03-Oct-2014 11:04 AM
1234990
भारत का मंगल मिशन सफल हो गया। जैसी योजना थी, उसी के अनुरूप हुआ। मंगल की कक्षा में मंगलयान को स्थापित करना था और वह सफल रहा। भारत के अंतरिक्ष इतिहास में यह क्षण नींव

का पत्थर ही कहा जाएगा। सबसे प्रमुख बात तो यह है कि मंगल अभियान की लागत महज 450 करोड़ रुपए थी, जिसमें 65 करोड़ किलोमीटर की दूरी तय की गई। यानी 1 किलोमीटर पर लगभग 6 रुपए 93 पैसे का खर्चा। सारी दुनिया स्तब्ध है। इतने कम पैसे में तो शहरों में टैक्सियां भी नहीं मिलतीं और भारत ने अंतरिक्ष में 65 करोड़ किलोमीटर दूर अपना यान भेज दिया। निश्चित रूप से यह विज्ञान की और भारत की जीत है। कभी भारत को सपेरों का देश कहने वाले विदेशियों ने जाना कि जो विषधर भुजंग को पालने का साहस रखते हैं, वे सुदूर अंतरिक्ष में मंगल की कक्षा में पहुंंचने का दम-खम भी रखते हैं। भारतीय ज्ञान-विज्ञान और प्रज्ञा को नकारने वाले उस पश्चिमी जगत ने भी भारत की तकनीक का लोहा माना, जो कभी भारतीय उपग्रह को खिलौना कहकर भारत का उपहास किया करता था।
प्रधानमंत्री ने इस मिशन की कामयाबी पर यह सही कहा कि जितनी लागत में बॉलीवुड फिल्में बनती हैं उससे आधी लागत में भारत ने मंगल पर यान भेजकर उसे मंगल की कक्षा में स्थापित कर दिया है। जो लोग यह कर रहे थे कि भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूृझने वाला भारत मंगल पर जाने की हड़बड़ी में क्यों है? उन्हें आज यह जबाव मिल गया है कि ये बाधाएं भारत की ज्ञान की तलाश को अवरुद्ध नहीं कर सकतीं और भारत वह देश है जो सक्षम है दोनों मोर्चों पर लड़कर विजित होने में। इस विजय ने उन आक्रांताओं को भी सचेत किया जो भारत की सीमाओं पर उत्पात मचा रहे हैं। इतिहास को गलत पढ़ाने वाले पाकिस्तान से लेकर सीमा पर अकारण तनाव पैदा करने वाले चीन के गुरूर को इस सफलता ने धराशायी कर दिया। प्रधानमंत्री का वह अद्भुत संबोधन कि माँ कभी पराजित नहीं होतीÓ वैज्ञानिकों को पे्ररणा दे गया। उन्होंने कहा कि मंगलयान यदि असफल होता तो इस असफलता को भी वे शिरोधार्य करते। प्रधानमंत्री की यह हौसला आफजाई उस इसरो के लिए संबंल बनी है, जिसका बजट नासा से एक चौथाई भी नहीं है। सीमित संसाधनों में इस देश की मेधा और विलक्षण बुद्धि के प्रतीक वे वैज्ञानिक दिन-रात जुटे रहते हैं। बीस-बीस घंटे तक काम करते हैं। हलका भोजन करते हैं कि नींद न आए, अपने विश्राम स्थलों तक पैदल आते-जाते हैं ताकि व्यायाम हो जाए। सादे कपड़े, सादा रहन-सहन, न किसी लग्जरी की चाह न ही विलासिता के सुख की आकांक्षा और न ही यौवन की वे उमंगें। सब को तिलांजली देकर ऋषि-मुनियों के समान दिन-रात बस लक्ष्य की प्राप्ति में जुटे रहते हैं।
तीन वर्ष पहले भारत ने तय किया था कि वह अंतरिक्ष में मंगल की कक्षा में मंगलयान को स्थापित कर सकता है, जो किसी उपग्रह के समान मंगल की जानकारी लेकर पृथ्वी पर सचित्र भेजेगा साथ ही मंगल के वातावरण में विभिन्न गैसों की मौजूदगी का अध्ययन करेगा और तमाम संभावनाएं खोजेगा। 