11-Nov-2014 05:21 AM
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जब लैंड रेवेन्यू कोड की परवाह ही नहीं है?
मध्यप्रदेश सरकार और भारत सरकार देश को साफ करने में जुटे हुए हैं किंतु इस सफाई के लिए आज से 55 साल पहले जो नियम-कायदे बनाए गए थे, उनको भुला दिया गया है। अकेले भोपाल में 800 टन कचरा होता है, जिसमें से केवल 500 टन उठाया जाता है। 300 टन कचरा सड़ता रहता है और डेंगू जैसी खतरनाक बीमारियां फैला देता है। यदि इस बचे हुए 300 टन कचरे को साल के 365 दिनों से गुणा करें तो 1 लाख 9 हजार 500 टन कचरा भोपाल शहर मेें हर वर्ष छोड़ दिया जाता है। तभी तो शहर गंदगी और बीमारियों के ढेर में तब्दील हो चुका है। जब गंदगी जनित डेंगू जैसी बीमारियों पर सवाल उठाया जाता है, तो स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण रेडियो पर आंकड़ा देकर बताते हैं कि भोपाल की 30 लाख जनसंख्या में महज 30 डेंगू पीडि़त हैं यानी 0.0001 प्रतिशत। लेकिन यह तो महज एक बीमारी का आंकड़ा है। गंदगी जनित सैंकड़ों तरह की बीमारियों से हजारों लोग ग्रसित हैं, उनका आंकड़ा भी तो होना चाहिए। फिर किसी बीमारी से 30 लाख जनसंख्या में महज 10-12 लोग मरते हैं तो क्या उस बीमारी को मामूली माना जाएगा? और ये मरने वाले हैं कौन- छोटे बच्चे, नौजवान। डेंगू परिपक्व उम्र नहीं देखता, वह किसी को भी अपनी चपेट में ले लेता है।
यही हाल गंदगी जनित तमाम बीमारियों का है। परिपक्व उम्र के लोग सुरक्षित वातावरण में रहते हैं और मच्छर या गंदगी जनित माहौल से बचने की कोशिश करते हंै, किंतु युवा और बच्चों के लिए तो हर खतरनाक माहौल में जाना उनकी विवशता है। बच्चों को पढऩे जाना पड़ता है, ट्यूशन-कोचिंग जाना पड़ता है, वे मैदानों में खेलते हैं और युवा भी काम के लिए अथवा अन्य कारणों से तमाम जगह आते-जाते रहते हैं। इनका एक्पोजर ज्यादा है, इसलिए गंदगी जनित बीमारियों की चपेट में भी ये लोग ज्यादा आते हैं। यही कारण है कि स्वच्छता के लिए लैंड रेवेन्यू कोड (भू राजस्व संहिता) में विशेष प्रावधान हैं। यदि इन प्रावधानों का पालन हो जाए तो नरेंद्र मोदी को किसी विशेष अभियान की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और न ही मुख्यमंत्री को हरे पत्ते झाड़ते हुए फोटो खिंचवाने की जरूरत महसूस होगी। सफाई इस देश में कोई रस्म नहीं है, बल्कि इस देश के निवासियों का मौलिक अधिकार है। जिसके लिए बकायदा कानून बने हुए हैं। लेकिन इन कानूनों का पालन नहीं हो पाता है। भू राजस्व सहिंता के अनुच्छेद 224 (श्व) में 6 जनवरी 1960 को जारी नोटिफिकेशन क्रमांक 210-6477-ङ्कढ्ढढ्ढ-हृ (क्रह्वद्यद्गह्य) का हवाला देते हुए बताया गया है कि जो गांव नगर निगम, नगर पालिका अथवा ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र या उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर आने हैं वहाँ सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी अलग-अलग स्तरों पर विभाजित करते हुए समस्त शहरों, नगरों, कस्बों, ग्रामों को स्वच्छ रखने और ड्रेनेज सिस्टम सुचारू रखते हुए कचरे का सही निष्पादन करने का प्रावधान किया गया है।
नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों में तो इस काम के लिए भारी-भरकम अमला तैनात रहता ही है लेकिन जो छोटे-छोटे ग्राम हैं, उनमें भी सफाई कराने और इस संबंध में नियमों को लागू कराने का दायित्व गांव के पटेल को सौंपा गया है जो निस्तार पत्रक में वर्णित भूमि का उपयोग विभिन्न दैनिक गतिविधियों, निस्तार, कचरा निष्पादन इत्यादि के लिए नियमानुसार कर सकता है। यह बताया गया है कि इस तरह निस्तार की जगह गांव की बाहरी सीमा से भी 100 मीटर दूर होनी चाहिए और बीमारों, शिशुओं तथा वृद्धों को छोड़कर बाकी सब गांव से 100 मीटर दूर ही निस्तार के लिए जाएं। निश्चित रूप से इससे गांव के भीतर गंदगी नहीं फैलेगी। अब गांव में भी पक्के शौचालय बनाकर दिए जा रहे हैं, लेकिन जल-मल निकासी की व्यवस्था के बगैर ऐसे शौचालय बेमानी हैं और बीमारियों का घर हैं। इस अनुच्छेद में गांव में सड़कों, पगडंडियों, गलियों तथा खुले जगह पर कचरा फैंकने की मनाही और इन स्थानों से प्रतिदिन कचरा समेटना अनिवार्य है।
