17-Oct-2014 09:07 AM
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पटना में विजयादशमी का पर्व भी भगदड़ों के दुर्दांत इतिहास में सम्मिलित हो गया। गांधी मैदान के छ: द्वारों में से दो संकरे से द्वार खुले रखकर हजारों लोगों को व्यवस्थित करने की निहायत निकृष्ट,

असरहीन और असफल व्यवस्था कुछ मासूम लोगों का काल बन गई। प्रदेश की पुलिस का बड़ा-सा अमला मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के काफिले को शहर के व्यस्त मार्गों से निकालने में व्यस्त रहा और लोग कुचलकर मारे जाते रहे। दो साल पहले भी इसी गांधी मैदान से कुछ दूर, छठ पूजा के समय भगदड़ में 29 लोगों की बलि चढ़ गई थी। नरेंद्र मोदी की सभा में भी यहीं विस्फोट हुआ था, लेकिन सबक नहीं लिया गया।
सबक लेना देश की फितरत में नहीं है। हर वर्ष ऐसे ही भगदड़ मचती है और सैकड़ों लोग मारे जाते हैं। कहीं पर रेल ट्रैक लांघ रहे कावडिय़ों के ऊपर से निकल जाती है, तो कहीं नदी के डेम से छोड़े गए पानी में लोग बह जाते हैं। लोगों की जान की यहां कोई कीमत नहीं है, वह तो कीड़े-मकोड़ों की तरह हैं। जान की कीमत तो केवल उन लोगों की है, जिनकी सुरक्षा में वह पुलिस भी तैनात कर दी जाती है जो भीड़ को संभालने के लिए लगाई जानी चाहिए। गांधी मैदान में भी उस दिन रावण-दहन देखने वे लाखों निर्दोष लोग आए थे और उनके लिए मात्र दो गेट खोले गए। बाकी तीन गेट वीआईपी के लिए खोले गए। पुलिस भी वीआईपी को निकालने में जुटी रही और लोग मरते रहे। न एंबुलेंस थी और न ही फायरब्रिगेड थी। साइकिल पर बिठाकर घायलों को पटना मेडिकल कॉलेज भेजा गया।
भगदड़ में अक्सर अफवाहें फैलती हैं। यहां भी अफवाह फैलाई गई कि हाई-टेंशन लाइन गिर गई है, इसलिए लोग बदहवास भागने लगे और मौत के मुंह में समा गए। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है, कि वहां एक खंभे से स्पार्किंग भी हो रही थी। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी उस कार्यक्रम को देखने पहुंचे थे, लेकिन वे रावण-दहन के बाद सुरक्षित निकल गए। अब मामले की जांच के आदेश दिए गए हैं। सरकार लीपा-पोती करने में जुट चुकी है, विपक्ष हमेशा की तरह सरकार की आलोचना कर रहा है। केंद्र के मंत्री जो बिहार से हैं, वे कुछ ज्यादा ही मुखर हैं। क्योंकि बिहार में चुनाव होने वाले हैं, जबकि उन मंत्रियों को शायद यह मालूम हो कि मध्यप्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी भगदड़ मचती है और मौतें होती हैं। मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश तो दिया है पर सवाल वही है कि दो साल पहले छठ के अवसर पर जो भगदड़ मची थी, उसमें कितने लोगों को सजा दी गई? सच तो यह है कि न किसी की जिम्मेदारी तय की गई न किसी को दंडित किया गया। इसका मतलब लोग खुद अपनी दुर्दशा के लिए दोषी हैं। फिर सरकार और प्रशासन किसलिए है और उसका क्या औचित्य है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री राहत कोष से मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपए और घायलों को 50-50 हजार रुपए मुआवजा देने का ऐलान किया है। उधर राज्य सरकार ने 3-3 लाख रुपए मुआवजे की घोषणा कर दी है। मुआवजे के बाद सब कुछ शांत हो जाने वाला है।
पहले भी हुए थे हादसे
