17-Oct-2014 08:44 AM
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नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने जिस तरह पहले कमंडल और गेरुआ वस्त्र लेकर सरकार को घेरा था और बाद में मुख्यमंत्री की भांजी रितु चौहान की नियुक्ति को फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर विवादास्पद
बनाने की कोशिश की। वह सब चालें उल्टी पडऩे लगी हैं, झूठ ज्यादा देर तक नहीं टिकता है। कटारे ने बेबुनियाद आरोप लगाए जो सिद्ध नहीं हो सके। सदन को भी उन्होंने गुमराह किया। इसके चलते अब या तो कटारे को माफी मांगनी होगी या फिर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। दोनों स्थितियों में कटारे उलझेंगे। वैसे विधानसभा में सदन को गुमराह करना एक गंभीर गलती माना जाता है जिस पर कार्रवाई की जा सकती है। कमंडल मामले में तो विधानसभा अध्यक्ष ने इतना कठोर रुख नहीं अपनाया लेकिन रितु चौहान के मामले में जिस तरह सदन को गुमराह किया गया वह गंभीर मुद्दा बन सकता है। संभवत: इसी कारण कांग्रेस के भीतर भी मतभेद गहरा गए हैं। कटारे चाहते हंै कि शीतकालीन सत्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए लेकिन पार्टी के बहुत से विधायक इसके खिलाफ हैं। उनका मानना है कि पिछले जितने भी मौकों पर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया उसमें कांग्रेस की ही किरकिरी हुई है। चौधरी राकेश सिंह, कल्पना परुलेकर प्रकरण में तो कांग्रेस को शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ गया था। वैसे भी विधानसभा के बजट सत्र के समय विपक्ष कुछ खास हंगामा नहीं कर सका। बजट सत्र स्मूथ रहा था। लेकिन इस बार थोड़ा हंगामा हो सकता है। एक हफ्ते के सत्र में न्यायिक विधेयक को मंजूरी दी जाएगी और सप्लीमेंट्री बजट भी जाया जाएगा। कांग्रेस इस सत्र में सरकार को घेरने की कोशिश करेगी। व्यापमं, पीएससी घोटाले के साथ-साथ एनआरएचएम में भर्ती घोटाला और परिवहन आरक्षक भर्ती में लेकर हुई गड़बडिय़ां सदन में उठ सकती हैं। परिवहन आरक्षक भर्ती घोटाले में एसटीएफ ने एफआईआर दर्ज कर ली है। 34 प्रमाण पत्रों में खामियां पाई गईं। परिवहन मंत्री भूपेन्द्र सिंह के अलग-अलग अवसरों पर दिए गए दो विरोधाभासी बयान सरकार को परेशानी में डाल सकते हैं। चार माह पहले उन्होंने कहा था कि सभी दस्तावेज त्रुटि रहित हैं और उनका सत्यापन किया गया है। कोई भी आरक्षक बाहर का नहीं है। अब कह रहे हैं कि व्यापमं ने परीक्षा ली थी अन्य राज्यों के उम्मीदवार भी शामिल हुए थे।
बजट सत्र में विभागीय मंत्रियों ने ही 152 मामलों में जांच के आदेश दिए थे। 16 मामलों में विधायकों की उपस्थिति में जांच की मांग मंत्रीगणों ने स्वीकार की और 3 मामलों में चार अधिकारियों/कर्मचारियों के निलंबन के आदेश विभागीय मंत्रियों ने दिए। 23 मामलों में विभागीय मंत्रियों ने भोपाल के उच्च अधिकारी भेजकर मामले की जांच की मांग स्वीकार की। ये तथ्य सदन में हुई चर्चा की गंभीरता को स्पष्ट करते हैं। विभागीय मांगों पर 100 माननीय विधायकों ने भाग लिया, इसमें से 57 विधायक प्रथम बार निर्वाचित थे। इस प्रकार प्रथम बार निर्वाचित माननीय सदस्यों की सदन में उपस्थिति अच्छे ढंग से दर्ज हुई। प्रथम बार निर्वाचित 3 विधायकों सुन्दर लाल तिवारी, कमलेश्वर पटेल, जयवर्धन सिंह ने क्रमश: स्कूल शिक्षा, नगरीय कल्याण एवं उच्च शिक्षा विभाग की बजट मांगों पर चर्चा का प्रारंभ किया, जो एक सुखद संकेत है। सदन में व्यवधान के कारण तीन मंत्रियों की मांगों पर चर्चा नहीं हो सकी, फिर भी विगत बजट सत्र में विभागीय मांगों पर हुई चर्चा से ज्यादा चर्चा इस बजट सत्र में हुई। पिछले बजट सत्र में विभागीय मांगों पर लगभग 47 घंटे चर्चा हुई थी जबकि इस बार यह चर्चा 51 घंटे 30 मिनट की हुई। इस सत्र में कुल मिलाकर 5043 प्रश्र आए। ये प्रश्र कुल 158 सदस्यों की ओर से आए थे। इसमें से प्रथम बार निर्वाचित सदस्यों की संख्या 83 थी। इन सदस्यों ने 2435 प्रश्र किए।
विभागों से संबंधित प्रश्न ज्यादा
विधायकों के प्रश्नों की तासीर लोकहित से जुड़ी रहती हैं लगभग 70 प्रतिशत विधायक प्रश्न पूछ ही लेते हैं ये प्रदेश के 60 विभागों के संबंध में जन सरोकारों से जुड़े प्रश्न होते हैं।
-भगवानदेव ईसरानी, सचिव, मप्र विधानसभा
-Ajay Dheer