यह कचरा निस्तार पत्रक में वर्णित उपयुक्त जगह पर ही डाला जा सकता है, लेकिन हमारे गांवों में ऐसा नहीं होता। प्राय: सभी गांव में घूरे के ढेर मिल जाएंगे। जिन ग्रामीणों के पास मवेशी हैं, उन्हें मवेशियों का गोबर, लीद और अन्य गंदगी गढ्ढा करके घर से थोड़ी दूर डालनी चाहिए। इन गढ्ढों को सूखा रखने और उनमें मिट्टी डालने की जिम्मेदारी भी ग्रहस्वामी की है ताकि खाद बनने पर इसका पुनर्उपयोग हो सके। गांव के पटेल को अक्टूबर माह में वर्षा उपरांत गांव की सारी गंदगी हटाने और जिन गढ्ढों में खाद जमा है, उन्हें साफ कराते हुए गांव से बाहर सुरक्षित रखने तथा कचरा जला देने का निर्देश भी दिया गया है। जिन कुओं का पानी पीने के उपयोग में लाया जाता है, उनकी मेढ़ की ऊंचाई कम से कम 60 सेंटीमीटर होना अनिवार्य है और कुंओं केे 10 मीटर के परिधि क्षेत्र में कपड़े धोने से लेकर अन्य गतिविधियों को प्रतिबंधित किया गया है। यही नहीं नदी-नालों से पानी बहने के लिए, उस पानी का निस्तार करने के लिए भी स्वच्छता संबंधी निर्देश स्पष्ट दिए गए हैं। श्मशान घाटों से लेकर सार्वजनिक जगहों के उपयोग के विषय में बारीक से बारीक निर्देश लैंड रेवेन्यू कोड में दिए गए हैं, चाहे वह मृत पशुओंं की देह को ठिकाने लगाने की बात हो या फिर जल निकासी से लेकर सड़क इत्यादि की मरम्मत कराने की बात। गांव के पटेल को इस संबंध में बहुत से अधिकार दिए गए हैं और वह किसी प्रकार की कठिनाई होने पर नायब तहसीलदार से लेकर कलेक्टर तक से सहायता ले सकता है। गंदगी फैलाने वालों पर जुर्माना लगाने से लेकर अन्य तरीकों से दंडित करने का प्रावधान है। कोलेरा जैसी बीमारियों के फैलने पर पटेल और नायब तहसीलदार तथा स्वास्थ्य अधिकारियों के क्या दायित्व और क्या भूमिका है, इस बारे में भी स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं फिर चाहे वह कुंओं में पोटैशियम परमेग्नेट डालने की बात हो या बीमारों को सही उपचार देने का विषय हो। तहसीलदार को भी यह अधिकार है कि वह किसी भी प्रकार के नियम का उल्लंघन होने पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है।
प्रशासन लाचार
मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव एंटोनी जे.सी. डिसा ने डेंगू के प्रकरणों पर दावा किया कि डेंगू का लार्वा तीन दिन के भीतर नष्ट कर दिया जाएगा। उन्होंने दावा किया था दीपावली के पूर्व, लेकिन दीपावली के फटाखों का शोर और धुंआ भी डेंगू रूपी दैत्य को डरा नहीं सका। उधर मौतें बदस्तूर होती रहीं। राजधानी भोपाल में ही तकरीबन 12 जानें डेंगू से गई हैं। हालांकि सरकार इस आंकड़े की पुष्टि नहीं कर रही है लेकिन इतना तो तय है कि दूर-दराज के क्षेत्रों में होने वाली अकाल मौतों में से कुछ का कारण डेंगू ही होगा।
डेंगू का प्रकोप हर वर्ष बरसात के बाद प्राय: हर शहर में देखने में आता है। सरकार कुछ दावे करती है और सरकार के दावों को मीडिया बेनकाब करता है। लेकिन इस खेल में लोग मरते जाते हैं। कारण वही पुराने हैं, कुछ तो लोगों में जागरूकता का अभाव है और कुछ सरकार के जिम्मेदार लोग भयानक लापरवाही बरतते हैं। बरसात के बाद यहां-वहां रुका पानी, गंदगी और सडऩ डेंगू के पनपने के लिए आदर्श परिस्थितियां पैदा करती हैं। घर या उसके आस-पास यदि पानी जमा है, उसमें मिट्टी का तेल या अन्य कीटनाशक पदार्थों का छिड़काव नहीं हो पा रहा है, लोग 15-20 रुपए की मच्छर क्वाइल खरीदने से ज्यादा जरूरी मोबाइल रीचार्ज कराना समझते हैं या मच्छर भगाने के लिए प्रयुक्त बाजारू सामग्री को फिजूलखर्ची मानते हैं या फिर अपने आस-पास और घर में सफाई न रखते हुए पानी जमा रहने देते हैं, तो यह निश्चित रूप से लोगों की ही कमजोरी है और इसका खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है। चाहे वह इलाज के भारी खर्चे के रूप मेें हो या फिर लापरवाही के कारण मौत के रूप में।
