04-Feb-2013 11:45 AM
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पाकिस्तान में डॉक्टर तहीरुल कादरी की क्रांति का अचानक ध्वस्त हो जाना बहुत से लोगों के गले नहीं उतरा। कादरी को न्यायपालिका और सेना का आशीर्वाद प्राप्त था, लेकिन उसके बाद भी वे कोई बड़ा परिवर्तन नहीं कर पाए। उनका सरकार के साथ समझौता हो गया और मध्य जनवरी में 4 दिन तक चला उनका आंदोलन बीच में ही समाप्त हो गया। कादरी का कहना है कि सरकार के 10 सदस्यीय समूह ने उनसे पांच घंटे बातचीत की। इस समूह में मंत्री तथा नेता शामिल थे। इस बातचीत के बाद इस्लामाबाद, लांग मार्च घोषणा पत्र को अंतिम रूप दे दिया गया। कादरी का दावा है कि उनकी सारी शर्ते मान ली गई हंै। हालांकि उनका यह दावा एक तरह से गलत ही साबित हो चुका है। क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के इस्तीफे और सरकार की बर्खास्तगी की प्रमुख मांग नहीं मानी गई है। इससे यह लगता है कि सरकार अब सेना के दबाव में उतनी नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी। कादरी को सेना और न्यायपालिका का प्रतिनिधि मानते हुए पाकिस्तान में यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि वे सत्ता का सत्यानाश करने में सक्षम हैं और मौजूदा सरकार को बदलने की ताकत उनके पास है, लेकिन जिस तरह कादरी को समझौते की टेबल पर लाया गया और उन्हें मनाया गया उससे यह पता चलता है कि फिलहाल पाकिस्तान में फौज की पकड़ अब लगातार कमजोर पडऩे लगी है। इसका कारण शायद यह है कि लोग फिर से फौजी शासन नहीं देखना चाहते। वे बदलाव के लिए लोकतंत्र को ज्यादा उपयुक्त मानते हैं। लेकिन कादरी के रवैये से यह नहीं लगा कि फौज लोकतंत्र के विरोध में थी। दरअसल कादरी लोकतांत्रिक तरीके से परिवर्तन चाह रहे थे। शायद इसी वजह से पाकिस्तान के हुक्मरान और डॉ. कादरी के बीच जो समझौता हुआ है उसके मुताबिक पाकिस्तानी नेशनल असेम्बली के चुनाव नब्बे दिनों के अंदर होंगे, इस लिहाज से उम्मीद करनी चाहिए कि 18 मार्च को वर्तमान सरकार के कार्यकाल के खात्मे के तत्काल बाद अप्रैल या मई में पाकिस्तान में नई सरकार को चुनने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसके साथ ही चुनाव सुधार के लिए

पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट की जो रुलिंग पिछले साल अप्रैल में आई थी उसका सख्ती से पालन किया जाएगा। एक अहम फैसला यह हुआ है कि जो लोग भी आम चुनाव में उम्मीदवार होंगे उनके नामिनेशन से पहले उनकी जांच पड़ताल करवाई जाएगी। चुनाव आयोग यह काम आयकर विभाग और अपराध नियंत्रण विभागों के साथ मिलकर करेगा। पूरी जांच पड़ताल के बाद अगर संबंधित व्यक्ति योग्य पाया जाता है तो ही पार्टी उसे अपना उम्मीदवार घोषित कर सकेगी। पाकिस्तान में डेमोक्रेसी की दिशा में यह बहुत निर्णायक उपलब्धि है। ऐसा सख्त नियम तो भारत में भी नहीं है। यहां पार्टी जिसे चाहे उसे टिकट दे देती है और चुनाव आयोग की भूमिका भी पार्टी के निर्णय के बाद शुरू होती है, जबकि पाकिस्तान में पार्टियों से पहले अब चुनाव आयोग की भूमिका नजर आयेगी।
निश्चित ही, डॉ. कादरी खाली हाथ नहीं लौटे हैं। तात्कालिक तौर पर उनके द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों की मात्रा भले ही उतनी नजर न आये जितना वे दावा कर रहे थे लेकिन पाकिस्तान में पहली बार कोई क्रांति ऐसी घटित हुई है जब सड़क पर पानी की बौछारें तक नहीं बहाई गईं। पहली बार किसी लोकतांत्रिक आंदोलन को ऐसा जन समर्थन मिला कि सेना को कोई भूमिका नहीं निभानी पड़ी। कम से कम पाकिस्तान की बौद्धिक जमात इसी से बाग बाग हो रही है कि पाकिस्तान में पहली बार डेमोक्रेसी को लेकर इतनी बड़ी बहस खड़ी हुई है। और जब डेमोक्रेसी कहते हैं तो उसका मतलब डेमोक्रेसी ही होता है, कुछ और नहीं। इसका श्रेय निश्चित रूप से डॉ. जहीरुल कादरी को ही जाता है। लेकिन कादरी की क्रांति से सब कुछ बदल जाएगा ऐसा नहीं है। कादरी एक तूफान की तरह पाकिस्तान की राजनीति में छाए और उतनी ही तेजी से अब परिदृश्य से गायब होते जा रहे हैं। वे चुनाव भी शायद ही लड़ें। हालांकि चुनाव लडऩे की स्थिति में उनकी पार्टी को अच्छा खासा समर्थन मिलेगा, लेकिन पाकिस्तान के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी असमंजस की स्थिति है। कादरी के साथ जुडऩे वाला तबका शहरी है। शहरी पाकिस्तान और ग्रामीण पाकिस्तान में जमीन आसमान का फर्क है। वहां के लोगों के सोचने विचारने के तरीके में भी बुनियादी अंतर है। बलूच अलग तरीके से विचारते हैं। सिंधियों की अलग विचारधारा है। पंजाबियों की कुछ अलग सोच है। इसी कारण कादरी को चौतरफा समर्थन की बात गलत है, लेकिन सच यह है कि देश की न्यायपालिका और फौज के वे चहेते हैं। शायद इसी कारण कादरी को पाकिस्तान की सत्ता ने ज्यादा भाव दिया और उनकी बात प्रमुखता से सुनी। कादरी की इस क्रांति ने भले ही सत्ता परिवर्तन न किया हो लेकिन कुछ राजनीतिज्ञों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। जिनमें से एक इमरान खान भी हैं। जो आने वाले समय में सत्तासीन होने के सपने देख रहे हैं, कादरी के अचानक प्रकट होने से अब इमरान की संभावनाएं धूमिल पडऩे लगी है। चुनाव होने की स्थिति में कादरी जितना सत्तासीन दलों के वोट बैंक में प्रभाव डालेंगे उससे कहीं ज्यादा उनका प्रभाव इमरान खान जैसे उभरते राजनीतिज्ञों पर पड़ेगा, यदि इमरान खान और कादरी एक मंच पर आते हैं तो फिर निश्चित रूप से नया राजनीतिक समीकरण जन्म लेगा।
-राजेश बोरकर