17-Sep-2014 09:14 AM
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भारत के समाज में जिस तेजी से समृद्धि बढ़ रही है उसी तेजी से आत्मघात की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। यह सच है कि भारत दूसरे नंबर का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है लेकिन चीन के मुकाबले

भारत में आत्महत्या से लेकर बलात्कार तक की घटनाएं ज्यादा तेजी से बढ़ रही हैं और यही चिंता का विषय है। लेकिन इससे भी अधिक चिंता का विषय यह है कि आत्महत्या करने वालों में सबसे बड़ी युवा तादात महिलाओंं की है।
इस तथ्य का खुलासा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की दक्षिण-पश्चिम एशिया क्षेत्र की 2012 के लिए जारी रिपोर्ट में हुआ है। आत्महत्या करने वालों में कम और मध्यम आय वर्ग के लोग हैं। इनका हिस्सा 39 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2012 में 2,58,075 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक थी। इस दौरान 1,58,098 पुरुषों ने और 99,977 महिलाओं ने आत्महत्या की। भारत में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर आत्महत्या करने वालों का 21.1 प्रतिशत है। रिपोर्ट में आत्महत्या, आत्महत्या के प्रयास और आत्महत्या से बचाने के सफल
प्रयासों का भी ब्योरा दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में हर साल 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। कुल आत्महत्या करने वालों में 75 प्रतिशत कम और मध्यम आय वाले देशों के हैं। गुयाना में प्रति लाख सबसे अधिक 44.2 प्रतिशत लोग आत्महत्या का रास्ता अपनाते हैं। मोजाम्बिक में 27.4 प्रतिशत, नेपाल तंजानिया प्रत्येक में 24.9 प्रतिशत, बुरांडी में 23.1 दक्षिण सूडान में 19.8 प्रतिशत लोग प्रति लाख आत्महत्या करते हैं।
बलात्कार भी बढ़े
भारत में पिछले साल प्रतिदिन औसतन 92 महिलाएं रेप का शिकार हुईं। रेप के मामलों में दिल्ली ने अन्य राज्यों को पीछे छोड़ा है। दिल्ली में इस प्रकार की 1,636 घटनाएं दर्ज की गयीं जो सभी शहरों की तुलना में ज्यादा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2013 में भारत में बलात्कार की घटनाओं की संख्या बढ़कर 33,707 हो गयी जो 2012 में 24,923 थी। वर्ष 2013 में 15,556 मामलों में दुष्कर्म पीडि़तों की उम्र 18 से 30 साल के बीच थी।
वर्ष 2013 में दिल्ली में बलात्कार की संख्या 2012 की अपेक्षा दोगुनी हो गयी। 2012 में यहां बलात्कार के 1,636 मामले दर्ज किए गए जबकि 2012 में इसकी संख्या 706 थी। दिल्ली में 2013 में बलात्कार के प्रतिदिन औसतन चार मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों के अनुसार दिल्ली के बाद 2013 में मुंबई में 391 मामले दर्ज किए गए जबकि जयपुर में 192 और पुणे में 171 मामले दर्ज किए गए। एनसीआरबी आंकड़ों के मुताबिक एमपी में औसतन 11 मामले प्रतिदिन दर्ज किए जाते हैं। वहां ऐसे मामलों की कुल संख्या 4,335 रही जो अन्य सभी राज्यों से ज्यादा है। एसपी के बाद राजस्थान का नंबर है। यहां पर 3,285 मामले, महाराष्ट्र में 3,063 और यूपी में 3,050 मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों के अनुसार 2013 में 13,304 मामलों में पीडि़त नाबालिग थी जबकि उसके पिछले साल यह संख्या 9,082 थी। रिपोर्ट में यह बात भी निकलकर सामने आई है कि रेप करने वाला आरोपी पीडि़ता का परिचित होता था।
