03-Oct-2014 11:10 AM
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निठारी के नरपिशाच सुरिन्दर कोली को फांसी की सजा मिलने में अभी देर है। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी की सजा पर फिलहाल रोक लगा दी है। लेकिन सवाल वही है कि इस प्रकरण के मुख्य अभियुक्त

मोनिंदर सिंह पंढेर को फांसी कब मिलेगी? 22 मई 2007 को जब निठारी हत्याकांड मामले में सीबीआई ने गाजियाबाद की अदालत में पहला आरोप पत्र दाखिल किया था, तो पंढेर पर हल्के आरोप लगाए गए थे जबकि सुरिन्दर कोली पर बलात्कार, अपहरण और हत्या के आरोप लगाए गए थे। पंढेर मकानमालिक था और कोली उसका नौकर होने के साथ-साथ किराएदार भी था। दोनों की मिली भगत के बगैर उन मासूम बच्चों की हत्या कैसे संभव थी, जिनके कंकाल पंढेर के घर के निकट के नाले से बरामद हुए थे। यह मामला वर्ष 2008 में उस वक्त ज्यादा संवेदनशील बन गया, जब निठारी हत्याकांड की शिकार एक लड़की के पिता जतिन सरकार का शव पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले से बरामद हुआ था। सीबीआई पर बार-बार आरोप लगा कि वह पंढेर को बचाने की कोशिश कर रही है। 2009 के दिसंबर में जब सुरिन्दर कोली को चौथी बार मौत की सजा सुनाई गई तब तक पंढेर के लिए कोई भी सजा मुकर्रर नहीं हुई। सीबीआई की विशेष आदालत ने पंढेर को भी वर्ष 2009 में मौत की सजा सुनाई थी लेकिन इलाहबाद हाईकोर्ट ने पंढेर को बाइज्जत बरी कर दिया।
उधर राष्ट्रपति द्वारा सुरिन्दर कोली की दया याचिका ठुकराए जाने के बाद उसकी फांसी तो तय हो गई है लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के बाद अब यह मामला ज्यादा दिलचस्प मोड़ पर है। जो लोग कोली की सजा का विरोध कर रहे हैं उनका सवाल है कि आखिर इस प्रकरण के एक अहम सबूत और अभियुक्त को फांसी देने की जल्दी क्या है? जब तक पंढेर के खिलाफ जांच पूरी नहीं हो जाती कोली को सजा देने का कोई औचित्य नहीं है। पंढेर को अपनी निर्दोषता सिद्ध करनी चाहिए। कोली को सजा होने के बाद पंढेर के लिए कानूनी लड़ाई थोड़ी आसान हो जाएगी। पंढेर को मुक्त करना किसी बड़ी और अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा तो नहीं है क्योंकि कुछ लोगों ने निठारी कांड को मानव अंगों की तस्करी के प्रकरण से भी जोड़ा है। इस कांड के लाभार्थीÓ ही तो कहीं पंढेर को बचाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? यदि ऐसा है तो केवल कोली और पंढेर ही नहीं पूरा रैकेट सीबीआई की गिरफ्त में होना चाहिए पर दुखद यह है कि भारत में गरीब लोगों की सुनवाई आसान नहीं होती। निठारी में जान गंवाने वाले वे बच्चे गरीब न होते तो शायद यह जांच दूसरे तरीके से की जाती। सवाल यह भी है कि कोली को रिम्पा हालदार, आर के प्रसाद, रचना लाल, जैसी मासूम बच्चियों की बलात्कार के बाद हत्या के मामले में 4 बार मौत की सजा दी गई लेकिन यह मामले जिस व्यक्ति की संपत्ति के आस-पास घटे उसे एक भी बार सजा नहीं दी गई। बल्कि वह बरी भी कर दिया गया। कोली की माँ और पत्नी का आरोप है कि मोनिंदर सिंह पंढेर इस पाश्विक प्रकरण का सूत्रधार है। उधर अदालत में अपनी पैरवी खुद करने वाला कोली भी चीख-चीख कर कह रहा है कि पंढेर ने ही इस मामले में उसे फंसाया और सभी हत्याओंं में पंढेर भी शामिल है। 1 जनवरी 2007 को जब सीबीआई ने यह मामला अपने हाथ में लिया था उस वक्त पंढेर और सुरिन्दर कोली को 14 दिन की हिरासत में भेजा गया था। कोली ने 28 फरवरी और 1 मार्च को अपने इकबालिया बयान भी दर्ज कराए। इसके बाद ही सीबीआई के रुख में बदलाव आया। क्या सीबीआई को कोई ऐसा सबूत मिला था जिससे यह लग रहा था कि इस मामले का एकमात्र गुनाहगार कोली ही है, 22 मई 2007 को जब सीबीआई ने इस मामले में गाजियाबाद की अदालत में पहला आरोप-पत्र दाखिल किया था तो उसमें पंढेर पर ज्यादा गंभीर आरोप नहीं थे। हालांकि सीबीआई की विशेष अदालत ने ही पंढेर को सजाए मौत दी थी किंतु क्या यह मौत की सजा इसलिए दी गई थी कि बड़ी अदालत में पंढेर को राहत मिल जाए? ऐसे कई सवाल हैं जो अब शायद अनुत्तरित ही रहेगें।
नोएडा स्थित निठारी गांव में एक मकान के नाले से आठ बच्चों के कंकाल बरामद हुए थे। इस खबर ने देशभर में सनसनी मचा दी थी। जिस तरह से बच्चों का अपहरण कर निर्मम तरीके से उनकी हत्या की गई थी, उससे आरोपियों के खिलाफ लोगों का रोष बढ़ता जा रहा था। एक के बाद एक शवों के मिलने से लोगों का गुस्सा पुलिस के खिलाफ फूटने लगा था। मामले की गंभीरता को देखते हुए जल्द ही इसकी जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया। हालांकि, जांच एजेंसी पर भी पंढेर को बचाने का आरोप लगा।
-Kumar Subodh