05-Sep-2014 08:57 AM
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मध्यप्रदेश सरकार लाडली लक्ष्मी अभियान चला रही है। एक बार फिर नव दुर्गा का पर्व सामने है और देश की देवी शक्ति को गर्भ में ही मारा जा रहा है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जब जिला

प्रशासन ने जवाहर चौक स्थित एमएलए क्वाटर्स में संचालित जीएसएम हॉस्पिटल के संचालक प्रांजल एन गुरु के खिलाफ भ्रूण लिंग परीक्षण के तहत मामला दर्ज किया तो लगा कि लालची और पैसे के भूखे दरिंदे डॉक्टरों के होते इस देश की बेटियां मां के गर्भ में भी सुरक्षित नहीं हैं।
दरअसल यह मामला 45 दिन पुराना है। इस मामले में एक दंपत्ति ने इस हॉस्पिटल की संचालक डॉक्टर से बताया कि उनकी पहले से ही दो बेटियां हैं और वे अब बेटा चाहते हैं। डॉक्टर ने उन्हें किसी अल्ट्रासाउंड वाले के पास भेजा जहां से सोनोग्राफी की रिपोर्ट लेकर उक्त दंपत्ति पुन: डॉक्टर के पास पहुंचे और उन्हें रिपोर्ट बताई तो डॉक्टर ने गर्भ में लड़की होने की बात कहते हुए अबार्शन कराने की सहाल दी और उनसे पैसों की मांग की। दंपत्ति ने इस पूरे प्रकरण की बटन कैमरे से वीडियो भी बना ली और रिकार्डिंग भी कर ली।
इस पूरी घटना के कई पहलू हैं। समाज को सुधारने की दृष्टि से दंपत्ति ने वह स्टिंग आपरेशन किया इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं लेकिन साथ ही एक सवाल भी खड़ा होता है कि उन्होंने इस घटना को इतने समय तक क्यों दबाए रखा? अस्पताल संचालिका प्रांजल गुरु बदले-बदले बयान दे रही हैं। पहले तो उन्होंने कहा कि यह मामला ब्लैकमेलिंग का है। लेकिन बाद में उन्होंने मामले को अलग ही बताया। पाक्षिक अक्स के पास जो सूचना है उसके मुताबिक प्रांजल ने जांच अधिकारियों को बताया कि उक्त दंपत्ति ने कथित रूप से डॉक्टर प्रांजल को भ्रूण हत्या पर आधारित किसी फिल्म में काम करने का ऑफर दिया था और कहा था कि आप एक ऐसे डॉक्टर की भूमिका करें जो पैसे लेकर लिंग परीक्षण के आधार पर भू्रण हत्या करवाती है। लेकिन यह बात जांच कर्ताओं को हजम नहीं हुई क्योंकि कोई भी डॉक्टर इस तरह के प्रस्ताव स्वीकार नहीं करता और यदि उसे करना भी होता है तो वह सकारात्मक भूमिका का ही चयन करना चाहेगा। दूसरी कहानी यह बताई गई कि दंपत्ति ने बातचीत की रिकॉर्डिंग करने के बाद एक हफ्ते के भीतर पैसा देने अथवा टीवी चैनल पर मामला खोलने की धमकी दी थी। लेकिन यह कहानी भी दमदार नहीं लगती। यदि यह मामला ब्लैकमेलिंग का होता तो कब का निपट चुका होता।
सीधी सी बात यह है कि आज भी भोपाल ही नहीं देश के कई शहरों में अल्ट्रासाउंड के द्वारा भू्रण की पहचान करके उनकी हत्या की जा रही है। पहले पहल जब पीएनडीटी एक्ट इतना मजबूत नहीं था, यह काम खुलेआम किया जाता था। भोपाल में ही कई मामले पकड़ाए हैं। ज्यूपिटर और न्यू इंडिया क्लीनिक के संचालकों के खिलाफ जिला अदालत में चालान पेश किया जा चुका है। पीएनडीटी एक्ट का उल्लंघन करने वाले डॉक्टर केके चौकसे के क्षितिज अस्पताल का लाइसेंस भी निरस्त कर दिया गया था। डॉक्टर एसआर मालवीय, डॉक्टर हर्षल डफाल और डॉक्टर निर्मल जायसवाल की सोनोग्राफी क्लीनिक के लाइसेंस निरस्त कर दिए गए हैं। लेकिन ये तो बाद की कार्रवाई है। सच तो यह है कि देश भर में चलने वाले ऐसे क्लीनिक कई मिल जाएंगे जहां पैसा लेकर चोरी-छिपे यह काम हो रहा है। हरियाणा में सबसे ज्यादा है। यहां हर शहर में एक न एक मामला मिल जाएगा। पहले लिंग परीक्षण क्लीनिक की जानकारी देने पर 20 हजार रुपए का इनाम मिलता था अब 1 लाख रुपए बढ़ा दिया गया है पर फिर भी डॉक्टर ये जोखिम उठाते हैं। ग्वालियर में ही श्रीवास्तव अल्ट्रासाउंड सेंटर डबरा पर भू्रण परीक्षण का मामला सामने आया था तो उसका लाइसेंस निरस्त कर दिया गया था। डॉक्टर कपिल श्रीवास्तव तो इंदौर के किसी कॉलेज में अध्ययन कर रहा था उसी दौरान उसके विरूद्ध यह मामला बना।
