17-Sep-2014 06:11 AM
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मोदी सरकार के सौ दिन पूरे हो गए। जब से मनमोहन सिंह ने सौ दिन की कार्ययोजना का प्रस्ताव दिया था उसके बाद से ही सरकारों के सौ दिन पूरे होने पर कामकाज के आंकलन की परंपरा बन

गई है। सरकार चाहे या न चाहे मीडिया तो आंकलन करने बैठ ही जाता है। बहसें होती हैं, लेख लिखे जाते हैं, सुझाव दिए जाते हैं, आलोचना और समालोचना की जाती है।
यह तयशुदा है कि इतने बड़े देश मेंं कोई भी सरकार मात्र सौ दिन में गुणात्मक सुधार नहीं कर सकती उसके लिए तो वर्षों का समय चाहिए। किंतु फिर भी सरकारें उस दिशा में कदम तो बढ़ा ही सकती हैं जिससे यह प्रतीत हो कि देश आगामी समय में कितना आगे बढ़ेगा और उसका क्या लाभ आम जनता को मिलेगा। नरेंद्र मोदी सरकार को लेकर कई सर्वेक्षण भी किए गए जिसमें जनता ने सरकार के कामकाज पर संतोष जताया है। महंगाई जैसे कुछ एक मोर्चों को छोड़ दिया जाए तो ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं सरकार ने पहले के मुकाबले ज्यादा गति से काम किया है। मोदी वैसे भी लीक से हटकर चल रहे हैं। उन्होंने सरकारी कामकाज को ज्यादा विश्वसनीय और पारदर्शी बनाने की कोशिश की है। आलसीपन तथा कामचोरी के लिए बदनाम केंद्र के कर्मचारी पहले की अपेक्षा ज्यादा फुर्ती से काम कर रहे हैं और रिश्वत लेने में थोड़ा डरते भी हैं। हालांकि चुपचाप ले भी लेते हैं।
प्रधानमंत्री के रूप में स्वतंत्रता दिवस के भाषण में मोदी ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना की घोषणा की थी। किसी को उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी उस पर अमल भी हो जाएगा। लेकिन मोदी सरकार ने तत्परता दिखाई और डेढ़ करोड़ लोगों के बैंक खाते खुल गए। हालांकि यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि इन खातों में धन कहां से आएगा? जेब तो बना दी गई है पर वह भरेगी कैसे? 1 लाख रुपए का बीमा खाताधारियों को राहत अवश्य दे सकता है। ऐसा ही एक अन्य कदम सुरक्षा में 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर उठाया गया है। यदि 2015 के अंत तक इस दिशा में प्रभावी पहल की गई तो 2020 तक भारत शायद उन देशों में शामिल हो जाए जो हल्के हथियार बनाकर निर्यात भी करते हैं। मोदी सरकार ने आते ही काले धन पर एसआईटी का गठन किया था। उस एसआईटी ने क्या किया इसका चर्चा अब नहीं होता। क्योंकि कालाधन भारत लाना इतना भी आसान नहीं है। स्विस बैंकों ने कुछ नरमी दिखाई है पर इतनी आसानी से वो पैसा देंगे नहीं क्योंकि इसी पैसे से उनकी भी अर्थव्यवस्था चलती हैै। फिर उस आंकड़े से अभी भी मोदी सरकार कोसों दूर है जो यह पूरी तरह बता सके कि कितना भारतीय धन विदेशोंं में जमा है? मोदी ने सांसदों से आग्रह किया था कि आप एक गांव को गोद लो और उसे आदर्श गांव में परिवर्तित कर डालो। मोदी के इस आग्रह को केवल एक सांसद ने माना है। लोकसभा में एनडीए की संख्या 330 से ऊपर है। यदि मोदी के सुझाव को माना जाता तो इस देश के 330 गांवों का भाग्य बदल सकता था। बाकी सांसद भले ही न मानते पर मोदी के ही समर्थक उनके इस फैसले पर अमल नहीं कर पाए हैं।
