जय जवान
17-Sep-2014 04:57 AM 1234830

वे सीमा के सजग प्रहरी हैं। उनके खून का एक-एक कतरा सरहद पर गिरने के लिए बांट जोह रहा होता है। मज्जा जमा देने वाली सर्दी से लेकर खौला देने वाली गर्मी कारगिल की अनंत ऊंचाइयों से लेकर सागर की अतल गहराईयों तक-सुगम से सुगम और दुर्गम से दुर्गम मार्गों तक उनके कदम कभी थकते नहीं हैं। वे कभी गोलियों का आघात सरहद पर झेलते हैं तो कभी उनके साथियों का सर काटकर दुश्मन निर्ममता से ले जाते हैं तो कभी उनमें से कुछ को मारने के बाद उनके क्षत-विक्षत शव उसी बांग्लादेश के द्वारा हमें सौंपे जाते हैं जिसकी बहन, बेटियों और माताओंं की लाज 1971 के युद्ध में उन्होंने बचाई थी।
जी हां बात हो रही है भारत की जाबांज सेना की। जिसने अपने अदम्य साहस, धैर्य, वीरता और मानवता जैसे उच्च गुणों का परिचय देते हुए आज उसी कश्मीर की वादी में सैलाब से तबाह होते, दम तोड़ते लाखों लोगों को बचाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया है जहां उस पर पथराव किया जाता है और मानवाधिकार के ठेकेदार जिस सेना पर आए दिन मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाते रहते हैं।
सचमुच देवतुल्य है भारत की सेना। हमारा समाज एक डॉक्टर को भगवान मानता है क्योंकि 99 प्रतिशत जीवन ईश्वर के हाथों में तो 1 प्रतिशत डॉक्टर के हाथ में भी सांसे होती हैं। लेकिन इस देश के इन वीर सैनिकोंं को क्या कहा जाए जिन्होंने कई उखड़ती सांसों को फिर से जीवन दिया। बाल-अबाल, वृद्ध, महिला-पुरुष सब को अपने कंधों पर ढोया। बाढ़ की विभीषिका में अपना सर्वस्व खोने वालों को सांत्वना दी उन्हें अन्यत्र बसाया। पाकिस्तान और चीन द्वारा हथियाए जा चुके कश्मीर को छोड़ कर पानी में डूब चुके भारत के हिस्से वाले लगभग कश्मीर के 85 हजार 806 वर्गमील क्षेत्र के जनसंख्या वाले चप्पे-चप्पे को पैदल, गाडिय़ों से, हैलीकॉप्टरों से लेकर नावों और अन्य साधनों से छान मारा। एक-एक जान को जीवित बचाने के लिए अपनी जान लगा दी। बिना किसी भेदभाव के संपूर्ण पे्रम और मानवता के साथ कश्मीरियों को जिंदा रखने की और बाढ़ से बचाने की हर संभव कोशिश की। हमारे बहुत सेे सैनिक घायल हो गए, कुछ बीमार भी पड़े, कुछ पानी में बह भी गए। लेकिन सेना का अभियान रुका नहीं। वह अभी तक जारी है और बदस्तूर जारी रहेगा।
कभी कश्मीर से भारतीय सेना हटाने के लिए आंदोलन करने वाले अलगाववादियों से लेकर अवसरवादी राजनीतिज्ञोंं तक आज हर कोई भारत की सेना को सराह रहा है। यहां तक की जम्मू कश्मीर की जनता भी राज्य सरकार को कोसते हुए सेना को पुकार रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य का दौरा करने के बाद सेना को पूरी मुस्तैदी के साथ एक-एक कश्मीरी का जीवन बचाने का कहा था। सेना ने वह कर दिखाया। सीमित संसाधनों के बावजूद सैनिकों