यूरोप एवं अमेरिका में प्रति 100 पुरुषों पर 105 महिलाएं हैं जबकि विश्व के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश भारत में पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या घटती जा रही है। इससे सामाजिक असंतुलन की स्थितियां बनती जा रही है। उन्होंने कहा कि भारत की वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार प्रति हजार पुरुष पर 933 एवं राजस्थान में 922 महिलाएं हैं।
देश के अन्य राज्यों में भी स्थिति कोई ज्यादा अच्छी नहीं है। ज्यादा शिक्षित केरल राज्य में जहां प्रति हजार पुरुष पर सर्वाधिक 1098 महिलाएं थी। लेकिन 2001 की जनगणना में यह संख्या आश्चर्यजनक रूप से घटकर 963 रह गई है। बिहार में 921, गुजरात में 921, हरियाणाा 861, मध्यप्रदेश 920, महाराष्ट्र 922, पंजाब 857 महिलाएं प्रति हजार पुरुष पर है। पुरुष के अनुपात में महिलाओं की घटती संख्या के पीछे अशिक्षा और गरीबी को मूल कारण नहीं बताया जा सकता। भारत में 3 में से 1 बालिका अपना 15वां जन्मदिन नहीं देख पाती है। इसके साथ ही 4 में से 1 लड़की 4 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते यौन उत्पीडऩ का शिकार हो जाती है। लड़कों की तुलना में 3 लाख ज्यादा लड़कियां मौत की शिकार होती है। भारत में 5 से 9 वर्ष तक की करीब 53 प्रतिशत बालिकाएं अशिक्षित हैं।
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में हर महीने एक हजार से अधिक महिलाएं गर्भपात करा रही हैं। जबकि यह गर्भपात नियमों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं इसका सरकार के पास कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। यही नहीं आरटीआई के जरिए मांगी गई जानकारी में परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण विभाग के पास की भी जानकारी नहीं मिल पाई कि गर्भपात कराने वाली लड़कियों की उम्र क्या है? आरटीआई कार्यकर्ता राजहंस बंसल ने बताया कि दिल्ली के सरकारी केन्द्रों में नियमों के अनुरूप गर्भपात न होने की जानकारी मिलने पर सभी सरकारी अस्पतालों में पांच वर्षो में होने वाले गर्भपात की जानकारी मांगी गई। पाया गया कि 2008-09 में सबसे अधिक 40,238 गर्भपात हुए। 2009-10 में 13,509 गर्भपात कराया गया। शिशु एवं मातृत्व सुरक्षा के लिए लागू किए गए पीएनडीटी एक्ट में भी विशेष परिस्थितियों में ही तीन महीने के गर्भधारण के अंतराल में अल्ट्रासाउंड कराने व गर्भपात कराने की इजाजत दी गई है, जिसमें गर्भवती महिला की अनुमति होना जरूरी बताया गया है। गर्भधारण के नौ महीने के समय में एक्ट 5 बार अल्ट्रासाउंड और 12 हफ्ते तक गर्भपात कराने की सलाह देता है। एक्ट में संशोधन के बाद पति की सहमति के बिना भी महिला गर्भपात करा सकती है, यदि वह बच्चे को पालने में सक्षम न हो। नवजात को गर्भ में यदि किसी तरह की जेनेटिक समस्या हो तो भी गर्भपात कराया जा सकता है। बलात्कार के बाद भी एक्ट 12 हफ्ते से अधिक समय पर गर्भपात की इजाजत देता है, जिससे महिला को नुकसान न हो।
