा दे दिया। उधर दो अन्य उपाध्यक्ष प्रेमचंद्र गुड्डू तथा लहार के विधायक डॉक्टर गोविंद सिंह ने भी अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। माणक अग्रवाल तो भाजपा में जाने के लिए तैयार ही बैठे थे, लेकिन बताया जाता है दिल्ली के किसी बड़े कांग्रेसी नेता ने माणक को मना लिया और अरविंद मेनन का संदेश लेकर गए सरताज सिंह को माणक अग्रवाल ने बेरंग लौटा दिया। पूर्व विधायक नारायण प्रजापति तथा डॉक्टर प्रभुराम चौधरी भी खासे नाराज बताए जाते हैं। यही हाल भाजपा में हैं। निकाय चुनाव से ठीक पहले बुलाए गए पालक, संयोजक और पूर्व प्रभारियों के अधिवेशन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ कहा था कि नगर-निगम, नगर-पालिका और पंचायत के चुनाव में भाई-भतीजों, पत्नियोंं को टिकट नहीं मिलेगा। लेकिन टिकट वितरण में इन सब मानकोंं का उल्लंघन होने के बाद असंतोष पनप गया। उधर कांग्रेस विधायक दल की बैठक में प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव और विधायक जीतू पटवारी के बीच खबरें लीक करने को लेकर विवाद गर्मा-गर्मी तक पहुंच गया, जिसे बाद में नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने शांत कराया।
प्रदेश कांग्र्रेस ने हर निकाय में 3 से 4 पर्यवेक्षक बनाए थे और जिला समन्वय समिति तथा विधायकों से पैनल भी मांगी थी। एआईसीसी ने भी अपने पर्यवेक्षक भेजे थे। लेकिन अंत में हुआ वही जो कांग्रेस में होता आया है। अपने अपनों को टिकट बांट दिए गए। प्रदेश स्तरीय समन्वय समिति के अध्यक्ष सज्जन सिंह वर्मा की कवायद कोई काम नहीं आई। बाद में जब स्थिति और बिगड़ी तो चुनाव प्रबंधन की कमान आलाकमान द्वारा राष्ट्रीय सचिव राकेश कालिया को सौंप दी गई। लेकिन कालिया की युक्ति काम न आई। सज्जन सिंह वर्मा, पीसीसी के प्रभारी महासचिव विमलेन्द्र तिवारी ने भी बहुत कोशिश की लेकिन मामला गड़बड़ा गया।
कालिया के समक्ष अलग-अलग निकाय से आए दावेदारों ने अपनी नाराजगी भी दर्ज कराई थी। सभी गुट एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे। दिग्विजय समर्थकों का कहना था कि उनकी उपेक्षा की जा रही है। असंतोष तो भाजपा में भी था। 9 नवंबर को भाजपा चुनाव समिति की बैठक हंगामेदार रही लेकिन भाजपा सत्ता में है इसलिए उसके पास असंतुष्टों को देने के लिए थोड़ा बहुत लालच तो है ही, पर कांग्रेस में असंतुष्टों से भारी परेशानी है जिसका असर चुनाव पर पडऩा तय है। जिस तरह प्रेम चंद्र गुड्डू ने अरुण यादव के खिलाफ प्रदेश प्रभारी एवं राष्ट्रीय महासचिव मोहन प्रकाश को पत्र लिखा है, उससे कांग्रेस की भीतरी स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। गुड्डू को 42 सदस्यीय चुनाव समिति से भी बाहर रखा गया था।