77 फीसदी लड़कियां यौन हिंसा की शिकार
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 15 से 19 साल की उम्र के बीच की लगभग 77 फीसदी लड़कियां यौन हिंसा का शिकार बनी हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस उम्र समूह की आधी से ज्यादा लड़कियों ने अपने माता-पिता के हाथों शारीरिक प्रताडऩा को भी झेला है। यूनिसेफ की रिपोर्ट हिडेन इन प्लेन साइट में कहा गया है कि बच्चों के खिलाफ हिंसा का प्रचलन इतना अधिक है और यह समाज में इतनी गहराई तक समाई हुई है कि इसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है और एक सामान्य बात मानकर स्वीकार कर लिया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया कि 15 साल से 19 साल तक की उम्र वाली 77 प्रतिशत लड़कियां कम से कम एक बार अपने पति या साथी के द्वारा यौन संबंध बनाने या अन्य किसी यौन क्रिया में जबरदस्ती का शिकार हुई हैं। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा भी व्यापक तौर पर फैली है। वहां शादीशुदा या किसी के साथ संबंध में चल रही पांच में से कम से कम एक लड़की अपने साथी द्वारा हिंसा की शिकार हुई है। इस क्षेत्र में साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा बांग्लादेश और भारत में खासतौर पर ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में 15 साल से 19 साल की उम्र वाली 34 प्रतिशत विवाहित लड़कियां ऐसी हैं, जिन्होंने
अपने पति या साथी के हाथों 15 साल से 19
साल की उम्र वाली लगभग 21 प्रतिशत लड़कियों ने 15 साल की उम्र से पूर्व शारीरिक हिंसा झेली है। यह हिंसा करने वाला व्यक्ति पीडि़ता की वैवाहिक स्थिति के अनुसार, अलग-अलग हो सकता है।
इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि कभी न कभी शादीशुदा रही जिन लड़कियों ने 15 साल की उम्र के बाद से शारीरिक हिंसा झेली है, इन मामलों में उनके साथ हिंसा करने वाले मौजूदा या पूर्व साथी ही थे। इस रिपोर्ट में आगे कहा गया कि जिन लड़कियों की शादी नहीं हुई, उनके साथ शारीरिक हिंसा करने वालों में पारिवारिक सदस्य, दोस्त, जान पहचान के व्यक्ति और शिक्षक थे। इस तरह के मामलों में अजरबेजान, कंबोडिया, हैती, भारत, लाइबेरिया, साओ टोम एंड प्रिंसिप और तिमोर लेस्ते में आधी से अधिक अविवाहित लड़कियों ने जिस व्यक्ति पर इसका दोष लगाया गया, वह पीडिता की मां या सौतेली मां थी। भारत में 15 साल से 19 साल के उम्र समूह की 41 प्रतिशत लड़कियों ने 15 साल की उम्र से अपनी मां या सौतेली मां के हाथों शारीरिक हिंसा झेली है जबकि 18 प्रतिशत ने अपने पिता या सौतेले पिता के हाथों शारीरिक हिंसा झेली है। वर्ष 2012 के कम उम्र के मानव हत्या मामलों की संख्या के आधार पर भारत तीसरे स्थान पर है। वर्ष 2012 में 0 से 19 साल के उम्रसमूह के लगभग 9400 बच्चे और किशोर मारे गए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 15 साल से 19 साल के उम्र समूह की लगभग 41 से 60 प्रतिशत लड़कियां मानती हैं कि यदि पति या साथी कुछ स्थितियों में अपनी पत्नी या साथी को मारता-पीटता है तो यह सही है। 190 देशों से जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट में पाया गया कि दुनिया भर के लगभग दो तिहाई बच्चे या 2 साल से 14 साल के उम्रसमूह के लगभग एक अरब बच्चे उनकी देखभाल करने वाले लोगों के हाथों नियमित रूप से शारीरिक दंड पाते रहे हैं।
- Anup jyotsna yadav