03-Oct-2014 10:09 AM
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फिल्म अभिनेत्री से राजनेत्री और राजनेत्री से मुख्यमंत्री बनीं जयराम जयललिता अंतत: जेल की सलाखों के पीछे चली गईं। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार मुख्यमंत्री को सजा दी गई।

बैंगलुरु की एक अदालत ने उन्हें आय से अधिक संपत्ति के मामले में 18 वर्ष पुराने मुकदमे में दोषी पाया और 4 साल की जेल के साथ-साथ 100 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगा दिया। यह किसी भी नेता पर जुर्माने की सबसे बड़ी रकम है। दो वर्ष से अधिक की सजा होने के साथ ही विधानसभा की सदस्यता से हाथ धो बैठी जयललिता तकनीकी रूप से भले ही उस समय तक मुख्यमंत्री थीं जब तक कि उन्होंने अपना इस्तीफा नहीं भेज दिया था, लेकिन जेल के भीतर भी उनकी सल्तनत लगभग 72 घंटे कायम रही पर फिर कारावास की यह कारावासिनी भी जेल के नियमों के मुताबिक राजनीतिक बंदियों में शामिल हो गई।
जयललिता के साथ बड़ी विडम्बना यह है कि अपने फिल्मी जीवन में भी उन्होंने किसी कारावासिनी का किरदार नहीं निभाया, लेकिन बंदिनी फिल्म की नूतन को वे बेहद पसंद करती थीं और नियति ने उन्हें बैंगलुरू की उस जेल में पहुंचा ही दिया जहां उनके जीवन की सबसे कठिन रात गुजरी।
दिल्ली जाने पर जयललिता की कुर्सी उनके साथ जाती थी। वे जिस-जिस मंत्रालय में जिस अधिकारी और मंत्री से मिलती थीं उसके कक्ष में पहले ही जयललिता की कुर्सी पहुँचा दी जाती थी। यह कायदा वर्षों तक निभाया जाता रहा, कोई कहता था कि वह कुर्सी जयललिता के लिए आरामदेह है, तो कोई कहता था कि उस कुर्सी पर उन्हें ज्यादा भाग्यशाली क्षण मिले हैं, बैंगलुरू भी उस कुर्सी ने सफर तो किया, लेकिन जेल में हमसफर नहीं बन सकी और यहीं से जया के दुर्भाग्य की शुरुआत हो गई।
किसी परीकथा के समान अपनी जवानी और राजनीतिक जीवन एशोआराम में बिताने वाली जयललिता अब जेल में हैं। फैसला सुनने के बाद उनकी आंखों से आंसू तो नहीं टपके, लेकिन तमिलनाडु में आंसुओं का सैलाब आ गया। उनके इस्तीफे के बाद शपथ ग्रहण करने वाला नया मंत्रिमंडल भी जार-जार रोता रहा। जयललिता को चाहने वाले सड़कों पर उतर आए। देश की न्याय व्यवस्था के खिलाफ नारे लगाए गए। विपक्ष की प्राय: सभी पार्टियों को निशाना बनाया गया। केंद्र पर लानत-मलानत भेजी गई, 7 लोगों ने आत्महत्या कर ली तो 10 लोगों की मृत्यु हृदयाघात से हो गई। कुछ लोगों ने आत्मदाह करने का प्रयास किया तो कुछ वाहनों को जलाने लगे। कई स्थानों पर विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुईं। जयललिता की आकस्मिक गिरफ्तारी के लिए न तो सत्तापक्ष तैयार था और न ही विपक्ष। करुणानिधि को भी आशा नहीं थी कि कोर्ट का हमला इतना आकस्मिक होगा। आनन-फानन में उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था ठप्प हो चुकी है। केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए। उधर तमिलनाडु की पूर्व मुख्य सचिव शीला बालकृष्णन जो कि जयललिता की खासमखास समझीं जाती थीं वे अम्मा से मिलने के लिए निकली ही थी कि उन्हें कहीं से किसी विश्वस्त का फोन आया कि रात तमिलनाडु में ही गुजारनी है। शीला बालकृष्णन अगले दिन मुख्यमंत्रियों के सचिवों के साथ बैंगलुरू पहुंची। शीला को मुख्यमंत्री बनाने की सुगबुगाहटें भी थीं क्योंकि वे जयललिता की सबसे विश्वस्त समझीं जाती थीं। लेकिन जातीय समीकरण के चलते वित्तमंत्री आर. पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव शीला ने ही दिया था। पन्नीरसेल्वम वर्ष 2001 में उस समय भी मुख्यमंत्री बनाए गए थे जब जयललिता को तांसी घोटाले में आरोपित होने के बाद अपना पद त्यागना पड़ा था। कभी अम्मा को शाष्टांग दंडवत करने वाले पन्नीरसेल्वम को उनकी वफादारी का पुरस्कार तो मिल गया।
