17-Oct-2014 09:04 AM
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अंतत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के मराठी माणुस का दिल जीत ही लिया। उनका एक वाक्य कि मेरे रहते महाराष्ट्र का विभाजन नहीं होगा, समूचे महाराष्ट्र में सूत्र वाक्य बन गया। महाराष्ट्र की

अखंडता को जिन शब्दों में मोदी ने पिरोया उसके बाद मराठी माणुस के मानस में जो तब्दीली आई है, उससे स्पष्ट झलक रहा है कि महाराष्ट्र में बीजेपी की लहर है और यह लहर कुछ इस सीमा तक है कि अन्य प्रतिद्वंद्वी पिछड़ते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि भाजपा के घोषणापत्र में विदर्भ क्यों है यह कहना कठिन है। कभी ये कयास लगाए गए थे कि महाराष्ट्र की राजनीति भी उत्तरप्रदेश की राजनीति की तरह चतुष्कोणीय हो सकती है, लेकिन अब यह तय हो चुका है कि बीजेपी आगामी समय में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत बनकर महाराष्ट्र में उभर सकती है। बीजेपी के नेताओं का आंकलन है कि लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने शिवसेना से कुछ ज्यादा ही समझौता कर लिया था, यदि वह अकेले सब सीटों पर लड़ती तो 30 के करीब सीटें जीत लेती। यह आंकलन अतिश्योक्तिपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह तय है कि इस वक्त भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत है और उसकी ताकत के आगे बाकी सबकी ताकत पीछे है।
बीजेपी की इस लोकप्रियता ने महाराष्ट्र के सारे समीकरण बदल दिए हैं। बाला साहब ठाकरे के देहावसान के बाद शिवसेना की लोकप्रियता में पर्याप्त गिरावट देखने को मिली और इसका लाभ भाजपा को हुआ। रही-सही कसर नरेंद्र मोदी ने पूरी कर दी, जिन्होंने किसी भी चुनावी सभा में शिवसेना पर निशाना नहीं साधा बल्कि हर जगह बाला साहब ठाकरे का स्मरण अवश्य किया। विश्लेषकों का कहना है कि दूसरे दलों के आदर्शों और ब्रांड नामों को किस तरह अपने पक्ष में प्रयुक्त किया जाए, यह मोदी से बेहतर कोई नहीं जानता। गुजरात मेंं मोदी ने वल्लभ भाई पटेल का नाम चलाया और कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को पटेल की राजनीतिक विरासत का वास्तविक हकदार बताते हुए कांग्रेस को मीलों पीछे छोड़ दिया। समूचे भारत में महात्मा गांधी की ब्रांडिंग जिस तरह मोदी ने की और उससे चुनावी फायदा उठाने में वे कामयाब रहे, वह भी एक अभूतपूर्व कदम कहा जा सकता है। लेकिन मोदी यहीं नहीं रुके उन्होंने महाराष्ट्र में भी बिखर चुकी शिवसेना के वोट भाजपा के पक्ष में बड़ी चतुराई से कर लिए हैं बिना शिवसेना की आलोचना किए किंतु बाला साहब ठाकरे का स्मरण करके। मोदी मनोवैज्ञानिक लाभ लेने में माहिर हैं। महाराष्ट्र में उनकी दो-तीन चुनावी सभाओं के बाद ही माहौल बदल गया। कांग्रेस और एनसीपी तो बहुत पिछड़ गए हैं। शिवसेना का पिछडऩा इस बात का संकेत है कि संकीर्ण क्षेत्रीय राजनीति से महाराष्ट्र की जनता ऊब चुकी है और संभव है इस चुनाव में वह क्षेत्रीय क्षत्रपों को आईना भी दिखा दे। ऐसी सूरत में मोदी को महाराष्ट्र में एक ऐसा नेतृत्व स्थापित करना होगा जो स्थानीय आकांक्षाओं को बढ़-चढ़ कर पूरा करे। