नेपाल: माओवादी किले में दरार
19-Feb-2013 11:21 AM 1234778

नेपाल की माओवाद प्रभावित राजनीति में ऐसे कई पैबंद उभर आए हैं जिन्हें भर पाना अब वहां माओवादी पार्टियों के लिए भी असंभव हो गया है। दरअसल नेपाल में चीन के इशारे पर और सहयोग के चलते माओवादी सत्ता में तो काबिज हो गए लेकिन उनकी आदतें वैसी ही बनी हुई हैं। इसी कारण माओवादियों के बीच सत्ता पाने के बाद ज्यादा से ज्यादा भ्रष्टाचार करने की होड़ मच गई है। इस भ्रष्टाचार ने सत्ता को खोखला कर दिया है और जिस उम्मीद के साथ जनता ने परिवर्तन की राह पकड़ी थी अब वही जनता हताश, निराश नजर आ रही है। हाल ही में एक सम्मेलन में नेपाल की युनिफाईड कम्युनिस्ट पार्टी और माओवादी नेताओं से यह पूछा गया कि उन्होंने तेजी से समृद्धि कैसे हासिल की तो वे निरुत्तर हो गए। उनमें से बहुत से गोलमोल जवाब देते पाए गए। इससे माओवादी कार्यकर्ताओं में भयानक असंतोष फैल गया है और यह असंतोष कभी भी विस्फोटक रूप धारण कर सकता है। माओवादी कार्यकर्ताओं का आरोप है कि उनके नेता भोग विलासपूर्ण जीवन शैली अपना रहे हैं और जनता के सरोकारों से लगातार कट गए हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि श्रमिकों के राज्य का सपना संजोने वाली पार्टी बहुत तेजी से अन्य राजनीतिक दलों की तरह बदलती जा रही है। नेताओं के पास अब किसी चीज की कमी नहीं है वे आलीशान जीवन शैली जी रहे हैं जो कि असंतोषजनक है। कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष पुष्पकमल जिनको प्रचण्ड भी कहा जाता है की जीवन शैली पर सवाल उठाए जा रहे हैं। पिछले साल प्रचण्ड अपने नए घर में रहने चले गए थे, जिसे विलासिता पूर्ण महल भी कहते हैं। उसके बाद से ही वे लोगों के निशाने पर आ गए। माओवादी कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनके नेता कीमती महलों में रहने,ब्रांडेड कपड़ों से सजने और स्मार्ट फोन लेकर घूमने के आदी होते जा रहे हैं इससे पार्टी का नाम खराब हो रहा है तथा नेता और कार्यकर्ताओं में कम्युनिस्ट मूल्यों का ह्रास हो रहा है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि संघर्ष के दिनों में पार्टी की ओर से उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश मिलते थे, जो शराब पीते थे और जुआं खेलते थे लेकिन अब नेता खुलेआम यह करते हैं। भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे हैं। कुछ समय पूर्व लड़ाकों को अस्थाई छावनी में रखने के दौरान जो वेतन दिया गया था उसमें करोड़ों का आर्थिक घपला होना बताया गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि इन आरोपों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया। हालात इतने खराब हो गए हैं कि पिछले वर्ष नवंबर में प्रचण्ड को एक युवक ने थप्पड़ तक मार दिया था। प्रचण्ड अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जिन्हें सार्वजनिक रूप से थप्पड़ मारा गया। नेपाली कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पार्टी अध्यक्ष सुशील कोइराला की भी सार्वजनिक रूप से पिटाई कर दी थी और उससे पहले सीपीएन-यूएमएल नेता झालानाथ खनाल को भी थप्पड़ का सामना करना पड़ा था इन सारे नेताओं को थप्पड़ पडऩा नेपाल में बढ़ते राजनीतिक असंतोष की निशानी है।
प्रचंड के लिए अपने कार्यकर्ताओं से ये कहना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है कि अब सशस्त्र संघर्ष अप्रासंगिक हो गया है और अब आगे का संघर्ष शांतिपूर्ण और निर्वाचन प्रणाली के तहत होगा। दूसरी बात ये कि सशस्त्र संघर्ष से शांतिपूर्ण राजनीति में आने के बाद माओवादियों में विभाजन हो गया है। इसका एक धड़ा जो कि मोहन वैद्य के नेतृत्व में है, वो अभी भी सशस्त्र संघर्ष का पक्षधर है। ऐसे में प्रचंड के सामने ये भी बड़ी चुनौती है कि वो अपने कार्यकर्ताओं को ये बताने में कैसे कामयाब होंगे कि उन्हीं के नेतृत्व में असली माओवादी पार्टी है और इसी में सभी का भविष्य सुरक्षित है। इसके अलावा प्रचंड को अपने दूसरे कार्यकाल के लिए अपने कार्यकर्ताओं का समर्थन लेने के लिए भी ये फोरम काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रचंड और मौजूदा प्रधानमंत्री और पार्टी के उपाध्यक्ष डॉक्टर बाबूराम भट्टाराई के बीच मतभेद की खबरें आती रहती हैं। नेपाल में संविधान सभा के गठन का मामला भी लटका हुआ है। नेपाल की राजनीति अभी साफ तौर पर दो खेमों में बँटी हुई है। एक खेमे का नेतृत्व माओवादी कर रहे हैं और दूसरी संसदीय पार्टी नेपाली कांग्रेस है। इन दोनों के बीच में समझदारी के बगैर संविधान सभा का निर्वाचन असंभव दिखता है। इसलिए जब तक इनके बीच लेन-देन के लिए माओवादी नेतृत्व नया जनादेश लेकर नहीं आता तो ये जोखिम ले नहीं सकते और बिना इनके जोखिम लिए हल नहीं निकल सकता।
ज्योत्सना अनूप यादव

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