17-Sep-2014 06:14 AM
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दिल्ली में दिल्ली विश्वविद्यालय की सभी सीटों पर भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जीत ने विधानसभा चुनाव की संभावना पैदा कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र को कहा है

कि दिल्ली कब तक सरकार विहीन रहेगी। इससे खरीद-फरोख्त को भी बढ़ावा मिलेगा। छात्र राजनीति का प्रभाव विधानसभा चुनावों पर उतना नहीं पड़ता लेकिन इससे युवाओं का मिजाज पता चलता है। दिलचस्प यह है कि दिल्ली में नंबर 2 की हैसियत रखने वाली आम आदमी पार्टी छात्र राजनीति में नहीं है लिहाजा युवाओं के मिजाज को भांपने का यह संपूर्ण मापदंड भी नहीं हो सकता। किंतु दिक्कत यह है कि दिल्ली विधानसभा को संवैधानिक रूप से भी ज्यादा समय तक लंबित नहीं रखा जा सकता। कोई न कोई व्यवस्था तो बनानी ही होगी। इसीलिए भाजपा हर संभव कोशिश कर रही है कि दिल्ली में वह सरकार बना ले। लेकिन भाजपा की इन कोशिशों को आम आदमी पार्टी फिलहाल कामयाब होने नहीं दे रही है।
भाजपा बहुमत से 5 सीटें पीछे है। उसके तीन विधायक सांसद बन गए हैं और फिलहाल विधानसभा में सीटों की संख्या 67 है। भाजपा के पास सभी सहयोगियों सहित 29 सीटें हैं। इसका अर्थ यह है कि या तो विधायकों को खरीदना पड़ेगा या फिर दूसरे दलों मेें विभाजन करवाना पड़ेगा। कांग्रेस के कुछ विधायक पहले टूट सकते थे लेकिन अब कांग्रेस भी चुनाव चाहती है ताकि बाद की स्थिति स्पष्ट हो सके। अरविंद केजरीवाल ने सरकार बनाने की भरसक कोशिश की लेकिन कांग्रेस ने उन्हें हरी झंडी नहीं दिखाई। इसलिए उन्होंने थक-हारकर चुनाव करवाने के लिए उप राज्यपाल से अनुरोध किया। अब दिल्ली के उप राज्यपाल चाहते हैं कि भाजपा सरकार बना ले। भले ही वे इसके लिए प्रत्यक्ष कोई कदम नहीं उठा रहे हों लेकिन सच तो यह है कि दिल्ली में इतने समय तक विधानसभा को लंबित रखते हुए विधानसभा भंग न करने का जो कदम उप राज्यपाल ने उठाया है उससे उप राज्यपाल की मंशा साफ झलकने लगी है।
लेकिन विधानसभा चुनाव में देरी ने भाजपा को परेशान किया। जितनी अधिक देरी होगी उतना फायदा आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को मिलेगा। राजनीतिक विश्लेषक यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि भाजपा दिल्ली में चुनाव करवाने की जल्दबाजी में क्यों नहीं हैं। क्या भाजपा को यह अंदेशा है कि अगले चुनाव में वह जीत नहीं सकेगी? क्या मोदी लहर का असर खत्म हो गया है? आखिर क्या वजह है जो चुनाव में जाकर पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी सत्ता में नहीं लौटना चाहती? मान लो जोड़-तोड़ करके बीजेपी ने दिल्ली में सरकार बना भी ली तो उस सरकार का भविष्य क्या होगा? इस बारे में भी कई अटकलें लगाई जा रही हैं। एक खबर यह भी है कि हर्षवर्धन के बाद दिल्ली में मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा की तरफ से कोई एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई है। एक-दो नेता इस दौड़ में आगे हैं उधर कई बार स्मृति ईरानी और किरण बेदी का नाम भी सुनने में आया। विजय गोयल भी ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। लेकिन उनकी पटरी बैठ नहीं पा रही है। इसी की चिंता पार्टी के रणनीतिकारों को है। क्योंकि गोयल चुनाव जितवा नहीं सकते तो हरवा तो सकते हैं। भले ही लोकसभा चुनाव में सातों सीटें भाजपा ने जीती हैं लेकिन 20 विधानभा सीटों पर गोयल का भी अच्छा-खासा प्रभाव है।
भाजपा में चुनाव लडऩे को लेकर भी दो मत हैं। कु़छ केंद्रीय नेता चाहते हैं कि भाजपा को चुनाव में जाना चाहिए लेकिन स्थानीय नेता जोर लगा रहे हैं कि येनकेन-प्रकारेण दिल्ली में सरकार बना ली जाए। मौजूदा हालात में उन्हें यही उपयुक्त विकल्प जान पड़ रहा है। सरकार बनाई जाए अथवा नहीं यह बड़ा सवाल नहीं है। सवाल यह है कि सरकार बनाने के लिए संख्या कहां से लाई जाएगी? संख्या लाने के लिए वही खरीद-फरोख्त और प्रलोभन की नीति अपनानी पड़ेगी। आम आदमी पार्टी को तोडऩा आसान नहीं है। आम आदमी पार्टी के सारे विधायक कुछ इस तरह की तकनीक से सुसज्जित हैं कि वे पल-पल की रिकॉर्डिंग कर लेते हैं। हाल ही में दिल्ली के एक बड़े भाजपाई नेता शेरसिंह डागर ने जब आम आदमी पार्टी के कुछ विधायकों को 4-4 करोड़ रुपए में खरीदने की कोशिश की तो उन नेता का स्टिंग ऑपरेशन कर लिया गया और भाजपा को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। इसीलिए देर-सवेर चुनाव ही एकमात्र विकल्प बचा हुआ है।
शीला ने चौंकाया
राज्यपाल पद से इस्तीफा दे चुकीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने यह कहकर सबको हैरान कर दिया कि दिल्ली में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा को ही सरकार बनानी चाहिए। शीला के इस कथन का क्या अर्थ है यह तो वे ही जाने लेकिन सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस के कुछ नेता शीला के संपर्क में हैं और वे कांग्रेस को इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि कांग्रेस भाजपा सरकार बनाने में सहयोग करे ताकि मौका पडऩे पर उचित समय देखकर सरकार गिराकर चुनाव में जाते हुए कांग्रेस अपनी साख बचा ले।
-Bindu Mathur