ममता-2: चैंजिंग द बिहेवियर
17-Sep-2014 11:26 AM 1234765

मध्यप्रदेश में प्रतिवर्ष 24 लाख महिलाएं गर्भ धारण करती हैं किंतु उनमें से अधिकांश एनीमिया सहित तमाम संकटों का सामना करती हैं और गर्भावस्था से जुड़े जोखिम उठाती हैं। लेकिन स्वास्थ्य सचिव प्रवीण कृष्ण ने इन गर्भवती महिलाओं को उचित उपचार और स्वास्थ्य प्रदान करने का बीड़ा उठाया है। कुछ समय पहले ममता अभियान का शुभारंभ किया गया था अब उसका दूसरा चरण प्रारंभ किया गया है। लेकिन यह चरण ज्यादा प्रभावी है क्योंकि इसमेें प्रमुख सचिव ने चैंजिंग द बिहेवियर अर्थात व्यवहार में बदलाव का नारा दिया है।
अक्सर होता यह है कि गर्भवती महिलाओं को आशा कार्यकर्ता या किसी अन्य स्रोत से दवाएं मिलती हैं तो वे उन दवाओं को फेंक देती हैं। उन्हें आयरन तथा मल्टी विटामिन की नीली-लाल गोलियां खाना अनुचित लगता है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश मेें गर्भवती महिलाओं के बीच एनीमिया, आयरन से लेकर तमाम तरह के स्वास्थ्य जोखिम प्रचुरता से देखे जा रहे हैं इसीलिए प्रमुख सचिव ने आशा कार्यकर्ताओं, ग्राम स्वास्थ्य समिति को कहा है कि वे गर्भवतियों के मुंह में गोली डालेंं और उन्हें पानी पिलाकर यह सुनिश्चित करें कि गोली उनके पेट में पहुंच गई है। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अब कागजों पर बनी रिपोर्ट को आधारहीन मानते हैं। उनका साफ कहना है कि मैं रिपोर्ट देखने के पहले यह जरूर देखूंगा कि किस जिले में कितनी माताएं और शिशु दवाई न देने के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हो गए। वह यह भी कहते हैं कि सरकारी ढर्रा चलता आया है होता यह है कि स्वास्थ्य विभाग के आला अफसर कमिश्रर और कलेक्टर को जो रिपोर्ट सौंपते हैं वो कागजी और फर्जी होती है जिसमें गलत आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं। यही कारण है कि महिलाओं का हीमोग्लोबिन लगातार कम रहता है। अब जो कदम उठाया गया है उससे उम्मीद बंधी है कि हीमोग्लोबिन 12 के स्तर तक पहुंचेगा और माता तथा शिशुओं की असमय मृत्यु पर रोक लगेगी क्योंकि भावी माताओं के मुंह में सीधे दवा डाली जाएगी।
स्वास्थ्य विभाग का रवैया कुछ ऐसा है कि यहां फर्जी आंकड़े देने की परंपरा रही है। विभाग के गांव तथा अर्धशहरी क्षेत्रों में कार्यरत कई जिम्मेदार लोग सरकार को गुमराह करने के लिए गलत जानकारी साल दर साल देते रहे हैं जिसके चलते प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति दयनीय है और जच्चा-बच्चा मृत्यु दर बढ़ती ही जा रही है। कुपोषित बच्चे पैदा हो रहे हैं क्योंकि माताओं को गर्भावस्था के दौरान उचित पोषण नहीं मिल पाता। वे जागरूकता के अभाव में आयरन, मल्टी विटामिन, सुक्रोस सहित तमाम आवश्यक दवाईयां डॉक्टरों के समझाने के बाद भी नहीं ले पातीं। खून की कमी भारतीय माताओंं का स्थाई लक्षण है। यहां पर खून की कमी के खतरे ज्यादातर माताएं उठाती हैं। मध्यप्रदेश में यह बीमारी कुछ ज्यादा ही है। इसी कारण कुपोषित बच्चों का आंकड़ा देश के औसत से हमेशा उच्च ही रहता है। ऐसा नहीं है कि सरकारें इस दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रहीं। सरकारें कोशिश कर रही हैं पर दुविधा यह है कि जननी के बीच जागरूकता नहीं है। माताएं उचित पोषाहार और दवाओं के महत्व को समझ नहीं पा रही हैं। प्रबीर कृष्ण ने जो कदम उठाया है उससे जागरूकता के साथ-साथ लक्षित परिणाम मिल सकते हैं पर प्रश्र वही है कि उनके द्वारा की गई पहल को कितनी गंभीरता से अमली जामा पहनाया जाएगा। यदि प्रयास उसी रूप में किए गए और लगातार किए गए, आशा कार्यकर्ताएं प्रतिदिन जाकर माताओं को अपने हाथ से दवा खिलाने के अभियान में जुटी रहीं तो निश्चित ही परिणाम सुखद होंगे।
जहां तक मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग का प्रश्र है वह लम्बे समय से इस दिशा में प्रयत्नशील है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि मप्र में भावी माताओं को उचित स्वास्थ्य और सुरक्षित प्रसव देने की दृष्टि से 1412 प्रसव केन्द्र को क्रियाशील किया गया है, जिनके माध्यम से सुरक्षित प्रसव सेवाएँ दी जा रही हैं। ग्राम-स्तर पर प्रभावी हस्तक्षेप के लिये राज्य में 49 हजार 970 ग्राम आरोग्य केन्द्र स्थापित किये गये हैं, जिन्हें और सुदृढ़ किया जा रहा है। इन प्रयासों से जहाँ प्रदेश में मातृ मृत्यु दर 310 प्रति एक लाख जन्म से घटकर 227 प्रति एक लाख जन्म, शिशु मृत्यु दर 63 प्रति हजार जीवित जन्म से घटकर 56 प्रति हजार तथा सकल प्रजनन दर 3.1 से घटकर 2.9 पर आ गई है। प्रदेश में मातृ मृत्यु दर 225 प्रति लाख जन्म, शिशु मृत्यु दर 30 प्रति हजार जीवित जन्म तथा सकल प्रजनन दर 2.6 करने का लक्ष्य किया गया है। ममता अभियान के द्वितीय चरण में खतरे के जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं के चिन्हांकन तथा उनके समुचित उपचार को जन-साधारण की जानकारी में लाकर प्रत्येक प्रसव को सुरक्षित बनाने का प्रयास किया जायेगा।
अभियान में मातृ, शिशु मृत्यु दर एवं सकल प्रजनन दर में प्रभावी कमी लाने के लिये इन सेवाओं से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी प्रोटोकॉल्स के पालन को प्रमुखता से लागू किया जा रहा है। अभियान में साक्ष्य आधारित गतिविधियों का स्वास्थ्य प्रदायकर्ताओं द्वारा प्रभावी संचालन किया जा रहा है। ममता अभियान के प्रथम चरण में जहाँ प्रसव केन्द्रों की क्रियाशीलता, प्रसव परिवहन व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण, चिकित्सकीय जाँचों, औषधियों एवं भर्ती महिलाओं के लिये नि:शुल्क पौष्टिक भोजन की व्यवस्था पर ध्यान दिया गया। अभियान के दूसरे चरण में प्रसव पूर्व एवं पश्चात महिला एवं शिशु की जाँचों, प्रसव प्रबंधन एवं हाई रिस्क गर्भवती महिलाओं के चिन्हांकन पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

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