पाकिस्तान में शियाओं पर कहर
02-Mar-2013 09:34 AM 1234779

सुन्नी बहुल पाकिस्तान में शिया समुदाय पर मौत का खतरा मंडरा रहा है। बीते वर्ष इस समुदाय के प्रति वीभत्स हत्याओं की घटनाएं घटी थीं इस वर्ष भी यह सिलसिला जारी है। अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन एचआर डब्ल्यू ने पाकिस्तान में शिया समुदाय पर खूनी हमलों की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि सरकार इसे रोकने में असफल रही है। एचआर डब्ल्यू का कहना है कि पाकिस्तान को देशभर में शिया समुदाय पर हमला करने वालों को जवाबदेह ठहराते हुए सजा दी जानी चाहिए।
इससे पहले भी कई बार अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति पर टिप्पणी कर चुका है। हिंदु और ईसाई जैसे समुदाय तो पाकिस्तान में लगभग समाप्त ही कर दिए गए हैं। जो बचे हैं वे शोभा की सुपारी की तरह है जिन्हें यदा-कदा दिखावे का संरक्षण देकर पाकिस्तान विश्व समुदाय के सामने अपने अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति प्रकट करता है लेकिन सच्चाई तो यह है कि सत्ता से लेकर समाज और समाज से लेकर संगठनों तक अल्पसंख्यकों की कहीं सुनवाई नहीं है। जब बाकी अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान में लगभग समाप्त सा कर दिया गया है तो अब शियाओं के प्रति, जो कि मुसलमान हैं सुन्नियों का कहर बुरी तरह टूट चुका है। हाल ही में कोयटा शहर में सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए जिसमें 53 शिया मारे गए और 120 के करीब घायल हो गए। 2013 की शुरुआत में यह पाकिस्तान में सबसे खतरनाक हमला है। वर्ष 2012 में भी करीब 400 शियाओं को मार दिया गया था जिसमें से अकेले बलुचिस्तान में 120 शिया मारे गए थे। यह सरकारी आंकड़ा है। सूत्र बताते हैं कि शियाओं की महिलाओं से बलात्कार, युवको को गला घोंटकर मारने, बच्चों के अपहरण से लेकर उन्हें खतरनाक काम धंधों में लगाने तक मानव अधिकार के उल्लंघन के सैंकड़ों मामले आए दिन सुनाई पड़ते हैं, लेकिन सरकार कोई सुनवाई ही नहीं करती। पिछले वर्ष ही पाकिस्तान के रावल पिंडी शहर में शिया मुसलमानों के एक जुलूस पर शक्तिशाली बम विस्फोट करके हमला किया गया। जिसमें 34 लोग मारे गए। यह हमला एक आत्मघाती हमलावर ने किया। जुलूस में 1500 से अधिक लोग शामिल थे। इससे पहले शियाओं के ही एक तीर्थयात्रियों के जत्थे पर बलुचिस्तान प्रांत में वर्ष 2011 में सबसे वीभत्स हमला हुआ था जिसमें 4 बंदूकधारियों ने बस में यात्रा कर रहे तीर्थ यात्रियों को नीचे उतारकर गोलयों से भून दिया था। 29 तीर्थ यात्रियों की तत्काल मृत्यु हो गई थी और कई अन्य भी घायल हुए थे, ये लोग क्वेटा से ईरान जा रहे थे। हाल ही में क्वेटा में हुए बम विस्फोटों के बाद भी मौतों का यह सिलसिला थमा नहीं है। पूर्वी शहर लाहौर में अज्ञात बंदूकधारियों ने शिया समुदाय के ही एक प्रमुख डॉक्टर और उनके 13 साल के बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी है। नेत्र विशेषज्ञ सैय्यद हैदर अली नामक यह चिकित्सक अपने बेटे को स्कूल छोडऩे जा रहे थे, उसी दौरान मोटर साइकिल पर सवार दो बंदूक धारियों ने उनकी कार रोककर उन पर बेतहाशा गोलियां चलाई और भाग गए। पिता-पुत्र की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। मौत का यह खूनी खेल अभी भी चल रहा है। शिया ही नहीं हिंदु, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध सहित अनेक अल्पसंख्यक धर्मावलम्बी पाकिस्तान में घृणित हिंसा का शिकार बन रहे हैं और सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है। पाकिस्तान में सिक्खों के साथ भी वैसा ही सुलूक किया जाता है जैसा शियाओं के साथ किया जाता है। खासकर अफगानिस्तान से लगे ओरकजई में सिक्खों पर तालिबान का कहर बेरोकटोक जारी है। उनसे बंदूक की नोक पर जाजिया टेक्स मांगा जाता है। उनसे कहा जाता है कि या तो वे इस्लाम कबूल कर लें या टैक्स देने के लिए तैयार रहे। टैक्स की राशि भी अच्छी-खासी होती है। यही कारण है कि यहां से सिक्ख परिवार लगभग पलायन कर चुके हैं। दुखद पहलू यह है कि सरकार अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है, जबकि उन पर लगातार अत्याचार बढ़ रहे हैं। कुर्रम और डेरा इस्माइल खान में शियाओं का कत्लेआम हो रहा है। सिंध में कई हिंदू महिलाओं का अपहरण कर लिया और उन्हें जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। उन्हें मुस्लिमों से शादी करने के लिए बाध्य किया गया। तालिबान शियाओं, अहमदियों, ईसाइयों, हिंदू और सिखों पर लगातार अत्याचार कर रहा है। लेकिन सरकार है कि उन्हें बचाने का कोई सकारात्मक कदम उठाने को तैयार नहीं है। अल्पसंख्यक समुदाय बेहद डर के माहौल में जी रहे हैं और उन्हें सुरक्षा और समर्थन देने की जरूरत है। लेकिन बड़ा मुद्दा तो यह है कि आखिर सरकार कैसे और कब यह सब करेगी।
ज्योत्सना अनूप यादव

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