17-Sep-2014 06:04 AM
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टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में लालू यादव के खासमखास रहे अपनी मनमर्जी के मालिक सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा के विरुद्ध लगे आरोपों को बेहद गंभीर बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक सप्ताह

के भीतर उन्हें साफ-साफ जवाब देने का जो आदेश दिया था उसके एवज में सिन्हा ने कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में अपना जवाब सौंप दिया है और प्रशांत भूषण से उस व्यक्ति का नाम बताने का कहा है जिसने उन्हें विजिटर सूची प्रदान की थी। दरअसल यह मामला गंभीर इसलिए भी हुआ है क्योंकि सिन्हा के घर पर रखे आगंतुक रजिस्टर की सूची में कुछ ऐसे नाम हैं जो पिछली सरकार से उनकी ट्यूनिंग का संकेत दे रहे हैं। अब सिन्हा ने कहा है कि वे हलफनामा दाखिल नहीं करेंगे बल्कि मौखिक जवाब देना चाहेंगे। उधर कोर्ट ने धमकाया है कि मौखिक जवाब देने पर प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जाएगा। सिन्हा के अधिवक्ता का कहना है कि हलफनामा दाखिल करने से इसका असर टूजी मामले पर पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह 2जी मामले की निगरानी कर रहा है और अगर इसे पटरी से उतारने की कोशिश हुई तो वह सख्त रवैया अपनाएगा। कोर्ट ने सीबीआई निदेशक से कहा, जो भी आप हमें बताना चाहते हैं, हमें साफ-साफ बताएं। प्रशांत भूषण का आरोप है कि सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा ने 2जी घोटाले के आरोपियों से कई बार मुलाकात की थी और उन्होंने रिलायंस के खिलाफ केस भी कमजोर किया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई की उस याचिका पर भी सुनवाई होगी, जिसमें सीबीआई ने प्रशांत भूषण और कामिनी जायसवाल पर झूठे तथ्य पेश करने का आरोप लगाया है और केस दर्ज करने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक के घर में प्रवेश सूची का मूल रजिस्टर हासिल किया है। अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने यह सीलबंद लिफाफे में सौंपा था।
वहीं सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह भूषण से उस स्रोत के बारे में बताने को कहें। जिससे उन्हें ये सब दस्तावेज मिले। सुप्रीम कोर्ट ने आईटीबीपी के 23 और सीबीआई के चार अधिकारियों के नाम भी रिकॉर्ड में लिए जो सीबीआई निदेशक के आवास के द्वार पर ड्यूटी पर थे। कोर्ट ने कहा कि यदि हम सीबीआई निदेशक के खिलाफ प्रकथनों में दम पाते हैं तो हम मामले के लंबित रहने के दौरान उनके द्वारा लिए गए सभी फैसलों को रद्द कर देंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि सिन्हा के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है क्योंकि बीजेपी सरकार खराब बर्तावÓ की सूरत में सीबीआई डायरेक्टर को हटाने के लिए कानून में बदलाव करेगी। मौजूदा कानून के मुताबिक, 2 के फिक्स्ड टर्म से पहले सीबीआई डायरेक्टर को हटाने का कोई प्रावधान नहीं है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि सीबीआई जिस तरह के मामले देखती है, उस लिहाज से जांच एजेंसी के डायरेक्टर को कुछ स्टैंडर्ड बनाए रखना चाहिए। हालांकि सिन्हा के मामले में सरकार के पास विकल्प सीमित हैं। उनका कार्यकाल 2 दिसंबर को खत्म हो रहा है। सीबीआई के संचालन से जुड़े कानून दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टेब्लिशमेंट (डीपीसीई) एक्ट में सीबीआई डायरेक्टर को हटाने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। इसमें सीधे कहा गया है कि केंद्र सरकार 2 साल के तय कार्यकाल के लिए सीबीआई डायरेक्टर की भर्ती करेगी। यह भर्ती सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर की अगुवाई वाली कमेटी की सिफारिशों के आधार पर होगी।
मौजूदा सरकार की योजना यूपीए सरकार की उस सिफारिश को आगे बढ़ाने की है, जिससे सीबीआई डायरेक्टर को हटाने के लिए केंद्र सरकार को अधिकार मिल सकेंगे। इस प्रावधान को डीपीएसई एक्ट के तहत किया जा सकता है, जिससे खराब बर्ताव या अक्षमता साबित होने पर राष्ट्रपति के आदेश से सीबीआई डायरेक्टर को हटाया जा सकेगा। पिछले साल फाइनेंस मिनिस्टर पी. चिदंबरम की अगुवाई वाले जीओएम के सीबीआई की स्वायत्तता पर विचार करने के बाद यह सलाह सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश की गई थी। मौजूदा सरकार जल्द ही कैबिनेट के सामने इसे पेश कर सकती है या सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी का इंतजार कर सकती है।
जनवरी में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार सीबीआई डायरेक्टर को हटाने के लिए प्रावधानों को पेश करने पर विचार कर रही है। मौजूदा कानून के तहत ज्यादा से ज्यादा सीबीआई डायरेक्टर का कार्यकाल खत्म होने से पहले ट्रांसफर किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए भी सीवीसी की अगुवाई वाली उस कमेटी की सहमति लेनी होगी, जिसने डायरेक्टर का चुनाव किया है। हालांकि, सिन्हा के मामले में ट्रांसफर भी मुमकिन नहीं है क्योंकि 60 साल से ऊपर के होने के कारण वे तकनीकी तौर पर रिटायर्ड हैं। एक सीनियर सरकारी अफसर ने बताया कि सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई पर करीबी नजर बनाए हुए है। सीबीआई डायरेक्टर के खिलाफ प्रतिकूल फैसला या टिप्पणी उनकी पोजीशन के लिए दिक्कत खड़ी कर सकता है।
- T.P. Singh