31-Jul-2014 10:40 AM
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पश्चिम बंगाल में 8 वर्षीय बेटी को सामुहिक दुष्कर्म के बाद पेड़ से लटकाकर मारने वाले तांत्रिक को तो जनता ने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया, लेकिन ऐसे बहुत से दरिंदे हैं जिन्हें सजा

मिलना बाकी है। बैंगलूर में भी छह साल की बच्ची का स्कूल में यौन शोषण किया गया। इस मामले में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया उनमें से मुख्य आरोपी लंबे समय से इस तरह की हरकतें कर रहा था और कई मासूम बच्चों को उसने अपनी हवस का शिकार बनाया था। इस घटना के बाद बैंगलूर उबल गया। जनता ने विरोध दर्ज कराया, जगह-जगह धरने-प्रदर्शन हुए, लेकिन गैर जिम्मेदाराना बयान हर जगह सुनाई पड़ते रहे चाहे वह कर्नाटक के मुख्यमंत्री सीता रमैया हों या मुलायम सिंह यादव या फिर कोई अन्य। बैंगलूर में तो स्कूल के स्टाफ ने ही सामूहिक दुष्कर्म किया और आरोपियों के खिलाफ पॉक्सो के तहत मामला दर्ज करने के बाद भी जनता का आक्रोश समाप्त नहीं हुआ। दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने स्कूल के चैयरमैन को भी गिरफ्तार किया।
स्कूलों में यौन शोषण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हर तीन में से दो स्कूली बच्चे यौन उत्पीडऩ का शिकार होते हैं। यूनीसेफ की मदद से किए गए इस अध्ययन में पता चला है कि 5 से 15 साल के बच्चों के साथ इस तरह के मामले ज्यादा होते हैं। 70 फीसदी मामलों में बच्चे अपने माता-पिता को इस बारे में सूचना नहीं देते हैं। अधिकांश मामलों में बच्चों को शिकार बनाने वालों में उनके करीबी ही होते हैं। ये स्कूल बस का ड्राइवर, कंडक्टर, टीचर या स्कूल का कोई स्टॉफ हो सकता है। बच्चे वहां जाने से डरते हैं जहां उनके साथ गलत व्यवहार हुआ हो। कई बार बच्चे समझ ही नहीं पाते कि उनके साथ कुछ गलत हो रहा है। अगर वह समझते भी हैं तो डांट पडऩे के डर से माता-पिता से इस बारे में बात नहीं करते हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाल ही में जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी है वो चौंकाने वाली है। केवल यूपी ही नहीं राष्ट्रीय बाल आयोग ने कुछ समय पूर्व सारे प्रदेशों में सर्वेक्षण के बाद यह बात कही थी कि स्कूली बच्चों को स्कूल से लेकर उनके घर लौटने तक यौन शोषण का शिकार होना पड़ सकता है। स्कूल में शिक्षक और स्टाफ द्वारा, स्कूल बस में ड्राइवर, कंडेक्टर द्वारा, सुरक्षाकर्मी से लेकर पर्सनल अटेंडेंट द्वारा या बड़े बच्चों द्वारा यौन शोषण की घटनाएं बढ़ रही हैं। घर के भीतर भी ऐसी घटनाएं निकट रिश्तेदारों द्वारा अंजाम दी जाती हैं। मासूम बच्चे बताने से कतराते हैं और भीतर ही भीतर घुटते रहते हैं। उनका व्यक्तित्व सहमा सा हो जाता है। विकास के सारे रास्ते रुक जाते हैं। पढ़ाई में मन नहीं लगता, पिछडऩे के कारण बच्चे कई बार कुसंगति में पड़कर अपराध की तरफ भी मुड़ जाते हैं। जघन्य अपराध करने वाले कई बाल अपराधी पहले यौन शोषण के शिकार हुए थे ऐसा तथ्य सामने आया है।
भारत में बाल यौन शोषण की समस्या इसलिए भी विकराल हो रही है क्योंकि महिलाएं और समझदार बच्चियां जागरुक हो चुकी हैं तथा उनकी सतर्कता का स्तर पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ गया है। इसीलिए दरंदों के निशाने पर बचपन है। यह समस्या जिस स्तर तक पहुंच चुकी है उससे निपटने के लिए अकेले कानून से काम नहीं चलेगा। सभी स्कूलों में निगरानी की व्यवस्था बढ़ाने पड़ेगी। बच्चों की काउंसलिंग करते हुए उनसे जानकारी भी जुटाई जानी चाहिए ताकि समय रहते ऐसे अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सके।
यूपी के भयावह आंकड़े
उत्तरप्रदेश पुलिस ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उसके मुताबिक पिछले साल 21 फीसदी यानी 649 नाबालिग बच्चे रेप का शिकार हुए। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2013 में बलात्कार के मामलों में 55.37 फीसदी इजाफा हुआ है। साल 2012 में बलात्कार के 1,963 मामले सामने आए थे, जबकि साल 2013 में 3,050 मामले दर्ज हुए। हैरानी वाली बात यह है कि पीडि़तों में अधिकांश नाबालिग थे। 3,050 मामलों में से 1,436 पीडि़तों की उम्र 18 साल से कम थी। साल 2013 में बलात्कार के जो 3,050 मामले दर्ज हुए थे उनमें से......
- 18 से 30 साल के पीडि़तों की संख्या 1307 थी, जो कि कुल पीडि़तों का 42.8 फीसदी है।
- 14 से 18 साल के पीडि़तों की संख्या
787 थी जो कि कुल पीडि़तों का 25.8 फीसदी है।
- 10 से 14 साल के पीडि़तों की संख्या
395 थी जो कि कुल पीडि़तों का 12.9 फीसदी है।
- 30 साल और उससे ऊपर के पीडि़तों की संख्या 307 थी जो कि कुल पीडि़तों का 10.1 फीसदी है।
- 10 साल के कम के पीडि़तों की संख्या 254
थी जो कि कुल पीडि़तों का 8.3 फीसदी है।