लोकसभा चुनाव के समय यादव की अध्यक्षता में जो 23 सदस्यीय समिति बनी थी उसमें गुड्डू का नाम था, लेकिन जब गुड्डू के बेटे अजीत बोरासी को चुनाव लड़ाने के लिए बी-फार्म में हेरा-फेरी की गई तो यादव और गुड्डू के रिश्ते बिगड़ गएा। बाद में यादव ने गुड्डू के निष्कासन की भी शिफारिश कर दी थी। अरुण यादव के इस रवैये ने सत्यदेव कटारे को भी खासा नाराज कर दिया था, पर उन्हें आलाकमान के मार्फत संजय निरुपम ने मना लिया। अब आलम यह है कि भाजपा और कांग्रेस के बहुत से नेता एक-दूसरे के दलों में जाना चाहते हंै लेकिन भाजपा ने साफ कर दिया था कि वह किसी भी स्थिति में दल-बदलुओं को अपने समर्पित कार्यकर्ताओं के मुकाबले तरजीह नहीं देगी। उधर अरुण यादव ने भी यह कहकर कि बिकाऊ नहीं टिकाऊ को टिकट मिलेगा, कांग्रेस की रणनीति का संकेत दिया था। पर कांगे्रस के ही कुछ नेताओं ने टिकट बिकने का आरोप लगा दिया। यहां तक कि चुनाव समिति की बैठक के दौरान 8 नवंबर को आरिफ अकील ने कह डाला कि जब टिकट पर चर्चा ही नहीं करनी थी तो चाय-पानी के लिए बैठक क्यों बुलाई।
युवक कांग्रेस अध्यक्ष कुणाल चौधरी ने भी महापौर सहित तमाम टिकटों के लिए अलग से चर्चा किए जाने के कदम का विरोध किया था। इन सारे नेताओं का कहना था कि बैठकों का औचित्य तो तभी है जब उनमें महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हो सके। लेकिन टिकट किसे दिया जाए इस विषय पर खुली चर्चा से परहेज करने वाली प्रदेश कांग्रेस को शीघ्र ही इसका दुष्परिणाम देखने को मिल गया, जब बगावत साफ नजर आने लगी। पूर्व मंत्री राजा पटेरिया ने तो आरोप लगाया कि जिन्होंने कांग्रेस को पिछले चुनाव में हरवाया था उन्हें ही पर्यवेक्षक बना दिया गया है। सागर में कांगेे्रस नेता सुशील तिवारी ने साफ विद्रोह कर दिया और अपने कार्यकर्ताओं सहित भाजपा की शरण में चले गए। बाद में माहौल जब तनावपूर्ण हो गया तो कांगे्रस के दिग्गज मैदान में उतर गए।
सुरेश पचौरी ने होशंगाबाद जिले के नामों की घोषणा रुकवा दी थी, इसके बाद बहुत हंगामा हुआ। कमल नाथ, सज्जन सिंह वर्मा के कारण थोड़े बेफिक्र थे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जीतू पटवारी अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने की कोशिश करते रहे, दिग्विजय सिंह के विधायक पुत्र जयवर्धन सिंह ने भी राजगढ़ व नरसिंहगढ़ से अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने की कोशिश की। हर गुट अपनी अलग-अलग बैठक करके रणनीति बना रहा था जिसके चलते पार्टी गाइड लाइन धराशाई हो गई और विधायकों में खासा असंतोष देखा गया। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ने भी इस पूरी कवायद पर असंतोष जाहिर किया। उन्होंने महिला कांगे्रस की तरह सेवादल के पदाधिकारियों को भी टिकट देने की मांग उठाई थी। देवास से मनोज राजानी का विरोध दिल्ली तक किया गया था। इसके बाद कांग्रेस में सोशल मीडिया पर घमासान शुरू हो गया, जिससे यह साफ हो गया कि नगरीय चुनाव में कांगे्रस एक होकर नहीं लड़ेगी। माणक अग्रवाल के कक्ष के बाहर किसी ने माणक अग्रवाल दलाल है लिखा हुआ पोस्टर चिपका दिया था, जिसे बाद में निकलवा दिया गया।
