इसिस की बढ़ती ताकत
17-Oct-2014 09:22 AM 1234955

आईएसआईएस, इसिस या आईसिस जो भी कहो, अब एक बढ़ती शैतानी ताकत के रूप में दुनिया को आतंकित कर रहा है। खास बात यह है, कि वह अपने मकसद को सफल बनाने के लिए अब रूस से सैन्य सहायता की अपेक्षा रखता है। रूस ने ही कभी ईरान को परमाणु तकनीक दी थी और बाद में पाकिस्तान तक भी यह तकनीक रूस और चीन की मदद से पहुंंची। ईरान एक अमेरिका विरोधी किंतु जिम्मेदार देश है। लेकिन पाकिस्तान के परमाणु बमों का कोई ठिकाना नहीं है, कि वे कब आतंकियों के हाथ लग जाएं। इस माहौल में कुछ बड़े अजीब और अनपेक्षित वाकये हो रहे हैं। जैसे अरब का इजराइल के निकट जाना और इजराइल की सहायता से ईरान को तबाह करने का ख्वाब देखना। इसी प्रकार इसिस का ईरान को तबाह करते हुए उस पूरे क्षेत्र में सुन्नी इस्लामिक स्टेट का निर्माण करने का सपना देखना। लेकिन इसमें सबसे प्रमुख और चिंतनीय तथ्य यह है, कि इसिस जैसा खतरनाक और बर्बर संगठन रूस की सहायता से ईरान को तबाह करते हुए अपने विस्तार के सपने देख रहा है। यह बड़ा अजीब सा समीकरण है। रूस भला ईरान के खिलाफ इसिस को मदद क्यों करेगा। लेकिन जहां धुंआ होता है, वहां आग अवश्य होती है। यदि इसिस ने यह योजना बनाई है, तो इसका कोई ठोस कारण अवश्य होगा।
रूस का इसिस के निकट होना सारी दुनिया के लिए खतरे की चेतावनी है। कहा यह जा रहा है, कि इसिस तेल के बदले रूस का समर्थन और हथियार प्राप्त करने की कोशिश में है। तेल सारे फसाद की जड़ में है। इसिस ने अवैध रूप से तेल बेचकर बेशुमार दौलत इक_ा कर ली है और अब वह इस दौलत के बल पर सिया, कुर्द जैसे मुस्लिमों और यजीदी, ईसाई जैसे समुदायों को निशाना बना रहा है। औरतों को गुलाम बनाकर उनके बाजार सजा दिए गए हैं। एक मध्ययुगीन बर्बर दृश्य दिखाई देता है। कभी चौराहे पर इसी तरह गुलाम बेचे जाते थे, आज इसिस उसी बर्बर युग में पहुंचते हुए चौराहों पर औरतों की बोली लगवा रहा है। जहां तक रूस और इसिस के निकट आने का प्रश्र है, यह अमेरिका परस्त मीडिया की अफवाह भी हो सकती है। इसलिए इसे इतना विश्वसनीय नहीं माना जा रहा। लेकिन इतना तय है कि तेल की तस्करी करके जो धन इसिस कमा रहा है, उससे बड़ी मात्रा में हथियार खरीदे जा सकते हैं। सीरिया सहित तमाम कमजोर देशों के हालात कुछ इस तरह हैं, कि यहां कभी भी इसिस का हमला हो सकता है। यदि इन देशों पर इसिस कब्जा जमाने में कामयाब हो जाता है, तो उसकी ताकत बहुत बढ़ जाएगी। ऐसी स्थिति में इस आतंकवादी संगठन से लडऩा कठिन हो जाएगा। इसिस ने हाल के दिनों में अपनी ताकत बहुत बढ़ाई है। अमेरिकी हमलों के बावजूद वह अपने संसाधन कायम रखने में कामयाब रहा है। अमेरिका जमीनी हमले नहीं कर रहा है। जब तक जमीन पर सेना नहीं उतारी जाएगी, इसिस को रोकना असंभव होगा। इसिस जैसे संगठनों के खिलाफ सारी दुनिया को मिलकर लडऩा होगा। खास बात यह है कि मुस्लिम देशों ने अभी तक इसिस के विरोध में कोई कदम नहीं उठाया है, इससे सारी दुनिया में यही संदेश जा रहा है, कि इसिस के अभियान को इन देशों का मौन समर्थन है। भारत जैसे मुस्लिम बहुल देशों ने भी इसिस को रोकने के लिए कोई ठोस नीति तैयार नहीं की है। भारत में आमतौर पर सरकारें किसी मुस्लिम देश में कार्रवाई करने से बचती हैं, क्योंकि उन्हें अपने वोट बैंक का खतरा दिखाई देने लगता है। लेकिन इसिस समूची मानवता के लिए खतरा है और यह खतरा बढ़ता जा रहा है। जिन