02-Mar-2013 07:34 AM
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हैदराबाद में एक बार फिर दिलसुख नगर को आतंकियों ने निशाना बनाया और दोहरे बम ब्लास्ट में 15 जानें चली गईं। 119 लोग घायल भी हुए जिनमें से 5 के बचने की उम्मीद कम है। यह पहला मौका नहीं है जब आतंकवादियों की करतूतों की खुफिया जानकारी होने के बावजूद हम हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे। दिलसुख नगर में आतंकवादी पिछले 15 वर्ष से हर पांच वर्ष के अंतराल पर खून की होली खेलते आए हैं। लेकिन इस संवेदनशील इलाके पर किसी की नजर नहीं है। चौकाने वाला तथ्य यह है कि केंद्र सरकार ने हैदराबाद सहित अन्य शहरों में हाईअलर्ट जारी कर दिया था। जिनमें बैंगलोर हुबली और कोयम्बटूर भी शामिल थे। हैदराबाद सर्वाधिक संवेदनशील है यह भी खुफिया एजेंसियों को पता है और पुलिस भी अच्छी तरह जानती है, लेकिन इसके बाद भी बम ब्लास्ट टाला नहीं जा सका। खासकर दिलसुख नगर के फल बाजार में यह त्रासदी रोकी जा सकती थी। क्योंकि वहां पहले भी इस तरह के हमले किए जा चुके हैं।
जब भी ऐसे ब्लास्ट होते हैं प्राय: यह सुनाई पड़ता है कि ब्लास्ट के बारे में खुफिया एजेंसियों ने पहले ही चेतावनी दे दी थी। सवाल यह है कि जब पहले से आशंका रहती है तो त्वरित कार्रवाई क्यों नहीं की जा सकती। हर बार हाथ पर हाथ रखे बैठने से आतंकियों का हौसला लगातार बढ़ता जा रहा है। 7 माह के भीतर ही यह दूसरी आतंकी घटना है। हमेशा पाकिस्तान को दोषी ठहराया जाता है लेकिन सच यह भी है कि भारत के अंदर आतंक का जो तंत्र विकसित हो चुका है उसे ध्वस्त करने में हम नाकाम रहे हैं। हैदराबाद में जो ब्लास्ट हुआ वह एक छोटे से रेस्त्रां के नजदीक हुआ जो दो सिनेमाहॉलों तथा बस स्टैंड के निकट है। समीप ही एक कॉलेज भी है तथा एक फल तथा सब्जी बाजार है। यह इलाका सुबह से लेकर शाम तक लोगों से गुलजार रहता है। खासियत यह है कि यहां सारे देश के विभिन्न प्रांतों के वाशिंदे देखें जा सकते हैं। उनमें से ज्यादातर छात्र रहते हैं। यह बहुत संकरा इलाका है। जहां पर पहुंचना कठिन है तो आतंकवादियों के लिए भीड़ में छुपकर किसी वारदात को अंजाम देना आसान है। जो दो ब्लास्ट हुए उसमें इस्तेमाल किए गए बम साइकिल पर रखे गए थे। आंध्रप्रदेश के पुलिस महानिदेशक वी. दिनेश राव का कहना है कि यह एक आतंकी घटना है और इसका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना था ताकि आतंक का दायरा फैले। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह बम उन्हीं स्थानों पर रखे गए जहां वर्ष 2007 में ब्लास्ट हुए थे। इन ब्लास्ट में भी 40 लोग मारे गए थे। पिछले वर्ष ही पुलिस को सूचना मिली थी कि दिलसुख नगर बैगम पेट और आबिद इलाकों में आतंकवादियों द्वारा रैकी की जा रही है, लेकिन पुलिस ने भीड़ भरे इलाके को खंगालना उचित नहीं समझा क्योंकि इससे भय और असुरक्षा का माहौल व्याप्त हो सकता था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसमें लगातार पुलिस तथा अन्य जिम्मेदार एजेंसियों की लापरवाही दिखाई दे रही है। प्राय: हर बम ब्लास्ट के बाद इस तरह की घटनाएं सुनाई पड़ती है कि वहां सुरक्षा के इंतजाम चाक-चौबंद नहीं थे। पिछले वर्ष अक्टूबर माह से ही इस क्षेत्र में संदिग्ध गतिविधियां देखी जा रही हंै, लेकिन कोई खास इंतजामात नहीं किए गए। तीन दिन पहले ही खुफिया अधिकारियों ने चेतावनी दी थी, लेकिन पुलिस ने विशेष तैयारी करना मुनासिब नहीं समझा। अब केवल यह कयास लगाए जा रहे हैं कि इस दर्दनाक घटना में पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तोयबा या इंडियन मुजाहिदीन का हाथ हो सकता है। इन दोनों संगठनों का भारत में खतरनाक नेटवर्क बनता जा रहा है। हैदराबाद में यह बम जिस समय फटा उससे 15 मिनट पहले ही हैदराबाद के पुलिस कमिश्नर नजदीक स्थित एक मंदिर से लौटे थे यदि हादसे की टाइमिंग थोड़ी बहुत आगे-पीछे होती तो यह और बड़ी दर्दनाक घटना हो जाती। वर्ष 2002 में भी इसी स्थान पर एक मंदिर के नजदीक बम ब्लास्ट हुआ था जिसमें दो लोगों की मृत्यु हो गई थी। सुरक्षा एजेंसियों का शक है कि इस इलाके में पुलिस कमिश्नर की मौजूदगी के कारण शायद आतंकवादियों ने बम की लोकेशन बदल डाली।