ने अपनी सूझ-बूझ और परिश्रम से जनहानि को बहुत कम कर दिया। प्रधानमंत्री ने तो पड़ौसी देश पाकिस्तान को भी सहायता की पेशकश की थी लेकिन पाकिस्तान ने धन्यवाद देते हुए उस पेशकश को ठुकरा दिया और पाकिस्तानी चैनलों ने कश्मीर घाटी मेें दुष्प्रचार शुरू कर दिया। अफवाह फैलाई जाने लगी ताकि आवाम भारतीय सेना के खिलाफ खड़ी हो जाए। लेकिन भारतीय सेना की सेवा भावना ने कश्मीरियों को यह अहसास कराया कि जब भी मुसीबत या आपदा आएगी उनके देश के सजग प्रहरी ही उनका हौसला बढ़ाने आएंगे। न तो वे आएंगे जिन्होंने इस देश को अलगाव की आग में झोंक रखा है और न ही वे आएंगे जिन्होंने कश्मीर में मानवाधिकार के नाम पर भारतीय सेना को इतना बदनाम करके रखा है कि सैनिक अपने सीने पर तो गोलियां झेल लेते हैं लेकिन उन आतताईयों को उत्तर देने से पहले चार बार सोचते हैं कि कहीं उनकी गोली से कोई नुकसान हो गया तो कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ सकता है। जिस सेना को मानवाधिकार के नाम पर दशकों से मानसिक प्रताडऩा दी जा रही है आज उसी ने मानवता, दया और करुणा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया है। अब शायद भारतीय सेना के उन आलोचकोंं का मुंह बंद हो सकेगा और उन्हें यह अहसास होगा कि यह वह सेना नहीं है जो गाजापट्टी में मासूमों पर बम बरसाती है, यह वह सेना भी नहीं है जो ईराक में रासायनिक हथियारों का बहाना लेकर जनता के शासक को अपदस्थ करते हुए 10 लाख से अधिक ईराकियों को मार गिराती है, यह वह सेना भी नहीं है जो एक देश का हौसला तोडऩे के लिए हिरोशिमा और नागासाकी जैसे हमले करती है। बल्कि यह तो वह सेना है जो अपने अदम्य साहस से दुश्मन की सीमा में जाए बगैर कारगिल की चोटियों पर फिर से तिरंगा फहरा देती है।
कश्मीर में ही नहीं उत्तराखण्ड त्रासदी से लेकर देश के तमाम हिस्सों में आई बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं के समय देश के सैनिकों ने बचाव कार्य का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। चाहे वह बोर वेल में फंसा बालक प्रिंस हो या फिर केदारनाथ की घाटियों में गुम हो चुके श्रद्धालु। सभी को बचाने के लिए सेना ही दौड़ी चली आती है और बिना किसी स्वार्थ के वे सैनिक अपनी जान पर खेलकर इस देश के नागरिकों की जान बचाकर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। लेकिन इन सैनिकों के हिस्से में क्या आता है? पूर्वोत्तर में उनसे नफरत की जाती है। कश्मीर में किसी भी कारण से कोई भी मरे उसकी मौत का कुयश सेना के माथे मढऩे का षड्यंत्र किया जाता है। सेना के खिलाफ प्रदर्शन होते हैं पत्थरबाजी होती है। शहीद हेमराज का सर ले जाने वाले दानवों का पता लगाने के लिए सीमा पार कोई दबाव नहीं बनाया जाता है लेकिन फिर भी सेना अपने कर्तव्य का पालन कर रही है।