क्या है पीएनडीटी
प्री-नेटल डाइग्नोस्टिक तकनीक (पीएनडीटी) के अंतर्गत गर्भवती महिला की किसी भी तरह की शारीरिक जांच, बच्चे के जन्म से पूर्व उसके लिंग, बच्चे की विसंगतियां, जेनेटिक बीमारियां, भ्रूण की स्थिति, भू्रण का लिंग, शारीरिक असामान्यता आदि या अन्य कोई भी ऐसी असाधारण बीमारी या विकलांगता जो बच्चे के जन्म से संबंधित हो, की जांच होती है। पर भारत में इस तकनीक का दुरुपयोग कई लोग जन्म से पहले भ्रूण का लिंग जानकर गर्भपात करवाने के लिए करते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने और लड़के-लड़कियों के बीच के आनुपातिक अंतर को कम करने के लिए सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सबसे पहले प्री-नेटल डाइग्नोस्टिक तकनीक (पीएनडीटी) के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्री-नेटल डाइग्नोस्टिक तकनीक एक्ट 20 सितंबर, 1994 को बनाया गया, जिसे एक जनवरी, 1996 को लागू किया गया। इस एक्ट को बाद में संशोधित करके 14 फरवरी, 2003 को प्रभावी रूप से लागू किया गया। इस एक्ट के आने से कन्या भ्रूण हत्या में कमी तो आई है, लेकिन उतनी नहीं जितनी कि आनी चाहिए थी। लड़की और लड़के के बीच का अनुपात आज भी भारत के कई राज्यों में काफी ज्यादा है। मेडिकल साइंस में बहुत सी नई-नई तकनीकों के आने के कारण भी इस कानून पर ठीक से अमल हो पाना मुश्किल हो रहा है। लोगों को बेटा-बेटी को एक समान समझना होगा, तभी कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सकता है। साथ ही समाज को जागरूक होना भी आवश्यक है। जब तक डॉक्टर या एक्ट का उल्लघंन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ शिकायत ही दर्ज नहीं होगी, तब तक कानून भी कुछ नहीं कर पाएगा।
प्री नेटल डाइग्नोस्टिक तकनीक एक्ट के अंतर्गत कुछ नियम और शर्तें लागू की गई हैं-
क्लीनिक या नर्सिंग होम को हिंदी और अंग्रेजी में लिंग परीक्षण कानूनन अपराध हैÓ और यहां लिंग परीक्षण नहीं होताÓ का बोर्ड लगाना आवश्यक है।
एक्ट के तहत अल्ट्रासाउंड मशीन या किसी अन्य तकनीक द्वारा गर्भ में पलते भ्रूण का लिंग पता लगाना और उसे लिखित या मौखिक रूप से बताना अपराध है।
कोई भी क्लीनिक इस टेस्ट को तब तक नहीं कर सकता, जब तक गर्भवती महिला लिखकर यह न दे कि वह बच्चे का लिंग जानने के लिए यह टेस्ट नहीं करवा रही है।
इस एक्ट के अंतर्गत जांच करवाने से पहले महिला किस कारण से इस टेस्ट को करवाना चाहती है, के बारे में बताना आवश्यक है।
बच्चे का लिंग पता करवाने के लिए महिला को उसके पति या किसी रिश्तेदार द्वारा बाध्य नहीं किया जाएगा, ऐसा करने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान है।
एक्ट के अंतर्गत सभी अल्ट्रासाउंड मशीनों और उनके कार्यस्थलों का पंजीकरण जरूरी है।
यह एक्ट जेनेटिक काउंसलिंग सेंटर, (शिक्षण संस्थान, अस्पताल, नर्सिंग होम), जेनेटिक क्लीनिक (क्लीनिक, शिक्षण संस्थान, अस्पताल, नर्सिंग होम) तथा जेनेटिक लैबोरेटरी पर जम्मू और कश्मीर के अलावा पूरे भारत वर्ष में लागू है।
कोई भी जेनेटिक काउंसलिंग सेंटर, लैबोरेटरी क्लीनिक, नर्सिंग होम या अस्पताल जो इस एक्ट के तहत रजिस्टर्ड नहीं है, वह प्री-नेटल जांच नहीं कर सकता।
कोई भी गाइनोकोलॉजिस्ट, मेडिकल प्रैक्टिशनर या अन्य कोई भी व्यक्ति प्री-नेटल की जांच स्वयं नहीं कर सकता और न ही जांच करने की इजाजत दे सकता है, जब तक वह रजिस्टर्ड न हो।
- Kumar Rejendra