नर्मदा पानी से भोपाल पानी-पानी
11-Nov-2014 05:38 AM 1234835

इसका अर्थ यह हुआ कि भारी-भरकम प्रोजेक्ट का 50 प्रतिशत हिस्सा भी कम्पलीट नहीं है और 9 वर्ष बीत चुके हैं। तो क्या पूरे प्रोजेक्ट को कम्पलीट होने में 36 वर्ष लगेंगे? यदि निर्धारित लक्ष्य से इसी तरह धीमी गति पर काम होता रहा तो सारे के सारे प्रोजेक्ट जनसंख्या का दबाव झेेलने के काबिल नहीं रहेंगे।

भोपाल शहर की 1219 किलोमीटर भीतरी सड़कें खुदी हुई हैं। उन सड़कों पर कई जगह गढ्ढे हैं। कई जगह पानी रिस कर खुदी हुई सड़कों के उन निचले हो चुके धरातल में भरा गया है जिन्हें खोदने के बाद ठीक से भरा नहीं गया और ठेकेदार ने लापरवाही से सड़कें छोड़ दीं। कई स्थानों पर पानी रिस रहा है क्योंकि जो जोड़ लगाए गए थे, वे सही तरीके से नहीं लगे इसलिए पानी रिसने लगा। कई जगह ऐसा भी हुआ कि टेलीफोन की लाइनें बिछाने वालों या अन्य मकसद से जमीन की खुदाई करने वालों की कुदालें नर्मदा पाइप लाइन के ताजातरीन किंतु नाजुक पाइपों से टकरा गईं और पानी का फब्बारा फूट पड़ा। हालात यह हैं कि जहां-जहां नर्मदा पाइप लाइन बिछाई गई है, उन सारी कॉलोनियों में मोक्षदायिनी नर्मदा का पानी सड़कों और गलियों में बर्बाद होता देखा जा सकता है। लेकिन इन हालातों के लिए जिम्मेदार एजेंसियों को पूरी तरह भी नहीं कोसा जा सकता। जब किसी शहर की जल व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन होता है तो अव्यवस्था फैलती है। रहवासियों को कुछ दिक्कत होती है, कीचड़ भी मच सकती है। सड़कें  पूर्व स्थिति में नहीं लाई जा सकतीं क्योंकि उनमें जोड़ लग जाते हंै।
भोपाल के बाशिंदों में इतना धैर्य तो है कि  वे नर्मदा जल को अपने घर लाने के लिए इतनी परेशानी बर्दाश्त कर सकते हैं। सवाल यह है कि कब तक? एक माह, दो माह या चार माह? सच तो यह है कि अपने निर्धारित लक्ष्य से महीनों पीछे चल रही नर्मदा जल वितरण योजना में की जा रही घोर लापरवाहियां नागरिाकों की परेशानी का कारण बन गई हैं। एक दौर में जब भोपाल की अधिकांश कॉलोनियों में पानी की किल्लत रहती थी और कुछ में 21-21 दिन तक पानी नहीं मिलता था, उमाश्री भारती के कार्यकाल में भोपाल में नर्मदा जल लाने का संकल्प किया गया था।
उस समय भोपाल की आबादी मौजूदा आबादी के मुकाबले लगभग 30 प्रतिशत कम थी और कोलार बांध से 155 एमएलडी, बड़े तालाब से 114 एमएलडी तथा कुंए, नलकूप, हैण्डपंप इत्यादि स्रोतों से 16 एमएलडी पानी शहर को प्रदान किया जा रहा था जो आवश्यकता को देखते हुए कम था इसीलिए नर्मदा नदी से 185 एमएलडी जल लाने का निर्णय लिया गया। शाहगंज में 29 अपै्रल 2005 को प्रारंभ यह योजना 12 जुलाई 2011 को पूर्ण भी हो गई और नर्मदा जल शहर की सीमा में आ गया था। लेकिन असली चुनौती इस जल को घर-घर तक पहुंचाने की थी। बैरसिया विधानसभा क्षेत्र छोड़कर लगभग पूरे शहर में नर्मदा जल पहुंचना था।