जजों की नियुक्ति को लेकर पिछले कुछ समय से विवाद चल रहा था। कहा जा रहा था कि जज नियुक्ति की प्रक्रिया पक्षपाती है और इसमें अपनों को लाभान्वित किया जा रहा है। सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग की घोषणा करके कोलेजियम प्रणाली खत्म कर दी है लेकिन न्यायिक आयोग कितना सक्षम होगा यह भी देखना है क्योंकि व्यवस्थाएं बदलना आसान है लेकिन नई व्यवस्था को उतना सुचारू बनान कठिन है। मोदी ने विदेश नीति को भी गर्माहट प्रदान की है। उनकी जापान यात्रा बहुत सफल रही। सार्क देशों से भारत के रिश्ते अब पहले से ज्यादा मधुर हैं। मोदी भूटान और नेपाल की यात्रा पर हो आए हैं। पाकिस्तान को दो-टूक शब्दों में कह दिया गया है या तो अलगाववादियों से बात कर लो या फिर हम से। अधोसंरचना पर अब व्यापक काम हो रहा है। मोदी सरकार ने नागपुर मेट्रो रेल सहित कई पॉवर ग्रिड और सेटेलाइट योजनाओं को हरी झंडी दिखा दी है। भारत को डिजिटल भारत बनाने का संकल्प मोदी ने पूरा करना शुरू कर दिया है। सबसे पहले माय गवर्मेन्ट पोर्टल लाँच की गई और उसके बाद 20 हजार गांवों तक ब्रॉडबैंड इंटरनेट सुविधा पहुंचाने का काम प्रारंभ किया गया। जो पोर्टल खोला गया है उसमें एक फोरम भी है जिसमें सरकारी कामों से संबंधित प्रगति और रुकावट पर प्रतिक्रिया सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंचाई जाएगी।
रोजगार की दिशा में भी कदम उठाए जा रहे हैं। आम बजट में 10 हजार करोड़ रुपए की धनराशि छोटे और मझौले उद्यमों के लिए आरक्षित की गई थी लेकिन संकट यह है कि नौकरशाही और सरकार के कर्मचारी टैक्स से लेकर तमाम कानूनी अड़चनें लगाते हैं। अब इसे दूर करने के लिए ये जो समिति बनाई गई है वह अपने सुझाव अगले कुछ माह में देगी। उम्मीद है कि नौजवानों का कौशल बढ़ाने के लिए सरकार प्रभावी कदम उठा सकती है। दूसरी तरफ देश की प्रतिभाओं को पलायन से रोकने के लिए सरकार ने 5 नए भारतीय प्रबंध संस्थान और भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान खोलने के लिए जो राशि आरक्षित की है वह मात्र 500 करोड़ है जोकि अपर्याप्त है। इसे 5 गुना करना ही होगा। गठबंधन की मजबूरियों से मुक्त मोदी सरकार यह करने में सक्षम है।
मुंबई से अहमदाबाद के बीच जो बुलेट ट्रैन चलने वाली है उसे देश के अन्य शहरों तक भी पहुंचाया जाना चाहिए। लेकिन इसके लिए रेलवे को बदलना होगा। रेलवे में वही पुरान ढर्रा चला आ रहा है जिसे हटाना होगा। गंगा सहित जिन 40 नदियों को निर्मल बनाने के लिए सरकार ने अलग मंत्रालय गठित किया है उसके कामकाज में कोई गति नहीं है। सुप्रीम कोर्ट तो फटकार लगा ही चुका है कि ऐसे में तो गंगा 200 वर्षों में भी साफ न होगी। सवाल यह भी है कि गंगा जैसी नदियों में अविरल प्रवाह बनाए रखने के लिए उन पर बने बांधों को डी-कमीशन्ड किया जाएगा? जितना जरूरी स्वच्छ जल है उतना ही जरूरी स्वच्छ ऊर्जा है और इसके लिए केंद्र सरकार ने जो 8 सोलर ऊर्जा प्लांट लगाने की घोषणा की है वे प्लांट लग गए तो 28 हजार किलोवॉट बिजली का उत्पादन करेंगे इससे स्वच्छ बिजली देश को मिलेगी। 10 स्मार्ट शहर बनाने के लिए 7 हजार 60 करोड़ रुपए की घोषणा स्वागत योग्य है। लेकिन नाबालिग की उम्र घटाने की पहल तभी कामयाब होगी जब सरकार सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र भी घटाएगी। स्वच्छ भारत अभियान और स्कूलों में टॉयलेट अच्छी पहल है। विश्व व्यापार संगठन में भारत द्वारा हस्ताक्षर करने से असहमत होना स्वागत योग्य है। प्लानिंग कमीशन तथा आरटीओ को खत्म करना भी आवश्यक है, इनका विकल्प प्रभावी होना चाहिए। खास