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के रूप में मराठियों की पहली पसंद हैं लेकिन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को भी पसंद किया जाता है क्योंकि चव्हाण ने मुंबई के विकास के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए। राज ठाकरे भी मुख्यमंत्री के रूप में कुछ लोगों के पसंदीदा हैं किंतु भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जिसे इन चुनावों में प्रस्तुत किया जा सके। नितिन गडकरी को केंद्र का नेता समझा जाता है और स्थानीय नेताओं में फिलहाल देवेन्द्र फडणवीस आगे चल रहे हैं। यही भाजपा की एकमात्र कमजोरी है। शिवसेना से तालमेल के चलते भाजपा में कोई भी बड़ा नेता उभर नहीं पाया। शीर्ष के नेताओं में शिवसेना के ही नेता रहे जो ठाकरे परिवार की कठपुतली थे। भाजपा के पास गोपीनाथ मुंडे के रूप में एक बहुमूल्य चेहरा था, लेकिन उनका सड़क दुर्घटना में दुखद निधन हो गया। इसके बाद नेतृत्व का संकट अभी भी बना हुआ है।
नितिन गडकरी नरेंद्र मोदी से मधुर संबंधों के चलते महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के बतौर प्रोजेक्ट किए जा सकते हंै, लेकिन स्थानीय नेतृत्व उन्हें कितना बर्दाश्त करेगा कहना कठिन होगा। वैसे भी चुनाव बाद यदि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती है तो बहुमत का आंकड़ा जुटाने के लिए शिवसेना को अवश्य साझेदार बनाया जाएगा और शिवसेना किसी भी हालत में गडकरी को बर्दाश्त नहीं करेगी। क्योंकि शिवसेना अभी भी गठबंधन टूटने के लिए गडकरी को दोषी मानती है। हालांकि सच यह भी है कि राज ठाकरे नितिन गडकरी के बहुत बड़े हिमायती हैं। ऐसे में एक समीकरण यह भी हो सकता है कि 25-30 सीटों से पिछडऩे के बाद निर्दलीयों, छोटे दलों और राज ठाकरे को साथ लिया जाए। लेकिन मोदी चाहते हैं कि चुनाव के बाद गठबंधन की आवश्यकता पड़े तो सबसे पहले सबसे विश्वसनीय और पुराने साथी शिवसेना को ही साथ लिया जाना चाहिए क्योंकि वह केंद्र में भी साझीदार है। उधर एनसीपी तथा कांग्रेस फिलहाल किसी भी स्थिति में जीत के आंकड़े के निकट नहीं है। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद से ही एनसीपी और कांगे्रस के बीच तल्खियां शुरू हो गई थीं। गठबंधन टूटना ही था क्योंकि दोनों दल सरकार की असफलता का कुयश साझा रूप से उठाने को तैयार नहीं थे। लेकिन शरद पवार ने अनुमान नहीं लगाया था कि गठबंधन टूटने के बाद उनके दल की स्थिति इतनी दयनीय हो जाएगी। कल तक कांग्रेस के खिलाफ मुखर रहे पवार ने अब अपने सुर नीचे किए हैं और वे प्राय: हर चुनावी सभा में कांगे्रस से सुलह का संकेत देते नजर आते हंै। हाल ही में उन्होंने कहा था कि आवश्यकता पडऩे पर महाराष्ट्र में धर्मनिरपेक्ष दल मिलकर सरकार बनाएंगे। लेकिन उनके इस बयान को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली क्योंकि अब मुद्दा मोदी के आने से विकास का हो गया है। जहां तक हिंदुत्व का प्रश्र है भाजपा को हिंदुत्व का स्वाभाविक पैरोकार माना जाता है। इसलिए भाजपा किसी भी स्थिति में फायदे में ही रहेगी। उसे कट्टर हिंदू वोटों के साथ-साथ कट्टर मराठी और विकास परस्त मतदाताओंं के वोट मिलेंगे। यह समीकरण आगामी समय की राजनीति की दृष्टि से बहुत लाभदायी सिद्ध होगा। शिवसेना ने गठबंधन के समय कुछ नादानियां कीं, जिनका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा।