अंतिम समय में रणनीति बदलने के कारण शायद हताहतों की संख्या कम रही अन्यथा आतंकवादियों का लक्ष्य अधिक से अधिक हत्या करने का था। अभी तक किसी भी आतंकवादी संगठन ने इन हमलों की जिम्मेदारी नहीं ली है लेकिन ये हमले 25 अगस्त 2007 को हुए दो बम धमाकों की तर्ज पर ही हैं। जिसमें लगभग 40 लोगों की मृत्यु हो गई। हैदराबाद और मुंबई आतंकवादियों के निशाने पर पिछले एक दशक से हैं। यूं तो मुंबई में आतंक का पहला नंगा नाच 12 मार्च 1993 को ही देखने को मिला था जब एक के बाद एक फटे 13 बमों ने 257 लोगों की जान ले ली थी, लेकिन उसके बाद सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होने के बाद लगभग 10 साल तक कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ पर 14 मार्च 2003 को जब मुलुंद में ट्रेन के भीतर बम फटने से 10 लोगों की मृत्यु हो गई तो आतंकवादी घटनाओं की याद ताजा हुई। इसके बाद बाम्बे लगातार आतंकवादियों के निशाने पर रहा। 2003 में ही 25 अगस्त को गेट-वे ऑफ इंडिया और जावेरी बाजार में बम विस्फोट में 50 लोग मारे गए थे। उसके तीन वर्ष बाद जुलाई 2006 में 1993 की तरह ही बाम्बे फिर बम धमाकों से दहल गया और लगातार 7 बम फटे जिसमें 209 लोगों की मृत्यु हो गई, लेकिन सरकार और खुफिया एजेंसियां इन घटनाओं के बावजूद बेखबर थीं। आतंकवादियों के निशाने पर मुख्यत: वह शहर थे जहां आसानी से समुद्री रास्ते से पहुंचा जा सकता था। लगातार ब्लास्ट के बावजूद न तो समुद्री मार्ग को सुरक्षा की दृष्टि से चाक-चौबंद किया गया और न ही देश के आंतरिक आतंकवाद पर रोक लगाने के लिए कोई प्रभावी कदम उठाए गए। इसी का नतीजा रहा कि भारत विरोधी आतंकियों ने भारत के भीतर ही अपना एक सुनियोजित तंत्र विकसित कर लिया। यह लोग लगातार विस्फोट कर रहे हैं और आतंक का यह सिलसिला थमा नहीं है। 29 नवंबर 2008 को भारत पर सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ जब पाकिस्तान से आए हुए 10 बंदूकधारियों ने देखते-देखते 172 लोगों को गोलियों से भून दिया। इस हमले के एकमात्र जीवित आतंकी कसाब को कुछ समय पूर्व ही फांसी दी गई। लेकिन कसाब की फांसी से पहले भी आतंकी घटनाएं होती रही है और उसके बाद भी आतंक थमा नहीं है। जुलाई 2011 में मुंबई में ही अलग-अलग जगह बम फटे जिनमें 26 लोगों की मौत हो गई। इससे पहले फरवरी 2010 में पुणे में जर्मन बेकरी पर हमला करते हुए आतंकवादियों ने 60 लोगों को अपने बमों का निशाना बनाया था। आंध्रप्रदेश में माओवादी आतंकवादी भी लगातार सक्रिय रहे हैं। नक्सलवाद और माओवाद को नेपाल से लगातार मदद मिलती रही है और अब इस मदद में इस मदद में पाकिस्तान का हाथ भी बताया जा रहा है। चीन माओवाद के द्वारा भारत का घेराव करने के लिए सदैव तत्पर रहता है, लेकिन सबसे ज्यादा खतरा पाकिस्तान से है। वर्ष 2005, 2006 और 2010 में उत्तरप्रदेश में हुए बम विस्फोटों में लश्कर ए तोयबा का हाथ सामने आया था जो भारत में इंडियन मुजाहिदीन का सबसे बड़ा सहयोगी है। हैदराबाद में हुए धमाकों ने सितंबर 2011 में दिल्ली हाईकोर्ट में हुए बम विस्फोटों की याद दिला दी जिसमें 12 लोगों की मृत्यु हो