17-Oct-2014 08:56 AM
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अभी तक यह माना जाता रहा है कि सांसदों को वोट देकर दिल्ली भेजा जाता है और वे वहां संसद में बैठकर देश की बातें करते हैं। जब बात गांवों की होती है तो यह समझ लिया जाता है कि गांवों का

विकास करना या गांवों के बारे में सोचना तो पंचायतों, स्थानीय निकायों और प्रदेश की सरकारों का काम है, लेकिन पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने गांवों को आदर्श ग्राम बनाने की बात की है। रोचक यह है कि आदर्श ग्राम बनाने का दायित्व उन्हीं सांसदों को दिया गया है जिनके बारे में उनके संसदीय क्षेत्र में अक्सर यह कहा जाता है कि तुम तो ठहरे परदेशी साथ क्या निभाओगे। दिल्ली की सत्ता के साकेत में बैठने वाले अक्सर गांवों से और स्थानीय समस्याओं से कट जाते हैं। थोड़ा बहुत चुनाव के समय करना होता है, लेकिन सामान्य तौर पर कुछ भी लक्ष्य तय नहीं किए जाते। सांसद निधि का दुरुपयोग आम बात है। जब समस्या होती है तो जनता भी पहले स्थानीय प्रतिनिधियों को पकड़ती है। सांसदों तक तो बात बाद में पहुंचती है।
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों को उनके क्षेत्र के गांवों से जोडऩे की अनूठी पहल की है। आदर्श ग्राम योजना लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन के अवसर पर लांच करने का मकसद केवल यही था कि हर ग्रामीण यह महसूस कर सके कि उसके विषय में दिल्ली में बैठने वाले लोग भी सोचते हैं। जाहिर है इस योजना को अमली जामा केंद्र की एजेंसियां ही पहनाएंगी। इसलिए केंद्र को ऐसी योजनाएं बनानी होंगी जिससे मोदी की यह पहल मूर्त रूप में दिख सके, लेकिन इसकी लांचिंग के अवसर पर जो माहौल दिखा उसे देखकर तो यह कहा जा सकता है कि सांसद अपने क्षेत्र के गांवों को लेकर उतने गंभीर नहींं हैं। भाजपा के अधिकांश सांसद विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में उपस्थित थे, लेकिन कांग्रेस के दो सांसदों को छोड़कर शिवसेना सहित कई दलों के सांसद नहीं आए थे।
नरेंद्र मोदी सांसदों की इस बेरुखी से खिन्न दिखे। वे चाहते थे कि यह अवसर राजनीतिक न होकर गैर राजनीतिक पहल की तरह माना जाए। मोदी इस कार्यक्रम को दलगत लाभ-हानि से ऊपर रखना चाहते थे, लेकिन लोकतंत्र में राजनीति हर जगह देखी जाती है। हरियाणा, महाराष्ट्र के चुनाव हों और कोई ऐसा कदम उठाया जाए तो राजनीति होना स्वाभाविक है। बहरहाल गांवों की दशा सुधारने का यह अच्छा अवसर है। मोदी का कहना था कि 800 सांसद लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर हैं। यदि वे 3 आदर्श ग्राम बनाते हैं महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक लगभग 2500 आदर्श ग्राम बन सकते हैं। लेकिन सवाल वही है कि सांसद इस चुनौती को किस तरह से लेंगे। भाजपा के लोकसभा और राज्यसभा सांसद संभवत: ज्यादा गंभीरता से काम करें, लेकिन बाकी दलों के सांसदों का रवैया क्या होगा कहना मुश्किल है। हालांकि विज्ञान भवन में सभी राजनीतिक दलों ने अपने सुझाव दिए हैं और उनके सुझावों को तवज्जो देने का आश्वासन सरकार ने दिया है, लेकिन छुआछूत की राजनीति के इस दौर में सभी सांसद इस मिशन में रचनात्मक सहयोग देंगे इस बात में संदेह ही है। मोदी ने यह भी कहा है कि 2019 तक यदि 2500 मॉडल ग्राम तैयार हो जाएं तो यह एक सार्थक पहल होगी। उन्होंने सांसदों से अनुरोध किया कि वे अपने ससुराल या अपने गृह ग्राम को आदर्श ग्राम बनाने से बचे। उन्हें पहली प्राथमिकता न दें। आदर्श ग्राम की परिभाषा क्या रहेगी।
देश के गांवों में कई तरह की चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती है गांवों की अधोसंरचना की। देश के गांव बेतरतीबी से बसे हुए हैं। गांवों में जल-मल निकासी की कोई परिकल्पना नहीं होती। यह माना जाता है कि मल त्याग करने के लिए जंगल या दूर खेत उत्तम है। इसलिए प्राय: सभी गांवों में नालियां गंदगी से पटी मिलती हैं और पानी सड़ता रहता है। गांवों की स्वच्छता एक बड़ी चुनौती है। आदर्श गांवों में जल भरावन की समस्या नहीं होनी चाहिए। सभी घरों में शौचालय होना चाहिए। जल-मल निकासी की अंडर ग्राउंड व्यवस्था होनी चाहिए। पक्की सड़कें, प्रकाश तथा पेयजल रहना चाहिए। गांवों का वातावरण चाहे वह सामाजिक हो या राजनीतिक या प्राकृतिक स्वच्छ रहना चाहिए। शिक्षा का स्तर बढ़ा होना चाहिए और लैंगिक समानता सामान्य रूप से स्थापित होना चाहिए। जिस गांव में अपराध न हो या कम हो, महिलाओं को सताया न जाए, चोरी, डकैती की घटनाएं न घटे, स्वास्थ्य सेवाएं सभी तक पहुंचे, परिवार नियोजन में सभी का विश्वास हो, बालिका शिक्षा को अनिवार्य समझा जाए और गांव के सभी लोगों को रोजगार अथवा स्वरोजगार प्राप्त हो, पलायन बिल्कुल न हो वही गांव हर दृष्टि से आदर्श ग्राम बनने की काबिलियत रखेगा। देखना यह है कि सांसद महोदय गांवों को इतना काबिल बना पाएंगे अथवा नहीं। यदि उन्होंने काबिलियत बनाए रखी तो आदर्श ग्राम बनने में अवश्य ही मदद मिलेगी। वैसे तो देश के 99 प्रतिशत गांव बुरे हालात में हैं। उनमें से कुछ तो बिजली, पानी और सड़क की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। बहुत से ऐसे भी हैं जो साल के छह महीने बाकी दुनिया से कटे रहते हैं और बहुत से गांवों में निरक्षरता, बेरोजगारी तथा स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हैं, किंतु एक पहल हुई है तो उसका स्वागत करना ही होगा।
-Kumar Subodh