मंसूबों को लेकर यह संगठन बढ़ रहा है, उससे सारी दुनिया में तनाव और आतंकवाद फैल सकता है। इसिस जैसे आतंकी संगठन खुद को इस्लाम का हिमायती बताते हुए सारी दुनिया के मुस्लिम युवक-युवतियों को गुमराह कर रहे हैं। यूरोप के कई देशों से और भारत से भी कई युवक तथा युवतियां इस संगठन की तरफ से लडऩे के लिए आ गए हैं। अमेरिका तथा इंग्लैंड ने इसिस के विरुद्ध कदम उस वक्त उठाया, जब इसिस के आतंकवादी सरेआम अमेरिकी और ब्रिटिश नागरिकों का सिर कलम करते हुए वीडियो जारी करने लगे। 
अमेरिकी पत्रकारों की हत्या के बाद सोशल मीडिया में हुई आलोचनाओं को देखते हुए, अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा एवं इंग्लैंड के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून तुरंत आक्रामक हुए और कहा कि इन आतंकी हरकतों से अमेरिका या इंग्लैंड को डराया नहीं जा सकता तथा साथ ही उन्होंने इसिस का सर्वनाश करने का संयुक्त ऐलान किया। ओबामा ने कहा कि जिस व्यवस्थित और क्रमबद्ध तरीके से अलकायदा का नाश किया गया, उसी तरह से इसिस का खात्मा भी किया जायेगा। नाटो देशों का शिखर सम्मलेन यूनाइटेड किंगडम के वेल्स में हुआ था। इस सम्मलेन में साठ से अधिक राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया था। इसिस का बढ़ता आतंक, एजेंडे में न होते हुए वह भी इस सम्मलेन का मुख्य मुद्दा बन गया। यूक्रेन का मुद्दा हाशिये में चला गया। इसिस के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही के निर्णय का अनुमोदन सर्वानुमति से हुआ। दस देशों के गठबंधन की घोषणा हुई, जिनमें अमेरिका और इंग्लैंड के अतिरिक्त जर्मनी, फ्रांस, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं। सितम्बर 11 के हमले के पश्चात ऐसा बड़ा गठबंधन पहली बार हुआ है। जाहिर है चुनौती गंभीर है, जिसे लम्बे समय से अनदेखा किया जा रहा था।  गठबंधन में किसी अरब देश का नाम नहीं है, किन्तु लगभग सारे देश इस समय गठबंधन के साथ सहयोग करने को तैयार हैं।
इन देशों का बदला हुआ रुख उन लोगों के लिए आश्चर्य की बात है जो इन देशों का इतिहास जानते हैं, क्योंकि यह स्मरणीय भी है और उल्लेखनीय भी है कि इन्ही देशों में से कुछ देश ऐसे थे, जिन्होंने सीरिया और इराक के विरुद्ध इसिस को खड़ा किया था। एक समय ऐसा था जब मध्यपूर्व के देश आतंक से सुरक्षित समझे जाते थे, क्योंकि आतंकियों का निशाना उस समय पश्चिमी देश होते थे। तब आतंकियों को चुपचाप पोषित करना भी उचित माना जाता था, क्योंकि तब इन देशों ने सोचा भी नहीं था कि ये संगठन एक दिन भस्मासुर की ही तरह पोषण करने वालों के विरुद्ध ही उठ खड़े होंगे। इन बेकाबू होते संगठनों पर नियंत्रण करने के लिए, अब एक-दूसरे से शत्रुता रखने वाले देश भी साथ आते दिखने लगे हैं। मध्यपूर्व में संबंधों के समीकरण में बदलाव आने लगे हैं और बड़ी सरगर्मी के साथ इस समस्या से लडऩे की कवायद चल रही है। सऊदी अरब तथा यू.ए.ई. में कई लोग पकड़े जा चुके हैं, जो प्रशासन के विरुद्ध षड्यंत्र में जुटे थे। ये ऐसे देश हैं, जहां कानून और व्यवस्था उच्च कोटि की है। इसिस और अलकायदा जैसे आतंकी संगठन धर्म की आड़ में अधर्म का अनुसरण कर रहे हैं। ये वे सारे कुकर्म कर रहे हैं, जो जानकारों के अनुसार इस्लाम के सिद्धांतों की उचित व्याख्या के विरुद्ध है।

 

-Dharmendra Kathuria

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