15 माह पूर्व भारत ने यान बनाया और 10 माह की अवधि में मंगल तक पहुंचाया। एक तरह से देखा जाए तो महज 25 माह की अवधि में भारत ने वह कर दिखाया जिसमें अभी तक सफलता की दर महज एक तिहाई है, किंतु भारत के लिए तो यह सफलता सौ-फीसदी है। अमेरिका ने अपने अभियान पर 11 वर्ष काम किया था और 3 हजार करोड़ रुपए लगाए थे। उसे मंगल तक पहुंचने में 12 महीने लगे थे। एशिया से कोई भी देश मंगल की कक्षा में नहीं पहुंच पाया। केवल अमेरिका, रूस व यूरोपीय यूनियन ही मंगल तक पहुंचे हैं। ये सारे देश भारत से दशकों पहले अपना अंतरिक्ष अभियान प्रारंभ कर चुके थे। भारत ने तो 1963 में अपना पहला रॉकेट थुम्बा मेें एक चर्च की दीवार के सहारे टिका कर दागा था। लेकिन आज दुनिया ने देखा कि जिसे खिलौना कहा जा रहा है वह मंगल तक पहुंचने में सक्षम है। कल्पना चावला का बलिदान व्यर्थ नहीं गया है। अब भारत चंद्रमा पर कदम रखने की योजना बना रहा है।
मंगलयान क्या करेगा
मंगलयानÓ सहित कुल पांच उपग्रह इस समय मंगल के चक्कर लगा रहे हैं। जबकि अमेरिका के दो रोवर लाल ग्रह की सतह पर सक्रिय हैं। मंगलयान के अलावा अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के तीन आर्बिटर मार्स ओडिसी, मेवन और एमआरओ के अलावा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) का मार्स एक्सप्रेस मंगल की कक्षा में सक्रिय है। मेवन को मंगलयान से तीन दिन पहले 21 सितंबर को लाल ग्रह की कक्षा में स्थापित किया गया था। इसके अलावा नासा के दो रोवर अपॉर्चयूनिटी और क्यूरियोसिटी मंगल की सतह पर मौजूद हैं। ये दुनिया का 53वां मंगल मिशन है। इससे पहले अमेरिका, रूस और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने कई कोशिशों के बाद अपने ऑर्बिटर मंगल की कक्षा में स्थापित किए थे। मंगलयान का सबसे अहम काम होगा मीथेन की जांच करना। मंगलयान इसके वायुमंडल, खनिजों और संरचना का अध्ययन करेगा। सबसे खास मीथेन की जांच करना होगा। मंगलयान इसके वायु मंडल, खनिजों और संरचना की रिपोर्ट वापस भेजेगा। मंगलयान के साथ पांच उपकरण भेजे गए हैं जो वहां से जांच कर संकेत भेजेंगे। मंगलयान, भारत का प्रथम मंगल अभियान है। वस्तुत: यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की एक महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अंतर्गत 5 नवंबर 2013 को 2 बजकर 38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने हेतु छोड़ा गया एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसलवी) सी-25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया। अब तक मंगल को जानने के लिये शुरू किये गये दो तिहाई अभियान असफल रहे हैं, परन्तु 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुँचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश बन गया है। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है । वस्तुत: यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन परियोजना है जिसका लक्ष्य अन्तरग्रहीय अन्तरिक्ष मिशनों के लिये आवश्यक डिजाइन, नियोजन, प्रबन्धन तथा क्रियान्वयन का विकास करना है। ऑर्बिटर अपने उपकरणों के साथ कम-से-कम 6 माह तक कक्षा में दीर्घ वृत्ताकार पथ पर मंगल की परिक्रमा करता रहेगा तथा आंकड़े व तस्वीरें पृथ्वी पर भेजेगा।
मंगलयान के साथ पाँच प्रयोगात्मक उपकरण भेजे गये हैं जिनका कुल भार 15 किलोग्राम है।
मीथेन सेंसर (मीथेन संवेदक) - यह मंगल के वातावरण में मीथेन गैस की मात्रा को मापेगा तथा इसके स्रोतों का मानचित्र बनाएगा। मीथेन गैस की मौजूदगी से जीवन की संभावनाओं का अनुमान लगाया जाता है।