आज दक्षिण भारत की यह करिश्माई नेत्री बिहाइंड द बार है। कभी उनकी फिल्मों के नायक खलनायकों को बिहाइंड द बार पहुंचाया करते थे आज नायिका सलाखों के पीछे है इसलिए तमिल फिल्म उद्योग ने भी हड़ताल करके अपना समर्थन जयललिता को दिया है।
जयललिता सजायाफ्ता भले ही हो गई हैं, लेकिन वे पराजित नहीं हुई हैं। उन्होंने गिरफ्तारी के बावजूद इस्तीफा न देकर तमाम संभावनाएं तलाशने की कोशिश की, लेकिन जिस आसानी से अपने द्वारा अभिनीत सौ फिल्मों में वे हर मुसीबत से बाहर आती रहीं उतनी आसानी जेल की सलाखों के पीछे उन्हें उपलब्ध नहीं है। जिस विशेष अदालत ने जयललिता को सजा सुनाई है उससे छुटकारा पाने में भी थोड़ा समय लगेगा। हाईकोर्ट जयललिता के मसले पर विचार-विमर्श के बाद ही जमानत देगा, लेकिन जमानत के बावजूद जया के राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान तो लगा ही रहेगा। राजनीति इज्जत फिल्म की उस अल्हड़ लड़की की तरह तो है नहीं जो बहकावे में आकर किसी के प्यार में गिरफ्तार हो जाती है। राजनीति तो अपनी ही चाल से चलती है और जयललिता के लिए आने वाला समय कंटकों से भरा हुआ है।
कहने वाले कह रहे हैं कि अम्मा युग खत्म हो गया, लेकिन जानकार जानते हैं कि युग खत्म नहीं हुआ बल्कि शुरू हुआ है। क्योंकि तमिलनाडु की राजनीति भावनाओं पर चलती है। यहां जितनी शिद्दत से मोहब्बत की जाती है उतनी ही शिद्दत से नफरत की जाती है। कभी करुणानिधि को पकड़कर घसीटते हुए गिरफ्तार किया गया था जिसकी सहानुभूति उन्हें चुनाव जिता ले गई। आज अम्मा को दूसरे प्रदेश की अदालत में दिन-दहाड़े सजा सुनाने के बाद सलाखों के पीछे भेज दिया गया है तो यह एक तरह से सहानुभूति का सैलाब ही है जो अम्मा को अगले चुनाव में भी विजयिनी बना सकता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के चलते अम्मा मुख्यमंत्री पद से भले ही वंचित हो जाएं, लेकिन तमिलनाडु की राजनीति एवं अन्नाद्रमुक की सुप्रीमो तो वे बनी ही रहेंगी। उनका कल्याण भी इसी में है। सत्ता हाथ में रहने से अनेक फायदे मिलते हैं और जिस तरह शिवसेना ने केंद्र में सत्तासीन भाजपा से किनारा कर लिया है उसे देखते हुए बहुत संभावना है कि अम्मा और भाजपा का नैकट्य अब बढ़े जिससे तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत में नई राजनीति का सूत्रपात भी हो सकता है। क्योंकि अम्मा भले ही तमाम मामलों में बाइज्जत बरी हो गईं हों, लेकिन सीबीआई अभी भी कठोरता दिखा सकती है।
जिस तरह कांग्रेस ने सीबीआई के मार्फत माया और मुलायम को साध रखा था उसी तरह अम्मा को भी साधा जा सकता है और यदि अम्मा से भाजपा का तालमेल होता है तो भाजपा की स्थिरता को कोई खतरा भी नहीं रहेगा। बहरहाल राजनीतिक अनुमान अपनी जगह है। प्रश्न यह है कि भ्रष्टाचार में दोषी पाई गई अम्मा चार साल जेल में बिताएंगी या नहीं। इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट से ही होगा। यदि वे 4 साल जेल में बिताती हैं तो 66 वर्षीय अम्मा को 76 वर्ष की उम्र तक चुनावी राजनीति से दूर रहना पड़ेगा। इस दौरान वे पार्टी में रिमोट कंट्रोल की भूमिका निभा सकती हैं, लेकिन तब तक गोदावरी और कृष्णा में बहुत पानी बह जाएगा। अम्मा के लिए सुकून इस बात का है कि