सौर ऊर्जा से अंधेरा?
17-Dec-2014 05:13 AM 1234748

आरईसी के फेर में ठगाए छोटे निवेशक

मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले दो-तीन सालों में तमाम इंवेस्टर्स मीट आयोजित कर उद्योग जगत को लॉलीपाप तो दिखा दिया लेकिन जब उन्हें सुविधाएं देने की बात आई तो सरकार की नीतियां ही इन छोटे निवेशकों के गले की हड्डी बन गई। बात हो रही है रिन्यूएबल एनर्जी की जिसको बढ़ावा देने के लिए सरकार ने तमाम घोषणाएं की और एक तरह से सब्सिडी का खजाना ही खोल दिया है लेकिन यह खजाना सिर्फ कागजों पर खुला है।

हकीकत में रिन्यूएबल एनर्जी में निवेश करने वाले छोटे-छोटे निवेशक ठगे जा रहे है। हां वेलेस्पन जैसे बड़े निवेशकों को सरकार इस योजना का लाभ दे रही है। रिन्यूएबल एनर्जी में यूं तो सब्सिडी देने के कई तरीके मौजूद है लेकिन सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने घोषणा की थी कि सौर ऊर्जा के द्वारा बिजली बनाने वाले उत्पादकों की बिजली पर लगभग 9.30 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से सरकार द्वारा सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
दरअसल यह सब्सिडी रिन्यूएबल एनर्जी सर्टिफिकेट के रूप में प्रदान की जानी थी जिसे बाद में पावर एक्सचेंज में ट्रेडिंग के द्वारा बेचकर पैसा इन इकाईयों को स्थापित करने वाले निवेशकों को दिया जाना था। सरकार की इस योजना से प्रभावित होकर कई छोटे-बड़े निवेशकों ने देशभर में कई सोलर ऊर्जा के द्वारा बिजली प्राप्त करने के प्लांट स्थापित किए। अनुमान है कि सारे देश में छोटे निवेशकों ने इसमें 2500 करोड़ रुपए लगाए। मप्र में भी लगभग 15 इकाईयां छोटे निवेशकों द्वारा 20 से 25 करोड़ प्रति इकाई की लागत से स्थापित की गई।
सरकार ने आश्वासन दिया था कि वह 1 मेगावाट से लेकर 5 मेगावाट की छोटी इकाईयों द्वारा उत्पादित बिजली पर प्रति यूनिट 9.30 पैसे के हिसाब से आरईसी सर्टिफिकेट जारी करेगी जिन्हें एनर्जी एक्सचेंज, आईईएक्स और पीएक्सआईएल द्वारा क्रय किया जा सकेगा, लेकिन लंबा अरसा बीत जाने के बावजूद इन छोटे निवेशकों को न तो पैसा मिला और न ही सरकार की तरफ से किसी प्रकार की सब्सिडी प्रदान की गई है।
सरकार एक मेगावाट की इकाई लगाने पर 40 लाख रुपए की सब्सिडी भी देती है। इसके लिए पांच एकड़ जमीन होना आवश्यक है। जिसपर 1 मेगावाट की इकाई स्थापित करने में लगभग 2 करोड़ रुपए खर्च बैठता है। मप्र ऊर्जा विकास निगम ने ऐसी इकाईयां स्थापित करने वालों को आश्वासन दिया था कि उनकी इकाईयों को उद्योग का  दर्जा दिया जाएगा। यदि उद्योग का दर्जा दिया जाता तो इससे उनको सरकारी सब्सिडी भी मिल सकती थी।