थर्मल इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (ऊष्मीय अवरक्त स्पेक्ट्रोमापक) - यह मंगल की सतह का तापमान तथा उत्सर्जकता की माप करेगा जिससे मंगल के सतह की संरचना तथा खनिजकी का मानचित्रण करने में सफलता मिलेगी।
मार्स कलर कैमरा (मंगल वर्ण कैमरा)- यह दृष्य स्पेक्ट्रम में चित्र खींचेगा जिससे अन्य उपकरणों के काम करने के लिए सन्दर्भ प्राप्त होगा।
लिमैन अल्फा फोटोमीटर (लिमैन अल्फा प्रकाशमापी) - यह ऊपरी वातावरण में ड्यूटीरियम तथा हाइड्रोजन की मात्रा मापेगा।
मंगल इक्सोस्फेरिक न्यूट्रल संरचना विश्लेषक (मंगल बहिर्मंडल उदासीन संरचना विश्लेषक) - यह एक चतुष्धु्रवीय द्रव्यमान विश्लेषक है जो बहिर्मंडल (इक्सोस्फीयर) में अनावेशित कण संरचना का विश्लेषण करने में सक्षम है।
मिशन जो असफल रहे
पिछले 40 साल में ब्रह्मांड के विस्तार की खोज के लिए तमाम अंतरिक्ष शटल, रॉकेट, सैटेलाइट, टेलिस्कोप और रोवर के लॉन्च विफल भी रहे। इन मिशन पर मोटी रकम भी खर्च की गई थी।
1 फरवरी 2003 में पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही स्पेस शटल कोलंबिया नष्ट हो गया था। इस शटल में मौजूद सभी सात क्रू मेंबर्स की मौत हो गई थी।
स्पेस शटल चैलेंजर (1986) खर्च- 335 अरब रुपए : 28 जनवरी, 1986 को लॉन्च होने के 73 सेकंड के अंदर ही अमेरिका का स्पेस शटल चैलेंजर हवा में ही नष्ट हो गया। शटल में मौजूद सात क्रू मेंबर्स की मौत हो गई ।
सोवियत रॉकेट (1973) खर्च- 4026 करोड़ रुपए : सोवियत रॉकेट तब प्रशांत महासागर में गिर गया था, जब महीने भर में ही सोवियत यूनियन का सैल्यूट स्पेस स्टेशन फेल हो गया था।
ऑरबिंटिन एस्ट्रोनॉकिल ऑब्जर्वेट्री, (1970) खर्च- 600 करोड़ रुपए: सबसे बड़े टेलीस्कोप को लेकर जा रही ऑरबिंटिन एस्ट्रोनॉकिल ऑब्जर्वेट्री सैटेलाइट का प्रक्षेपण विफल हो गया, ये उस वक्त सबसे मंहगा सैटेलाइट था।
ग्लोरी, क्लाइमेट सैटेलाइट (2011) खर्च- करीब 25 अरब रुपए: नासा ने 2011 में करीब 25 अरब रुपए की लागत से ग्लोरी नाम का सैटेलाइट लॉन्च किया, जिसे पृथ्वी की जलवायु से जुड़े रिकॉर्ड रखने थे। रॉकेट प्रशांत महासागर में गिर गया।
दक्षिण कोरिया का पहला सैटेलाइट और रॉकेट खर्च- करीब 23 अरब रुपए: दक्षिण कोरिया की ओर से लॉन्च किया गया पहला रॉकेट अपनी निर्धारित कक्षा में जाने से चूक गया और पृथ्वी के वायुमंडल में ही नष्ट हो गया।
रूस का एक्सप्रेस एएम4 (2011) खर्च- करीब 18 अरब रुपए: रूस का प्रोटोन रॉकेट अगस्त 2011 में संचार सैटेलाइट एक्सप्रेस एएम4 के साथ लॉन्च किया गया। 24 घंटे बाद ये एक बार कक्षा में पाया गया और इसके बाद अंतरिक्ष में खो गया।
मार्स क्लाइमेट ऑरबिटर (1999) खर्च- 762 करोड़ रुपए: नासा का 1999 में मार्स क्लाइमेट ऑरबिटर अंतरिक्ष यान से संपर्क टूट गया, क्योंकि यान सूर्य की ओर मंगल ग्रह की सतह की तरफ चला गया।
रूस का जेनिट-2एसबी रॉकेट (2012) खर्च- 10 अरब रुपए: रूस का जेनिट-2एसबी रॉकेट पृथ्वी की कक्षा में नष्ट हो गया। रूस ने दावा किया कि अमेरिकी रडार सैटेलाइट के दखल के चलते ये रॉकेट नष्ट हो गया।
जापान स्पाई सैटेलाइट (2003) खर्च- 475 करोड़ रुपए: उत्तर कोरिया पर नजर रखने के लिए रॉकेट से भेजे जा रहे दो स्पाई सैटेलाइट में उड़ाने भरने के दौरान खराबी आ गई और ये नष्ट हो गए।
-Rajesh Soni