किल-दिल औसत फिल्म
19-Nov-2014 05:01 AM 1235012

फिल्म के डायरेक्टर शाद अली पूरे सात साल बाद वापसी कर रहे हैं। वहीं, गोविंदा विलेन के तौर पर अपनी नई पारी शुरू कर रहे हैं। ऐसे में किल दिलÓ बहुत खास फिल्म हो जाती है।

साथिया, बंटी और बबली, झूम बराबर झूम जैसी अलग कॉन्सेप्ट की फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर शाद अली अब मेलो ड्रामा किल दिल लेकर आये हैं। फिल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं है। फिल्म को देखकर महसूस हो जाता है की ऐसी कहानी पर कई हिंदी बन चुकी है। 90 के दशक में ऐसी कई फिल्में आई हैं, जिनकी कहानी में हीरो प्यार को पाने के लिए गुनाह का रास्ता छोडऩा चाहता है। कहानी में नयापन नहीं है, लेकिन शाद ने जिस तरह फिल्मांकन किया है और कहानी में तड़का लगाया है, उससे ये कुछ अलग नजर आती है। फिल्म की कहानी दो दोस्तों से शुरू होती है। देव (रणवीर सिंग) और टुट्टू (अली जाफर) दोनों भैया जी (गोविंदा) के शूटर्स है। भैयाजी (गोविंदा) का रिश्ता क्राइम की दुनिया से होता है। वो दो बच्चों देव (रणवीर सिंह) और टूटू (अली जाफर) को कचरे के एक ढेर से उठाकर लाता है और उनकी परवरिश करता है।

भैयाजी के नक्शेकदम पर चलते हुए देव और टूटू भी गुनाह की दुनिया में आ जाते हैं। भैयाजी लोगों को मारने की सुपारी लेता है और इस काम को देव और टूटू अंजाम देते हैं। दोनों अपने काम को बखूबी अंजाम देना जानते हैं। लोगों को मारना उनके लिए एक खेल हो जाता है। इसी बीच कहानी नया मोड़ लेती है और एक दिन दोनों की पब में दिशा (परिणीति चोपड़ा) से मुलाकात होती है। दिशा के बेबाक और जिंदादिल अंदाज पर देव फिदा हो जाता है। देव पब में दिशा की जान बचाता है और दोनों की दोस्ती हो जाती है।

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