3 अगस्त 2008 - हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में मौजूद नैना देवी मंदिर में श्रावण अष्टमी मेले के दौरान भू-स्खलन की अफवाह के बाद भीड़ बेकाबू हो गई, भगदड़ में 146 लोग मारे गए, 400 जख्मी हुए। मरने वालों में 40 से ज्यादा बच्चे थे।
30 सितंबर 2008 - राजस्थान के जोधपुर जिले के चामुंडा देवी मंदिर में नवरात्र मेले के दौरान एक दीवार के गिरने से भगदड़ मच गई थी। इस हादसे में 224 लोग मारे गए, 150 जख्मी हुए। मरने वालों में महिलाएं और बच्चों की तादाद सबसे ज्यादा थी।
21 दिसंबर 2009 - राजकोट के धोराजी मंदिर, छप्पन-भोग समारोह के दौरान प्रसाद लेने की होड़ में कुछ महिलाओं में झगड़ा हुआ और फिर भीड़ बेकाबू हो गई। इसमें 9 महिलाओं की मौत हो गई, 6 जख्मी हुईं।
4 मार्च 2010 - उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के संत कृपालु जी महाराज के मनगढ़ मंदिर में गरीबों को भोजन खिलाने के दौरान भगदड़ मच गयी। भगदड़ में लगभग 65 गरीबों की मौत हो गयी थी।
16 अक्टूबर, 2010 - बिहार में बांका के प्रसिद्ध तिलडीहा दुर्गामंदिर में भगदड़, 10 लोगों की मौत।
14 अप्रैल, 2010- शाही स्नान के मौके पर हरिद्वार में भगदड़, 8 की मौत।
4 मार्च, 2010 - प्रतापगढ़ के मनगढ़ स्थित कृपालु महाराज के आश्रम में भगदड़, 65 की मौत।
14 जनवरी, 2010 - पश्चिम बंगाल के गंगासागर मेले में भगदड़ से 7 लोगों की मौत।
21 दिसंबर, 2009 - राजकोट के धोराजी कस्बे में धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भगदड़, 8 महिलाओं की मौत।
3 अगस्त, 2008 - हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में भगदड़, 162 लोगों की मौत।
30 सितंबर, 2008 - जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़, 147 लोगों की मौत।
25 जनवरी, 2005 - महाराष्ट्र में मांधरा देवी मंदिर में भगदड़, 340 श्रद्धालुओं की मौत।
27 अगस्त, 2003 - महाराष्ट्र के नासिक कुंभ में भगदड़ से 39 श्रद्धालुओं की मौत।
कैसे हुआ हादसा
गांधी मैदान में हर साल की भांति इस बार भी विजयादशमी पर्व पर रावण-दहन का आयोजन किया गया था। मैदान में पांच लाख लोग मौजूद थे। रावण-दहन के बाद जैसे ही लोग गांधी मैदान से बाहर निकलने लगे, तभी बिजली का तार गिरने की अफवाह के चलते रामगुलाम चौराहा स्थित एग्जीबिशन रोड पर भगदड़ मच गई। पुलिस के हरकत में आने से पहले ही स्थिति बेकाबू हो चुकी थी। देखते ही देखते लोग एक-दूसरे पर गिरते चले गए। भगदड़ में मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल थे। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और राम विलास पासवान ने हादसे को दुर्भाग्यपूर्ण, दुखद के साथ ही शर्मनाक बताया है। दोनों नेताओं ने कहा कि गांधी मैदान में हर साल दशहरा मनाया जाता है। इसके बावजूद यहां सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए थे। मैदान में 5 लाख की भीड़ मौजूद थी। देर शाम तक कार्यक्रम के चलने के बावजूद प्रशासन ने रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की थी। सुरक्षा का सारा ध्यान मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के जाने वाले गेट पर था। ऐसे में अंधेरे और महज 10 फुट चौड़े गेट के कारण लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे।
-R.M.P. Singh