कायदा तो यह कहता है कि जब  2005 में शाहगंज में नर्मदा जल आपूर्ति के लिए भूमिपूजन हुआ था, उसी दिन से भोपाल शहर में वितरण की व्यवस्था पर काम शुरू हो जाना था। लेकिन काम शुरू होने में ही काफी समय लग गया। कभी पैसा समय पर नहीं मिला, कभी ठेकेदार भाग गए, कभी लालफीताशाही के अड़ंगे लग गए और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जब नर्मदा जल को भोपाल में लाने की योजना हाथ में थी, उस वक्त वितरण का रोडमेप तैयार ही नहीं था। वह तो बाद में तैयार हुआ। 415.45 करोड़ की यह योजना पूरे नगर के लिए थी, जिसमें 82 किलोमीटर फीडरमेन लाइन के अतिरिक्त 917.43 किलोमीटर पाइपलाइन बिछाने का काम किया जाना था। पूरे शहर में 62 विशाल टंकियां बननी थीं, जिनमें से 52 जवाहर लाल नेहरू अर्बन डेव्हलपमेंट मिशन तथा 10 टंकियां गैस राहत मद के अंतर्गत बनाई जानी थीं। यह काम काफी समय से चल रहा है और लक्ष्य से बहुत पीछे है। अभी तक कुल 28 टंकियां ही बन पाईं हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि नर्धारित लक्ष्य से आधा काम भी नहीं हुआ और यह काम वर्ष 2005 को शुरुआती वर्ष माना जाए तो 9 वर्ष से लंबित है क्योंकि  भोपाल के नगर निगम को शायद यह उम्मीद नहीं थी कि उनकी दहलीज पर नर्मदा जल इतनी जल्दी आ जाएगा।
बहरहाल प्रशासकीय स्वीकृति 2009 में मिलने के बाद भी अड़ंगे आते रहे, काम विलम्ब से प्रारंभ हुआ और अब हर स्तर पर देरी हो रही है। जिम्मेदार अधिकारी स्वयं मानते हैं कि काम निर्धारित लक्ष्य से महीनों पीछे है। नयापुरा, दामखेड़ा, पिंजूमल धर्मशाला और अयोध्या नगर में जिन टंकियों से जल प्रदाय किया जा रहा है, वह गैस राहत के तहत बनी हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि 10 में से मात्र 4 टंकियां बन पाई हैं। इसी प्रकार जेएनएनयूआरएम के तहत बनने वाली 52 टंकियों में से महज 24 बन पाई हैं, जिनमें से 8 तो अक्टूबर 2014 में कम्पलीट हुई हैं।
सांई नगर गेट, दुर्गा मन्दिर, वार्ड 57 मैदान, बरखेड़ा पठानी, मिसरोद थाना, वहीदिया स्कूल, सेमरा राजीव नगर, अशोका गार्डन, चांदबड़, इन्द्रपुरी, रत्नागिरी सम्प के पास, नयापुरा (गैस राहत), दामखेड़ा (गैस राहत), पिंजोमल धर्मशाला (गैस राहत), हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी, ऐशबाग, भारत नगर, सोनागिरी सेक्टर सी, अभिरुचि परिसर सुभाष नगर इत्यादि से जल प्रदाय दीपावली से पूर्व किया जा रहा था।
चौकसे नगर, रोहित नगर, समन्यवय नगर गार्डन विकलांग पुर्नवास केंद्र, जनता क्वार्टस ऐशबाग, कोकता आनंद नगर, अमरावत खुर्द और बौद्धमठ में अक्टूबर माह के अन्त में जल प्रदाय हो पाया। लेकिन जो हिस्सा बाकी है वह भोपाल के उन क्षेत्रों को कवर करता है, जहां पानी की बड़ी किल्लत है। शारदा नगर मैदान नारियलखेड़ा, गल्लामंडी, शाहपुरा थाने के पास, जोन-8 ऑफिस, रशीदिया स्कूल का मैदान, श्यामला हिल्स जीएसआर, यातायात पार्क, अंसल अपार्टमेंट, ईदगाह हिल्स, पशु चिकित्सालय के सामने, पत्रकार भवन के सामने, मानव संग्रहालय, नर्मदा भवन, एमपी नगर पुलिस थाना, शास. माध्यमिक शाला टीलाजमालपुरा, पुरानी टंकी के पास चार इमली, ग्रीन पार्क कॉलोनी, ब्लॉक-89 के सामने तुलसी नगर, टीटी नगर