11-Nov-2014 04:39 AM
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घर से लेकर चौक तक दुकलहीन बाई को पशुओं की तरह उसी के रिश्तेदार मारते-पीटते ले गए क्योंकि उन्हें शक था कि दुकलहीन बाई जादू-टोना कर रही है, जिससे परिवार में सभी बीमार हैं। चौक पर पहुंचकर उनकी पिटाई मानवता को शर्मसार करने वाली हरकतों में तब्दील हो गई, सबने मिलकर उस 55 वर्षीय महिला को चौक पर ही निर्वस्त्र कर डाला और उसके गुप्तांगोंं सहित आंख, नाक, कान और मुंह में मिर्च का पावडर भर दिया।
छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला की दुकलहीन बाई को यह नहीं पता था कि 25 अक्टूबर का दिन उसके लिए मौत लेकर आएगा। दुकलहीन बाई भिलाई गई थी, उसे अचानक वहां से उसी के परिजन वापस अपने गांव ले आए और परिवार के ही सदस्यों ने उस पर जादू-टोना का आरोप लगाते हुए उसे बेरहमी से मारना शुरू कर दिया। दुकलहीन बाई तड़प रही थी, रो रही थी लेकिन कोई उसे बचा नहीं रहा था। उसका अपना बेटा भी नपुंशकों की भांति तमाशबीन बनकर खड़ा था। उसे भय था कि कहीं उसने माँ को बचाने की कोशिश की, तो उसे भी मार डाला जाएगा। घर से लेकर चौक तक दुकलहीन बाई को पशुओं की तरह उसी के रिश्तेदार मारते-पीटते ले गए क्योंकि उन्हें शक था कि दुकलहीन बाई जादू-टोना कर रही है, जिससे परिवार में सभी बीमार हैं। चौक पर पहुंचकर उनकी पिटाई मानवता को शर्मसार करने वाली हरकतों में तब्दील हो गई, सबने मिलकर उस 55 वर्षीय महिला को चौक पर ही निर्वस्त्र कर डाला और उसके गुप्तांगोंं सहित आंख, नाक, कान और मुंह में मिर्च का पावडर भर दिया। दुकलहीन बाई तड़पती रही लेकिन किसी को दया नहीं आई, उसका बेटा भी बचाने नहीं आया। पुलिस हमेशा की तरह सो रही थी। वह जब तक पहुंचती दुकलहीन बाई बेहाल हो चुकी थी और अंत में किसी तरह उन वहशियों के चंगुल से छुड़ाकर उस अचेत महिला को अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन तब तक उसके प्राण-पखेरू उड़ चुके थे और वह महिला भी टोनही करार देकर हमले झेलने वाली महिलाओं के आंकड़ों में तब्दील हो गई थी।
ये घटनाएं दिनों-दिन बढ़ रही हैं। झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में डायन कहकर महिलाओं पर हमलों की बात आम होती जा रही है। यह सब बावजूद इसके है कि झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में इससे निपटने के लिए अलग से कानून भी बनाया गया है। इन रायों के ग्रामीण इलाकों में लोग आज भी ओझा-तांत्रिकों के चक्कर में पड़े हुए हैं, जो गांव की महिलाओं को डायन बताकर उनकी संपत्ति हड़पने की कोशिश करते हैं। हमारी व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह है कि प्रशासन भी तभी हरकत में आता है, जब कोई शिकायत करे। तब भी पुलिस अधिकतर मामलों में मामूली धारा लगाकर खानापूर्ती कर लेती है। महिला और बाल विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ), महिला संगठन आदि जो कि महिलाओं के उत्थान और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कायम किए गए है और
जिनका वार्षिक बजट करोड़ों रूपयों का है, उनका महिलाओं की इस स्थिति से कोई लेनादेना नहीं है।
दुखद तो यह है कि सार्वजनिक रूप से होने वाली इन घटनाओं के चश्मदीदों की संख्या सैकड़ों में होती है, लेकिन पुलिस को एक भी गवाह नहीं मिलता। एक गैर सरकारी संस्था रूरल लिटिगेशन एंड एनटाइटिलमेंट केंद्र द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार देश में हर साल 150-200 महिलाओं को डायन बताकर मार डाला जाता है। इस संस्था ने राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकडों के हवाले से बताया कि इस सूची में झारखंड का स्थान सबसे ऊपर है। पिछले 15 वर्षों में देश में डायन के नाम पर लगभग 2,500 महिलाओं की हत्या की जा चुकी है।