एलबम पेज वार्निंगÓ

जम्मू-कश्मीर सरकार को एलबम पेज वार्निंगÓ भी दी गई थी। इसका इस्तेमाल सबसे गंभीर मामलों में ही होता है। इस चेतावनी का मतलब यह है कि मौसम के बारे में विभाग सिर्फ अनुमान नहीं लगा रहा। उसे एकदम पक्की जानकारी थी कि इस बार बारिश गंभीर खतरा बन सकती है।

कश्मीर में गंभीर है स्थिति

कश्मीर में ऐसी बारिश 109 वर्ष पहले हुई थी जब अंगे्रजों का राज हुआ करता था। उस वक्त जनसंख्या बहुत थोड़ी थी और लोग खतरनाक जगहों पर नहीं रहते थे। बीते वर्षों में कश्मीर घाटी से हिंदुओं को खदेड़ देने के बावजूद कश्मीर की जनसंख्या बढ़ती रही और लोगोंं ने उन खतरनाक स्थानों पर भी घर बना लिए जहां घर नहीं बनाना चाहिए। नदी के कछारों पर निर्माण हुआ। दरियाओं को रोका गया। पानी की निकासी की सही व्यवस्था नहीं की गई। प्रदेश में सत्तासीन रही सरकारों ने राजनीति करने के फेर में एक न सुनी और नगर नियोजन तथा विकास पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि भयानक बारिश ने श्रीनगर जैसे शहर को भंवर में तब्दील कर दिया और देखते ही देखते सैंकड़ों लोग काल कवलित हो गए।
बाढ़ के रास्ते में जो भी आया वह बह गया। हजारों बेघर हो गए। झेलम, चिनाव, तवी, मुनावर, पुलस्तर जैसी नदियां भयानक बहाव से बहने लगीं। कई पुल टूट गए। कई सड़कें बह गईं। देश का संपर्क जम्मू कश्मीर से टूट गया। बारिश इतनी भयानक थी कि बिजली, मोबाईल और इंटरनेट सेवा ठप्प हो गई। केंद्र ने राहत एवं बचाव कार्यों के लिए एनडीआरएफ की 6 टीमों को भेजा, सेना ने हैलिकाप्टरों को राहत कार्यों में लगाया। कई मकान ध्वस्त हो गए। भूस्खलन ने रातों रात चैन की नींद सोते लोगों को अपने आगोश में ले लिया। कई लोग बहकर पाकिस्तान में भी पहुंच गए जिनके जीवत या मृत होने की कोई खबर नहीं है। स्थिति बहुृत नाजुक है। बारिश के बाद अब पीने के पानी और राहत, बचाव कार्य की चिंता है। पानी धीरे-धीरे उतर रहा है। 2500 से ज्यादा गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। जिनमें से साढ़े चार सौ पानी में डूब चुके हैं। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने तो कहा कि ऐसी तबाही उन्होंने कश्मीर में इससे पहले कभी नहीं देखी। वैष्णो देवी के 35 हजार श्रद्धालु भी फंस गए थे। बाद में उन्हें सुरक्षित निकाला गया। जम्मू को बाकी देश से जोडऩे वाले पांचों पुल के आस-पास की मिट्टी बह गई है।  पुलवामा में तो बचाव कार्य में लगे सेना के नौजवान ही वोट से बह गए जिनका कुछ पता नहीं लगा। पुंछ, श्रीनगर, राजौरी, बारामुला में लाशें मिलने का सिलसिला जारी है। झेलम कई बार खतरे के निशान से ऊपर जा चुकी है। जम्मू से कटरा ट्रैन रूट को बंद करना पड़ा था। कई जगह रेल की पटरियों को भी नुकसान पहुंचा है। बहुत सी टनल में पानी आने की बात कही जा रही है।

अब अपनों की तलाश

जम्मू-कश्मीर में बाढ़ का पानी घटने लगा है, लेकिन मुसीबतें बढ़ गई हैं। सेना अब तक 3 लाख लोगों को बचा चुकी है। 2-3 लाख लोग अब भी फंसे हैं। कई तो ऐसी जगहों में फंसे हैं, जहां सेना भी नहीं पहुंच पा रही है। 2 सितंबर को शुरू हुई बारिश और बाढ़ से सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 240 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। लाखों लोग भोजन-पानी और दवाइयों की कमी से जूझ रहे हैं। इस बीच, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बाढ़ पीडि़तों को तीन महीने तक मुफ्त राशन देने की घोषणा की है।
बाढ़ की आड़ में घुसपैठ कर सकते हैं आतंकी
खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ की आड़ में पाकिस्तानी आतंकी घुसपैठ कर सकते हैं। एजेंसी ने केंद्र सरकार को पाक में चल रहे आतंकी ठिकानों का एक नक्शा सौंपा है। आशंका जताई गई है कि पीओके में तहस-नहस हुए आतंकी प्रशिक्षण केंद्र से आतंकी भारतीय सीमा में प्रवेश कर सकते हैं। सीमा रेखा पर कुछ जगहों पर लगे तारों के बाड़ भी बह गए हैं। इस वजह से घुसपैठ की कोशिश कर रहे आतंकी संगठनों को मौका हाथ लगा है। सूत्रों का कहना है कि राहत कार्य में लगी सेना को इसके मद्देनजर सतर्क कर दिया गया है। सीमा पर सैटेलाइट और अन्य तरीके से इस पर कड़ी नजर रखी जा रही है।

दो दिन पहले ही मिली जलप्रलय की जानकारी

जम्मू-कश्मीर में जलप्रलय की चेतावनी मौसम विभाग ने दो दिन पहले ही सरकार को दे दी थी। पटियाला स्थित मौसम विभाग ने भी जम्मू-कश्मीर को अलर्ट किया था। इसके बावजूद पूरी मशीनरी तबाही को रोकने या कम करने में नाकाम रही। दिल्ली स्थित रीजनल मौसम विभाग के प्रमुख एसएस सिंह ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के स्थानीय मौसम विभाग ने 48 घंटे पहले स्टेट रिलीफ कमिशनर, राज्य के आपदा प्रबंधन, नगर निगम, पुलिस, रेलवे, स्वास्थ्य विभाग को बहुत अधिक बारिशÓ की चेतावनी भेजी थी।

सेना का कमाल, एक दिन में बनाए दो पुल...

