17-Oct-2014 08:59 AM
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सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का नाम आए बगैर कोई चुनाव पूरा नहीं होता। इस बार भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। हरियाणा में चुनाव से कुछ दिन पहले रॉबर्ट वाड्रा की एक जमीन के सौदे को प्रदेश

सरकार ने हरी झंडी दे दी, जिसे अब मुद्दा बनाया जा रहा है। भाजपा का कहना है कि हुड्डा सरकार ने इस जमीन के सौदे को जल्दबाजी में हरी झंडी दिखाई है। उधर इसकी शिकायत चुनाव आयोग में भी की गई, लेकिन आयोग ने इस प्रकरण को कार्रवाई के काबिल नहीं समझा और अपील खारिज कर दी। अब नए सिरे से यह विवाद उठाया जा रहा है। नरेंद्र मोदी ने तो चुनावी सभाओं में इसे एक अच्छा खासा मुद्दा भी बनाया और उन्होंने चुनाव आयोग से इस मामले में संज्ञान लेने की बात भी कही, जिसके चलते डीएलएफ के शेयरों में 5.8 प्रतिशत की गिरावट आ गई। यानी जितने का सौदा नहीं है उतने का नुकसान हो गया। गिरावट बढ़ी तो यह सौदा डीएलएफ को बहुत महंगा पड़ेगा। वैसे भी हरियाणा में चुनाव ओमप्रकाश चौटाला की गिरफ्तारी से कुछ ज्यादा ही रोचक हो गया है। सीबीआई का कहना है कि चौटाला बीमारी के आधार पर जमानत लेकर चुनाव प्रचार करने नहीं जा सकते। इसी कारण अब भाजपा को लाभ मिलने की संभावना जताई जा रही है। वैसे पूर्ण बहुमत में आते कोई भी नहीं दिख रहा।
कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि नई सरकार आने पर वाड्रा की जमीन का मामला फिर से सुर्खियों में आ सकता है। यदि कांग्रेस सत्ता में वापस नहीं लौटी तो वाड्रा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ये मामला दरअसल 2008 का है। प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट्स हॉस्पिटैलिटिज ने 2008 में गुडग़ांव की शिकोहपुर तहसील में मौजूद खसरा नंबर 730 की 5 बीघा 13 बिसवा जमीन (साढ़े तीन एकड़) ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से फर्जी कागजात के आधार पर खरीदी थी। जमीन का सौदा साढ़े सात करोड़ में दिखाया गया। रजिस्ट्री में कॉरपोरेशन बैंक के चेक से भुगतान दिखाया गया। इसके बाद वाड्रा ने तत्कालीन हरियाणा सरकार से जमीन पर कॉलोनी बनाने का लाइसैंस लेकर 2008 में ही उसे 58 करोड़ रुपए में डीएलएफ को बेच दिया। चकबंदी महानिदेशक पद पर रहते हुए अशोक खेमका की 21 मई 2013 को दी रिपोर्ट के मुताबिक जांच में पता चला कि जमीन खरीदने के लिए वाड्रा ने साढ़े 7 करोड़ रुपए की कोई पेमैंट की ही नहीं थी। रिपोर्ट में आरोप है कि वाड्रा ने 50 करोड़ रुपए लेकर डीएलएफ को सस्ते में लाइसैंस शुदा जमीन दिलवाने के लिए मध्यस्थ की भूमिका अदा की। अशोक खेमका के वकील अनुपम गुप्ता ने कहा कि ये सब फर्जीवाड़ा था। डीएलएफ को कॉलोनी बनाने के लिए लाइसैंस चाहिए था, इसके लिए उसको कई सौ करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते लेकिन वाड्रा ने बिचौलिए की भूमिका निभा कर यह काम सिर्फ 50 करोड़ रुपए में करवा दिया।
इधर हरियाणा सरकार ने इस डील पर एक जांच कमेटी बना दी थी, लेकिन खेमका को इस कमेटी पर भरोसा नहीं था। उनकी दलील थी, कि जांच कमेटी के तीन अफसरों में एडीशनल प्रिंसिपल सक्रेटरी कृष्ण मोहन और एस.एस. जालान हैं। खेमका के मुताबिक वाड्रा जमीन सौदे के वक्त कृष्ण मोहन खुद राजस्व विभाग के प्रमुख थे, जबकि जालान वाड्रा की कंपनी को कॉलोनी काटने का लाइसैंस देने वाले टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के प्रमुख थे। वहीं इस मामले में कई बार सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम भी उठ चुका है कि राबर्ट सोनिया गांधी के दामाद हैं इसलिए वे कुछ नहीं बोले। वहीं हुड्डा ने इस मामले में अपनी भूमिका होने से इंकार किया है।
फिर जेल गए चौटाला
वयोवृद्ध इनेलो नेता ओमप्रकाश चौटाला को न्यायालय से सख्ती दिखाते हुए तिहाड़ जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया। चौटाला जमानत पर थे और जमानत उन्हें स्वास्थ्य कारणों से दी गई थी, लेकिन धुआंधार प्रचार कर रहे थे। सीबीआई की नजर से वे बच नहीं सके। जैसे कि रस्म है सीबीआई को केंद्र की कठपुतली बताते हुए चौटाला ने प्रधानमंत्री को भरपूर कोसा और अंत में आत्मसपर्मण कर दिया। अब सवाल यह है कि चौटाला को सहानुभूति का लाभ मिलेगा या फिर यहां भी भाजपा हाथ मार ले जाएगी। वैसे चुनाव आयोग द्वारा वाड्रा को क्लीनचिट दिए जाने के बाद भाजपा नए मुद्दों की तलाश में है।
-Sanjay Shukla