18-Sep-2014 06:07 AM
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एलएनटी के मालिक ए एम नाइक मध्यप्रदेश से राष्ट्रीय पुरस्कार की जुगाड़ लगा रहे हैं। कंपनी के गुर्गे राजधानी के मंत्रालय में मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव से लेकर उद्योग के प्रमुख सचिव की जुगाड़ से

इस रत्न को हासिल करना चाहते हैं। परंतु इस काम में वह लेट हो गए। कुछ दिन पूर्व ही इस अवार्ड के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक हो चुकी है। जिसमें नरोन्हा अकादमी के महानिदेशक इंद्रनील शंकर दाणी, प्रमुख सचिव गृह वसंत प्रताप सिंह, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा केके सिंह की कमेटी ने इंदौर के सुशील दोषी क्रिकेट कमेंटेटर के नाम की अनुशंसा कर दी है। हास्यास्पद स्थिति तो तब निर्मित हुई जब उक्त कमेटी द्वारा दोषी के नाम की अनुशंसा के उपरांत उद्योगपति की कम्पनी के कुछ एक्जीक्यूटिवों ने दौड़-धूप करके मुख्यमंत्री से भी अनुशंसा का पत्र लिखवा लिया और 12 सितंबर को नाईक के नाम की अनुशंसा केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को भेज दी गई। तकनीकी रूप से उक्त कमेटी दोबारा अनुशंसा करते हुए अपनी पूर्व की अनुशंसा को रद्द नहीं कर सकती थी लिहाजा मुख्यमंत्री से अनुशंसा करवाई गई। अब देखना यह है कि किसकी अनुशंसा को तरजीह दी जाती है या दोनों ही अनुशंसाएं कचरे के डब्बे में फेंक दी जाएंगी।
भारत रत्न जैसे पुरुस्कार तो अपने ही रत्नों को दिए जा रहे हैं और अब पद्म पुरुस्कारों का भी राजनीतिकरण हो चुका है। हाल ही मेें मप्र में पद्मविभूषण की रेवड़ी बांटने की कोशिश की गई और हमेशा की तरह कुछ अपने वालों को उपकृत किया गया। यूं तो पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे पुरुस्कारों के लिए योग्यता ही सर्वोच्च मापदंड होना चाहिए लेकिन सरकार की कृपा हो तो पंगु चढ़हिं गिरिवर गहन की तर्ज पर किसी भी अपने वाले को इस महत्वपूर्ण पुरुस्कार से नवाजा जा सकता है।
कुछ ऐसा ही वाकया हो रहा है मप्र में गुजरात के उद्योगपति और एलएनटी के मालिक ए एम नाईक मप्र से नामित होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं और लेकिन नाईक का नाम आगे करने की मुहिम आखिर क्यों चली? उनकी कम्पनी एलएनटी का मप्र के लिए क्या योगदान है। अगर उन्हें इस पुरस्कार से नवाजना ही था तो पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके योगदान को देखते हुए घर से बुलाकर इस पुरस्कार को उनके हाथ में थमा देते। परंतु मध्यप्रदेश को तो लल्लू प्रदेश समझ रखा है। क्योंकि यहां की अफसरशाही सरकार के मालिकों से वो सारे फैसले करा लेती है जो अन्य प्रदेशों में संभव नहीं है। पिछली बार भी कुमार मंगलम बिड़ला का नाम ऐसे ही आगे बढ़ाया गया जब उन्होंने निवेश करने का आश्वासन भर दिया था। ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश में तो निवेश आएगा ही नहीं। जबकि मुख्यमंत्री बार-बार इस बात की घोषणा कर चुके हैं कि मध्यप्रदेश अब बीमारू राज्य नहीं है। फिर इन उद्योगपतियों को इस तरीके से नवाजना कहां तक संभव है या तो अफसर अपना हित साधने के लिए इनकी चम्मचगिरी करते होंगे या फिर अपना कोई निजी स्वार्थ होगा। देश में हवा यह फैली है कि मध्यप्रदेश में तो हर चीज खरीदी जा सकती है।
कुमार मंगलम का नाम मध्यप्रदेश से जाने के बाद पुरस्कारों के घोषणा के एक दिन पूर्व उनके ठिकानों पर सीबीआई छापे हो गए। ऐसा लगता है कि ऊपर वाला जो करता है वह सोच-समझकर करता है नहीं तो फिर मध्यप्रदेश का नाम खराब हो जाता। सवाल यह है कि योग्यता के आधार पर दिए जाने वाले इन पुरुस्कारों को निजी हितों के चलते प्रभावी क्यों किया जा रहा है। इससे उन पुरुस्कारों की विश्वसीनयता ही खतरे में पड़ गई है। भारत में पुरुस्कार वैसे भी 1954 से विवादित हैं जब नेहरू के खासमखास चक्रवत्र्ती राजगोपालाचारी को भारत रत्न दिया गया था जबकि उस समय देश में कई काबिल व्यक्ति थे। निश्चित रूप से राजगोपालाचारी इस सम्मान के हकदार थे लेकिन उनका नाम बाद में आता तो ठीक रहता पर नेहरू से नजदीकी ने उन्हें अन्य लोगों से आगे कर दिया। जब डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्ण को भारत रत्न दिया गया उस वक्त भी मौलाना आजाद और सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे निष्ठावान देश भक्त इस देश में थे। होता यह है कि ऐसे पुरुस्कारों के लिए देश के गणमान्य नागरिकों और राज्य सरकारों से अनुसंशाएं मांगी जाती हैं और लोग अपने-अपने वालों की अनुसंशाएं कर देते हैं। इसी वजह से पिछले वर्ष 2013 में दक्षिण भारत की सुर कोकिला एस जानकी ने पद्म पुरुस्कार ठुकरा दिया था। पूर्व आतंकवादी गुलाम मोहम्मद मीर को पद्मश्री देने पर भी विवाद हुआ था। लता मांगेश्कर ने जब अपनी बहन का नाम पद्म पुरुस्कार के लिए आगे बढ़ाया तब भी बहुत बवाल मचा। क्योंकि इन पुरुस्कारों को लेकर कोई विशेष दिशानिर्देश और नीति सरकार के पास नहीं है इसलिए हर वर्ष पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण को लेकर विवाद अवश्य पैदा होता है। पिछलेे वर्ष पहलवान सुशील कुमार का नाम सम्मानों की सूची में नहीं आने पर बवाल मचा था। सुशील कुमार ने इससे असहमति व्यक्त की थी।
-Kumar Rajendra