फसलों का रोडमेप बनेगा
03-Oct-2014 10:50 AM 1234937

मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाल परेड ग्राउण्ड में हलधर कृषि एक्सपो के शुभारंभ कार्यक्रम में 20 हजार से अधिक गांव के लोगों से सीधा संवाद किया। कार्यक्रम का इलेक्ट्रानिक चैनलों से सीधा प्रसारण किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में ग्यारह कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार बोई जाने वाली फसलों, बीज और खाद का रोड-मेप बनाया जाएगा। इसके आधार पर अगले कृषि महोत्सव में किसानों को उनके जलवायु क्षेत्र के अनुसार फसलों की वैज्ञानिक योजना बताई जाएगी। केंद्रीय कृषि मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने कहा कि देश में कृषि का स्तर ऊपर करने में मध्यप्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान है। अगले तीन साल में देश के हर किसान को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध करवाया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने किसानों से अपील की कि फसल चक्र परिवर्तन करें, उन्नत खेती करें, अपने गांव को स्वच्छ बनाएं तथा पानी की एक-एक बूंद बचाएं। उन्होंने कहा कि कृषि के क्षेत्र में मध्यप्रदेश की उपलब्धियां पड़ाव है, मंजिल नहीं। इसे और आगे बढ़ाकर अब हमें नए मध्यप्रदेश का निर्माण करना है। अब किसानों की आमदनी बढ़ाने के लक्ष्य को लेकर काम करना है। उन्होंने कहा कि हर किसान अपने खेत के एक हिस्से में फल, फूल, सब्जी या औषधि फसलों की खेती करेगा, क्योंकि इससे आय बढ़ेगी। यदि किसान या उनके बच्चे कृषि उत्पादों पर आधारित खाद्य प्र-संस्करण उद्योग लगाते हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री युवा स्व-रोजगार योजना में दस लाख से लेकर एक करोड़ तक का ऋण उपलब्ध करवाया जाएगा। इस ऋण की गारंटी राज्य सरकार लेगी। कृषि में मध्यप्रदेश द्वारा हासिल सर्वाधिक विकास दर के पीछे किसानों की कड़ी मेहनत और राज्य सरकार की ऋण नीति है। इसमें सिंचाई का रकबा बढ़ाया गया, अधूरी सिंचाई योजनाएं पूरी की गईं, नई सिंचाई योजनाएं शुरू की गईं, नहरों के अंतिम छोर तक पानी पहुंचाया गया, किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाया गया, किसानों को सिंचाई के लिए बिजली उपलब्ध करवाई गई और अच्छे बीज उपलब्ध करवाए गए। श्री चौहान ने कहा कि मालवा को रेगिस्तान बनने से बचाने के लिए नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना शुरू की गई। अब नर्मदा को गंभीर, काली सिंध और पार्वती नदी से जोड़ा जाएगा। बेतवा-केन नदी परियोजना को प्राथमिकता से पूरा किया जाएगा।
अध्यादेश से फायदा
मध्यप्रदेश में 16 सितंबर 2014 से लागू भारतीय स्टाम्प (मध्यप्रदेश संशोधन) अध्यादेश से आम जनता को राहत मिलेगी।
अध्यादेश में कुछ दस्तावेजों, जो वर्तमान अनुसूची में सम्मिलित नहीं हैं, जैसे प्रतिफल की प्राप्ति, अभिस्वीकृति, बैंक गारन्टी, सहमति विलेख, मध्यप्रदेश प्रकोष्ठ स्वामित्व अधिनियम, 2000 के अंतर्गत घोषणा-पत्र तथा पूर्व पंजीकृत दस्तावेज को संशोधित अथवा शोधित करने वाला दस्तावेज, उक्त अनुसूची मेें शामिल किया गया है। पंचाट पर प्रभार्यता सम्पत्ति के बाजार मूल्य अनुसार की गई है। पट्टा विलेखों पर शुल्क को सम्पत्ति के बाजार मूल्य से संबंधित किया गया है। अनुच्छेद 44 (भागीदारी) में यदि अभिदाय का अंश स्थावर सम्पत्ति के रूप में लाया जाता है, तो शुल्क सम्पत्ति के बाजार मूल्य अनुसार होगा। अध्यादेश मेें दान, विभाजन, निर्मुक्ति एवं व्यवस्थापन, जब दस्तावेज के पक्षकार परिवार (जिसमें माता, पिता, पत्नी, पति, पुत्र, बहन, भाई, पौत्री तथा पौत्र सम्मिलित हैं) के हों, शुल्क की प्रचलित दर 4 प्रतिशत (दान के लिए 5 प्रतिशत) से घटाकर बाजार मूल्य का 2.5 प्रतिशत की गई है।
प्रदेश को प्लेटिनम स्कॉच अवार्ड
मध्यप्रदेश में विकेन्द्रीकृत नियोजन की दिशा में किए गए बेहतरीनल काम के लिए राष्ट्रीय स्तर का प्लेटिनम स्कॉच अवार्ड मिला है। विकेन्द्रीकृत नियोजन की अवधारणा को अमल में लाते हुए प्रदेश के सभी 50 हजार 982 गांव के मास्टर प्लान बनाने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है। इस कार्य के लिए मध्यप्रदेश विधानसभा के विशेष सत्र में संकल्प पारित किया गया था। इस अवधारणा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि पहले गांवों में होने वाले काम विभाग तय करते थे। अब गांव के लाग तय करते हैं और विभाग उन पर सिर्फ अमल करते हैं। इससे ग्रामीणों में आत्म-सम्मान और स्वामित्व का भाव बढ़ा है।
इस बड़े कार्य को लगभग 1 करोड़ 95 लाख ग्रामीण की भागीदारी से अंजाम दिया गया है। इस कार्य में 1250 स्वयंसेवी संस्था, 50 हजार से अधिक जन-प्रतिनिधि, 10 हजार 400 तकनीकी सहायता दल और 62 हजार 400 जमीनी
अमले ने भी सक्रिय सहभागिता की। मास्टर प्लान में विशेष रूप से पेयजल, बारहमासी सड़कों, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं, खाद्य सुरक्षा सहित अन्य सुविधाओं को प्राथमिकता
दी गई है।

