हरियाणा में तलवारें तनीं
03-Oct-2014 11:07 AM 1234771

नरेंद्र मोदी ने कोल्डड्रिंक में जूस मिलाने का फार्मूला तो दे दिया लेकिन हरियाणा में भाजपा और अन्य गठबंधनों के जूस का मिक्चर अभी पूरी तरह विश्वसनीय और पचाने योग्य नहीं बना है। महाराष्ट्र में

जिस तरह गठबंधन बचाने के लिए भाजपा ने भरसक कोशिश की, वैसी कोशिश हरियाणा में नहीं की गई। हरियाणा में मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा के पास कोई चेहरा भी नहीं है। पहले सुषमा स्वराज को लाने की बात चल रही थी, लेकिन सुषमा स्वराज ने साफ मना कर दिया कि वह किसी भी स्थिति में राज्य की राजनीति में नहीं लौटेंगी। वैसे भी भारत जैसे विशाल देश के विदेश मंत्री का पद त्याग कर, भला कौन हरियाणा जैसे छोटे-से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहेगा। इसलिए गठबंधन को लेकर भाजपा की चिंता गलत नहीं है। कुलदीप विश्रोई के साथ भी भाजपा का रिश्ता उतना मजबूत नहीं रहा। उधर भाजपा ने जब राज्य में अपनी पहली सूची जारी की थी तो प्रदेश पार्टी अध्यक्ष रामविलास शर्मा के खिलाफ प्रदर्शन भी हो गया था। आलम यह है कि राज्य में वर्तमान में भाजपा के पास कुल 4 विधायक हैं और 90 सदस्यीय विधानसभा में फिलहाल उसकी ताकत न के बराबर है। लेकिन नरेंद्र मोदी की लहर के कारण कई उद्योगपति भी मैदान में हैं पर स्थानीय नेता उनका पत्ता कटवाने में लगे हुए हैं इस कारण भारी खींचतान का वातावरण है। बताया जाता है कि जी चैनल के मालिक सुभाष चंद्रा को हिसार से टिकट मिलना तय माना जा रहा था पर उनकी जगह कमल गुप्ता को उम्मीदवार बना दिया गया। चर्चा यह है कि भाजपा नेता व उद्योगपति नवीन जिंदल के भाजपा में संबंधों के कारण ऐसा हुआ है। नवीन जिंदल व सुभाष चंद्रा में छत्तीस का आंकड़ा है। उनकी मां व हरियाणा सरकार में मंत्री सावित्री जिंदल हिसार से विधायक हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के जरिए वे उनके खिलाफ हल्का उम्मीदवार खड़ा करवाने में कामयाब हो गए हैं। उधर हरियाणा जनहित कांग्रेस अगस्त में ही भाजपा से अलग होते हुए कांगे्रस से जुड़ चुकी है। हरियाणा जनहित कांगे्रस के अध्यक्ष दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के छोटे सुपुत्र कुलदीप विश्रोई हैं। लोकसभा चुनाव में विश्रोई की पार्टी को 2 सीटें दी गई थीं और दोनों ही से उसकी हार हुई थी। इसी कारण यह गठबंधन तो टूटने वाला पहले से ही था, लेकिन अब मुश्किलें दूसरी भी हैं। कांग्रेस के मुख्यमंत्री हुड्डा ने पिछले वर्ष जब रैली की थी तो उसे भारी सफलता मिली थी। लेकिन उसके बाद कई बड़े नेता जो हुड्डा के खिलाफ थे टूटकर भाजपा से जुड़ गए और इन्हीं में से तकरीबन 21 नेताओं को भाजपा ने टिकिट दे दिया। भाजपा को लगा कि इन्हीं नेताओं की बदौलत वह मैदान मार लेगी। लेकिन अब वही उसकी बड़ी मुसीबत बनने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, चौटाला के इनेलो से अकाली दल के समझौते के कारण पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल वहां चुनाव प्रचार करने वाले हैं। भाजपा इससे परेशान हैं। इसके अलावा पार्टी के उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने के बाद नए-पुराने सभी नेता नाराज हो उठे हैं। प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए चौधरी बीरेंद्र सिंह और राव इंद्रजीत सिंह को इस सूची के आने के बाद दिन में तारे दिखने लगेÓ हैं। सूची आने से पहले तक बीरेंद्र सिंह तीस से अधिक सीटों की मांग कर रहे थे, किंतु अभी तक वह केवल अपनी पत्नी को ही टिकट दिला पाए हैं, जबकि राव इंद्रजीत अपनी बेटी तक को टिकट दिलाने में असफल रहे हैं। इतना ही नहीं, लगभग एक चौथाई बाहरी लोगों को टिकट देने से पार्टी के पुराने लोग भी बेहद नाराज हैं। वैसे पार्टी ने लोस चुनाव में हजकां के साथ गैर जाट वोटों पर ध्यान केंद्रित किया था। किंतु गठबंधन टूटने के बाद संभवत: उसने अपनी रणनीति बदल ली है भाजपा ने अब जाट वोटों पर अपना फोकस बढ़ा दिया है। इसीलिए पहली सूची में जाट समुदाय के पंद्रह उम्मीदवार थे। देखना है कि पार्टी आलाकमान टिकट वितरण को लेकर उपजे विरोध को कैसे कमतर करता है। कुछ ऐसा ही हाल इंडियन नेशनल लोकदल का भी है। टिकट वितरण के बाद इस पार्टी में भी भगदड़ है। लोस चुनाव में दस साल बाद दो सीट जीतने से कार्यकर्ता उत्साहित तो हैं, लेकिन पार्टी सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला का जेल में होना पार्टी की तैयारियों और चुनाव अभियान पर बड़ा असर डाल रहा है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तीसरी बार सत्ता में वापसी करने की जद्दोजहद में हैं। यद्यपि पार्टी के अंदर ही उनका भारी विरोध है जो सतह पर आ चुका है। आम चुनाव के पहले और बाद भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग लगातार उठती रही है। हुड्डा विरोधी कई बड़े नेता विरोध स्वरूप पहले ही कांग्रेस से जा चुके हैं, किंतु केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर भरोसा जताया है। अब विपरीत परिस्थितियों में वह अपने नेतृत्व का भरोसा कैसे कायम रख पाते हैं, यह बड़ी चुनौती है।

 

-Sanjay Shukla

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