बात यह है कि अब मंत्री अपने विभागों का ब्यौरा सरकार को देंगे और सरकार के सबसे काबिल तथा मोदी के दाहिने हाथ वित्तमंत्री अरुण जेटली इस आधार पर मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करेंगे। लेकिन मोदी सरकार विवादों और आरोपों से मुक्त नहीं है जनता ने भले ही मोदी को अच्छे माक्र्स दिए हों पर कुछ ऐसे विवाद हैं जिन्होंने मोदी सरकार की छवि को पर्याप्त नुकसान पहुंचाया है। राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह पर पैसे लेकर ट्रांसफर कराने के आरोप लगे। रेलमंत्री सदानंद गौड़ा के बेटे कार्तिक गौड़ा पर कन्नड़ फिल्मों की एक अभिनेत्री ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया। अरुण जेटली द्वारा टूरिज्म को बढ़ावा देने वाले एक कार्यक्रम में दुष्कर्म को छोटी-मोटी घटना बताने व इसे मीडिया में ज्यादा तवज्जो देने से पर्यटन उद्योग को नुकसान होने की बात कहने पर काफी बवाल खड़ा हो गया। भाजपा के तीसरी पंक्ति के नेता कीर्ति आजाद ने भी जेटली को जुबान संभाल कर बोलने की नसीहत दे दी।
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की जासूसी का मामला पूरे जोर-शोर से उठा। हालांकि गडकरी ने जासूसी की घटना से इनकार किया। बाद में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के दौरे के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बयान से इस मामले का खुलासा हुआ। उन्होंने कहा कि दो मित्र देश एक-दूसरे की जासूसी करें यह उचित नहीं है। परिवार के अलावा मोदी सरकार के मंत्रियों पर भी सीधे आरोप लगे। स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन पर एक ईमानदार अफसर का ट्रांसफर करने का आरोप लगा। कहा गया कि डॉ हर्षवर्धन ने यह कार्रवाई भाजपा के ताकतवर महासचिव जेपी नड्डा के कहने पर की। डॉ. हर्षवर्धन ने स्कूलों में सेक्स एजुकेशन को वल्गर व एड्स रोकने के लिए भारतीय संस्कृति को अपनाने की बात कह कर भी विवाद खड़ा कर दिया था। बाद में उन्हें अपनी बातों से पीछे हटना पड़ा। स्मृति ईरानी की डिग्री को लेकर विवाद छिड़ गया। आरोप लगे कि उन्होंने अलग-अलग शपथ पत्र में अपनी अलग-अलग शिक्षा व डिग्री का उल्लेख किया। ईरानी के खिलाफ मोदी की प्रशंसक मानी जाने वाली लेखिका मधु किश्वर ने ही मोर्चा खोल दिया। बाद में दिल्ली यूनिवर्सिटी के चार साल बनाम तीन साल के डिग्री पाठ्यक्रम को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ। अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला के बयान से भी खासा विवाद उत्पन्न हुआ। उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान का समर्थन किया था, जिसमें सभी भारतीयों के लिए हिंदू शब्द के प्रयोग की बात कही गई थी। बाद में सफाई देते हुए। हेपतुल्ला ने कहा कि उन्होंने हिंदू नहीं हिंदी शब्द का प्रयोग किया था। भाजपा नेता प्रभात झा के उस बयान पर भी काफी हंगामा मचा जिसमें उन्होंने टमाटर की कीमत बढऩे के मीडिया के सवाल पर कहा कि टमाटर लाल-लाल गाल वाले अमीर लोग लोग खाते हैं। इसे आम आदमी नहीं खाता। गोरखपुर से भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के बयान पर भी हंगामा मचा। आदित्यनाथ ने अपने बयान में कहा था कि जहां मुसलिम आबादी अधिक है, वहीं दंगे होते हैं और जहां मुसलिम बहुसंख्यक हैं, वहां दूसरे समुदाय के लिए कोई जगह नहीं है।
- Renu agal