तबादले से शर्मसार हुए नंदकुमार
18-Sep-2014 05:50 AM 1234806

मध्यप्रदेश भाजपा के  नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान ने अपना रुतबा दिखाने के लिए दो पुलिस कर्मियों के तबादले की सिफारिश खरगौन एसपी से कर दी। अब सत्तासीन दल का आदेश भला कैसे ठुकराया जा सकता है और वो भी प्रदेशाध्यक्ष का। लिहाजा खरगौन एसपी एनपी वरकड़े ने अपने आदेश में लिख दिया कि माननीय प्रदेश अध्यक्ष जी के निर्देश पर अमुक आरक्षकों का तबादला किया जाता है। बेचारा एसपी माननीय के तेज से इतना झुलस गया था कि उसने नंदकुमार चौहान की जगह नंदकुमार पटेल लिख दिया और तबादले का आदेश जारी कर दिया।
किंतु खबर केवल यह नहीं है असली खबर तो कुछ और है। यही कारण रहा कि सरकार ने उक्त आदेश तुरंत निरस्त करके उन पुलिस कर्मियों को यथास्थान रहने दिया। खोजी लोगों ने पता लगाया है कि यह आदेश भी फाइलों में कहीं दब कर गुम हो जाता लेकिन किसी भीतरघाती ने बकायदा यह खबर न केवल मीडिया को लीक की बल्कि आदेश की फोटोकॉपियां भी पत्रकारों को उपलब्ध करा दीं। अगर उक्त नोटशीट की कापी पुलिस प्राप्त हो जाती तो नंदकुमार सिंह चौहान का अध्यक्ष बनने में खलल पैदा हो सकती थी। नंद कुमार चौहान के सिपहसालार यह खोजने में लग गए कि किस दिलजले ने खबर प्रसारित करवाई है।
अंतरसिंह आर्य ने प्रस्तावित तबादला सूची से नाम हटाने की सिफारिश की
सरकार के कबीना मंत्री अंतरसिंह आर्य ने बड़वानी जिले के एसपी का तबादला न करने की नोटशीट लिख डाली। मजे की बात तो यह है कि उनका तबादला ही नहीं हुआ तो तबादला रोकने की नोटशीट का क्या मतलब। मगर एसपी पीएस मीना के बारे में मंत्री ने लिखा है कि प्रस्तावित तबादला सूची में इनका नाम है इसलिए उन्हें यथावत रखा जाए। अब ऐसा लगता है कि सरकार के मंत्री ही पुलिस की पोस्टिंग रुकवाने और करवाने का काम कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही वाकया राजेश राजौरा का है। राजेश राजौरा ने भी भाजपा के प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में कृषि महोत्सव कार्यक्रम का प्रजेंटेशन अपनी मर्जी से नहीं दिया था बल्कि प्रमुख सचिव की हैसियत से उन्हें यह प्रजेंटेशन देने के लिए सरकार ने ही बाध्य किया था। किंतु अब सरकार ने चुप्पी साध ली है। जब सरकार ने ही उन्हें ऐसा करने के लिए कहा तो सरकार को राजौरा के पीछे खड़े रहना चाहिए पर विपक्ष के दबाव में सरकार पीछे हट गई और रक्षात्मक मुद्रा में आ गई। सरकार की तरफ से कहा गया कि भविष्य में ऐसी गलती नहीं की जाएगी। हालांकि कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने अवश्य थोड़ा साहस दिखाया और कांगे्रस को पत्र भेजकर कहा कि यह किसानों के कल्याण से जुड़ा आयोजन था जिसमें समस्त विभागों के साथ समाजसेवी संगठन, राजनीतिक दल, किसान संगठन व समाज का हर वर्ग शामिल हुआ था। बिसेन ने तो यह तक कहा कि ऐसा कोई आयोजन कांग्रेस कराएगी तो प्रमुख सचिव वहां भी प्रजेंटेशन दे सकते हैं। उधर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव कह रहे हैं कि यह अखिल भारतीय सेवा नियमों का उल्लंघन है। कांगे्रस ने मुख्य सचिव को भी शिकायत की है।  इस पूरे मामले में सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर राजेश राजौरा को भाजपा कार्यालय में प्रजेंटेशन देने की क्या आवश्यकता थी? मध्यप्रदेश आईएएस एसोसिएशन भी इसे गलत ही मान रही है। राजौरा एक काबिल अफसर हैं उन्हें इतना ज्ञान तो होना ही चाहिए कि कदाचरण और आचरण क्या होता है? प्रशासनिक सेवाओं की भी एक मर्यादा है। देखा जाए तो सरकार जनता चुनती है और जनता के बीच राजनीतिक दल ही जाते हैं अफसर नहीं। लेकिन अफसरों को यह पता होना चाहिए कि किस कदम से विवाद हो सकता है। वे चाहें तो मना भी कर सकते हैं। सरकार के मुखिया अगर किसी अधिकारी को कुंए में कूदने को कहते हैं तो क्या उसे कूदना चाहिए। परंतु सहज स्वभाव के राजौरा ने दाएं-बाएं बगैर देखे भाजपा कार्यालय में पहुंचकर साहस का परिचय दे डाला। केरल और पश्चिम बंगाल में तो हमेशा सत्ता के कार्यालयों में आईएस और आईपीएस अफसर आते-जाते रहते हैं। वहां ऐसी परंपरा शुरू से बनी हुई है। सरकारी नौकरशाह सरकार की गोद में ही बैठा रहता है।
दो आईएएस अफसरों की पोस्टिंग नहीं हुई
धार कलेक्टर सीवी सिंह और उमरिया कलेक्टर सुरेन्द्र उपाध्याय दोनों प्रमोटी अफसर हैं। इन्हें मंत्रालय में तबादला सूची निकले लगभग एक माह बीत जाने के बाद  भी पोस्टिंग नहीं मिली।
पुलिस अफसरों की सूची अटकी
आईपीएस अफसरों की सूची अभी तक नहीं आई। सत्ता और संगठन ने शीघ्र ही डीजीपी के रिटायरमेंट के कारण उक्त सूची को विराम दिया हुआ है। अमूमन आईएस अफसरों की लंबी-चौड़ी सूची के बाद पुलिस अफसरों को अपने-अपने तबादलों का इंतजार था। परंतु जब वरिष्ठ अफसरों की सूची नहीं आ पाई तो कनिष्ठ अफसर हाथ पर हाथ धरे अपनी ट्रांसफर प्रतीक्षा सूची का इंतजार कर रहे हैं। देखना है कि यह सूची सत्ता, संगठन और डीजीपी के सामंजस्य से प्रसारित होगी या फिर बात अगले माह पर चली जाएगी।

सुरेंद्र सिंह हो सकते हैं नए डीजीपी
1980 बैच के आईपीएस सुरेंद्र सिंह पुलिस के नए महानिदेशक हो सकते हैं। उन्हें पुलिसिंग का लंबा अनुभव है। 1992 राम मंदिर विवाद के समय उन्हें पूरे देश में दंगे की स्थिति को देखते हुए राजधानी भोपाल का पुलिस कप्तान बनाया गया था और भोपाल कलेक्टर प्रवेश श्र्मा थे। अब इकबाल सिंह मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव हैं। वहीं सुरेंद्र सिंह पुलिस महानिदेशक जेल के पद पर हैं। अच्छी पुलिसिंग, साफ छवि के लंबे अनुभव के चलते उनका पुलिस महानिदेशक बनना तय है।

 

-Ajay dheer

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