सेना के इंजीनियरों ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए बाढ़ प्रभावित जम्मू कश्मीर के पुंछ और जम्मू जिलों में 24 घंटे से भी कम समय में दो पुलों का पुनर्निर्माण कर दिया। डोरंगली पुल जिसका एक हिस्सा गत छह सितंबर को अचानक आई बाढ़ में बह गया था यह पुल पुंछ और राजौरी के बीच एकमात्र संपर्क है। सेना की इंजीनियर्स यूनिट सक्रिय हुई और उसने सुबह पुनर्निर्माण का काम शुरू किया और दोपहर तक पुल को चालू कर दिया। सेना के इंजीनियरों ने जम्मू में तवी नदी पर 150 मीटर लंबा बेली पुल बनाया ताकि 47 गांवों के साथ संपर्क जोड़ा जा सके। बाढ़ के कारण इन गांवों का संपर्क टूट गया है।

जान बचाने के लिए जानें गंवाई हैं सेना ने

990
लोगों की मौत
27,986
लोगों की जान बचाई सेना ने
60 
राहत शिविर खोले
41,000
बीमारों का इलाज किया
6
महीने तक चला था राहत व पुनर्वास का काम

उत्तराखंड में राहत कार्य में जुटे भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टर क्रैश में एयरफोर्स कर्मियों ने जान गंवाई है। दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगाने का यह पहला मौका नहीं है। भारतीय सेनाओं ने हाल के बरसों में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मानवीय त्रासदी से निबटने के बेमिसाल अभियान कई बार चलाए हैं जिनमें से कुछ भुलाए नहीं भूले जा सकते।
2004 की सूनामी
हिंद महासागर में आए समुद्री भूकंप की वजह से 2004 में अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप के अलावा तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल के तटीय इलाकों के करोड़ों लोगों को सूनामी का कहर झेलना पड़ा था। समुद्र की विशानकारी लहरों ने उस वक्त भी वहां सब कुछ तबाह कर दिया था मगर वायुसेना और नौसेना की मदद से अप्रत्याशित राहत कार्य चलाया गया। इस दौरान सेना के कई जवान भी मारे गए थे।
2005 का कश्मीर भूकंप
अक्टूबर, 2005 में जम्मू-कश्मीर विनाशकारी भूकंप की चपेट में आया। सेना ने इस दौरान ऑपरेशन इमदाद चलाया। हालांकि इस भूकंप ने 45 सैनिकों की जान ली और 245 अन्य को अपंग बना दिया लेकिन सेना ने कश्मीर के दूरदराज के पहाड़ी इलाकों में पीडि़तों की
ऐसी मदद की कि आम कश्मीरी आज भी याद करते हैं।
2010 में लेह की तबाही
अगस्त, 2010 में लेह पर बादल फटने से 72 गांव तबाह हो गए थे और 265 लोग मारे गए साथ ही हजारों लोग बेघर हो गए थे। तब सेना के जवानों ने वहां के लोगों को राहत पहुंचाई।
2011 का सिक्किम भूकंप
अक्टूबर, 2011 में सिक्किम में आए भूकंप ने राहत व बचाव कार्य की जिम्मेदारी संभाली और 5,850 सैनिक तैनात कर सिक्किम के लोगों को सामान्य जीवन में लौटने में मदद की।
विदेश में भी भेजी गई मदद
अमेरिका : देश में ही नहीं विदेश में भी भारतीय सेना ने मानवीय राहत कार्य की जिम्मेदारी ली है। सितंबर, 2005 में अमेरिका के कैटरीना तूफान में वायुसेना ने अपने आईएल-76 विमान पर 25 टन राहत सामग्री भेजी थी।
फिलिपीन : फरवरी, 2006 में फिलीपीन में भूस्खलन की वजह से जानमाल की भारी तबाही हुई। इस दौरान सेना ने 30 टन राहत सामग्री वहां भेजी।
इंडोनेशिया : जून, 2006 में आए भूकंप के दौरान नौसेना के पोत आईएनएस तबर और वायुसेना के दो आईएल-76 विमानों से 86 टन राहत सामग्री भेजी गई। इसमें दवाएं, टेंट, फूड पैकिट आदि शामिल थे।
बांग्लादेश : नवंबर, 2007 में बांग्लादेश में आए भीषण तूफान के बाद वायुसेना ने विशेष विमानों से भारी मदद भेजी।

 

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