17-Oct-2014 08:41 AM
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हाल ही में जब मध्यप्रदेश के एक स्कूल के प्रधान-अध्यापक ने बड़ी मासूमियत से यह स्वीकार किया कि उसने स्कूल में शौचालय की राशि का गबन किया था और उसमें से कुछ अधिकारियों को भी

हिस्सा दिया था, तो एक बड़ा सच उजागर हो गया। प्रदेश के 90 प्रतिशत स्कूलों में या तो शौचालय नहीं हैं और हैं तो ऐसे हैं कि उनका उपयोग करने में पशुओं को भी परेशानी होगी, इंसानों की तो बात ही अलग है। राजधानी भोपाल में कई प्रतिष्ठित स्कूलों के शौचालयों का निरीक्षण करने के दौरान पाक्षिक अक्सÓ की टीम ने पाया कि मनमानी फीस वसूल रहे निजी स्कूलों में भी शौचालय साफ-सुथरे और सुरक्षित नहीं हैं। बालिकाओं के कुछ ख्यातिनाम स्कूलों में भी शौचालय उतने साफ-सुथरे नहीं पाए गए।
खैर स्वच्छता एक गंभीर मसला हो सकता है लेकिन उससे भी ज्यादा चिंतनीय विषय है कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री ने अगस्त माह में हर स्कूल में बालिकाओं के लिए शौचालय बनाने का जो वादा किया था, वह इस शताब्दी के अंत तक भी पूरा होता नजर नहीं आता। क्योंकि शौचालय के नाम पर आई राशि किस तरह अधिकारियों की भेंट चढ़ जाती है, यह तो समाचार पत्रों में प्रकाशित हो ही चुका है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि किसी तरह जोड़-तोड़ करके यदि किसी विद्यालय में कोई शौचालय बना भी दिया जाता है, तो वह माह-दो-माह के भीतर इस काबिल नहीं रहता कि उसका उपयोग किया जा सके। अधिकारीगण स्कूलों का निरीक्षण तो करते हैं, लेकिन शौचालयों के नियमित निरीक्षण और उनके गंदे पाए जाने के बाद उठाए गए अनुशासनात्मक कदमों का कोई ब्यौरा उनके पास नहीं है।
भ्रष्टाचार पकड़ में आने पर कुछ एक मामलों में कार्रवाई की जाती है लेकिन बने-बनाए शौचालयों को गंदा रखना भी एक अपराध है, उसके लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती। स्कूलों में मैंटनेंस का जो पैसा आता है, उसकी 90 प्रतिशत राशि भ्रष्टाचार में ही जाती है और यह एक खुला तथ्य है। सभी को इसकी सच्चाई पता है, किंतु बोलना कोई नहीं चाहता। सरकारी स्कूल गंदगी के अंबार हैं। बात केवल शौचालयों की नहीं है। सरकारी स्कूलों की इमारतें एक बार बनने के बाद दोबारा साफ-सुथरी नहीं हो पातीं। वे वर्ष-दर-वर्ष गंदी और बेकार होती जाती हैं, लेकिन कोई परवाह नहीं करता। लड़कियों के लिए अलग शौचालय न होने के कारण ऊंची कक्षाओं में लड़कियों के ड्रॉपआउट रेट मेंं तेजी आ जाती है। लाज-शर्म के मारे वे बेटियां स्कूल नहीं जातीं क्योंकि स्कूल में आवश्यकता पडऩे पर प्रथक शौचालय नहीं हैं और जो हैं उनमें जाने का साहस इन बेटियों में नहीं है, वहां गंदगी का अंबार है। शौचालयों की स्वच्छता भी एक बड़ी चुनौती है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश के लगभग साढ़े 14 हजार विद्यालयों में सर्वे किया गया तो पाया गया कि 9130 विद्यालय ऐसे थे, जहां लड़कियों के लिए प्रथक टॉयलेट नहीं था। लेकिन उससे भी ज्यादा दुखद तथ्य यह है कि साढ़े 14 हजार में से बमुश्किल 50 शौचालय ऐसे पाए गए जिन्हें साफ-सुथरा कहा जा सकता है, बाकी सब विद्यालयों में शौचालय गंदे और कहीं तो निहायत ही गंदे थे। लगभग 20 प्रतिशत स्कूल ऐसे थे, जिनके शौचालय का उपयोग कोई कर नहीं पा रहा था क्योंकि उनमें जल-मल निकासी की व्यवस्था ठप्प पड़ी हुई थी। साढ़े 14 हजार विद्यालयों के शौचालयों में से आधे ऐसे थे, जिन पर छत नहीं थी। कुछ शौचालय ऐसे थे, जिनमें 4-4 फिट की दीवारें उठाकर आड़ कर दी गई थी। सर्वेक्षणकर्ताओं ने पाया कि केवल 10 प्रतिशत स्कूलों के शौचालयों को शौचालय कहा जा सकता था, बाकी इस लायक नहीं थे कि उन्हें शौचालय कहा जा सके।
सारे देश में अभी भी 19 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए प्रथक शौचालय नहीं है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 3 लाख 69 हजार 989 स्कूलों में लड़कियों और 1 लाख 30 हजार 127 स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय नहीं है। आंध्रप्रदेश में 40,328 स्कूलों, पश्चिम बंगाल के 38,678 स्कूलों, ओडिशा के 35,566 स्कूलों, बिहार के 33,853 स्कूलों, मध्यप्रदेश के 30,495 स्कूलों, उत्तरप्रदेश के 28,956 स्कूलों, छत्तीसगढ़ के 26,582 स्कूलों, राजस्थान के 19,056 स्कूलों, असम के 19,797 स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं है।
पिछले पांच वर्षो में स्कूलों में शौचालयों की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन आज भी बड़े पैमाने पर स्कूल हैं जहां शौचालय और स्वच्छ पेयजल सुविधाओं का अभाव है।
-Ajay Dheer