टाइगर स्टेट में अक्षम्य लापरवाही
18-Sep-2014 06:00 AM 1234801

इंदौर के चिडिय़ाघर में उस दिन मातम का माहौल था। 2 दिन के अंतराल में ही 3 बाघ शावकों को दफन करना पड़ा था। कारण यह रहा कि उनकी मां व्हाइट टाइगर शिवानी के दांत शावकों को गड़ गए थे और शिवानी की असावधानी से 3 बाघ शावक असमय ही काल-कवलित हो गए। एक ऐसे देश में जहां टाइगर की जान बेशकीमती है 3 नए शावकों का दम तोडऩा अक्षम्य लापरवाही ही कहा जा सकता है। मां के दांत गडऩे से जब पहले दिन ही शावक की मृत्यु हो गई थी उसके बाद बाकी बचे शावकों को समय रहते अलग करके उन्हें बचाने का प्रयास किया जा सकता था। यह सच है कि शावकों के लिए सबसे मुफीद उनकी मां का दूध ही होता है लेकिन यह भी सच है कि देश के कई चिडिय़ाघरों में ऐसे शावकों को पाला गया है जिनकी मां मारी गई अथवा मां ने शावकों को त्याग दिया। ऐसी स्थिति में शावकों को बकरी या किसी अन्य पशु का दूध तब तक दिया जा सकता है जब तक की वह मांस खाने में सक्षम न हो जाएं।
बाघ शावकों के साथ एक दुविधा यह भी है कि वे 8-10 दिन तक आंखें नहीं खोलते और इस दौरान मां के दूध से जो पोषण मिलता है उसका सबसे पहला फायदा इन शावकों की आंखों को ही होता है जो देखने में सक्षम हो जाती हैं और मां का दूध उन आंखों को इतना ताकतवर बना देता है कि वे रात के समय भी देख सकती हैं। जंगलों में बाघिन अपने शावकों को सुरक्षा की दृष्टि से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती रहती है ताकि परभक्षियों से उन्हें बचाया जा सके। दांत गडऩे से कई बार शावकों की मृत्यु भी हो जाती है। चिडिय़ाघर में भी बाघिन या बिल्ली प्रजाति के अन्य जीव इसी तरह अपने शावकोंं को सुरक्षित स्थान पर रखने की कोशिश करते हैं जो कि कई बार खतरनाक भी हो जाता है। वाइल्ड लाइफ के विशेषज्ञ ऐसी मौतों को सामान्य मानते हैं। उनके अनुसार इन हालातों में ज्यादा कुछ किया नहीं जा सकता लेकिन एक अलग पहलू यह भी है कि बहुत से चिडिय़ाघरों में जन्म के बाद बाघ शावकों को बाघिन के व्यवहार को देखते हुए अन्यत्र भी पाला जाता है। बहरहाल 3 मौतें दर्दनाक हैं। चौथे शावक की हालत भी नाजुक है। लेकिन इस खबर के बावजूद एक अच्छी खबर यह भी है कि मप्र में टाइगरों की संख्या लगातार बढ़ रही है और 2006 के मुकाबले प्रदेश में टाइगर अच्छी खासी तादात में हो चुके हैं। हालांकि यह संख्या अभी भी खतरे के निशान के आस-पास ही है किंतु बाघों की संख्या में इजाफा इस बात का संकेत है कि उचित वन्य प्रबंधन और सतत् निगरानी के चलते टाइगरों की संख्या बढ़ सकती है। इसी को देखते हुए मध्यप्रदेश को कर्नाटक से 9 हाथी मिलने पर सहमति बन गई है। शीघ्र ही चार से बारह वर्ष के यह हाथी अक्टूबर माह में मध्यप्रदेश पहुंच जाएंगे। सर्वाधिक हाथियों को सीधी के संजय टाइगर रिजर्व में तैनात किया जाएगा और उसके बाद बांधवगढ़, सतपुड़ा और पन्ना राष्ट्रीय उद्यानों में भी यह तैनात होंगे। संजय टाइगर रिजर्व के पास फिलहाल कोई हाथी नहीं है हाल ही मेें यहां एक टाइगर पन्ना से लाया गया है जिसकी निगरानी के लिए अब हाथी तैनात किया जाएगा।
मध्य प्रदेश में कान्हा और बांधवगढ़ नेशनल पार्क में सर्वाधिक बाघ हैं। राज्य में बीते वर्षों में रातापानी अभयारण्य, पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ी है। भोपाल से करीब 15 किलोमीटर दूर रातापानी अभयारण्य में बाघों की संख्या 20 से ऊपर है। भोपाल सर्कल के तहत रातापानी अभयारण्य से जुड़े कालियासोत और केरवा डेम तथा कठोतिया एवं समरधा वन क्षेत्र में बाघों के लिए अनुकूल वातावरण, जंगल और भोजन के लिए पर्याप्त संख्या में वन्यप्राणी उपलब्ध हैं। रातापानी अभयारण्य में वर्ष 2010 की गणना में बाघों की संख्या 17 थी। इसके बाद इनकी संख्या में वृद्धि होती जा रही है। वर्ष 2010 की अंतिम तिमाही में राजधानी के शहरी क्षेत्र से लगे कालियासोत और केरवा डेम के विशाल वन क्षेत्र की तरफ एक बाघ ने रुख किया था। इसके कुछ माह बाद पास के वन क्षेत्र समरधा से अचानक एक बाघिन ने  तीन शावकों के साथ इस इलाके में डेरा डाल दिया था। पन्ना, दूधवा, कान्हा सहित तमाम नेशनल पार्कों में 2011 के मुकाबले स्थिति बेहतर हुई है। मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेटÓ का खोया राष्ट्रीय दर्जा लौटाने की मुश्किल चुनौती का सामना कर रहे वन विभाग के लिये ये ताजा संकेत बेहद अहम हैं। महकमे को सूबे के पश्चिमी हिस्से के जंगलों में वन्य प्राणियों की गिनती के दौरान इंदौर रेंज में कम से कम चार बाघों की मौजूदगी के निशान मिले हैं। वन विभाग कोशिश कर रहा है कि बाघ की मौजूदगी के ज्यादा से ज्यादा सबूत जमा किये जायें, ताकि रेंज के जंगलों में इस प्राणी की बसाहट की तसदीक करने में आसानी हो। पिछली बार वन्य प्राणियों की गणना के वक्त नजदीकी देवास जिले के उदय नगर क्षेत्र के जंगलों में कम से कम तीन बाघों की मौजूदगी के पुख्ता सबूत मिले थे। इनमें से दो बाघों को तो वन विभाग के कर्मचारियों ने अपनी आंखों से देखा है, जबकि एक अन्य बाघ के पदचिन्ह पाये गये थे। उदय नगर क्षेत्र में बाघ की मौजूदगी के बारे में वन विभाग को ग्रामीणों से सूचनाएं प्राप्त होती रही हैं। उज्जैन रेंज में बाघों की मौजूदगी के नये संकेतों के मद्देनजर वन विभाग इस प्राणी के संरक्षण के लिये नये सिरे से योजना बना रहा है। भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की एक रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के इंदौर और देवास वन क्षेत्रों में करीब सात बाघों की मौजूदगी का अनुमान पहले ही लगाया जा चुका है।

 

- Kumar Subodh

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