तमिलनाडु में फिलहाल विपक्ष के रूप में द्रमुक की ताकत नगण्य ही है। कांग्रेस खत्म हो चुकी है और भाजपा कुछेक छोटे-मोटे दलों के साथ अपने अंकुरण के इंतजार में है। तमिलनाडु की लोकसभा में 39 में से 37 सीटें जीत चुकी अन्नाद्रमुक फिलहाल बहुत ताकतवर है। जयललिता ने 2011 में विधानसभा चुनाव के समय 234 में से 151 सीटें जीती थीं और द्रमुक महज 23 सीटों पर सिमट गई थी। तमिल राजनीति पिछले दो दशक से इसी तरह चल रही है। पांच साल अम्मा को तो पांच साल करुणानिधि को जनता अपना भाग्य विधाता बनाती है, लेकिन इस बार यह ट्रेंड बदलता दिख रहा था। अम्मा ने पीडि़तों और वंचितों के लिए अपने मातृत्व का खजाना खोल दिया था। इसलिए उनकी लोकप्रियता उत्तरोत्तर बढ़ती गई। जब सजा हुई तो सजा का समर्थन करने वाले गिने-चुने लोग थे, लेकिन सजा का विरोध करने वाले करोड़ों थे। एक तरह से यह सजा जयललिता को फायदेमंद ही साबित हुई। अब देखना है कि नफा-नुकसान की इस राजनीति में क्या खेल सामने आता है। वैसे जो माहिर खिलाड़ी हैं वे यह जानते हैं कि अम्मा तमाम मुसीबतों के बावजूद प्रदेश में किसी भी स्थिति में अपनी राजनीतिक ताकत खत्म नहीं होने देंगी।
क्यों हुई जया को सजा
ज यललिता प्रख्यात अभिनेत्री थीं और सौ से अधिक फिल्मों में उन्होंने अभिनय के झंडे गाड़े थे। तमिल फिल्म उद्योग में नायिका की हैसियत से 100 फिल्में करने वाली किसी अभिनेत्री का आर्थिक आधार छोटा-मोटा नहीं हो सकता। फिर जयललिता तो कई प्रख्यात अभिनेताओं की चहेती भी रही हैं और राजनीतिक विरासत भी उन्होंने अपने अभिनेता प्रेमी से ही प्राप्त की है। इसलिए जयललिता राजनीति में आने से पहले ही काफी धनी थीं इसमें कोई संदेह नहीं है। कई चल-अचल संपत्ति उनके नाम पहले से ही थी। यही कारण है कि जब जयललिता 1991 में पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने अपनी संपत्ति 3 करोड़ रुपए बताई। जानकार मानते हैं कि यहीं पर जयललिता ने बुनियादी गलती की थी। अपुष्ट सूत्र बताते हैं कि जया ने उस वक्त संपत्ति की सही जानकारी नहीं दी। बहरहाल मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पांच साल में प्रतिमाह 1 रुपए ही वेतन लिया और इस दौरान उनकी आमदनी सरकारी तौर पर 60 रुपए ही रही। यह बात अलग है कि उनकी चल-अचल संपत्तियां बढ़ती रहीं। किंतु वह दौर ऐसा नहीं था जब दिन-दौगुनी रात चौगुनी कीमतें बढ़ें इसलिए मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद जब जयललिता ने अपनी संपत्ति की घोषणा की तो 1996 में वह बढ़कर 67 करोड़ रुपए हो गई। यानी 64 करोड़ का इजाफा। आयकर विभाग की जयललिता पर नजर तब ही पड़ी। आयकर छापों को राजनीति से प्रेरित बताया गया, जब छापे पड़े तो 10,500 कीमती साडिय़ां, 750 जोड़ी सेंडिल, 91 घडिय़ां, 28 किलो सोना और 800 किलो चांदी मिली, लेकिन इसके अलावा अचल संपत्ति के जो ब्यौरे मिले वह हैरान करने वाले थे। जयललिता चाय बागानों की मालकिन थीं, हैदराबाद में उनके पास बड़ा सा फार्म था और कई मकान थे इसके अलावा सैकड़ों एकड़ जमीन भी थी। जयललिता के दत्तक पुत्र सहित तमाम साथियों ने 34 कंपनियां बना रखी थी, जिनके नाम 100 बैंक खाते थे। जयललिता ने अपने दत्तक पुत्र के विवाह में पांच करोड़ रुपए खर्च किए थे जो उस समय के मान से बड़ी भारी रकम थी। आज यह आंकड़े थोड़े छोटे लगते हैं, क्योंकि हमें हजारो करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करने की आदत बन चुकी है। लेकिन 1996 की कीमतों की तुलना आज से की जाए तो 7-8 सौ करोड़ रुपए की संपत्ति तो प्राथमिक तौर पर पता चल ही रही है। जयललिता के समर्थक कहते हैं कि अम्मा प्रख्यात अभिनेत्री थीं, लिहाजा पहले ही अमीर थीं। राजनीति में उन्होंने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया और न ही गलत तरीके से पैसा कमाया, लेकिन जयललिता के विरोधियों ने उन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कोर्ट ने भी जयललिता के साथ-साथ उनकी सहेली शशिकला, बेदखल किए जा चुके दत्तक पुत्र वीएन सुधाकरन, भतीजी इलावर्सी को भी भ्रष्टाचार का दोषी पाते हुए 4-4 वर्ष की सजा और 10-10 करोड़ का जुर्माना लगाया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भ्रष्टाचार की लाभार्थी अकेली जयललिता नहीं थीं बल्कि उनके निकट के लोग भी थे। सजा सुनाने वाले विशेष न्यायाधीश जॉन माइकल डिकुन्हा ने कोई नरमी नहीं दिखाई बल्कि उनके चेहरे की दृढ़ता यह साफ इंगित कर रही थी कि मामला गंभीर है और न्यायपालिका राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए कमर कस चुकी है। सजा सुनते ही जयललिता की तबियत बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां सभी जांचें सामान्य निकलीं। जयललिता के विरुद्ध यह मामला तमिलनाडु में भी अदालत द्वारा तय किया जा सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सुनवाई कर्नाटक के बैंगलुरू में बाहरी क्षेत्र परप्पाना अग्रहारा स्थित केंद्रीय जेल में बनी विशेष अदालत में की गई। वर्ष 2001 में भी सितंबर माह में सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता के खिलाफ जब फैसला सुनाया था तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गवानी पड़ी थी, लेकिन इस बार का निर्णय थोड़ा अलग है।
राजनीतिज्ञों पर शिकंजा
लालूप्रसाद यादव के बाद जयललिता ऐसी दूसरी मुख्यमंत्री हैं जिन्हें सजा सुनाई गई है। लालू प्रसाद यादव ने सजा से पहले ही इस्तीफा देकर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया था और उन्हें सर्किट हाउस में अस्थाई कारावास बनाकर वीआईपी कैदी की तरह रखा गया था, लेकिन जयललिता को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा। लालू यादव उस सर्किट हाउस से ही अपना साम्राज्य चला रहे थे, किंतु जयललिता तो दूसरे राज्य की जेल में हैं और छह अक्टूबर तक उन्हें राहत मिलने वाली नहीं है। ऐसे में वे जेल से कैसे अपना साम्राज्य संचालित करेंगी, कहना कठिन है पर राजनीति में सब कुछ संभव है। जयललिता की सजा से यह साफ हो रहा है कि न्यायपालिका ने राजनीति को साफ करने का अभियान चलाया हुआ है। जगन्नाथ मिश्र, सुखराम, कनिमोझी, ए.राजा, सुरेश कल्माड़ी, लालू यादव सहित तमाम दिग्गज नेताओं को कुछ दिन सलाखों के पीछे गुजार चुके हैं। इनमें से अधिकांश के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप हैं। जिस तरह का कानून पिछले दिनों बनाया गया है और जिस तरह के दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने हाल के दिनों में जारी किए हैं उसे देखते हुए साफ कहा जा सकता है कि राजनीतिज्ञों के लिए अपना राजनीतिक जीवन साफ-सुथरा रखना अपरिहार्य है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो कभी भी लपेटे में आ सकते हैं। क्या जयललिता के प्रकरण के बाद देश की राजनीति बदलेगी। देश में कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर आरोप लगे हैं। आदर्श घोटाले से लेकर कोल आवंटन तक कई बड़े घोटालों में राजनीतिज्ञों की लिप्तता स्पष्ट दिख रही है।
-Rajendra agal