कमजोर महिलाएं होती हैं निशाना
आमतौर पर जिन महिलाओं को डायन घोषित किया जाता है, वे बीमार, उम्रदराज, गरीब या पिछड़े वर्ग की होती हैं। सामाजिक रूप से तबाह कर दी गई इन गरीब महिलाओं को पता ही नहीं होता कि वे क्या करें, किससे मदद मांगे। हजारों महिलाओं की डायन बनाकर मार देने के मामले सामने आए हैं, लेकिन आज तक एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया जिसमें किसी पुरूष को भूत बताकर प्रताडि़त किया गया हो या मार दिया गया हो। डाकू जरूर होते हैं लेकिन वे भी अहंकार और शक्ति का प्रतीक। गांव की निरीह, अकेली और कमजोर (युवा, अधेड़ या वृध्दा) महिलाएं आज भी लोगों के स्वार्थ, लालच और महत्वाकांक्षाओं का शिकार बन रही हैं। बहुत आसानी से एक साजिश के तहत उन्हें डायन घोषित कर (या करवा) दिया जाता है। गांव में उनके आने-जाने पर रोक लगा दी जाती है, वे कुएं से पानी नहीं भर सकतीं, किसी से बात नहीं कर सकतीं। सामाजिक बहिष्कार, आपसी लेन-देन, व्यवहार सब कुछ खत्म कर दिया जाता है। बरसों-बरस शाब्दिक प्रताडऩा के साथ-साथ शारीरिक हिंसा झेलती रहती हैं वे। शिकायत करें तो किससे, कौन सुनेगा? पूरे गांव में निपट अकेली।
मामला हल्के प्रकाश में भी तब आता है जब वे मर जाती हैं या मार दी जाती हैं। गांव में कोई मौत हो, अनिष्ट हो, बच्चा बीमार हो, किसी का एक्सीडेंट हो गया हो। लोगों को दुकलहीन बाई सरीखी महिलाएं ही जिम्मेदार नजर आती हैं। इस तरह के मामले में लोगों का मकसद तमाशा देखना ही होता है। कमजोर वर्ग उनका निशाना होता है। खुंदक निकालने के लिए कोई एक व्यक्ति दस-बीस लोगों को अपने पक्ष में खड़ा कर लेता है, बाकी सारे लोग तमाशा देखने वाले होते हैं। ज्यादातर मामलों में मानसिकता बदला लेने, संपति पर हक जमाने, कोई मांग पूरी न हो पाने जैसी बातों को आधार बनाकर ही की जाती हैं। दरअसल गांवों में फैली अज्ञानता और शिक्षा की कमी के कारण इस तरह की कुप्रथाएं आज भी शान से कायम हैं। खास बात यह है कि डायन सदैव दलित या शोषित समुदाय की ही होती है। ऊंचे तबके की महिलाओं के डायन होने की बात यदा-कदा ही सुनने में आती हैं। इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि जिस तरह सम्मान के नाम पर हत्या को मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ता और गैर सरकारी संगठनों ने विमर्श का मुद्दा बनाया है उस तरह डायन के मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी विमर्श का माहौल नहीं बन पाया है। जबकि यह वास्तव में मानव सभ्यता पर कलंक है और स्त्री जाति का अपमान है।
छत्तीसगढ़ की कुछ दर्दनाक घटनाएं
12 जून 2009- जगदलपुर से 9 किलोमीटर दूर नगरनार थाने के अंतर्गत कलचा गांव में एक महिला और उसके पति को रिश्तेदारों ने टोनही के संदेह में मार दिया।
21 मई 2011- रायपुर जिले के कसडोल थाना अंतर्गत सौरा गांव में ग्रामीणों ने एक दलित महिला पर टोनही होने का आरोप लगाकर उसकी तथा उसके पति की आंखें फोड़ दीं और महिला की जीभ काट दी।
15 सितम्बर 2011- जशपुर जिले में एक शिक्षिका को टोनही बताकर प्रताडि़त किया गया।
3 जुलाई 2012- छत्तीसगढ़ के नेवासपुर में ग्रामीणों ने एक पति-पत्नी की इसलिए पिटाई की क्योंकि उन्हें पत्नी के टोनही होने का शक था।
19 अगस्त 2013- बिलासपुर में एक महिला ने आरोप लगाया कि एक वकील उसे टोनही कहकर प्रताडि़त करता है।
17 दिसंबर 2013- छत्तीसगढ़ के जांजगीर में हत्या के प्रयास के मामले मेंं गवाह बनी महिला के साथ डायन बताकर सामूहिक दुष्कर्म।
9 अप्रैल 2014- बिलासपुर जिले के लोरमी क्षेत्र में एक युवक ने अपनी सगी चाची को टोनही करार देकर लाठी से पीट-पीट कर मार डाला।