हार से सकते में भाजपा
03-Oct-2014 11:33 AM 1234810

पहले उत्तराखंड उसके बाद बिहार, कर्नाटक, पंजाब और अब राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात। पराजय का सिलसिला जारी है। हालांकि ये उपचुनाव हैं लेकिन आईना तो दिखा ही रहे हैं -भाजपा की राज्य

इकाईयों को जो जीत के उन्माद में अभी तक पागल हैं और विधानसभा उपचुनाव मेंं भी उन्हीं फार्मूलों को दोहरा रही है जिनसे कभी लोकसभा जीता था। हालांकि इन पराजय का उतना महत्व नहीं है, उपचुनाव में जनता आमतौर पर सत्तासीन दलों को ही चुनती है क्योंकि उन्हें ज्ञात रहता है कि पाला इन्हीं से पडऩा है। लेकिन गुजरात में 3 सीटों पर पराजय और राजस्थान में भी 3 सीटों पर पराजय भाजपा के लिए चिंतनीय है। ये वही राज्य हैं जहां लोकसभा चुनाव में सभी सीटें भाजपा ने जीती थीं। अब महज 3 माह में हालात इतने बदल गए कि सत्ता होते हुए भी वैसी जीत नहीं मिली जिसकी अपेक्षा थी। जाहिर है माहौल बदल गया है। राज्य सरकारों का कामकाज जनता को रास नहीं आया। गुजरात में आनंदी बेन पकड़ नहीं बना पाईं तो राजस्थान में वसुंधरा की मनमानी भारी पड़ी। उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे योगी आदित्यनाथ का विजय योग काम न आया। उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की फसल भाजपा काटना चाह रही थी लेकिन समाजवादी पार्टी ने समय रहते माहौल को बदल दिया। बसपा और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किए थे। एक तरह से सपा को उनके इस कदम से लाभ ही मिला है। लेकिन मतों के विभाजन में फायदा उठाने का स्वप्न देख रही भाजपा को सीधी टक्कर महंगी पड़ी।
उत्तरप्रदेश में बसपा के वोट यदि सपा को मिले हैं तो यह भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है इसका असर दिल्ली मेेंं भी पड़ेगा और शायद यही वजह है कि दिल्ली चुनाव में जाने से भाजपा झिझक रही है। हरियाणा में भी असर पड़ सकता है। महाराष्ट्र मेंं तो शिवसेना ने तो तेवर दिखा ही दिए हैं। इससे सिद्ध होता है कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनावों की तासीर पूर्णत: अलग है। वैसे भी मोदी ने लोकसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा लेकिन भाजपा ने इन चुनावों का संदेश ध्रुवीकरण के रूप में लिया। हालांकि कुछ विश्लेषक इस पराजय को मोदी लहर से जोड़ते हुए कह रहे हैं कि मोदी लहर का असर खत्म हो गया है लेकिन यह विश्लेषण उचित नहीं है क्योंकि मोदी देश केे प्रधानमंत्री हैं। राज्यों में जनता स्थानीय मुद्दों को ध्यान देती है। यदि भाजपा मुद्दा आधारित राजनीति करती तो परिणाम बेहतर हो सकते थे। लेकिन लव-जिहाद का राग अलापने वाले भाजपा नेताओं ने स्थानीय मुद्दों की सरासर उपेक्षा की और माहौल को भांपने में नादानी कर दी। अन्यथा यूपी में कुछ सीटों का इजाफा हो सकता था। राजस्थान में वसुंधरा जिस तरह की राजनीति कर रही हैं उसका असर अब साफ दिखने लगा है। वसुंधरा ने विधानसभा चुनाव के समय भी फ्री-हैंड काम किया था और लोकसभा चुनाव के समय भी वे पार्टी के फैसलों पर हावी रहीं लेकिन विधानसभा उपचुनाव में उनकी रणनीति बुरी तरह पिट गई। राजस्थान में एक दिक्कत यह भी है कि यहां जनता जल्दी नाराज हो जाती है। इसलिए 5-5 साल में शासन बदलता रहता है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात की तरह टिकाऊ ताकत बनने के लिए भाजपा को मेहनत करनी पड़ेगी। लेकिन वसुंधरा के रहते ये संभव नहीं है क्योंकि वे निरंकुश राजनीति करती आई हैं।
बहरहाल उपचुनावी नतीजों ने यह तो तय कर दिया है कि भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव इतने आसान नहीं होंगे। चाहे वे हरियाणा हो या महाराष्ट्र भाजपा को ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। दिल्ली में भी ज्यादा दिन तक विधानसभा निलंबित रही तो भाजपा अवश्य घाटा उठाएगी। इसका असर केंद्र में भी पड़ सकता है क्योंकि केंद्र में राज्यसभा में भाजपा को अपनी संख्या बढ़ानी होगी और इसके लिए आगामी ढाई वर्ष तक होने वाले ज्यादातर विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए जीतना जरूरी है। उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में तो एक चिंता और है कि कहीं विपक्ष के वोटर इक_े न हो जाएं। इसका असर अवश्य ही नकारात्मक पड़ेगा। क्योंकि लोकसभा चुनाव में विपक्ष बिखरा हुआ था और भाजपा को भी उम्मीद नहीं थी कि उसे इतनी बड़ी जीत मिलेगी। इसलिए आगामी रणनीति माहौल को देखते हुए बनाई जाएगी। भाजपा के लिए यह पराजय आवश्यक भी थी क्योंकि इससे उड़ती हुई राज्य इकाईयों को उनकी हैसियत पता लग चुकी है। उम्मीद है इस पराजय से आत्ममुग्ध हो चुकी भाजपा फीलगुड फैक्टर से बाहर निकलकर मेहनत करना सीखेगी।

कहां-कैसा रहा परिणाम?
राजस्थान- कांग्रेस: सूरजगढ़, वैर, नसीराबाद सीटों पर जीत।
भाजपा: सिर्फ कोटा दक्षिण सीट जीती।
उत्तरप्रदेश- सपा: ठाकुरद्वारा, बिजनौर, रोहनिया, चरखारी, हमीरपुर, सिराधु, निघासन और बल्हा में जीत। भाजपा: नोएडा, लखनऊ (पूर्व) और सहारनपुर नगर
गुजरात- कांग्रेस: दीसा, खंभालिया और मंगरोल में जीती। भाजपा: मणिनगर, टंकारा, आणंद, मातार, तलाजा और लिमखेड़ा सीटें मिलीं।
असम- लखीपुर (कांग्रेस), सिलचर (भाजपा), जमुनामुख (एआईयूडीएफ)।
सिक्किम- यहां रैनगैंग सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई।
आंध्रप्रदेश- मात्र एक सीट नंदीगामा पर वोटिंग हुई थी, जो तेदेपा के खाते में गई।
प.बंगाल- तृणमूल: चौरंगी सीट जीती। भाजपा: बशीरहाट में फतह।

 

 

-R.K. Binnani

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