17-Sep-2014 06:06 AM
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मध्यप्रदेश सरकार मध्यप्रदेश को उद्योगों के ग्लोबल मेप पर स्थापित करने की जी तोड़ कोशिश कर रही है लेकिन विभाग के ही अफसर एक अदने से प्राइवेट अधिकारी की जांच में वर्षों बिता देते हैं।

मामला सेडमैप के तथाकथित ईडी जितेन्द्र तिवारी की जांच से जुड़ा हुआ है। जिनके खिलाफ कार्रवाई करने वाला उद्योग विभाग रैंग रहा है। लोकायुक्त जांच प्रकरण क्रमांक 167/13 में सेडमैप के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर मेें जितेन्द्र्र तिवारी के विरूद्ध मनमर्जी से खरीददारी करने और संस्था को करोड़ों रुपए का चूना लगाने के आरोपों को लोकायुक्त द्वारा भी सत्य पाया गया है। लोकायुक्त के कहने पर विभाग ने जांच अधिकारी ओपी गुप्ता से इस पूरे घोटाले की जांच करवाई।
जांच में संबंधित अधिकारी जितेन्द्र्र तिवारी, जीपी मिश्रा, चित्रा अय्यर और एसएल कोरी के बयानों से साफ जाहिर हो रहा है कि उक्त खरीदी में इन सब अधिकारियों ने सप्लायरों के साथ मिलीभगत को अंजाम दिया था। जांच अधिकारी के समक्ष स्वयं तिवारी ने स्वीकार किया है कि 13 अप्रैल 2012 को क्षेत्रीय समन्वय जबलपुर द्वारा पत्र क्रमांक 1859 में जो टूल किट क्रय करने का निवेदन किया गया था उसका अनुमोदन तिवारी ने स्वयं ही किया था। उल्लेखनीय है कि पाक्षिक अक्स ने सर्वप्रथम इस टूल किट खरीदी घोटाले को उजागर किया था। 15 मई 2014 को यह जांच शुरू हुई और 31 मई 2014 को सेडमैप के विधि अधिकारी ने छ: बिन्दुओं पर जानकारी ओपी गुप्ता को सौंपी। जिसमें स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था कि भ्रष्टाचार हुआ है और तिवारी द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग किया गया है। किंतु तिवारी के कृपानिधान विभागीय अधिकारियों ने मई से लेकर सितम्बर तक का समय खानापूर्ति में ही निकाल दिया। पर कोई ठोस कदम या कार्रवाई होती दिखाई नहीं दे रही। हास्यास्पद तथ्य तो यह है कि जिस घोटाले को लोकायुक्त जैसी कानूनी संस्था के विधि अधिकारियों ने जांच योग्य पाते हुए सारे प्रकरण की जांच-पड़ताल कर ली है अब उसी के विषय में वरिष्ठ आईएएस अफसर अनुपम राजन ने लोकायुक्त की रिपोर्ट की ही चीर-फाड़ करते हुए रजिस्ट्रार फर्म सोसायटी से सु़झाव मांगा हैं कि इस संस्था की जांच लोकायुक्त कर सकता है या नहीं।
ऐसा लगता है कि उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव और सचिव इस बात को भूल गए हैं कि उक्त संस्था में चेयरमैन और शासकीय अधिकारी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर होते हैं। जिस जमीन पर यह बिल्डिंग बनी हुई है वह भी सरकार की दी हुई जमीन और सरकारी खर्च से ही बनी हुई है। अफसरों को एक्स, वाय, जेड तो आता है पर एबीसीडी कौन सिखाए। लोकायुक्त जैसी महत्वपूर्ण संस्था में विधि अधिकारी जज हुआ करते हैं। तभी तो उक्त शिकायत को जांच प्रकरण मानते हुए जांच कराई जा रही है। फिर भी आईएएस अफसर द्वारा कानून के जानकारों पर संदेह जताते हुए इसकी पुष्टि रजिस्ट्रार एवं फर्म सोसायटी से कराने का क्या औचित्य है? ऐसा लगता है कि आईएएस अफसर इस बात से पल्ला झाड़ते हुए अपने छोटे अधिकारियों को फंसवाना चाहते हैं।
इस प्रकरण मेें यह साफ प्रतीत होता है कि उद्योग प्रदेश का सपना देख रहे मध्यप्रदेश में किस तरह भ्रष्ट, अयोग्य और बेईमान लोगों को बचाया जाता है। उद्यमिता की ट्रेनिंग देने वाले सेडमैप के स्वयंभू कार्यकारी निदेशक तिवारी के खिलाफ अनियमितता के कई मामले हैं और वे वर्षों से ऐसे ही हथकंडे अपनाकर बचते रहे हैं। दुख की बात तो यह है कि सुलेमान जैसे काबिल अफसर जिन्होंने ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण विभाग में अपनी कार्यकुशलता की छाप छोड़ी है। सब कुछ जानते हुए भी शांत और निर्लिप्त बने हुए हैं। सुलेमान जैसे तेज-तर्रार अधिकारियों की यह खामोशी ही तिवारी का कवच है। उन्होंने इस मामले में हाथ क्यों नहीं डाला और वे इस गंभीर प्रकरण में क्यों तटस्थ बने रहे यह एक बड़ा सवाल है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाने की बात करते हैं लेकिन तिवारी जैसे भ्रष्ट उनकी नाक के नीचे लगातार अनियमितता करते हुए बचने में कामयाब हो जाते हैं। इसी के चलते कृषि संचालक डीएन शर्मा को मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद चलता कर दिया है। परंतु तिवारी पर मुख्यमंत्री और विभाग की नजर कब जाएगी।
- Sunil singh