17-Oct-2014 08:49 AM
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दो अक्टूबर आया और बीत गया। 2 अक्टूबर को जिस उत्सवी तरीके से मनाया गया उस उत्सव का कचरा अवश्य देखा जा सकता है। जगह-जगह पानी की बोतलें और पाऊच फैले हुए हैं। जहां-जहां

रस्मी और उत्सवी तौर पर यह महोत्सव मनाया गया, वहां अब कचरे के अंबार लगे हुए हैं। भोपाल शहर की ही बात करें तो जहां जाएं वहीं सड़ांध है। चाहे आप होशंगाबाद रोड तरफ अंतर्राज्यीय बस टर्मिनल से हबीबगंज स्टेशन तक जाएं तो सांची दूध डेरी की सड़ांध आपकी नाक और मस्तिष्क को परेशान करेगी। आपको अकबकाई भी आ सकती है। उसके अपोजिट थोड़ा सुभाष नगर फाटक से जिंसी तरफ चलें उससे भी अधिक और तीखी बदबू आपको नाक पर रुमाल रखने के लिए विवश करेगी, आपका दम घुटना शुरू हो जाएगा जैसे ही आप भारत टॉकीज तरफ बढेंग़े थोड़ी देर के लिए कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन उससे आगे भारत टॉकीज से पहले जहां लकड़ी के टॉल हैं जिसे पातरा पुल कहा जाता है, वहां की बजबजाती बदबू आपकी शिराओं की कोशिकाओं को भी मृतप्राय कर देगी। उससे आगे चलें तो रॉयल मार्केट तक हर कदम पर यह बदबू पीछा नहीं छोड़ती, यह तो शहर के बीच से गुजरने वाली एक मुख्य सड़क का लेखा-जोखा है। इस सड़क के आसपास जिस भी मोहल्ले में घुस जाएं बदबू और गंदगी आपका स्वागत करेगी। पातरा पुल से थोड़े पहले बरखेड़ी क्रॉसिंग से निकलकर ऐशबाग में स्टेडियम के आसपास बदबू का सैलाब आपका सामना करेगा, जिस स्टेडियम में अंतर्राष्ट्रीय मैच होते हैं वहां के आसपास की गंदगी को देखकर आपको उल्टी भी आ सकती है, लेकिन यहां के बाशिंदों के लिए यह आम
बात है। भोपाल शहर की अधिकांश कॉलोनियों में बदबू, कचरा, सड़ांध और गंदगी का आलम मिल जाएगा।
इस शहर के कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां रहने के लिए आपको विदेह बनना पड़ेगा क्योंकि जिसे अपनी देह की सुध हो, वह तो यहां रह ही नहीं सकता और समस्याएं तो दिन-दोगुनी रात-चौगुनी रफ्तार से बढ़ ही रही हैं। नर्मदा पाइप लाइन के कारण पूरा शहर खोद दिया गया है। लेकिन विडंबना यह है कि इस पाइप लाइन में जो पाइप डाले जा रहे हैं, वे निहायत घटिया मटेरियल के हैं। इन पाइपों के बहाने ठेकेदारों, जिम्मेदार अधिकारियों ने अपनी आने वाली सात पुश्तों का इंतजाम कर लिया है। क्योंकि पाइप टूटते रहेंगे और मैंटनेंस निकलता रहेगा और इस बहाने भ्रष्ट अफसरों, नेताओं तथा ठेकेदारों की जेबें गरम रहेंगी। विश्वास न हो तो उन कॉलोनियों में जाकर देख लीजिए जहां नर्मदा पाईपलाइन बिछी है। अकेले राजीव नगर-अयोध्या बाइपास में पिछले चालीस दिन के भीतर 20 बार नर्मदा पाइप लाइन फूटी है। जो पाइप साल-डेढ़ साल में कभी कभार लीक किया करते थे, वे हर हफ्ते फूट जाते हैं। गैलनों से पानी सड़कों पर बह रहा है और सड़कें खुदी हुई हैं इसलिए कीचड़ का अंबार लग चुका है। खुदे हुए गढ्ढों