किन्नर करेंगे प्रचार-प्रसार
मध्यप्रदेश में भी देश की तर्ज पर समग्र स्वच्छता अभियान चलाया जाएगा लेकिन इसकी तासीर थोड़ी अलग होगी। दरअसल प्रदेश में महिलाओं के लिए शौचालय सबसे बड़ी समस्या है। उनका दर्द यह है कि सरकार 78 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि प्रचार-प्रसार के लिए खर्च करती है लेकिन महिलाओं को शौच के लिए बाहर ही जाना पड़ता है। कारण यह है कि नई उम्र के अफसरों को सीजीओ बनाया जा रहा है जो सही तरीके से काम नहीं करते और पैसा खाने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। उधर प्रदेश में गांवों के भीतर पक्का शौचालय बना भी दिया जाए तो जल-मल निकासी की सही व्यवस्था नहीं है। इसीलिए 53 हजार गावों में सही ड्रेनेज बनाना और समग्र स्वच्छता स्थापित करना बड़ी चुनौती हैे। बहरहाल सरकार ने अब इस काम के लिए किन्नरों की सेवाएं लेने का फैसला किया है। प्रदेश के गांव और शहरों में किन्नर घर-घर जाकर पुरुषों का पौरुष जाग्रत करेंगे और महिलाओं को प्रेरणा देंगे। सुनने में आया है कि 16 अक्टूबर को मुख्यमंत्री ने किन्नर महापंचायत का आयोजन किया है।

 

-Vishal garg

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