स्टेडियम, अखिल भारतीय महासभा जवाहर चौक, बरखेड़ीकला, सूरज नगर, गोरेगांव, शान्ति नगर खुली जमीन, मुफ्ती साहब कब्रिस्तान, मॉडल स्कूल ग्राउण्ड, गांधी मेडिकल कॉलेज, हरिओम बस्ती, सिंगार चोली, वनट्री हिल, मीरा मन्दिर, 1100 क्वार्टर्स, शबरी नगर, गोविन्दपुरा औद्योगिक क्षेत्र जैसे इलाकों में पानी की टंकी तैयार नहीं है। यहां अधिकांश इलाकों में स्लैब डल गए हैं। लगभग 52 टंकियों में पाइप भी लगाए गए हैं, इनमें से 60 टंकियोंं की टेस्टिंग पूरी हो गई है, 2 टंकियों की टेस्टिंग चल रही है।
10 टंकियां ऐसी थीं जिनका विवाद बमुश्किल सुलझ पाया है। कुछ में रहवासियों द्वारा अड़ेंगे डाले गए। इस प्रकार 10 विवादित और 34 अपूर्ण टंकियों के लिए मार्च 2015 तक का लक्ष्य रखा गया है लेकिन यह लक्ष्य भी पूर्ण होता नहीं दिख रहा है क्योंकि बहुत सी टंकियों में काम जिस स्तर पर है, उसे आगे बढऩे में अभी वक्त लगेगा। 5610 लाख रुपए की यह योजना काफी पहले पूर्ण हो जानी चाहिए थी। कई बार इसका लक्ष्य बदला गया। अक्टूबर 2014 का लक्ष्य भी धराशाई हो गया क्योंकि फीडरमेन लाइन ही पूरी नहीं बिछी थी, बाकी अंदर की लाइन का हाल तो वैसे भी दयनीय है। 1768.50 किलोमीटर की पाइपलाइन पूरे शहर में बिछाई जा रही है जिसके चलते इतनी ही लंबी दूरी की आंतरिक सड़कें खोद डाली गई हैं, जिसमें लगभग 1300 किलोमीटर की पाइपलाइन बिछ चुकी है मगर उसमें से 851 किलोमीटर पाइपलाइन की ही टैस्टिंग हुई है। पर पानी केवल 305 किलोमीटर पाइपलाइन से प्रदाय किया जा रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारी-भरकम प्रोजेक्ट का 25 प्रतिशत हिस्सा भी कम्पलीट नहीं है और 9 वर्ष बीत चुके हैं। तो क्या पूरे प्रोजेक्ट को कम्पलीट होने में 36 वर्ष लगेंगे? यदि निर्धारित लक्ष्य से इसी तरह धीमी गति पर काम होता रहा तो सारे के सारे प्रोजेक्ट जनसंख्या का दबाव झेलने के काबिल नहीं रहेंगे। जो 492.21 करोड़ रुपए के कार्य आवंटित किए गए हैं उनमें से 263 करोड़ रुपए का ही काम हो पाया है। इस हिसाब से देखा जाए तो 57.32 प्रतिशत भौतिक प्रगति जमीन पर दिख रही है। यह सरकारी आंकड़ा है। वैसे देखा जाए तो कुल 305 किलोमीटर पाइपलाइन से ही पानी आ रहा है और यह भी बार-बार फूट रही है। आगे पाट पीछे सपाट वाली स्थिति है।
30 लाख की जनसंख्या वाले शहर में 9 वर्ष से जारी इस योजना के तहत अभी तक 60 हजार के करीब घरेलू कनेक्शन लगे हैं जिनमें 28 हजार 500 मीटर लगाए गए हैं। यह योजना 2025 तक पूर्ण होगी और उस समय भोपाल और आस-पास की 275 लाख जनसंख्या के लिए 475 एमएलडी पानी मिला करेगा जो कि 150 लीटर प्रतिव्यक्ति दिन के हिसाब से पर्याप्त होगा। क्या यह संभव हो पाएगा? मौजूदा गति को देखते हुए तो 2050 तक भी लक्ष्य पूरा होते नहीं दिख रहा है। इस परियोजना में 50 प्रतिशत राशि भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा चुकी है। नगर पालिका निगम को 30 प्रतिशत देना है और 20 प्रतिशत राज्य सरकार से आएगा।

 

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