नरसिंहगढ़ के पूर्व विधायक धूल सिंह भी नाराज होकर कांग्रेस छोडऩे की तैयारी कर रहे थे लेकिन एन वक्त पर उन्हें मना लिया गया। भोपाल, इंदौर, जबलपुर और छिंदवाड़ा नगर-निगम के चुनाव जनवरी में होने केे कारण थोड़ी राहत मिली है लेकिन दोनों दलों में असंतोष चरम सीमा पर है। खुजनेर (राजगढ़) के भाजपा कार्यकर्ताओं ने राधेश्याम जुमानिया के भतीजे राजेश को टिकट देने के खिलाफ प्रदेश कार्यालय में नारेबाजी की और टिकट बेचने का आरोप लगाया। सागर में बिल्डर अभय दरे को महापौर प्रत्याशी बनाने के विरोध में विधायक शैलेन्द्र जैन के पुतले जलाए गए थे। बीना में चार बार के विधायक धरमू राय की बेटी सुषमा राय ने अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ नामांकन जमा कर दिया था। कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव पर अपने चहेतों को टिकट देने के आरोप लग रहे थे। प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव के करीबी महासचिव विमलेंद्र तिवारी के छोटे भाई की पत्नी प्रियंका तिवारी को महापौर उम्मीदवार बनाया गया तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी और उनके विधायक पुत्र सुंदरलाल तिवारी नाराज हो गए।
श्रीनिवास तिवारी की भतीजी कविता पांडे ने बाद में नामांकन जमा कर दिया। सतना में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के खेमे से जुड़ी उर्मिला त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाने के खिलाफ नीतू मनीष तिवारी और रत्ना सुधीर तोमर ने भी नामांकन जमा कर दिया था। नीतू तिवारी पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट से हैं। अरुण यादव के गृह क्षेत्र खंडवा में अजय ओझा को उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ नारायण नागर और शेख जाकिर ने भी नामांकन जमा किया था।
भाजपा में भी टिकट वितरण के विरोध में आवेदनों की संख्या 200 तक पहुंच गई थी। पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के विरोध में रही इन शिकायतों को लेकर अपील समिति की बैठक हुई। इसमें सांसद मेघराज जैन, कैलाश सारंग समेत चार सदस्यों ने एक-एक प्रकरण की पहले तो स्क्रूटनी की और जिलावार बांटा, फिर उसपर बात शुरू की।
देवास में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी सुभाष शर्मा के खिलाफ पूर्व महापौर शरद पाचुनकर दिलीप बांगर समझाने के बाद भी मैदान में डटे हुए थे । इसी तरह होशंगाबाद नगर पालिका में पार्टी प्रत्याशी अखिलेश खंडेलवाल के खिलाफ डॉ. नरेंद्र पांडे मैदान में गए थे। होशंगाबाद में पसंद का टिकट नहीं मिलने से विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा भी नाखुश थे, क्योंकि अखिलेश को मधुकरराव हर्णे का करीबी माना जाता है। देवरी नगर परिषद का प्रत्याशी अनिल जैन को बनाया गया था, जो कांग्रेस से भाजपा में आए थे। उन्हें कांग्रेस से ही भाजपा में आए सांसद बने राव उदय प्रताप सिंह ने टिकट दिलवाया था। इसे लेकर भी विरोध बढ़ रहा था।
दोनों दलों में असंतोष के बाद टिकट वितरण तो हो गया है, लेकिन अब भितरघात की आशंका जताई जा रही है। चुनाव प्रचार चरम पर पहुंच गया है। भाजपा के लिए यह चुनाव इसलिए भी अहम हैं क्योंकि भाजपा सत्ता में है और चुनाव के परिणाम सत्ता की लोकप्रियता का प्रतीक होते हैं। कांग्रेस के लिए यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई के समान हैं। लेकिन कांग्रेस की एकजुटता उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यदि कांग्रेस की अंदरूनी कलह खत्म हो जाती है तो इन चुनाव में कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती है।