में कई दुर्घटनाएं घट चुकी हैं। प्रदेश की राजधानी भोपाल का यह हाल है तो बाकी शहरों का हाल क्या होगा, समझा जा सकता है। पुराना नया-भोपाल कचरे के डब्बे में तब्दील है। नगर-निगम का कोई भी अधिकारी यह नहीं कह सकता कि इतने बड़े शहर में कोई एक कॉलोनी ऐसी है जो साफ है। प्राइवेट बिल्डरों ने अवश्य कुछ साफ-सफाई का इंतजाम कर रखा है, लेकिन उनकी कॉलोनी के बाहर वही गंदगी का आलम है। कुल मिलाकर सफाई अभियान बुरी तरह फ्लॉप रहा है। वैसे भी सफाई करना एक दिन की रस्म अदायगी नहीं हो सकती। यह वर्ष भर चलने वाली प्रक्रिया है क्योंकि कचरा आए दिन निकलता रहता है। नगर-निगम सहित तमाम विभागों के पास जो सफाई का अमला उपलब्ध है, उसमें से लगभग 50 प्रतिशत तो अधिकारियों, मंत्रियों, नेताओं के बंगलों और घरों की साफ-सफाई में तथा निजी ड्यूटी में तैनात है, जो कि सबेरे-सबेरे एक-दो घंटे काम करके बाकी समय मक्खी मारता रहता है। बचा हुआ अमला सारे शहर को साफ रखने की जिम्मेदारी संभालता है, लेकिन इस अमले के पास उतने संसाधन और लोग नहीं हैं।
गिने-चुने लोंगों से काम निकालना नगर-निगम की विवशता है उस पर नेता भाषण बाजी करते हैं कि सफाई व्यक्तिगत चरित्र है, व्यक्तिगत विशेषता है, हमें राष्ट्र चरित्र बनाना चाहिए आदि-इत्यादि। किंतु कोई व्यक्ति घर की सफाई कर सकता है, अपने आस-पास सफाई कर सकता है और सार्वजनिक स्थलों पर कचरा यथास्थान फेंक सकता है लेकिन वह सारे शहर को तो साफ नहीं रख सकता। मिसाल के तौर पर यदि किसी कॉलोनी में कचरे के डब्बे की नियमित सफाई नहीं हो पा रही है, सीवेज समय पर नहीं सुधर रहे हैं, नालियां नियमित साफ नहीं हो रहीं हैं तो यह जिम्मेदारी किसकी है? इसी जिम्मेदारी के लिए नगर-निगम जैसी संस्थाएं बनी हुई हैं। लेकिन नगर-निगम में वोट लेकर सोने वाले जन-प्रतिनिधि जनता की समस्याओं को समझने की कोशिश ही नहीं करते। किसी भी कॉलोनी में सड़क नहीं है। पिछले साल जो सड़कें बनी थीं वे निहायत घटिया थीं, एक बरसात भी नहीं झेल पाईं और बह गईं। जिन इलाकों में सीमेंट की सड़कें बनाई गई थीं और कहा गया था कि 10 साल तक इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा वह सड़कें भी उखड़ चुकी हैं, क्योंकि उनमें सीमेंट तो थी ही नहीं। कुछ कॉनोनियों में तो आलम यह है कि गिट्टी ही बची है, बाकी सब बह गया। नगर-निगम का ध्यान मुख्यत: चार इमली, 74 बंगले, मालवीय नगर, टी-टी नगर, श्यामला हिल्स की तरफ ही रहता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो टैक्स तो सारा भोपाल दे रहा है पर यह टैक्स केवल इन इलाकोंं के लिए ही है। बाकी शहर में वीआईपी रोड जैसे दो-चार इलाके छोड़ दिए जाएं, तो नगर-निगम का कोई काम नहीं दिखाई देता। जहां जनसंख्या घनी है वहां तो लगता है कि नगर-निगम ने हाथ ही खड़े कर दिए हैं। इसलिए 2 अक्टूबर से जो सफाई अभियान प्रारंभ हुआ था वह पूरी तरह नाकाम ही रहा है।
-Kumar Rajendra