आज शिवसेना के भीतर ही एक वर्ग कह रहा है कि महज 10-5 सीटों के पीछे गठबंधन तोडऩा भारी भूल थी। शिवसेना ने इसके बाद जिस अंदाज में भाजपा को कोसा और उसे पितृ-पक्ष के कौवे से लेकर चूहा तक कहा उससे शिवसेना को भारी नुकसान हुआ। जबकि भाजपा के किसी भी नेता ने शिवसेना पर कोई फब्तियां नहीं कसीं। इस शालीनता का फायदा चुनावों में मिलना तय है क्योंकि भाजपा की रणनीति शिवसेना के उन मतों को प्राप्त करने की है, जो भाजपा के प्रति नरम दिल हैं। अन्य दलों से भी मोदी लहर के चलते इसी तरह वोट आ सकते हैं। शिवसेना तो नरेंद्र मोदी की रैलियों से इस कदर बौखला गई है कि उसने पार्टी के मुखपत्र सामना में लिखा है- मोदी की जरूरत दिल्ली को है, जबकि राज्य के बीजेपी नेताओं ने उन्हें यहां अटकाकर रखा है। ये राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है, लेकिन यहां सच बोलेगा कौन? महाराष्ट्र की राजनीति बाद में भी की जा सकती है। लेकिन मोदीजी, अब पाकिस्तान की खुराफातों को बर्दाश्त मत कीजिए। हम सिर्फ अपनी ही लाशें गिनने बैठे हैं क्या? उन्होंने हमारे पांच मारे, उनके पचास मारकर उनकी गर्दन शिवराय के महाराष्ट्र में लेकर आओ। यही नहीं, शिवसेना ने मोदी पर तंज कसते हुए लिखा है- 56 इंच का सीना देश को बचा सकता है या नहीं, यह चर्चा का विषय है। लेकिन आपके पास अपने देश की रक्षा करने की इच्छाशक्ति है तो कोई भी देश की रक्षा कर सकता है। बहरहाल शिवसेना ही नहीं, कांग्रेस और एनसीपी भी मोदी के चुनाव प्रचार को निशाने पर ले रहे हैं। विपक्ष की बातों पर बीजेपी का कहना है कि मोदी के चुनाव प्रचार से विपक्षी पार्टियां घबराई हुई हैं। बीजेपी के मुताबिक इन पार्टियों के पास जनता के सामने बताने के लिए कुछ नहीं है, इसीलिए वो मोदी को निशाना बनाने में जुटी हैं।
ओपिनियन पोलों में बीजेपी बनाएगी सरकार
महाराष्ट्र में इंडिया टुडे ग्रुपÓ के लिए सिसरो के सर्वे में बीजेपी को बहुमत के आस-पास दिखाया जा रहा है जबकि द वीकÓ के लिए हंसा रिसर्च के सर्वे में बीजेपी को बहुमत से ज्यादा सीटें दी गई हैं। इंडिया टुडे ग्रुप के सर्वे में बीजेपी को 133 सीटें मिल रही हैं वहीं शिवसेना को 57 सीटें, कांग्रेस को 30 सीटें और एनसीपी को 33 सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं। वहीं द वीकÓ के सर्वे में बीजेपी को 154 सीटें, शिवसेना को 47 सीटें, कांग्रेस को 25 सीटें, एनसीपी को 17 सीटें और एमएनएस को दस सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं। उधर, सटोरियों की भी पहली पसंद बीजेपी ही है। सटोरियों के मुताबिक, राज्य में बीजेपी अकेले सरकार बना लेगी। शिवसेना-मनसे के साथ आने की अटकलों के बीच भाजपा के लिए अच्छी खबर सर्वे से आई है। यह सर्वे द वीकÓ और हंसा रिसर्चÓ ने किया है। 15 को होने वाले चुनावों में भाजपा को महाराष्ट्र की 288 सदस्यों वाली विधानसभा में 154 सीटें मिलने का अनुमान जताया है। शिवसेना 47 सीटों के साथ दूसरी पार्टी रहेगी। कांग्रेस को 25, मनसे को 10, एनसीपी को 17 और निर्दलीयों को 20 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है।
-Ritendra Mathur