गई थी। इससे पहले अक्टूबर 2005 में भी दिल्ली में लगातार बम विस्फोट हुए जिनमें 60 लोगों की मृत्यु हो गई थी। भारत की संसद पर 2001 में आतंकी हमला करने वाले अफजल गुरु को हाल ही में फांसी दी गई है। अफजल गुरु की फांसी से कश्मीर में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। आशंका है कि अफजल की फांसी का बदला लेने के लिए भटकल जैसे आतंकवादी भारत के भीतरी क्षेत्रों में आतंक फैला सकते हैं। भटकल को कुछ दिन पूर्व चेन्नई में भी देखा गया था। इसलिए यह आशंका अब और बढ़ी है। 11 फरवरी को ही महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते एटीएस ने इंडियन मुजाहिदीन के फरार आतंकी यासीन भटकल और उसके तीन सहयोगियों की जानकारी देने वालों को 10-10 लाख रुपए इनाम देने की घोषणा की थी। 30 वर्षीय यासीन भटकल को मोहम्मद सिद्दिबप्पा भी कहा जाता है। उसके तीन साथी देश की कई आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं। जिनमें दादर विस्फोट भी प्रमुख है। 13 जुलाई 2011 को मुंबई में विभिन्न स्थानों पर हुए बम विस्फोटों में भटकल और उसके साथी तहासिन अख्तर वासिम अख्तर शेख, असद उल्ला अख्तर जावेद अख्तर और वकास उर्फ अहमद का हाथ प्रमुखता से बताया गया था यह चारों आतंकी फरार है और समझा जाता है कि हैदराबाद बम विस्फोट में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यह आतंकी शामिल रहे हैं।
दिल्ली पुलिस ने भी दिसंबर 2011 में यासीन भटकल के खिलाफ जानकारी देने वाले व्यक्ति को 15 लाख रुपए की घोषणा की थी। कर्नाटक का निवासी भटकल इंडियन मुजाहिदीन का आतंकवादी है। उसने वर्ष 2010 में भी दिल्ली के जामा मस्जिद के बाहर ताइवानी मीडिया दल पर गोलीबारी की थी। उसके बाद एक कार में बम विस्फोट हो गया था। भटकल के बारे में पुख्ता सूचना और विभिन्न आतंकवादी गतिविधियों में उसका हाथ होने का पता पिछले वर्ष फरवरी माह में उस वक्त चला था जब इंडियन मुजाहिदीन के एक सदस्य ताल्हा अब्दली उर्फ इसरार को गिरफ्तार किया गया था। अब्दली इंडियन मुजाहिदीन का महत्वपूर्ण विचारक है। वर्ष 2008 में उसका नाम पहली बार सामने आया था वह तभी से फरार था। वर्ष 2011 में नवंबर माह में आईएमके के छह सदस्यों को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद से आतंकवादियों के बीच पकड़ी गई हर दूसरी बातचीत में अब्दली का नाम सामने आ रहा था। यासीन भटकल ने अब्दली के घर वर्ष 2011 में नवंबर माह में शरण ली थी। इसके बाद भारत में कई आतंकी घटनाएं घटी और खुफिया एजेंसियों को जो सूचनाएं मिली उनके मुताबिक हर आतंकी घटना में कहीं न कहीं इन आतंकवादियों का हाथ था या फिर इनके तार उन घटनाओं से जुड़े हुए थे।
इंडियन मुजाहिदीन का बढ़ता आतंक भारत के लिए एक बहुत बड़ा सरदर्द है। अभी तक जो भी आतंकवादी घटना होती रही है उसे पाकिस्तान के मत्थे मढ़कर भारतीय खुफिया एजेंसियां अपना सरदर्द पाकिस्तान के ऊपर डालती रही हंै, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। भारत के भीतर ही आतंक का एक सुनियोजित तंत्र मौजूद है जो जब चाहे जहां चाहे देश की आतंरिक सुरक्षा को धता बताते हुए कहीं भी वारदात को अंजाम दे देता है और खुफिया जानकारी होने के बावजूद हम कुछ नहीं कर पाते। हैदराबाद में हुए ब्लास्ट के बाद अब यह कहा जा रहा है कि यह आतंकी अफजल गुरु की फांसी का बदला है। सूत्रों का कहना है कि इस फांसी के बाद पाकिस्तान में आतंकी संगठनों की बैठक हुई थी और उसी बैठक के बाद पाकिस्तान यूनाइटेड जेहाद काउंसिल ने बदला लेने की बात कही थी। इस बैठक में हूजी, लश्कर, जैश, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन शामिल थे।
विकास दुबे