उद्योग का दर्जा तो दूर आरईसी सर्टिफिकेट ही टे्रडिंग मैकेनिज्म में फंसकर रह गया है। निवेशकों को यह उम्मीद थी कि आरईसी सर्टिफिकेट मिलने के कुछ माह बाद उन्हें पैसे मिल सकेंगे लेकिन वर्षों बीत गए उनके पैसे फंसे हुए है। इन्हीं में से एक निवेशक का कहना है कि उनके पास लगभग 18 लाख यूनिट के आरईसी सर्टिफिकेट हैं लेकिन उनका कोई अर्थ नहीं है क्योंकि अभी तक पैसा नहीं मिला है और उधर सरकार की तरफ से एक नया फरमान भी आ गया है जिसके तहत अब इस सर्टिफिकेट की दर 3.50 पैसे प्रति यूनिट करने का प्रावधान है ऐसा इसलिए क्योंकि सोलर इकाई स्थापित करने की लागत पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है। लेकिन निवेशकों का कहना है कि उन्होंने जब इकाईयां स्थापित की थी उस वक्त इन प्लांट की लागत काफी अधिक थी और उसी हिसाब से राष्ट्रीय वित्त विकास निगम ने लोन वगैरह दिया था। अब सरकार द्वारा न तो सब्सिडी प्रदान की न ही उत्पादित बिजली को वाजिब दामों पर खरीदा गया जिसके चलते छोटी-छोटी इकाईयां बंद होने की कगार पर हैं और इनके निवेशकों के पैसे तो डूब ही चुके हैं। राष्ट्रीय वित्त विकास निगम का पैसा जो लोन के रूप में दिया गया था वह भी फंस सकता है। निवेशकोंं का कहना है कि उन्होंने आरईसी टेडिग मैकेनिज्म से प्रभावित होकर ही इस क्षेत्र को नया व्यापारिक अवसर समझते हुए निवेश किया था।
आरईसी केंद्र सरकार द्वारा 2012 में लाई गई योजना है जिसके तहत राज्यों में बढ़ती ऊर्जा जरुरतों की पूर्ति हेतु ऐसी इकाईयों को प्रोत्साहित किया जाना था जो रिन्यूएबल एनर्जी का उत्पादन करती हैं। इसमें मुख्य रूप से सौर ऊर्जा पर ध्यान दिया गया था क्योंकि भारत में सूर्य की कृपा से सौर ऊर्जा का उत्पादन आसानी से संभव है। पवन ऊर्जा को लेकर भी ऐसा ही मिलता जुलता प्रावधान केंद्र सरकार द्वारा किया गया था लेकिन सौर ऊर्जा ज्यादा व्यावारिक होने की वजह से कई छोटे निवेशकों ने सरकार के भरोसे इसमें निवेश कर दिया। आरईसी मुख्य रूप से राज्यों द्वारा ही खरीदे जाने थे जिससे कि इन निवेशकों को पर्याप्त धन मिलता और वे कामयाब हो जाते। बताया जाता है कि मप्र में भी कई एनआरआई और छोटे निवेशकों ने सोलर ऊर्जा प्लांट लगाए है लेकिन उनकी स्थिति दयनीय है। इस वर्ष अक्टूबर तक कुल दो प्रतिशत सोलर आरईसी की टे्रडिंग पॉवर एक्सचेंज में हुई है। अप्रैल 2012 तक तो कम से कम 18 प्रतिशत ट्रेडिंग हो गई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी महंगी दर पर इन आरईसी की ट्रेडिंग संभव नहीं है क्योंकि सोलर पॉवर प्लांट की लागत में पर्याप्त गिरावट आई है जिसके कारण राज्य सरकारें अपना दायित्व पूरा करने से मुकर रही हैं मप्र में भी यही हालात है। रिन्यूएबल एनर्जी मंत्रालय ने भी इसे स्वीकारा है और कहा है कि वे निवेशकों को बचाने की भरसक कोशिश कर रहे है लेकिन यह कोशिश दिखाई नहीं दे रही।
देखा जाए तो पर्यावरण नियमों के अनुसार जो इकाईयां वातावरण को ज्यादा प्रदूषित करती हंै उन्हें अनिवार्य रूप से रिन्यूएबल एनर्जी द्वारा उत्पादित बिजली ही उपयोग में लाना चाहिए। ऐसी इकाईयों को निर्देशित किया गया है कि वे या तो अपने प्लांट डालें या फिर ऐसे प्लांटों से बिजली खरीदें जो रिन्यूएबल एनर्जी द्वारा बिजली का उत्पादन कर रहें है। कायदे में मप्र सरकार को ऐसी सभी इकाईयों पर यह कानून लागू करते हुए उन्हें रिन्यूएबल एनर्जी द्वारा उत्पादित बिजली खरीदने के लिए बाध्य करना चाहिए और आरईसी की खरीदी भी इन्हीं इकाईयों द्वारा की जानी चाहिए। लेकिन दुख इस बात का है कि सरकार प्रदूषण फैलाने वाली इकाईयों पर कोई जोर नहीं डाल रही है और इसी कारण यह छोटे निवेशक अपना कारोबार समेटना चाह रहे हैं।
सरकार के अधिकारियों का कहना है कि सोलर आरईसी की जो कीमत पहले निर्धारित की गई थी वे सौर ऊर्जा के मुकाबले भी काफी महंगी है। बहुत सारे राज्यों में इसे खरीदने के लिए फंड ही नहीं है और इसकी कोई जिम्मेदारी भी नहीं लेना चाहता।
भारत तेजी से विकसित होता देश है और मप्र जैसे राज्यों में तो निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए आए दिन समिट होते रहते है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विदेशों में जाकर निवेश को आमंत्रित कर रहे हंै लेकिन छोटे निवेशकों के हितों को इस तरह नुकसान पहुंचता रहा तो औद्योगिक नक्शे पर प्रदेश की पहचान कैसे स्थापित होगी। जहां तक रिन्यूएबल एनर्जी का प्रश्न है यह भविष्य की ऊर्जा है। कोयला से लेकर तमाम ऊर्जा प्रदान करने वाले स्त्रोत धीरे-धीरे समाप्ति की और जा रहे हंै। इनका इतना दोहन हो चुका है कि जमीन में अब और उत्पादन देने की क्षमता नहीं है। ऐेसे में ऊर्जा की जरुरतों के लिए अक्षय ऊर्जा पर ही निर्भरता उचित है। भारत जैसे देशों में वर्ष के 10 माह तेज सूर्य की किरणें धरती पर आती है, सौर ऊर्जा एक बेहतरीन विकल्प है। अभी मात्र 500 मेगावाट ही बिजली इसके द्वारा प्राप्त की जा रही है। जो भारत की कुल आवश्यकता का छटवां हिस्सा ही है। ऐसे में जरुरत इस बात की है कि सरकार गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों पर निर्भरता बढ़ाए लेकिन सरकार द्वारा की जा रही लापरवाही उत्पादकों को भारी पड़ रही है। उत्पादकों का कहना है कि जिस तरह सरकार ने आरईसी का रेट 9,300-13,400 से घटाकर 3500-5800 मेगावाट करने का निर्णय लिया है। वह बड़ा घातक है इससे पुराने उत्पादक बमुश्किल ब्याज ही भर पाएंगे। बाकी अन्य लागत निकलना असंभव है।

  • अजय धीर

 


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