इस देश में एक बड़ी विडम्बना और है- लोग इलाज पर 1000 रुपए खर्च कर देंगे लेकिन बचाव के लिए 100-200 रुपए भी खर्च नहीं करते। 100-200 रुपए में मच्छर मारने वाले स्प्रे से लेकर तमाम ऐसी सामग्री मिल जाती है जो डेंगू जैसी भयानक बीमारियों से बचा सकती है लेकिन वहां खर्च करना लोगों को गंवारा नहीं है, डॉक्टर की जेबों में नोट डालना लोगों को अच्छा लगता है। लेकिन यह समस्या का एक पहलू है जो हम भारतीयों की आदत का हिस्सा है। किंतु सरकारें क्यों सोती रहती हैं? उन्हें अपना दायित्व क्यों समझ में नहीं आता? यह सच है कि हर घर को डेंगू के लार्वा से मुक्त करना सरकार के लिए संभव नहीं है, किंतु जो किया जा सकता है वह तो किया जाना चाहिए। भोपाल शहर में ही जहां-जहां पानी रुका हुआ है और सड़ रहा है वहां सभी जगह छिड़काव नहीं किया गया, जिससे समस्या बढ़ गई। टी.टी. नगर के बीच से होकर एकांत पार्क से आगे मनीषा के तालाब में गिरने वाले नाले के आस-पास कई जगह पानी जमा है, सड़ रहा है लेकिन वहां कोई छिड़काव नहीं हुआ। छोटे तालाब के आगे पातरा पुल के नीचे से बहने वाला पानी आस-पास कई जगह रुका है और उसमें सड़ांध आ रही है लेकिन पानी की निकासी की व्यवस्था तो दूर डेंगू लार्वा को मारने के लिए यहां कोई कोशिश की गई हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता। यह तो शहर के दो हिस्सों का हाल है। इतने बड़े महानगर में जगह-जगह गढ्ढों में पानी भरा है, उसके निकासी की व्यवस्था नहीं है, पानी सड़ रहा है, कई ओवरहेड टैंक वर्षों से साफ नहीं हुए हैं। शहर की गंदी बस्तियों को छोड़ दिया जाए तो भी अधिकांश शहर में कचरा प्रतिदिन साफ नहीं हो पाता है। नगर निगम के कचरा समेटने वाली गाडिय़ां लापरवाही से कचरा डंप करती हैं जो फैल जाता है, सड़ता रहता है, वहां गंदगी पनपती है, मच्छर पनपते हैं। बीमारियों को आमंत्रण तो गर्मियों में ही दे दिया जाता है जब जानबूझकर नालों की सफाई नहीं की जाती। यदि गर्मी के दिनों में शहर के सारे नालों को साफ कर दिया जाए तो डेंगू और मलेरिया का प्रकोप आधा ही रह जाएगा, क्योंकि डेंगू के ज्यादातर मामले इन्हीं नालों के आस-पास की कॉलोनियों में देखने में आए हैं। लेकिन इन सब चीजों की परवाह किसे है। डेंगू का प्रकोप भी ठंड बढऩे के साथ कम हो जाएगा और जिम्मेदार संस्थाएं लंबी तानकर सो जाएंगी।
सफाई हुई धराशाई
ग्राम स्वच्छता अभियान
मध्यप्रदेश सरकार ने 14 से 19 नवंबर के बीच ग्राम स्वच्छता अभियान की घोषणा की है। जिसके तहत शौचालय का निर्माण एवं साफ-सफाई की जाएगी। किन्तु इससे बीमारियां रूक भले ही जाए लेकिन जो पहले से बीमार है। उनकी तीमारदारी के लिए डॉक्टरों को मुक्त करना होगा। अभी तो प्रदेश के ज्यादातर डॉक्टर वीआईपी ड्यूटी में ही लगे रहते है। हाल ही में भोपाल में भाजपा संकल्प दिवस से लेकर रन फॉर यूनिटी जैसे कई कार्यक्रमों में डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई गई और वे स्वाइन फ्लू तथा डेंगू जैसे गंभीर मरीजों को अटेंड नहीं कर पाएं। एक तरफ तो स्वास्थ्य अमला कम है दूसरी तरफ वीआईपी को सबसे पहले ट्रीटमेंट चाहिए भले ही जनता मरती रहें। सरकारी डॉक्टरों को थोड़ा आराम मिलें तो वे बाकी मरीजों का भी सोचे।
